8. बाइबल को पुराना नियम और नया नियम भी कहते हैं। क्या तुम जानते हो कि "नियम" किसे संदर्भित करता है? "पुराने नियम" में "नियम" इस्राएल के लोगों के साथ बांधी गई परमेश्वर की वाचा से आता है जब उसने मिस्रियों को मार डाला था और इस्राएलियों को फिरौन से बचाया था। हाँ वास्तव में, मेमने का लहू इस वाचा का प्रमाण था जिसे दरवाज़ों की चौखट के ऊपर पोता गया था, जिसके द्वारा परमेश्वर ने मनुष्य के साथ एक वाचा बांधी थी, एक ऐसी वाचा जिसमें कहा गया था कि वे सभी लोग जिनके दरवाज़ों के ऊपर और अगल बगल मेमने का लहू लगा हुआ हो वे इस्राएली हैं, वे परमेश्वर के चुने हुए लोग हैं, और उन सभी को परमेश्वर के द्वारा बख्श दिया जाएगा (क्योंकि यहोवा उस समय मिस्र के पहिलौठे पुत्रों और भेड़ों और पशुओं के पहिलौठों को मारने ही वाला था)। इस वाचा में दो स्तर के अर्थ हैं। मिस्र के लोगों और पशुओं में से किसी को भी यहोवा के द्वारा छुटकारा नहीं दिया जाएगा; वह उनके सभी पहिलौठे पुत्रों और पहिलौठे भेड़ों और पशुओं को मार डालेगा। इस प्रकार भविष्यवाणी की अनेक पुस्तकों में इसके विषय में भविष्यवाणी की गई थी कि यहोवा की वाचा के परिणामस्वरूप मिस्रियों को बहुत अधिक ताड़ना मिलेगी। यह प्रथम स्तर का अर्थ है। यहोवा ने मिस्र के पहिलौठे पुत्रों और उसके पशुओं के सभी पहिलौठों को मार डाला, और उसने सभी इस्राएलियों को छोड़ दिया, जिसका अर्थ था कि वे सभी जो इस्राएल की भूमि के थे उन्हें यहोवा के द्वारा पालन पोषण किया गया था, और उन सभी को छोड़ दिया जाएगा; वह उन में लम्बे समय का कार्य करना चाहता था, और उसने मेमने के लहू का उपयोग करके उनके साथ वाचा स्थापित की थी। उस समय के पश्चात, यहोवा इस्राएलियों को नहीं मारेगा, और उसने कहा कि वे हमेशा के लिए उसके चुने हुए लोग हैं। इस्राएल के बारह गोत्रों के बीच में, समूचे व्यवस्था के युग के लिए वह अपने कार्य की शुरूआत करेगा, वह इस्राएलियों पर अपनी सारी व्यवस्थाओं को प्रकट करेगा, और उनके बीच में से भविष्यवक्ताओं और न्यायियों को चुनेगा, और वे उसके कार्य के केन्द्र में होंगे। उसने उनके साथ एक वाचा बांधी थीः जब तक युग परिवर्तित नहीं होता है, वह सिर्फ चुने हुए लोगों के बीच में ही कार्य करेगा। यहोवा की वाचा अपरिवर्तनीय थी, क्योंकि वह लहू में बनी थी, और वह उसके चुने हुए लोगों के साथ स्थापित की गई थी। अधिक महत्वपूर्ण रूप से, उसने उचित दायरे और लक्ष्य को चुना था जिसके जरिए उसने समूचे युग के लिए अपने कार्य की शुरूआत की, और इस प्रकार लोगों ने इस वाचा को विशेष तौर पर विशेष रूप से महत्वपूर्ण वाचा के रूप में देखा था। यह वाचा का दूसरे स्तर का अर्थ है। उत्पत्ति को छोड़कर, जो वाचा की स्थापना के पहले था, पुराने नियम में अन्य सभी पुस्तकें वाचा की स्थापना के बाद इस्राएलियों के बीच किए गए कार्यों का लेखा जोखा रखती हैं। वास्तव में, अन्यजातियों के विषय में यदा-कदा ही लेखा जोखा पाया जाता है, किन्तु, कुल मिलाकर, पुराना नियम इस्राएल में किए गए परमेश्वर के कार्य का आलेख है। इस्राएलियों के साथ यहोवा की वाचा के कारण, वे पुस्तकें जिन्हें व्यवस्था के युग के दौरान लिखा गया था उन्हें "पुराना नियम" कहते हैं। उनका नाम इस्राएलियों के साथ बांधी गई यहोवा की वाचा के अनुसार रखा गया है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (2)" से
9. क्रूस पर यीशु के द्वारा बहाए गए लहू और उन सभी के साथ उसकी वाचा के अनुसार, जो उस पर विश्वास करते हैं, नए नियम का नाम रखा गया है। यीशु की वाचा यह थीः लोगों को उसके लहू बहाने के द्वारा अपने पापों की क्षमा के लिए सिर्फ उस पर विश्वास करना था, और इस प्रकार वे उद्धार पाएँगे, और उसके जरिए नया जन्म प्राप्त करेंगे, और आगे से पापी न होंगे; उसके अनुग्रह को प्राप्त करने के लिए लोगों को सिर्फ उस पर विश्वास करना था, और मरने के बाद उन्हें नरक में कष्ट नहीं भोगना होगा। अनुग्रह के युग के दौरान लिखी गई सभी पुस्तकें इस वाचा के बाद आईं, और वे सभी उस कार्य और उन कथनों को दर्ज करती हैं जो उसमें थीं। वे प्रभु यीशु के क्रूसारोहण या उस वाचा से प्राप्त उद्धार