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सोमवार, 29 अक्तूबर 2018

क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन, परमेश्वर में विश्वास, परमेश्वर को जानना

क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?


हो सकता है कि परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास की यात्रा एक या दो वर्ष पुरानी हो, और हो सकता है कि इन वर्षों से अधिक भी हो जिसमें तुमने कठिनाइयों को देखा हो; या शायद तुम कठिनाइयों में होकर ही न गए हो और इसके बजाय अत्यधिक अनुग्रह को प्राप्त किया हो। ऐसा भी हो सकता है कि तुमने न ही कठिनाइयों का और न ही अनुग्रह का अनुभव किया हो, परन्तु इसके बजाए बहुत ही साधारण सा जीवन व्यतीत किया हो। चाहे कुछ भी हो, फिर भी तुम परमेश्वर के एक अनुयायी हो, इसलिए आओ उसके पीछे चलने के बारे में बातचीत करें। हालांकि, मैं उन सभी को जो यह वचन पढ़ रहे हैं यह बताना चाहता हूं कि वे सभी जो परमेश्वर को स्वीकारते और उसका अनुसरण करते हैं, परमेश्वर का वचन उनके लिये है, परन्तु वृहत तौर पर सभी लोगों के लिए नहीं, इनमें वे भी हैं जो परमेश्वर का स्वीकार नहीं करते। यदि तुम यह विश्वास करते हो कि परमेश्वर भीड़ से बातचीत कर रहा है, संसार के सभी लोगों से, तो परमेश्वर के वचन का प्रभाव तुम्हारे जीवन पर कुछ भी नहीं पड़ेगा। इसलिए, तुम्हें इन सभी वचनों को अपने हृदय के समीप रखना है, और उनके प्रभाव से अपने आप को बाहर नहीं करना है। जो भी हो, आओ हमारे घरों में क्या होता है उस पर बातचीत करें।
तुम सभी को परमेश्वर पर विश्वास करने का सही अर्थ पता होना चाहिए। परमेश्वर पर विश्वास करने का अर्थ जो मैंने पहले बताया है वह तुम्हारे सकारात्मक प्रवेश से सम्बन्धित है। आज के समय में ऐसा नहीं है। आज मैं परमेश्वर पर तुम सबके विश्वास के सार का विश्लेषण करना चाहूंगा। वास्तव में, यह तुम्हें नकारात्मकता से मार्गदर्शन करना है; यदि मैं ऐसा नहीं करता हूं तो, तुम सब अपने चेहरे की सच्ची अभिव्यक्ति को कभी भी नहीं जान पाओगे और हमेशा अपनी श्रद्धा और निष्ठा पर घमण्ड करते रहोगे। दूसरे शब्दों में, यदि मैं तुम लोगों के हृदय की गहराई में छिपी हुई कुरूपता को उजागर न करूं, तो तुम लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति अपने सिरों पर मुकुट रखकर अपने आप को सारी महिमा देगा। तुम सबका अभिमानी और घमण्डी स्वभाव तुम्हेंस्वयं के विवेक के खिलाफ, मसीह के खिलाफ विद्रोह और विरोध करने के लिए तैयार हो जाता है, और इसलिए तुम लोगों की कुरूपता को उजागर करने के लिए और तुम्हारे इरादों, विचारों, अत्यधिक अभिलाषाओं और लालच से भरी नज़रों को ज्योति में प्रगट करता है। और फिर भी निरंतर यह दावा करते रहते हो कि तुम सब अपने जीवन को मसीह के कार्य के लिए समर्पित कर रहे हो, और मसीह के बहुत पहले कहे गए सत्य को बार-बार दोहराते रहते हो। यही तुम्हारा "विश्वास" है। यही तुम सबका "शुद्ध विश्वास" है। मैंने मनुष्य के लिए आरंभ से बहुत ही सख्त मानक तय कर रखे हैं। यदि तुम लोगों किवफादारी इरादों या शर्तों के साथ होती है, तो मुझे तुम्हारी किसी भी प्रकार की तथाकथित वफादारी को नहीं चाहिये, क्योंकि जो मुझे अपने इरादों और शर्तों से बलपूर्वक धोखा देते हैं, मैं उनसे घृणा करता हूं। मैं मनुष्यों से सिर्फ़ यही कामना करता हूं कि वे मेरे अलावा किसी और के प्रति वफादार न हों और एक ही शब्दः विश्वास, उसी के लिए और