44. परमेश्वर की प्रजा में कौन होते हैं? सेवाकर्त्ता कौन होते हैं?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
ऐसा होने के कारण अब एक नया दृष्टिकोण होगा: जो लोग मेरा वचन पढ़ते हैं और इसे अपने जीवन के ही रूप में स्वीकार करते हैं, वे मेरे राज्य के लोग हैं। चूंकि वे मेरे राज्य में हैं, इसलिए राज्य में वे मेरी प्रजा हैं। क्योंकि वे मेरे वचनों के द्वारा निर्देशित होते हैं, हालांकि उन्हें मेरी प्रजा के रूप में संदर्भित किया जाता है, यह पदवी किसी भी तरह मेरे "पुत्रों" की तरह बुलाये जाने से कम नहीं है। मेरी प्रजा के रूप में, सभी को मेरे राज्य में वफ़ादार होना चाहिए और उन्हें अपने कर्तव्यों को पूरा करना चाहिए, और वे जो मेरे प्रशासनिक आदेशों का अनादर करते हैं, उनको मेरी सजा मिलनी ही चाहिए। यह सभी के लिए मेरी चेतावनी है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
जो इस प्रकार शांत रहते हैं वह जीवन की ओर अपने आप को केंद्रित करते हैं, आत्मा में सहभागिता पर ध्यान देते हैं, परमेश्वर के वचनों के प्यासे होते हैं, और सत्य को खोजते हैं। जो लोग परमेश्वर के आगे शांत रहने में ध्यान नहीं देते हैं और इसका अभ्यास नहीं करते हैं, वे व्यर्थ हैं और संसार से पूरी तरह जुड़े रहते हैं। उनमें जीवन नहीं है। भले ही वे कहते हैं कि वे परमेश्वर पर विश्वास रखते हैं परंतु केवल दिखावटी। जो परमेश्वर के आगे शांत होते हैं वही केवल सिद्ध और संपूर्ण होते हैं। इसलिए वे लोग जो परमेश्वर के समक्ष शांत होते हैं वे बड़े अनुग्रह प्राप्त किए होते हैं। वे लोग जो दिन में थोड़ा समय देकर परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हैं, और बाहरी बातों से पूरी तरह घिरे रहते हैं, और अनंत जीवन में प्रवेश को कोई ध्यान नहीं देते हैं, वे सब ढोंगी हैं और उनके भविष्य में प्रगति प्राप्त करने के कोई आसार नहीं होते। जो वास्तव में परमेश्वर के आगे शांत रह सकते हैं और परमेश्वर से संवाद करते हैं, वे ही परमेश्वर के लोग होते हैं।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर के समक्ष अपने आप को शांत रखना" से
"परमेश्वर के चुने हुए लोग" से क्या अभिप्राय है? परमेश्वर ने जब सारी चीज़ों की रचना कर दी और मानवजाति अस्तित्व में आ गई तो परमेश्वर ने उन लोगों का एक समूह चुना जो उसका अनुसरण करते थे, और उन्हें "परमेश्वर के चुने हुए लोग" कहा। … परमेश्वर द्वारा उन्हें चुने जाने का अर्थ है कि वे महान विशेषता रखने वाले लोग हैं। कहने का तात्पर्य है कि परमेश्वर उन्हें सम्पूर्ण बनाना चाहता है और सिद्ध बनाना चाहता है, और उसका प्रबंधन का कार्य पूर्ण होने के पश्चात वह इन्हें जीत लेगा। क्या यह विशेषता महान नहीं है? इस प्रकार, इन चुने हुए लोगों का परमेश्वर के लिये विशेष महत्व है, क्योंकि ये वे लोग हैं जिन्हें परमेश्वर जीतने का इरादा रखता है। जबकि सेवकाई करने वाले - खैर, आओ हम परमेश्वर के पूर्व निर्धारित लक्ष्य या मंजिल से हट जाएं, और पहले उनके उद्भव के बारे में बात करें। "सेवकाई करने वाले" का शाब्दिक अर्थ है वह जो सेवा करता है। वे जो सेवकाई करने वाले हैं, वे चलायमान हैं, वे लम्बे समय तक ऐसा नहीं करते या हमेशा के लिये नहीं करते, बल्कि उन्हें भाड़े पर लिया जाता है अथवा अस्थाई रुप से नियुक्त किया जाता है। …
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… और इन सेवकाई करने वालों की क्या भूमिका है? परमेश्वर के चुने हुओं की सेवकाई करना। मुख्यतौर पर, उनका मुख्य कार्य परमेश्वर का कार्य करना, परमेश्वर के कार्य में सहयोग देना है और परमेश्वर के चुने हुओं की निष्पत्ति में सहायता करना। … सेवकाई करने वाले की पहचान सेवा करने वाले के रुप में ही है परन्तु परमेश्वर के लिये वे उन चीजों में से एक ही है जिनकी उसने सृष्टि की है - सीधी-सी बात है कि उनकी भूमिका सेवकाई करने वालों की है। परमेश्वर की सृष्टि में