से आगे नहीं गए; वे सभी ऐसी पुस्तकें हैं जिन्हें प्रभु में हमारे भाईयों द्वारा लिखा गया था,जिनके पास अनुभव थे। इस प्रकार, इन पुस्तकों का नाम भी एक वाचा के अनुसार रखा गया हैः उन्हें नया नियम कहा जाता है। इन दोनों नियमों में सिर्फ अनुग्रह का युग एवं व्यवस्था का युग शामिल है, और इनका अंतिम युग के साथ कोई सम्बन्ध नहीं है। इस प्रकार, वर्तमान में लोगों के लिए जो अंतिम दिनों में रहते हैं बाइबल की बहुत ज़्यादा उपयोगिता नहीं है। सब से बढ़कर, यह सामयिक संकेत के रूप में कार्य करता है, किन्तु मुख्य रूप से इसकी उपयोगिता बहुत कम मूल्य रखती है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (2)" से
10. बाइबल की हर चीज़ परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से बोले गए वचनों का लिखित दस्तावेज़ नहीं है। बाइबल सामान्यतः परमेश्वर के कार्य की पिछली दो अवस्थाओं का आलेख करती है, उसमें से एक भाग है जो पैग़म्बरों की भविष्यवाणियों का लिखित दस्तावेज़ है, और एक भाग वह अनुभव और ज्ञान है जिन्हें युगों के दौरान उन लोगों के द्वारा लिखा गया था जिन्हें परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किया गया था। मानवीय अनुभवों को मानवीय अनुमानों और ज्ञान के साथ दूषित किया गया है, जिसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। बाइबल की बहुत सी पुस्तकों में मानवीय धारणाएँ, मानवीय पक्षपात, और मनुष्यों के बेतुके अनुवाद हैं। हाँ वास्तव में, बहुत सारे वचन पवित्र आत्मा के प्रकाशन और अलौकिक ज्ञान का परिणाम हैं और वे सही अनुवाद हैं - फिर भी यह अभी नहीं कहा जा सकता है कि वे पूरी तरह सत्य की सही अभिव्यक्ति हैं। कुछ निश्चित चीज़ों पर उनका दृष्टिकोण व्यक्तिगत अनुभव के ज्ञान, या पवित्र आत्मा के प्रकाशन से बढ़कर और कुछ भी नहीं है। पैग़म्बरों के पूर्वकथनों को परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रीति से निर्देशित किया गया थाः यशायाह, दानिय्येल, एज्रा, यिर्मयाह और यहेजकेल की भविष्यवाणियाँ पवित्र आत्मा के सीधे निर्देशन से आई थीं। ये लोग दर्शी थे, उन्होंने भविष्यवाणी की आत्मा को प्राप्त किया था, और वे सभी पुराने नियम के पैग़म्बर थे। व्यवस्था के युग के दौरान इन लोगों ने, जिन्होंने यहोवा की अभिप्रेरणाओं को प्राप्त किया था, अनेक भविष्यवाणियाँ की थीं, जिन्हें सीधे यहोवा के द्वारा निर्देशित किया गया था। और यहोवा ने उनमें कार्य क्यों किया? क्योंकि इस्राएल के लोग परमेश्वर के चुने हुए लोग थेः पैग़म्बरों के कार्य को उनके बीच में किया जाना था, और वे ऐसे प्रकाशनों को प्राप्त करने के योग्य थे। वास्तव में, वे स्वयं परमेश्वर के दर्शनों को समझ नहीं पाए थे। पवित्र आत्मा ने उनके मुँह के जरिए उन वचनों को कहा था ताकि भविष्य के लोग उन चीज़ों को समझ पाएँ, और देखें कि वे सचमुच में परमेश्वर के आत्मा, अर्थात् पवित्र आत्मा का कार्य था, और मनुष्य की ओर से नहीं आया था, और यह उन्हें पवित्र आत्मा के कार्य का प्रमाण देता था।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (3)" से
11. आज, लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल परमेश्वर है, और परमेश्वर बाइबल है। इस प्रकार वे यह भी विश्वास करते हैं कि बाइबल के सारे वचन सिर्फ वे वचन हैं जिन्हें परमेश्वर ने कहा था, और उन सभी को परमेश्वर के द्वारा बोला गया था। वे जो परमेश्वर में विश्वास करते हैं वे यह भी मानते हैं कि यद्यपि पुराने और नए नियम की छियासठ पुस्तकों को लोगों के द्वारा लिखा गया था, फिर भी उन सभी को परमेश्वर की अभिप्रेरणा के द्वारा दिया गया था, और वे पवित्र आत्मा के कथनों के लिखित दस्तावेज़ हैं। यह लोगों का त्रुटिपूर्ण अनुवाद है, और यह तथ्यों से पूरी तरह मेल नहीं खाता है। वास्तव में, भविष्यवाणियों की पुस्तकों को छोड़कर, पुराने नियम का अधिकांश भाग ऐतिहासिक अभिलेख है। नए नियम के कुछ धर्मपत्र लोगों के व्यक्तिगत अनुभवों से आए हैं, और कुछ पवित्र आत्मा के प्रकाशन से आए हैं; उदाहरण के लिए, पौलुस के धर्मपत्र एक मनुष्य के कार्य से उदय हुए थे, वे सभी