उसे ही सिद्ध करने के लिए सारे कार्य करें। मुझे प्रसन्न करने के लिए तुम लोगों द्वारा प्रयोग किए गए मीठे शब्दों को मैं तुच्छ समझता हूं। क्योंकि मैं हमेशा तुम लोगों के साथ पूरी ईमानदारी के साथ व्यवहार करता हूं और इसलिए मैं तुम सबसे भी यही अपेक्षा रखता हूं कि तुम लोग भी मेरे प्रति एक सच्चे विश्वास के साथ कार्य करो। जब विश्वास की बात आती है, तो कई लोग यह सोच सकते हैं कि वे परमेश्वर का अनुसरण करते हैं क्योंकि उनमें विश्वास है, नहीं तो वे इस प्रकार की पीड़ा को नहीं सह सकेंगे। तब मैं तुमसे यह पूछता हूं: ऐसा क्यों है कि तुम परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास तो रखते हो, लेकिन उसके प्रति श्रद्धा नहीं रखते? यदि तुम परमेश्वर के अस्तित्व में विश्वास रखते हो तो उसके प्रति तुम्हारे हृदय में भय क्यों नहीं है? तुम यह मानते हो कि मसीह परमेश्वर का अवतार है, तो क्यों तुम उसके प्रति इस प्रकार की अवहेलना और उपेक्षापूर्ण व्यवहार करते हो? तुम क्यों खुलकर उसकी आलोचना करते हो? तुम क्यों हमेशा उसकी गतिविधियों पर नजर रखते हो? तुम अपने आपको उसकी व्यवस्था के प्रति समर्पित क्यों नहीं करते हो? तुम उसके वचन के अनुसार कार्य क्यों नहीं करते हो? तुम क्यों उसकी भेंटों की उगाही करते और लूट लेते हो? तुम मसीह के स्थान पर क्यों बोलते हो? तुम उसके कार्य और वचन का आकलन क्यों करते हो कि वे सही हैं या गलत हैं? तुम उसकी पीठ पीछे उसकी भर्त्सना करने का दुस्साहस क्यों करते हो? क्या इन्हीं और अन्य बातों से तुम लोगों का विश्वास बना है?
तुम सबकी प्रत्येक बातचीत और व्यवहार का तरीका मसीह पर तुम्हारे अविश्वास के तत्वों को प्रगट करता है जो तुम सभी अपने भीतर संजोये रहते हो। तुम्हारे इरादे और लक्ष्य जिनके लिए तुम सब कार्य करते हो वे अविश्वास के द्वारा व्याप्त होते हैं; यहां तक कि तुम्हारी आंखों की दृष्टि और जो साँसें तुम लोग लेते और छोड़ते हो, इन्हीं तत्वों से दूषित होती हैं। दूसरे शब्दों में, तुम लोगों में से प्रत्येक व्यक्ति, दिन के हर पल, अविश्वास के तत्वों को लिए फिरता है। इसका अर्थ यह है कि तुम सभी प्रत्येक क्षण, मसीह को धोखा देने के खतरे से घिरे रहते हो, क्योंकि तुम्हारे शरीर में दौड़ने वाले रक्त में ही अवतरित परमेश्वर के प्रति अविश्वास का संचार होता रहता है। इसलिए, मैं यह कहता हूं कि परमेश्वर पर विश्वास करने के जो पदचिह्न तुम छोडते हो, वह मजबूत नहीं हैं। परमेश्वर में विश्वास के पथ पर तुम्हारी यात्रा की बुनियाद मजबूत नहीं है, और उसकी बजाय तुम सब बस गतिमान हो। तुम लोग हमेशा मसीह के वचनों पर संदेह करते हो और तुरंत उन्हें अमल में नहीं ला पाते। यही कारण है कि तुम सब मसीह पर विश्वास नहीं करते हो। हमेशा उसके बारे में धारणा बनाये रखना ही एक कारण है कि तुम लोग मसीह पर आस्था नहीं रखते। मसीह के कार्यों के बारे में हमेशा धारणा, मसीह के वचनों के प्रति बहरे बने रहना, मसीह के द्वारा किए गए किसी भी कार्य के बारे में विचार रखना और इसे पूरी तरह से समझ नहीं पाना, हर तरह के स्पष्टीकरण के बावजूद तुम लोग अपनी धारणाओं को दूर करने में कठिनाई महसूस करते हो और इसी प्रकार से और भी बातें; यही सब अविश्वास के तत्व तुम्हारे हृदय में मिश्रित हो गये हैं। चाहे तुम सभी मसीह के कार्य का पालन करो और कभी भी पीछे नहीं हटो, तुम्हारे हृदय में इस प्रकार के बहुत सारे मिश्रित विद्रोह हैं। यह विद्रोह परमेश्वर में तुम्हारे विश्वास की अशुद्धता है। हो सकता है कि तुम सब इस बात से सहमत न हो, परन्तु यदि इससे तुम अपने इरादे नहीं पहचान सकते हो तो अवश्य ही तुम्हारा नाश हो जायेगा। क्योंकि परमेश्वर उन्हें ही सिद्ध करता है जो वास्तव में उस पर विश्वास करते हैं, उन्हें नहीं जो उस पर संदेह करते हैं, और सबसे कम उन्हें जो उसे परमेश्वर न मानने के बावजूद उसका अनुसरण करते हैं।
कुछ लोग सत्य में आनन्द नहीं मनाते हैं, न्याय की तो बात ही दूर है। बल्कि वे शक्ति और धन में आनन्द मनाते हैं; इस प्रकार के लोग मिथ्याभिमानी समझे जाते हैं। ये लोग अनन्य रूप से संसार के प्रभावशाली सम्प्रदायों तथा सेमिनारियों से निकलने वाले पादरियों और शिक्षकों की खोज में लगे रहते हैं। सत्य के मार्ग को स्वीकार करने के बावजूद, वे उलझन में फंसे रहते हैं और अपने आप को पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ होते हैं। वे परमेश्वर के लिए बलिदान की बात करते हैं, परन्तु उनकी आखें महान पादरियों और शिक्षकों पर केन्द्रित रहती हैं और मसीह को किनारे कर दिया जाता है। उनके हृदयों में प्रसिद्धि, वैभव और प्रतिष्ठा रहती है। उन्हें बिल्कुल विश्वास नहीं होता कि ऐसा छोटा-सा आदमी इतनोंपर विजय प्राप्त कर सकता है, यह कि वह इतना साधारण होकर भी लोगों को सिद्ध बनाने के योग्य है। वे बिल्कुल विश्वास नहीं करते कि ये धूल में पड़े मामूली लोग और घूरे पर रहने वाले ये साधारण मनुष्य परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि यदि ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार की योजना के लक्ष्य रहे होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग ठहाके लगाकर हंसते। वे विश्वास करते हैं कि यदि परमेश्वर ऐसे सामान्य लोगों को सिद्ध बना सकता है, तो वे सभी महान लोग स्वयं में परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से भ्रष्ट हो गए हैं; दरअसल, अविश्वास से कोसों दूर वे बेहूदा जानवर हैं। क्योंकि वे केवल हैसियत, प्रतिष्ठा और शक्ति का मूल्य जानते हैं; वे विशाल समूहों और सम्प्रदायों को ही ऊंचा सम्मान देते हैं। उनकी दृष्टि में उनका कोई सम्मान नहीं है जिनकी अगुवाई मसीह कर रहे हैं। वे सीधे तौर पर विश्वासघाती हैं जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से अपना मुंह मोड़ लिया है।
तुम मसीह की विनम्रता की तारीफ नहीं करते हो, बल्कि उन झूठे चरवाहों की करते हो जो विशेष हैसियत रखते हैं। तुम मसीह की सुन्दरता या ज्ञान से प्रेम नहीं करते हो, बल्कि उन अधम लोगों से करते हो जो घृणित संसार से जुड़े हैं। तुम मसीह के दुख पर हंसते हो, जिसके पास अपना सिर रखने तक की जगह नहीं, परन्तु उन मुर्दों की तारीफ करते हो जो भेंट झपट लेते हैं और व्यभिचारी का जीवन जीते हैं। तुम मसीह के साथ-साथ कष्ट सहने को तैयार नहीं, परन्तु उन धृष्ट मसीह विरोधियों की बाहों में प्रसन्नता से जाते हो, हालांकि वे तुम्हें सिर्फ देह, अक्षरज्ञान और अंकुश ही दे सकते हैं अभी भी तुम्हारा हृदय उनकी ओर, उनकी प्रतिष्ठा की ओर, सभी शैतानों के हृदय में उनकी हैसियत, उनके प्रभाव, उनके अधिकार की ओर लगा रहता है, फिर भी तुम विरोधी स्वभाव बनाए रखते हो और मसीह के कार्य को स्वीकार नहीं करते हो। इसलिए मैं कहता हूं कि तुम्हें मसीह को स्वीकार करने का विश्वास नहीं है। तुमने उसका अनुसरण आज तक सिर्फ़ इसलिए किया क्योंकि तुम्हारे साथ ज़बरदस्ती