- परमेश्वर के वचनों का एक भजन
- प्रार्थना का महत्व
- I
- प्रार्थनाएँ वह मार्ग होती हैं जो जोड़ें मानव को परमेश्वर से,
- जिससे वह पुकारे पवित्र आत्मा को
- और प्राप्त करे स्पर्श परमेश्वर का।
- जितनी करोगे प्रार्थना, उतना ही स्पर्श पाओगे,
- प्रबुद्ध होगे और मन में शक्ति आएगी।
- ऐसे ही लोगों को मिल सकती है पूर्णता शीघ्र ही,
- शीघ्र ही, शीघ्र ही, शीघ्र ही।
- II
- तो जो ना करे प्रार्थना वह है जैसे मृत बिना आत्मा के।
- ना मिले स्पर्श परमेश्वर का,
- ना कर सके अनुपालन परमेश्वर के कार्यों के।
- जो नहीं करोगे प्रार्थना तो छूट जाएगा सामान्य आत्मिक जीवन,
- नहीं पाओगे परमेश्वर का साथ; वो तुमको अपनाएगा नहीं,
- वो तुमको अपनाएगा नहीं।
- जितनी करोगे प्रार्थना, उतना ही स्पर्श पाओगे,
- प्रबुद्ध होगे और मन में शक्ति आएगी।
- ऐसे ही लोगों को मिल सकती है पूर्णता शीघ्र ही,
- ऐसे ही लोगों को मिल सकती है पूर्णता शीघ्र ही,
- शीघ्र ही, शीघ्र ही, शीघ्र ही, शीघ्र ही।
- "वचन देह में प्रकट होता है" से
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