पवित्र आत्मा के प्रकाशन के परिणामस्वरूप थे, और वे कलीसिया के लिए लिखे गए थे, और वे कलीसिया के भाइयों एवं बहनों के लिए प्रोत्साहन और उत्साह के वचन हैं। वे पवित्र आत्मा के द्वारा बोले गए वचन नहीं थे - पौलुस पवित्र आत्मा के स्थान पर बोल नहीं सकता था, और न ही वह कोई पैग़म्बर था, और उसमें दिव्यदृष्टि तो बिलकुल नहीं थी। उसके धर्मपत्र इफिसुस, फिलेदिलफिया, गलातिया और अन्य कलीसियाओं के लिए लेखे गये थे। और इस प्रकार, नए नियम के पौलुस के धर्मपत्र वे धर्मपत्र हैं जिन्हें पौलुस ने कलीसियाओं के लिए लिखा था, और वे पवित्र आत्मा की अभिप्रेरणाएं नहीं हैं, न ही वे सीधे तौर पर पवित्र आत्मा के कथन हैं। वे महज प्रोत्साहन, दिलासा और उत्साह के वचन हैं जिन्हें उसने अपने कार्य की श्रृंखला के दौरान कलीसियाओं के लिए लिखा था। इस प्रकार वे उस समय पौलुस के अधिकतर कार्य के लिखित दस्तावेज़ हैं। वे प्रभु में सभी भाइयों और बहनों के लिए लिखे गए थे, और वे उस समय सभी कलीसियाओं के भाइयों एवं बहनों को उसकी सलाह को मानने और प्रभु यीशु के सभी मार्गों में बने रहने के लिए लिखे गए थे। किसी भी सूरत में पौलुस ने यह नहीं कहा कि, वे उस समय की या भविष्य की कलीसियाओं के लिए थे, और सभी को उसकी चीज़ों को खाना और पीना होगा, न ही उसने कहा कि उसके सभी वचन परमेश्वर की ओर से आए थे। उस समय की कलीसियाओं की परिस्थितियों के अनुसार, उसने साधारण तौर पर भाइयों एवं बहनों से संवाद किया था, और उनको प्रोत्साहित किया था, और उनके विश्वास को प्रेरित किया था; और उसने बस सामान्य तौर पर प्रचार किया या उन्हें स्मरण दिलाया था और उन्हें प्रोत्साहित किया था। उसके वचन उसके स्वयं के बोझ पर आधारित थे, और उसने इन वचनों के जरिए लोगों को संभाला था। उसने उस समय की कलीसियाओं के लिए प्रेरित का कार्य किया था, वह एक कर्मचारी था जिसे प्रभु यीशु के द्वारा इस्तेमाल किया गया, और इस प्रकार उसे कलीसियाओं की जिम्मेदारी दी गई थी, उसे कलीसियाओं के कार्य को करने का कार्य भार दिया गया था, उसे भाइयों एवं बहनों की परिस्थितियों के बारे में जानना था - और इसी कारण, उसने प्रभु में सभी भाइयों एवं बहनों के लिए धर्मपत्रों को लिखा था। जो कुछ भी उसने कहा था वह हितकारी था और लोगों के लिए लाभदायक एवं सही था, किन्तु यह पवित्र आत्मा के कथनों को दर्शाता नहीं था, और वह परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता था। यह एक विचित्र समझ थी, और एक भयंकर ईश्वरीय निन्दा थी, क्योंकि लोग मनुष्य के अनुभवों के लिखित दस्तावेज़ को और मनुष्य की पत्रियों को पवित्र आत्मा के द्वारा कलीसियाओं को बोले गए वचनों के रूप में ले रहे थे! जब उन धर्मपत्रों की बात आती है जिन्हें पौलुस ने कलीसियाओं के लिए लिखा था। तब यह विशेष रूप से सच है, क्योंकि उसके धर्मपत्र उस समय प्रत्येक कलीसिया की परिस्थितियों और उनकी स्थिति के आधार पर भाइयों एवं बहनों के लिए लिखे गये थे, और वे भाइयों एवं बहनों को प्रभु में प्रोत्साहित करने के लिए थे, ताकि वे प्रभु यीशु के अनुग्रह को प्राप्त कर सकें। उस समय उसके धर्मपत्र भाइयों एवं बहनों को जागृत करने के लिए थे। ऐसा कहा जा सकता है कि यह उसका स्वयं का बोझ था, और साथ ही यह वह बोझ था जिसे पवित्र आत्मा के द्वारा उसे दिया गया था; कुल मिलाकर, वह एक प्रेरित था जिसने उस समय की कलीसियाओं की अगुवाई की थी, जिसने कलीसियाओं के लिए धर्मपत्रों को लिखा था और उन्हें प्रोत्साहन दिया था - यह उसकी जिम्मेदारी थी। उसकी पहचान मात्र कलीसिया के लिए काम करने वाले की थी, वह मात्र एक प्रेरित था जिसे परमेश्वर के द्वारा भेजा गया था; वह एक पैग़म्बर नहीं था, और न ही एक पूर्वकथन कहने वाला था। अतः उसके लिए, स्वयं उसका कार्य और भाइयों एवं बहनों का जीवन सब से अधिक महत्वपूर्ण था। इस प्रकार, वह पवित्र आत्मा के स्थान पर बोल नहीं सकता था। उसके वचन पवित्र आत्मा के वचन नहीं थे, और उन्हें परमेश्वर के वचन तो बिलकुल भी नहीं कहा जा सकता था, क्योंकि पौलुस परमेश्वर के एक जीवधारी से बढ़कर और कुछ नहीं था, और वह निश्चित तौर पर परमेश्वर का देहधारी नहीं