20. एक अविश्वासी व्यक्ति क्या होता है?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
मैं कहता हूं कि जो लोग सत्य को महत्व नहीं देते हैं वे अविश्वासी और सत्य के विश्वासघाती हैं ऐसे लोग मसीह के अनुमोदन को प्राप्त नहीं कर पायेंगे।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?" से
वे सभी जो परमेश्वर के वचनों की गलत समझ रखते हैं, वे सभी अविश्वासी हैं। उनमें कोई भी वास्तविक ज्ञान नहीं है, वास्तविक कद-काठी का तो सवाल ही नहीं है; वे वास्तविकता रहित अज्ञानी लोग हैं। कहने का अर्थ यह है कि, वे सभी जो परमेश्वर के वचनों के ज्ञान से बाहर जीवन जीते हैं, वे सभी अविश्वासी हैं। जिन्हें मनुष्यों के द्वारा अविश्वासी समझ लिया गया है, वे परमेश्वर की दृष्टि में जानवर हैं, और जिन्हें परमेश्वर के द्वारा अविश्वासी समझा गया है, वे लोग वे हैं जिनमें जीवन के रूप में परमेश्वर का वचन नहीं है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "मात्र सत्य का अभ्यास करना ही वास्तविकता रखना है" से
कुछ लोग हैं जिनके विश्वास को परमेश्वर के हृदय में कभी भी स्वीकार नहीं किया गया है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर यह नहीं पहचानता है कि ये लोग उसके अनुयायी हैं, क्योंकि परमेश्वर उनके विश्वास की प्रशंसा नहीं करता है। क्योंकि ये लोग, इसकी परवाह किए बगैर कि उन्होंने कितने वर्षों से परमेश्वर का अनुसरण किया है, उनकी सोच एवं उनके विचार कभी नहीं बदले हैं। वे अविश्वासियों के समान हैं, अविश्वासियों के सिद्धान्तों और कार्यों को अंजाम देने के तरीके के मुताबिक चलते हैं, और ज़िन्दा बचे रहने के नियम एवं विश्वास के मुताबिक चलते हैं। उन्होंने कभी भी परमेश्वर के वचन को अपने जीवन के रूप में ग्रहण नहीं किया था, कभी विश्वास नहीं किया था कि परमेश्वर का वचन सत्य है, परमेश्वर के उद्धार को स्वीकार करने का कभी इरादा नहीं किया था, और परमेश्वर को कभी अपने परमेश्वर के रूप में नहीं पहचाना था। वे परमेश्वर में विश्वास करने को किसी किस्म के शौकिया पसन्दीदा चीज़ के रूप में मानते हैं, और परमेश्वर से महज एक आत्मिक सहारे के रूप में व्यवहार करते हैं, अतः वे नहीं सोचते हैं कि यह इस लायक है कि इसके लिए कोशिश की जाए और परमेश्वर के स्वभाव या परमेश्वर के सार को समझा जाए। तू कह सकता है कि वह सब जो सत्य से सम्बन्धित होता है उसका इन लोगों के साथ कोई लेना देना नहीं है। उनमें कोई रूचि नहीं है, और वे प्रत्युत्तर देने की परेशानी नहीं उठा सकते हैं। यह इसलिए है क्योंकि उनके हृदय की गहराई में एक तीव्र आवाज़ है जो हमेशा उनसे कहती है: परमेश्वर अदृश्य एवं अस्पर्शनीय है, और उसका अस्तित्व नहीं है। वे मानते हैं कि इस प्रकार के परमेश्वर को समझने की कोशिश करना उनके प्रयासों के लायक नहीं है; यह अपने आपको मूर्ख बनाना होगा। वे बस शब्दों में परमेश्वर को स्वीकार करते हैं, और कोई वास्तविक कदम नहीं उठाते हैं। साथ ही वे व्यावहारिक रूप से भी कुछ नहीं करते हैं, और सोचते हैं कि वे बहुत चतुर हैं। परमेश्वर इन लोगों को किस दृष्टि से देखता है? वह उन्हें अविश्वासियों के रूप में देखता है। कुछ लोग पूछते हैं: "क्या अविश्वासी लोग परमेश्वर के वचन को पढ़ सकते हैं? क्या वे अपने कर्तव्य को निभा सकते हैं? क्या वे इन शब्दों को कह सकते हैं: 'मैं परमेश्वर के लिए जीऊंगा?'" जो कुछ मनुष्य अकसर देखता है वे लोगों के ऊपरी प्रदर्शन होते हैं, और उनका सार नहीं। फिर भी परमेश्वर इन ऊपरी प्रदर्शनों को नहीं देखता है; वह केवल उनके भीतरी सार को देखता है। इस प्रकार, परमेश्वर के पास इन लोगों के प्रति इस प्रकार की मनोवृत्ति है, और इस प्रकार की परिभाषा है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के स्वभाव और उसके कार्य के परिणाम को कैसे जानें" से
कुछ लोग सत्य में आनन्द नहीं मनाते हैं, न्याय की तो ही दूर है। बल्कि वे शक्ति और धन में आनन्द मनाते हैं; इस प्रकार के लोग मिथ्याभिमानी समझे जाते हैं। ये लोग अनन्य रूप से संसार के प्रभावशाली सम्प्रदायों तथा सेमिनारियों से निकलने वाले पादरियों और शिक्षकों की खोज में लगे रहते हैं। सत्य के मार्ग को स्वीकार करने के बावजूद, वे उलझन में फंसे रहते हैं और अपने तुम को पूरी तरह से समर्पित करने में असमर्थ होते हो। वे परमेश्वर के लिए बलिदान की बात करते हैं, परन्तु उनकी आखें महान पादरियों और शिक्षकों पर केन्द्रित रहती हैं और मसीह को किनारे कर दिया जाता है। उनके हृदयों में प्रसिद्धि, वैभव और प्रतिष्ठा रहती है। उन्हें बिल्कुल विश्वास नहीं होता कि ऐसा छोटा-सा आदमी इतनोंपर विजय प्राप्त कर सकता है, यह कि वह इतना साधारण होकर भी लोगों को सिद्ध बनाने के योग्य है। वे बिल्कुल विश्वास नहीं करते कि ये धूल में पड़े मामूली लोग और घूरे पर रहने वाले ये साधारण मनुष्य परमेश्वर के द्वारा चुने गए हैं। वे मानते हैं कि यदि ऐसे लोग परमेश्वर के उद्धार की योजना के लक्ष्य रहे होते, तो स्वर्ग और पृथ्वी उलट-पुलट हो जाते और सभी लोग ठहाके लगाकर हंसते। वे विश्वास करते हैं कि यदि परमेश्वर ऐसे सामान्य लोगों को सिद्ध बना सकता है, तो वे सभी महान लोग स्वयं में परमेश्वर बन जाते। उनके दृष्टिकोण अविश्वास से भ्रष्ट हो गए हैं; दरअसल, अविश्वास से कोसों दूर वे बेहूदा जानवर हैं। क्योंकि वे केवल हैसियत, प्रतिष्ठा और शक्ति का मूल्य जानते हैं; वे विशाल समूहों और सम्प्रदायों को ही ऊंचा सम्मान देते हैं। उनकी दृष्टि में उनका कोई सम्मान नहीं है जिनकी अगुवाई मसीह कर रहे हैं। वे सीधे तौर पर विश्वासघाती हैं जिन्होंने मसीह से, सत्य से और जीवन से अपना मुंह मोड़ लिया है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "क्या तुम परमेश्वर के एक सच्चे विश्वासी हो?" से
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