से ही एक होने के नाते, तो तुम क्या कहते हो, क्या एक सेवकाई करने वाले में और परमेश्वर के चुने हुए लोग होने में कुछ अन्तर है? प्रभाव में तो नहीं। सामान्यत: देखें तो अन्तर है, सार-तत्व में एक अन्तर है, वे जो भूमिका निभाते हैं उसके अनुसार अन्तर है, परन्तु इन लोगों में परमेश्वर कोई पक्षपात नहीं करता। तो इन लोगों को सेवकाई करने वालों के रुप में क्यों परिभाषित किया जाता है? इस बात को तुम सबको समझना चाहिये - सेवकाई करने वाले अविश्वासियों में से आते हैं। अविश्वासियों का वर्णन हमें बताता है कि उनका अतीत बुरा था। वे सब नास्तिक हैं, अपने अतीत में वे नास्तिक थे, वे परमेश्वर में विश्वास नहीं करते थे और वे परमेश्वर के, सच्चाई और सकारात्मक बातों के विरोधी थे। वे परमेश्वर में विश्वास नहीं करते थे और नहीं मानते थे कि परमेश्वर का अस्तित्व है, तो ये क्या वे परमेश्वर के वचनों को समझने योग्य हैं? यह कहना उचित होगा कि काफी हद तक वे नहीं हैं। जैसे कि पशु मनुष्य के शब्दों को नहीं समझ पाते, ठीक वैसे ही सेवकाई करने वाले भी नहीं समझते कि परमेश्वर क्या कह रहा है, वह क्या चाहता है, उसकी ऐसी अपेक्षा क्यों है - ये बातें उनकी समझ से परे हैं, वे अज्ञानी ही बने रहते हैं। और यही कारण है कि वे उस जीवन को प्राप्त नहीं करते जिसकी हमने बात की। बिना जीवन के, क्या लोग सच्चाई को समझ सकते हैं? क्या उनमें सच्चाई है? क्या उनमें परमेश्वर के वचन का अनुभव और ज्ञान है? निश्चय ही नहीं। यही उन सेवकाई करने वालों का मूल है। परन्तु चूंकि परमेश्वर इन लोगों को सेवकाई करने वाला बनाता है, उनसे उसकी अपेक्षाओं के भी स्तर हैं; वह उन्हें तुच्छ दृष्टि से नहीं देखता और न वह उनके प्रति बेपरवाह ही है। यद्यपि वे उसके वचन को नहीं समझते और बिना जीवन के हैं, फिर भी परमेश्वर उनके प्रति दयावान है और अभी भी उनसे उसकी अपेक्षाओं के स्तर हैं। तुम लोगों ने अभी इन स्तरों के विषय में कहाः परमेश्वर के प्रति निष्ठावान बने रहना और वही करना जो वह कहता है। अपनी सेवकाई में तुम्हें वहीं सेवकाई करनी है जहां आवश्यकता हो, और सेवकाई को अन्त तक पूरा करना है। यदि तुम अंत तक सेवकाई कर सको, यदि तुम एक निष्ठावान सेवकाई करने वाले बन सको, और अन्त तक सेवकाई कर सको, और परमेश्वर द्वारा सौंपे गये कार्य को बिल्कुल भली-भांति पूर्ण करने वाले बन सको, तब तुम एक सार्थक जीवन जियोगे और तुम रह पाओगे। यदि तुम थोड़ा और प्रयास करो, यदि तुम थोड़ा और परिश्रम करो, परमेश्वर को जानने के अपने प्रयास को तुम दोगुना करो, परमेश्वर के ज्ञान के विषय में थोड़ा-बहुत बोल पाओ, परमेश्वर की गवाही दे सको और इसके अतिरिक्त, यदि तुम परमेश्वर की इच्छा को थोड़ा-बहुत समझ सको, परमेश्वर के कार्य में सहयोग कर सको, और परमेश्वर की इच्छा के प्रति थोड़ा सचेत रहो, तब तुम, यह सेवकाई करने वाले, अपने भाग्य को बदल पाओगे और भाग्य में यह परिवर्तन किस प्रकार का होगा? तब तुम केवल रहोगे ही नहीं। तुम्हारे आचरण और व्यक्तिगत आकांक्षा और कोशिश के आधार पर, परमेश्वर तुम्हें चुने हुओं में से बनायेगा। यह तुम्हारे भाग्य में परिवर्तन होगा। सेवकाई करने वालों के लिये इस विषय में सर्वोत्तम बात क्या है? वह यह है कि वे परमेश्वर के चुने हुओं में से एक बन सकते हैं। … क्या यह अच्छा है? हां, यह एक अच्छा समाचार है। कहने का तात्पर्य है, सेवकाई करने वालों को ढाला जा सकता है। सेवकाई करने वालों के मामले में ऐसा नहीं है कि सेवकाई करने वाले, जब परमेश्वर तुम्हें सेवकाई के लिये नियुक्त करता है, तुम सदा के लिए सेवकाई ही करते रहोगे, ऐसा आवश्यक नहीं है। तुम्हारे व्यक्तिगत आचरण आधार पर, परमेश्वर तुम्हारे साथ अलग तरीके से व्यवहार करेगा और अलग ढंग से तुम्हें प्रत्युत्तर देगा।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "स्वयं परमेश्वर, जो अद्वितीय है X" से
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