था। उसकी पहचान यीशु के समान नहीं थी। यीशु के वचन पवित्र आत्मा के वचन थे, वे परमेश्वर के वचन थे, क्योंकि उसकी पहचान मसीह-परमेश्वर के पुत्र की थी। पौलुस उसके बराबर कैसे हो सकता है? यदि लोग धर्मपत्रों या पौलुस के वचनों को पवित्र आत्मा के कथनों के रूप में देखते हैं, और परमेश्वर के रूप में उसकी आराधना करते हैं, तो सिर्फ यह कहा जा सकता है कि वे बहुत ही अधिक अविवेकी हैं। और अधिक कड़े शब्दों में कहा जाए, तो यह ईश निन्दा नहीं है तो और क्या है? एक मनुष्य परमेश्वर के बदले में कैसे बात कर सकता है? और लोग उसके धर्मपत्रों के लिखित दस्तावेज़ों और उसकी कही बातों के सामने कैसे झुक सकते हैं जैसे मानो वह कोई "पवित्र पुस्तक" या "स्वर्गीय पुस्तक" हो। क्या परमेश्वर के वचनों को एक मनुष्य के द्वारा सामान्य ढंग से बोला जा सकता है? एक मनुष्य परमेश्वर के बदले में कैसे बोल सकता है? और इस प्रकार, तुम क्या कहते हो - क्या वे धर्मपत्र जिन्हें उसने कलीसियाओं के लिए लिखा था उसके स्वयं के विचारों से दूषित नहीं हो गये होंगे? उन्हें मानवीय विचारों के द्वारा दूषित क्यों नहीं किया जा सकता है? उसने अपने व्यक्तिगत अनुभवों और अपने स्वयं के जीवन की व्यापकता के आधार पर कलीसियाओं के लिए इन धर्मपत्रों को लिखा था। उदाहरण के लिए, पौलुस ने गलातियों की कलीसिया को एक धर्मपत्र लिखा था जिस में एक निश्चित विचार था, और पतरस ने दूसरा धर्मपत्रलिखा, जिसमें एक अन्य दृष्टिकोण था। उन में से कौन पवित्र आत्मा के द्वारा आया था? कोई भी निश्चित तौर पर नहीं कह सकता है। इस प्रकार, सिर्फ इतना कहा जा सकता है कि उन दोनों के पास कलीसियाओं के लिए भार था, फिर भी उनके धर्मपत्र उनकी स्थिति को दर्शाता हैं, वे भाइयों एवं बहनों के लिए उनके नियोजन एवं सहयोग, और कलीसियाओं के प्रति उनके भार को दर्शाता हैं, और वे सिर्फ मानवीय कार्य को दर्शाता हैं; वे पूरी तरह पवित्र आत्मा की ओर से नहीं हैं। यदि तुम कहते हो कि उसके धर्मपत्र पवित्र आत्मा के वचन हैं, तो तुम बेतुके हो, और तुम ईश निन्दा कर रहे हो! पौलुस के धर्मपत्र और नए नियम के अन्य धर्मपत्र हाल ही के अधिकतर आत्मिक हस्तियों के संस्मरणों के समरूप हैं। वे वाचमैन नी की पुस्तकों या लॉरेन्स इत्यादि के अनुभवों के समतुल्य हैं। सीधी-सी बात है कि हाल ही के आध्यात्मिक हस्तियों की पुस्तकों को नए नियम में संकलित नहीं किया गया है, फिर भी इन लोगों का सार-तत्व एक समान हैः वे ऐसे लोग थे जिन्हें एक निश्चित अवधि के दौरान पवित्र आत्मा के द्वारा इस्तेमाल किया गया था, और वे सीधे तौर पर परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (3)" से
12. नए नियम में मत्ती का सुसमाचार यीशु की वंशावली को दर्ज करता है। प्रारम्भ में यह कहता है कि यीशु, दाऊद की सन्तान इब्राहीम का वंशज, और यूसुफ का पुत्र था; आगे यह कहता है कि वह पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया था, और कुंवारी से जन्मा था-जिसका अर्थ है कि वह यूसुफ का पुत्र या इब्राहीम का वंशज नहीं था, और वह दाऊद की सन्तान नहीं था। यद्यपि वंशावली यूसुफ के साथ यीशु के संबंध पर जोर देती है। आगे, वंशावली उस प्रक्रिया को दर्ज करना प्रारम्भ करती है जिसके तहत यीशु का जन्म हुआ था। यह कहती है कि यीशु पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया था, उसका जन्म कुंवारी से हुआ था, और वह यूसुफ का पुत्र नहीं था। फिर भी वंशावली में यह साफ साफ लिखा हुआ है कि यीशु यूसुफ का पुत्र था, और क्योंकि वंशावली यीशु के लिए लिखी गई थी, यह बयालीस पीढ़ियों को दर्ज करती है। जब यह यूसुफ की वंशावली की बात करती है, तो यह शीघ्रता से कहता है कि यूसुफ मरियम का पति था, ये शब्द यह साबित करने के लिए हैं कि यीशु इब्राहीम का वंशज था। क्या यह विरोधाभास नहीं है? वंशावली साफ साफ यूसुफ के पूर्वजों के लेखे को दर्ज करता है, यह स्पष्ट रूप से यूसुफ की वंशावली है, किन्तु मत्ती जोर देता है कि यह यीशु की वंशावली है। क्या यह उस तथ्य को नकारता नहीं है कि यीशु पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया था? इस