菜单

घर

मंगलवार, 7 मई 2019

28. सही मायने में एक अच्छे व्यक्ति का मानदंड

मोरान लीन्यी शहर, शानडोंग प्रांत
जब से मैं एक बच्ची थी, मैंने हमेशा, दूसरे लोग मुझे कैसे देखते हैं और उनका मेरे लिए मूल्यांकन क्या है, इस बात को बहुत महत्व दिया। ताकि मैंने जो कुछ भी किया उसके लिए दूसरों से प्रशंसा प्राप्त कर सकूँ, जब भी कोई बात उठी, मैंने तब भी किसी से कोई तर्क नहीं किया, ताकि मेरी अच्छी छवि जो लोगों में मेरे लिए थी वह बनी रहे। अंत के दिनों में परमेश्वर के कार्य को स्वीकार करने के बाद, मैंने इसी तरीके से काम किया, जैसी अच्छी छवि मेरे भाइयों और बहनों में मेरे लिए थी उसे जिस तरह भी संभव हो कायम रखा।इससे पहले, जब मैं कार्य-प्रभारी थी, मेरा नेता अक्सर कहता था कि मेरा प्रदर्शन एक "हाँ-कहने वाला व्यक्ति," की तरह था और ऐसा प्रदर्शन नहीं था जो सच्चाई को अभ्यास में लाता है। मैंने कभी इसे दिल पर नहीं लिया, बल्कि इसके विपरीत अगर अन्य लोगों ने मुझे एक अच्छे व्यक्ति के रूप में माना, तब मुझे संतुष्टि हुई।
एक दिन, मैंने यह अनुच्छेद पढ़ा: "अगर आप परमेश्वर के प्रति अपनी आस्था में सत्य की खोज नहीं करते, तो अगर आप उल्लंघन करते हुए नहीं भी दिखते, तब भी आप सही मायने में अच्छे व्यक्ति नहीं हैं। वे लोग जो सत्य की तलाश नहीं करते, निश्चिय ही उन्हें धार्मिकता का ज्ञान नहीं है, न ही वे उससे प्रेम कर सकते हैं जिससे परमेश्वर प्रेम करते हैं या उससे नफरत कर सकते हैं जिससे परमेश्वर नफरत करते हैं। वे बिल्कुल भी परमेश्वर के पक्ष में खड़े नहीं हो सकते, परमेश्वर के अनुरूप होने की तो बात ही दूर है। तो कैसे धार्मिकता की भावना न रखने वालों को अच्छे लोग कहा जा सकता है? न केवल उन लोगों को जिन्हें 'हाँ-बोलने वाले लोग' के रूप में सामान्य लोगों द्वारा वर्णित किया जाता है, उन्हें धार्मिकता की समझ नहीं है, बल्कि उनका जीवन में कोई लक्ष्य भी नहीं है। वे केवल ऐसे लोग हैं जो कभी किसी को नाराज़ नहीं करना चाहते, तो उनका मूल्य ही क्या है? सही मायने में अच्छा व्यक्ति ऐसे व्यक्ति को दर्शाता है जो सकारात्मक चीजों से प्रेम करता हो, जो सच्चाई की तलाश में हो और प्रकाश पाने के लिए भरसक प्रयास करता हो, ऐसा जो बुराई में अच्छाई को पहचान सकता हो और जो जीवन में सही लक्ष्य रखता हो; केवल इस तरह के व्यक्ति से ही परमेश्वर प्रेम करता है" ("परमेश्वर की सेवा करने के लिए लोगों को कैसे समझना है सीखना ज़रूरी है" कलीसियाI के कार्य की व्यवस्था और सहभागिता के वार्षिक वृतांत में से)। इन शब्दों को पढ़ने के बाद, मुझे अचानक रोशनी दिखी। अब मैंने देखा कि अच्छा व्यक्ति वह नहीं है जो साधारण लोगों के साथ दोस्ती रखता है और वह जो उनके साथ तर्क-वितर्क और झगड़ा नहीं करता, या वह जो अपने भाइयों और बहनों पर अच्छा प्रभाव छोड़ने में सक्षम है और उनसे एक अच्छा मूल्यांकन प्राप्त करता है। सही अर्थो में अच्छा व्यक्ति वह है जो सकारात्मक चीजों से प्रेम करता है और सच्चाई और धार्मिकता की खोज करता है, ऐसा कोई जिसके जीवन में वास्तविक लक्ष्य हैं, जिसको धार्मिकता की समझ है, जो अच्छे और बुरे में अंतर कर सकता है, उससे प्रेम करता है जिससे परमेश्वर भी प्रेम करते हैं और उससे नफरत जिससे परमेश्वर भी नफरत करते हैं; ऐसा कोई, जो अपने कर्तव्यों के निष्पादन में अपना सब कुछ देने का इच्छुक है और जिसमें सच्चाई और धार्मिकता के लिए अपना जीवन समर्पित करने की इच्छा और साहस है। मेरे खुद के कार्यों की बात करें तो, धार्मिकता का अर्थ कहाँ था? जब भी कोई भाई या बहन सुसमाचार का प्रसार करके वापस लौटकर इस बारे में बात करते कि यह कितना मुश्किल था, मैं संघर्ष महसूस करते हुए, शिकायत करना शुरू कर देती, मानते हुए कि सुसमाचार का प्रचार आसान नहीं था, अनुभव करते हुए कि यह वास्तव में बहुत मुश्किल था, अनजाने में मनुष्य की देह का पक्ष लेते हुए और अधिक सहभागिता करना नहीं चाहती थी। जब मैंने कलीसिया की गड़बड़ी को पाया जिसमें परमेश्वर के विचारों के प्रचार-प्रसार जैसी चीज़ें शामिल थीं, अगर वे गंभीर थे, तो मैंने मामले को हल करने के लिए सामंजस्यपूर्ण शब्दों का इस्तेमाल कर सहभागिता की; अगर वे गम्भीर नहीं थे, मैं मुद्दे को नजरअंदाज कर देती थी, डरते हुए कि अगर मैंने ठीक से नहीं कहा तो सामने वाले व्यक्ति की मेरे बारे में एक गलत धारणा बनेगी। जब मैंने देखा मेरी सहभागी कुछ ऐसी चीजें कर रही थी जो सच्चाई के साथ या उसके परिवेश को ध्यान में रखकर नहीं की जा रही थी, मैं इस मुद्दे को उठाना चाहती थी, लेकिन फिर सोचा, "अगर मैं यह मुद्दा उठाती हूँ तो क्या वह सहन कर सकेगी? एक छोटा सा मुद्दा हमारे अच्छे रिश्ते को चोट पहुँचाने लायक नहीं है। मैं अगली बार के लिए इन्तजार करुँगी और फिर इसे उठाऊँगी।" इस तरह मुझे खुद के लिए बहाने मिल गए ताकि मैं इससे बच कर निकल सकूँ।
अब मैंने देखा कि मैं सिर्फ शैतान के एक अच्छे व्यक्ति मानदंड से मेल खाती थी, जो सामान्य लोगों की नजर में बस एक "हाँ-कहने वाला व्यक्ति" था: जो किसी को नाराज नहीं करना चाहता और परमेश्वर के आनन्द के अच्छे व्यक्ति की तरह नहीं है जो सकारात्मक चीजों से प्रेम करता है, सच्चाई को खोजता है और उसमें धार्मिकता की समझ है। मैंने सच्चाई की प्राप्ति के बजाय दूसरे लोगों के मेरे प्रति विचारों को अधिक महत्ता दी और सिर्फ दूसरों की प्रशंसा पाकर संतुष्ट रही; मैं कैसे जीवन में सही लक्ष्यों से सम्पन्न व्यक्ति हो सकती थी? क्या