की गई थी। तुम्हारे हृदय में हमेशा कई बुलंद छवियों का स्थान रहा है; तुम उनके प्रत्येक कार्य और शब्दों को नहीं भूल सकते, न ही उनके प्रभावशाली शब्दों और हाथों को; वे तुम लोगों के हृदय में हैं, हमेशा के लिए सर्वोच्च और योद्धा की तरह। परन्तु आज के समय में मसीह के लिए ऐसा नहीं है। वह हमेशा से तुम्हारे हृदय में महत्वहीन और आदर के योग्य नहीं रहा है। क्योंकि वह बहुत ही साधारण रहा है, बहुत ही कम प्रभावशाली और उच्चता से बहुत दूर रहा है।
बहरहाल, मैं कहता हूं कि जो लोग सत्य को महत्व नहीं देते हैं वे अविश्वासी और सत्य के विश्वासघाती हैं ऐसे लोग मसीह के अनुमोदन को प्राप्त नहीं कर पायेंगे। अब तुमने देख लिया कि कितना अधिक अविश्वास तुम्हारे भीतर है? और मसीह के साथ कितना विश्वासघात किया है? मैं तुम्हें वैसे ही प्रोत्साहित करना चाहता हूं: चूंकि तुमने सत्य का मार्ग अपनाया है, तो तुम्हें सम्पूर्ण हृदय से अपने आपको समर्पित कर देना चाहिए; कभी भी उभय भावी या अधूरे मन से कार्य न करें। तुम्हें यह जानने की आवश्यकता है कि परमेश्वर इस संसार का या किसी व्यक्ति का नहीं है, परन्तु वह उन सब का है जो उस पर सच्चाई से विश्वास करते हैं, जो उसकी आराधना करते हैं और उन सब का जो उसके प्रति समर्पित और निष्ठावान हैं।
अभी भी बहुत सारा अविश्वास तुम लोगों के भीतर है। अपने आप में तत्परता पूर्वक खोज करो और तुम्हें अपना उत्तर निश्चय ही मिल जायेगा। जब तुमवास्तविक उत्तर प्राप्त करोगे तो तुम यह मानोगे कि तुम परमेश्वर के विश्वासी नहीं हो, परन्तु वह है जो धोखा देता है, निंदा करता है और उसका विश्वासघाती है। तब तुम्हें महसूस होगा कि मसीह कोई व्यक्ति नहीं परन्तु परमेश्वर है। जब समय आएगा, तब तुम उसका भय और डर मानोगे तथा वास्तव में मसीह से प्रेम करोगे। वर्तमान में, तुम्हारा विश्वास तुम्हारे हृदय का 30 प्रतिशत है, जबकि 70 प्रतिशत में शक भरा हुआ है। मसीह के द्वारा कहे गए किसी भी वाक्य या किये गए कार्य से उसके बारे में तुम्हारे विचार और धारणा बन सकती है। ये धारणा और राय उसके प्रति तुम्हारे पूरे अविश्वास से उत्पन्न होती है। तुम लोग केवल स्वर्ग के अनदेखे परमेश्वर को चाहते हो और भय मानते हो और धरती पर जीते-जागते मसीह के लिए कोई सम्मान नहीं है। क्या यह भी तुम्हारा अविश्वास नहीं है? तुम सब केवल अतीत में कार्य करने वाले परमेश्वर के लिए लालायित रहते हो परन्तु आज के मसीह का सामना तक नहीं करते। ये हमेशा से "विश्वास" है जो तुम्हारे हृदय में घुलमिल जाता है, जो आज के मसीह पर विश्वास नहीं करता। मैं तुम्हारे महत्व को कम करके नहीं आंकता, क्योंकि तुम्हारे भीतर अत्यधिक अविश्वास है, तुम लोगों में बहुत ज्यादा अशुद्धि है और इसे काटकर अलग करना आवश्यक है। ये अशुद्धियां इस बात की निशानी है कि तुम सब में बिल्कुल भी विश्वास नहीं है; ये मसीह को तुम्हारे त्यागने के निशान हैं और मसीह के विश्वासघाती के तौर पर कलंक है। वे मसीह के विषय में तुम्हारे ज्ञान पर पूरी तरह से पर्दे की तरह हैं, मसीह के द्वारा प्राप्त किए जाने हेतु बाधा के समान हैं, मसीह के साथ सुसंगत होने के लिए एक रूकावट के समान हैं और यह सबूत है कि मसीह ने तुम्हें मान्यता नहीं दी है। अब समय आ गया है कि तुम सब अपने जीवन के सभी भागों का मूल्यांकन करो! ऐसा करने से तुम लोग जो-जो सोच सकते हो, वह सभी लाभ होंगे।

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