प्रकार, क्या मत्ती के द्वारा दी गई वंशावली मानवीय युक्ति नहीं है? यह हास्यास्पद है! इस रीति से, तुम जान गए हो कि यह पुस्तक पूरी तरह से पवित्र आत्मा के द्वारा नहीं आई थी। कदाचित्, ऐसे कुछ लोग हों जो यह सोचते है कि परमेश्वर के पास जरूर पृथ्वी पर एक वंशावली होगी, जिसके परिणामस्वरूप वे यीशु को इब्राहिम की बयालीसवीं पीढी़ के रूप में निर्दिष्ट करते हैं। यह वास्तव में हास्यास्पद है! पृथ्वी पर आने के बाद, परमेश्वर की वंशावली कैसे हो सकती है? यदि तुम कहते हो कि परमेश्वर की वंशावली है, तो क्या तुम उसे परमेश्वर के जीवधारियों के बीच में श्रेणीबद्ध नहीं करते हो? क्योंकि परमेश्वर पृथ्वी का नहीं है, वह सृष्टि का प्रभु है, और यद्यपि वह देह में आ गया है, फिर भी वह मनुष्य के सार तत्व के समान नहीं है। तुम परमेश्वर को परमेश्वर के जीवधारियों के समान ही श्रेणीबद्ध कैसे कर सकते हो? इब्राहीम परमेश्वर का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकता है; वह उस समय यहोवा के कार्य का माध्यम था, वह मात्र एक विश्वासयोग्य सेवक था जिसे यहोवा के द्वारा मंजूर किया गया था, और वह इस्राएल के लोगों में से एक था। वह यीशु का एक पूर्वज कैसे हो सकता है?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (3)" से
13. यीशु को क्रूस पर चढ़ाए जाने के बीस से लेकर तीस साल के बाद नए नियम के सुसमाचार की पुस्तकों को दर्ज किया या लिखा गया था। उस से पहले, इस्राएल के लोग केवल पुराना नियम ही पढ़ते थे। दूसरे शब्दों में, अनुग्रह के युग में लोग पुराना नियम पढ़ते थे। नया नियम केवल अनुग्रह के युग के दौरान ही प्रकट हुआ था। जब यीशु काम करता था तब नया नियम मौजूद नहीं था; उसके पुनरूत्थान और स्वर्गारोहण के बाद ही लोगों ने उसके कार्य को दर्ज किया या लिखा था। केवल तब ही सुसमाचार की चार पुस्तकें, और उसके अतिरिक्त पौलुस और पतरस की धर्मपत्र, साथ ही साथ प्रकाशित वाक्य की पुस्तक आई थी। प्रभु यीशु के स्वर्ग जाने के केवल तीन सौ साल बाद, जब उसके बाद की पीढ़ियों ने उनके लेखों का मिलान किया था, तब नया नियम अस्तित्व में आया। जब यह कार्य पूरा हो गया केवल तभी नया नियम अस्तित्व में आया था; यह पहले मौजूद नहीं था। परमेश्वर ने वह सब कार्य किया था, प्रेरित पौलुस ने वह सब कार्य किया था, उसके बाद पौलुस और पतरस के धर्मपत्रों को एक साथ मिलाया गया था, और पतमुस के टापू में यूहन्ना के द्वारा दर्ज किए गए सबसे बड़े दर्शन को अंत में रखा गया था, क्योंकि वह अंतिम दिनों के कार्य के विषय में भविष्यवाणी करता है। ये सब बाद में आनेवाली पीढ़ियों के समायोजन थे, और वे आज के कथनों से अलग हैं। जो कुछ आज लिखा या दर्ज किया गया है वह परमेश्वर के कार्य के विभिन्न चरणों के अनुसार है; लोग आज जिसमें शामिल हैं वह ऐसा कार्य है जिसे परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से किया गया है, और वे ऐसे वचन हैं जिन्हें परमेश्वर के द्वारा व्यक्तिगत रूप से कहा गया है। तुम्हें हस्तक्षेप करने की कोई आवश्यकता नहीं है-वचनों को, जो सीधे तौर पर आत्मा के द्वारा आए हैं, कदम दर कदम क्रमबद्ध किया गया है, और वे मनुष्य के लिखित दस्तावेज़ों के अभिलेखों से अलग हैं। जो कुछ उन्होंने दर्ज किया है, ऐसा कहा जा सकता है, वह उनकी शिक्षा और उनकी मानवीय योग्यता के स्तर के अनुसार था। जो कुछ उन्होंने दर्ज किया था वे मनुष्यों के अनुभव थे, और प्रत्येक के पास दर्ज करने या लिखने और जानने के लिए अपने स्वयं के माध्यम थे, और प्रत्येक का लिखित दस्तावेज़ अलग था। इस प्रकार, यदि तुम ईश्वर के रूप में बाइबल की आराधना करते हो तो तुम बहुत ही ज़्यादा नासमझ और मूर्ख हो। तुम आज के लिए परमेश्वर के वचनों को क्यों नहीं खोजते हो? केवल परमेश्वर का कार्य ही मनुष्य को बचा सकता है। बाइबल मनुष्य को बचा नहीं सकती है, यह हज़ारों सालों से बिलकुल भी नहीं बदली है, और यदि तुम बाइबल की आराधना करते हो तो तुम पवित्र आत्मा के कार्य को कभी प्राप्त नहीं करोगे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (3)" से