दूसरों की प्रशंसा साबित कर सकती है कि मैंने सत्य को पा लिया है? क्या दूसरों का अच्छा आंकलन साबित कर सकता है कि मेरे पास जीवन था? अगर मैं परमेश्वर में विश्वास करती थी लेकिन सच्चाई या धार्मिकता की तलाश नहीं कर रही थी, अपने स्वभाव में बदलाव की तलाश नहीं कर रही थी, लेकिन इसके बजाए हमेशा अपनी प्रतिष्ठा का अनुसरण करते हुए और अपना खुद का चेहरा बचा रही थी, परमेश्वर का अनुसरण करते हुए इसका क्या मूल्य था? मैं अंततः क्या प्राप्त कर सकती थी अगर मैं अंत तक इसी तरीके का अनुसरण करती रहती? मैं पूरी तरह से एक भ्रष्ट सृजन थी। अगर मैंने वास्तव में उन सभी से उच्च सम्मान प्राप्त किया था और उनके मन में प्रतिष्ठा कायम की थी, तो क्या मैं वो महादूत नहीं बन गई जो परमेश्वर की स्थिति के लिए संघर्ष करता था? क्या मैं परमेश्वर की असली दुश्मन नहीं बन गई थी? क्या इस तरह की व्यक्ति नहीं थी जिसने परमेश्वर की नजर में घातक पाप किया था? जिन लोगों को परमेश्वर बचाता है और सिद्ध करता है, सही मायने में वे अच्छे लोग हैं जो सच्चाई और धार्मिकता को तलाशते हैं। ये वो अविवेकी लोग नहीं हैं जो बुरे से अच्छा नहीं बता सकते, जो प्रेम और नफरत को लेकर स्पष्ट नहीं हैं और जिन्हें धार्मिकता की समझ ही नहीं है, उन बुरे लोगों की तो बात ही छोड़ें जो सिर्फ अपनी प्रतिष्ठा का ख्याल रखते हैं और जो परमेश्वर के प्रतिरोधी हैं। सामान्य लोग एक अच्छे व्यक्ति के बारे में जो सोचते हैं अगर मैं उसे अपने खुद के आचरण के मानदंड के रूप में लेना जारी रखती हूँ, तो मेरा परमेश्वर द्वारा निष्कासित और दण्डित किया जाना तय है।
हे परमेश्वर! आपके मार्गदर्शन और प्रबुद्धता के लिए धन्यवाद जिसने मुझे कुछ पहचान करने की अनुमति दी कि सही मायने में अच्छा व्यक्ति होना क्या है, और इसके अलावा मेरे गलत अनुमानों और अनभिज्ञता को देखने की अनुमति दी, और मेरे स्वयं के विद्रोह और प्रतिरोध से मेरी पहचान करवाई। हे परमेश्वर! आज से, मैं अपने आचरण के मानदंड के रूप में "सच्चाई को तलाशना और धार्मिकता की समझ रखना" वाक्यांश को ग्रहण करना चाहती हूँ, सच्चाई में गहराई से प्रवेश करने के लिए, मेरे स्वभाव में बदलाव की तलाश करने और सही मायने में एक अच्छा व्यक्ति बनने के लिए जो प्रेम और नफरत के बारे में स्पष्ट है और जिसमें धार्मिकता की समझ है।
स्रोत: सर्वशक्तिमान परमेश्वर की कलीसिया-विजेताओं की गवाहियाँ

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

ईसाई गीत | सिर्फ़ वही प्रवेश करेंगे अंतिम विश्राम में जो हो चुके हैं पवित्र

ईसाई गीत  | सिर्फ़ वही प्रवेश करेंगे अंतिम विश्राम में जो हो चुके हैं पवित्र उतरी है आदम हव्वा से, लेकिन भविष्य की मानव जाति, न होगी ...