14. बहुत से लोग यह विश्वास करते हैं कि बाइबल को समझना और उसकी व्याख्या करने में समर्थ होना सच्चे मार्ग की खोज करने के समान है—परन्तु वास्तव में, क्या ये चीज़ें इतनी सरल हैं? बाइबल की सच्चाई को कोई नहीं जानता हैः कि यह परमेश्वर के कार्य के ऐतिहासिक अभिलेख, और परमेश्वर के कार्य के पिछले दो चरणों की गवाही से बढ़कर और कुछ नहीं है, और तुम्हें परमेश्वर के कार्य के लक्ष्यों की कोई समझ नहीं देता है। जिस किसी ने भी बाइबल को पढ़ा है वह जानता है कि यह व्यवस्था के युग और अनुग्रह के युग के दौरान परमेश्वर के कार्य के दो चरणों को प्रलेखित करता है। पुराना विधान इस्राएल के इतिहास और सृष्टि के समय से लेकर व्यवस्था के अंत तक यहोवा के कार्य का कालक्रम से अभिलेखन करता है। नया विधान पृथ्वी पर यीशु के कार्य को, जो चार सुसमाचारों में है, और साथ की पौलुस के कार्य को भी अभिलिखित करता है; क्या वे ऐतिहासिक अभिलेख नहीं हैं? आज अतीत की चीज़ों को सामने लाने से वे इतिहास बन जाती हैं, और इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी सच्ची और यथार्थ हैं, वे तब भी इतिहास होती हैं—और इतिहास वर्तमान को संबोधित नहीं कर सकता है। क्योंकि परमेश्वर पीछे मुड़कर इतिहास को नहीं देखता है! और इसलिए, यदि तुम केवल बाइबल को ही समझते हो, और उस कार्य को नहीं समझते हो जिसे परमेश्वर आज करने का इरादा करता है, और यदि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो और पवित्र आत्मा के कार्य की खोज नहीं करते हो, तो तुम यह नहीं समझते हो कि परमेश्वर को खोजने का आशय क्या है? यदि तुम इस्राएल के इतिहास का अध्ययन करने एवं समस्त आकाश और पृथ्वी की सृष्टि के इतिहास की खोज करने के लिए बाइबल को पढ़ते हैं, तो तुम परमेश्वर पर विश्वास नहीं करते हो। किन्तु आज, चूँकि तुम परमेश्वर पर विश्वास करते हो, और जीवन का अनुसरण करते हो, चूँकि तुम परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण करते हो, और मृत शब्दों और सिद्धांतों, या इतिहास की समझ का अनुसरण नहीं करते हो, इसलिए तुम्हें परमेश्वर की आज की इच्छा को अवश्य खोजना चाहिए, और पवित्र आत्मा के कार्य के निर्देश की तलाश अवश्य करनी चाहिए। यदि तुम एक पुरातत्त्ववेत्ता होते तो तुम बाइबल को पढ़ सकते थे—लेकिन तुम नहीं हो, तुम उन में से एक हो जो परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, और तुम्हारे लिए यह सब से अच्छा होगा कि तुम परमेश्वर की आज की इच्छा को खोजो।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (4)" से
15. बाइबल इस्राएल में परमेश्वर के कार्य का ऐतिहासिक अभिलेख है, और प्राचीन नबीयों की अनेक भविष्यवाणियों और साथ ही उस समय उसके कार्य में यहोवा के कुछ कथनों को प्रलेखित करती है। इस प्रकार, सभी लोग इस पुस्तक को "पवित्र" (क्योंकि परमेश्वर पवित्र और महान है) मानते हैं। वास्तव में, यह सब यहोवा के लिए उनके आदर और परमेश्वर के लिए उनकी श्रद्धा का परिणाम है। लोग केवल इसलिए इस रीति से इस पुस्तक की ओर संकेत करते हैं क्योंकि परमेश्वर के जीवधारी अपने सृष्टिकर्ता के प्रति बहुत श्रद्धावान हैं, और ऐसे लोग भी हैं जो इस पुस्तक को एक "स्वर्गीय पुस्तक" कहते हैं। वास्तव में, यह मात्र एक मानवीय अभिलेख है। यहोवा द्वारा व्यक्तिगतरूप से इसका नाम नहीं रखा गया था, और न ही यहोवा ने व्यक्तिगत रूप से इसकी रचना कामार्गदर्शन किया था। दूसरे शब्दों में, इस पुस्तक का ग्रन्थकार परमेश्वर नहीं था, बल्कि मनुष्य था। "पवित्र" बाइबल ही केवल वह सम्मानजनक शीर्षक है जो इसे मनुष्य के द्वारा दिया गया है। इस शीर्षक का निर्णय यहोवा और यीशु के द्वारा आपस में विचार विमर्श करने के बाद नहीं लिया गया था; यह मानव विचार से अधिक कुछ नहीं है। क्योंकि इस पुस्तक को यहोवा के द्वारा नहीं लिखा गया था, और यीशु के द्वारा तो कदापि नहीं। इसके बजाए, यह अनेक प्राचीन नबीयों, प्रेरितों और पैगंबरों का लेखा-जोखा है, जिन्हें बाद की पीढ़ियों के द्वारा प्राचीन लेखों की एक ऐसी पुस्तक के रूप में संकलित किया गया था जो, लोगों को, विशेष रूप से पवित्र दिखाई देती है, एक ऐसी पुस्तक जिसमें वे मानते हैं कि अनेक अथाह और गम्भीर रहस्य हैं जो भविष्य की पीढ़ियों के द्वारा प्रकट किए जाने का इन्तज़ार कर रहे हैं। वैसे तो, लोग यह विश्वास करने में और भी अधिक उतारू हो गए कि यह पुस्तक एक "दिव्य पुस्तक" है। चार सुसमाचारों और प्रकाशित वाक्य की पुस्तक के शामिल होने के साथ ही, इसके प्रति लोगों की प्रवृत्ति किसी भी अन्य पुस्तक से विशेष रूप से भिन्न है, और इस प्रकार कोई भी इस "दिव्य पुस्तक" को चीरफाड़ करने की हिम्मत नहीं करता है—क्योंकि यह बहुत ही अधिक "पवित्र" है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (4)" से
16. आज, मैं इस रीति से बाइबल की चीरफाड़ कर रहा हूँ और इसका अर्थ यह नहीं है कि मैं इस से नफरत करता हूँ, या सन्दर्भ के लिए इसके मूल्य को नकारता हूँ। अंधकार में रखे जाने से तुम्हें रोकने के लिए मैं तुम्हारे लिए बाइबल के अंतर्निहित मूल्यों और इसकी उत्पत्ति की व्याख्या कर रहा हूँ। क्योंकि बाइबल के बारे में लोगों के अनेक दृष्टिकोण हैं, और उनमें से अधिकांश ग़लत हैं; इस तरह से बाइबल पढ़ना न केवल उन्हें उन चीज़ों को प्राप्त करने से रोकता है जो उन्हें प्राप्त करनी चाहिए, बल्कि, अधिक महत्वपूर्ण यह है, कि यह उस कार्य में भी बाधा डालता है जिसे करने का मैं इरादा करता हूँ। यह भविष्य के कार्य के लिए एक बहुत ही जबर्दस्त उपद्रव है, और केवल कमियाँ प्रदान करता है, लाभ नहीं। इस प्रकार, जो मैं तुम्हें शिक्षा दे रहा हूँ वह केवल बाइबल के मुख्य तत्व और उसके भीतर की कहानी है। मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि तुम बाइबल मत पढ़ो, या तुम आस-पास जाकर यह घोषणा करो कि यह पूर्णतः मूल्य विहीन है, बल्कि यह कि तुम्हारे पास बाइबल का सही ज्ञान और दृष्टिकोण हो। बहुत अधिक एक तरफा न बनो! यद्यपि बाइबल इतिहास की एक पुस्तक है जो मनुष्यों के द्वारा लिखी गई थी, फिर भी यह बहुत से सिद्धांतों को जिनके द्वारा प्राचीन संतों और नबीयों ने परमेश्वर की सेवा की, और साथ ही परमेश्वर की सेवा में हाल ही के प्रेरितों के अनुभवों को भी प्रलेखित करती — इन लोगों के द्वारा इन सभी चीज़ों को वास्तव में देखा और जाना गया था, और सच्चे मार्ग का अनुसरण करने में वे इस युग के लोगों के लिए एक सन्दर्भ के रूप में कार्य कर सकते हैं। इस प्रकार, बाइबल को पढ़ने से लोग जीवन के अनेक मार्गों को भी प्राप्त कर सकते हैं जिन्हें अन्य पुस्तकों में नहीं पाया जा सकता है। ये मार्ग पवित्र आत्मा के कार्य के जीवन के मार्ग हैं जिनका अनुभव नबीयों और प्रेरितों के द्वारा बीते युगों में किया गया था, और बहुत से वचन बहुमूल्य हैं, और वह प्रदान कर सकते हैं जिसकी लोगों को आवश्यकता है। इस प्रकार, सभी लोग बाइबल को पढ़ना चाहते हैं। क्योंकि बाइबल में इतना कुछ छिपा हुआ है, इसके प्रति लोगों का नज़रिया महान आध्यात्मिक हस्तियों के लेखों के प्रति नज़रिए से भिन्न है। बाइबल ऐसे लोगों के अनुभवों एवं ज्ञान का अभिलेख एवं संकलन है जिन्होंने पुराने एवं नए युग में यहोवा और यीशु की सेवा की, और इस लिए बाद की पीढ़ियाँ इससे अधिक मात्रा में ज्ञानोदय, अलौकिक प्रकाश, और अनुशीलन करने हेतु मार्गों को प्राप्त कर पाने में सक्षम रही हैं। बाइबल किसी भी महान आध्यात्मिक हस्ती के लेखों से उच्चतर है उसका कारण है क्योंकि उसके समस्त लेख बाइबल में से ही लिए गए हैं, एवं उसके समस्त अनुभव बाइबल में से ही आए हैं, और वे सभी बाइबल का ही वर्णन करते हैं। और इस प्रकार, यद्यपि लोग किसी भी महान आध्यात्मिक हस्ती की किताबों से प्रावधान प्राप्त कर सकते हैं, फिर भी वे बाइबल की ही आराधना करते हैं, क्योंकि यह उनको इतनी ऊँची और गम्भीर दिखाई देती है! यद्यपि बाइबल जीवन के वचनों की कुछ पुस्तकों को एक साथ मिलाती है, जैसे कि पौलुस के धर्मपत्र और पतरस के धर्मपत्र, और यद्यपि इन पुस्तकों के द्वारा लोगों की आवश्यकताओं को प्रदान किया जा सकता है और उनकी सहायता की जा सकती है, फिर भी ये पुस्तकें अप्रचिलत हैं, और ये अभी भी पुराने युग से सम्बन्धित हैं, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है कि वे कितनी अच्छी हैं, वे केवल एक युग के लिए ही उचित हैं, और चिरस्थायी नहीं हैं। क्योंकि परमेश्वर का कार्य निरन्तर विकसित हो रहा है, और यह केवल पौलुस और पतरस के समय में ही नहीं रूक सकता है, या हमेशा अनुग्रह के युग में बना नहीं रह सकता है जिस में यीशु को सलीब पर चढ़ाया गया था। और इसलिए, ये पुस्तकें केवल अनुग्रह के युग के लिए उचित हैं, अंत के दिनों के राज्य के युग के लिए नहीं। ये केवल अनुग्रह के युग के विश्वासियों की जरूरतों को प्रदान कर सकती हैं, राज्य के युग के संतों की नहीं, और इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वे कितनी अच्छी हैं, वे तब भी पुरानी हैं। यहोवा की सृष्टि के कार्य या इस्राएल में उसके काम के साथ भी ऐसा ही हैः इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि यह कार्य कितना बड़ा था, यह अभी भी पुराना था, और वह समय अब भी आएगा जब यह ख़त्म हो जाएगा। परमेश्वर का काम भी ऐसा ही हैः यह महान है, किन्तु एक ऐसा समय आएगा जब यह समाप्त हो जाएगा; यह न तो सृष्टि के कार्य के बीच, और न ही सलीब पर चढ़ने के कार्य के बीच, हमेशा बना रह सकता है। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि सलीब पर चढ़ने का कार्य कितना विश्वास दिलाने वाला था, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि शैतान को हराने में यह कितना असरदार था, कार्य, आख़िरकार, तब भी कार्य ही है, और युग, आख़िरकार, तब भी युग ही हैं; कार्य हमेशा उसी नींव पर टिका नहीं रह सकता है, और न ही समय ऐसे होते हैं जो कभी नहीं बदल सकते हैं, क्योंकि सृष्टि हुई थी और अंत के दिन भी अवश्य होने चाहिए। यह अवश्यम्भावी है! इस प्रकार, आज नये विधान में जीवन के वचन—प्रेरितों के धर्मपत्र, और चार सुसमाचार—ऐतिहासिक पुस्तकें बन ए हैं, वे पुराने पंचांग बन गए हैं, और पुराने पंचांग लोगों को एक नए युग में लेकर कैसे जा सकते हैं? इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि लोगों को जीवन प्रदान करने के लिए ये पंचांग कितने समर्थ हैं, इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि सलीब तक लोगों की अगुवाई करने में वे कितने सक्षम हैं, क्या वे पुराने नहीं हो गए हैं? क्या वे मूल्य-विहीन नहीं हैं? इसलिए, मैं कहता हूँ कि तुम्हें आँख बंद करके इन पंचांगों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। वे अत्यधिक पुराने हैं, वे तुम्हें नए कार्य में नहीं पहुँचा सकते हैं, वे केवल तुम पर भार डाल सकते हैं। न केवल वे तुम्हें नए कार्य में, और नए प्रवेश में नहीं ले जा सकते हैं, बल्कि वे तुम्हें पुरानी धार्मिक कलीसियाओं के भीतर ले जाते हैं—और यदि ऐसा होता है, तो क्या तुम परमेश्वर के प्रति अपने विश्वास में पीछे नहीं हट रहे हो?
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (4)" से
17. बाइबल को समझना, इतिहास को समझना, परन्तु उसे न समझना जो पवित्र आत्मा आज कर रहा है—यह ग़लत है! इतिहास का अध्ययन करके तुमने अच्छा किया है, और तुमने एक ज़बर्दस्त काम किया है, परन्तु तुम उस कार्य के बारे में कुछ नहीं जानते हो जो आज पवित्र आत्मा करता है। क्या यह मूर्खता नहीं है? अन्य लोग तुम से पूछते हैं: "आज परमेश्वर क्या कर रहा है? आज तुम्हें किस बात में शामिल होना चाहिए?" तुम्हारी जीवन की खोज किस प्रकार चल रही है? क्या तुम परमेश्वर की इच्छा को समझते हो? जो कुछ वे पूछते हैं उनके लिए तुम्हारे पास कोई उत्तर नहीं होगा—अतः तुम क्या जानते हो? तुम कहोगेः मैं केवल यह जानता हूँ कि मुझे देह की ओर अपनी पीठ करनी है और अपने आप को जानना है। और तब यदि वे पूछते हैं "तुम और क्या जानते हो?" तो तुम कहोगे कि तुम परमेश्वर की सभी व्यवस्थाओं का पालन करना भी जानते हो, और बाइबल के इतिहास को थोड़ा बहुत समझते हो, और बस इतना ही। क्या इन सारे वर्षों में परमेश्वर पर विश्वास करके तुमने बस यही सब कुछ प्राप्त किया है? यदि तुम बस यही सब कुछ समझते हो, तो तुम में बहुत कुछ का अभाव है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "बाइबल के विषय में (4)" से
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें