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शनिवार, 9 फ़रवरी 2019

प्रश्न 31: बाइबल में जकर्याह की पुस्तक में, यह भविष्यवाणी की गई है: "यरूशलेम नगर के पूर्व में जैतून पहाड़ है। प्रभु उस दिन उस पहाड़ पर खड़ा होगा।…" परमेश्वर की वापसी निश्चित रूप से यहूदिया में जैतून के पहाड़ पर होगी, और फिर भी तुम गवाही देते हो कि प्रभु यीशु पहले ही वापस आ चुका है, चीन में प्रकट हुआ है और कार्यरत है। चीन एक नास्तिक देश है और यह सबसे अंधकारमय, सबसे पिछड़ा राष्ट्र है जो परमेश्वर को सबसे गंभीर रूप से नकारता है, तो प्रभु की वापसी चीन में कैसे हो सकती है? हम वास्तव में इसको समझ नहीं सकते, इसलिए कृपया हमारे लिए इसका उत्तर दो।

उत्तर:

परमेश्वर यीशु यहूदिया से बाहर चला गया उस बात को लगभग दो हज़ार साल हो गए हैं। अब आखिरी दिन आये हैं, और सभी प्रकार के अकाल, विपत्तियां, भूकंप, बाढ़ और सूखे अधिक बार, अधिक व्यापक रूप से और अधिक तीव्रता से दिखाई दे रहे हैं। दुनिया भर के विभिन्न देश चलायमान और अस्थिर हैं, और आतंकवादी गतिविधियाँ, प्रजातीय संघर्ष और सभी तरह के युद्ध लगातार हो रहे हैं। धार्मिक क्षेत्रों में, सभी कलीसियाएँ अंधेरे में गिर गई हैं क्योंकि उन्होंने पवित्र आत्मा का कार्य खो दिया है। सहकर्मियों के बीच ईर्ष्या और टकराव है, और कई भाइयों और बहनों के विश्वास और उनके स्नेह ठंडे पड़ गए हैं। झूठे भविष्यवक्ता और मसीह-शत्रु भी दुनिया भर में एक के बाद एक दिखाई दे रहे हैं। भाइयों और बहनों, तथ्यों का यह ढेर इसे समझाने के लिए पर्याप्त है कि परमेश्वर की वापसी की भविष्यवाणी पहले से ही पूरी हो चुकी है। तो फिर प्रभु यीशु आखिर कहाँ उतरा था? जकर्याह 14 की भविष्यवाणी की वजह से लगभग सभी लोग जो परमेश्वर की वापसी के लिए तत्पर हैं, सोचते हैं कि प्रभु यीशु यहूदिया में जैतून के पहाड़ पर उतरेगा: "उस समय, वह जैतुन के पर्वत पर खड़े होगा। वह पहाड़ी जो यरूशलेम के पूर्व है।" बहरहाल, आखिरी दिनों के परमेश्वर का कार्य हर किसी की कल्पनाओं से परे चला गया है और सभी की अवधारणाओं को तोड़ चुका है। परमेश्वर ने आखिरी दिनों के अपने कार्य के ठौर-ठिकाने के रूप में चीन जैसे सबसे गंदे, सबसे भ्रष्ट और अंधकारमय, सबसे नास्तिक देश को चुना। यह वास्तव में हमारे विचारों के अनुरूप नहीं है और उसने सभी को काफी हैरान किया है। तो क्यों परमेश्वर चीन में देह बना है? चलो, सच्चाई के इस पहलू के बारे में संवाद करते हैं।
परमेश्वर पहली बार जब देह बना, सभी लोग जो मसीहा की प्रतीक्षा कर रहे थे, उन्होंने सोचा कि मसीह किसी महल में पैदा होगा। दरअसल, किसी को भी उम्मीद नहीं थी कि महान, श्रेष्ठ और सर्वोच्च परमेश्वर नम्रता से एक नाँद में पैदा होगा। यीशु मसीह का ऐसा आगमन हर किसी की कल्पना से परे था और इसने हर किसी की अवधारणाओं को तोड़ दिया था। अब इस अवधि के आखिरी दिनों में, एक बार फिर हर किसी की कल्पना से परे और हर किसी की अवधारणाओं को तोड़ते हुए, परमेश्वर चीन में काम करने के लिए देह बना। कुछ भाई और बहन इस वास्तविकता को स्वीकार करने में असमर्थ हैं। उनका मानना है कि परमेश्वर इस्राएलियों का परमेश्वर है, इसलिए परमेश्वर संभवतः किसी अन्य देश में कार्य करने के लिए देह नहीं बन सकता, और इसके अलावा चीन में तो कदाचित् कभी नहीं उतर सकता। मनुष्य का ऐसा विचार इसलिए है कि परमेश्वर ने एक बार इस्राएल में व्यवस्था का कार्य किया, और प्रभु यीशु ने भी यहूदिया में अनुग्रह का कार्य किया था। चूँकि इन दोनों चरणों का कार्य इस्राएल में किया गया था, हमें लगता है कि परमेश्वर तो इस्राएलियों का परमेश्वर होना चाहिए और वह शायद किसी गैर-यहूदी देश में नहीं उतर सकता है, और इसके अलावा चीन में संभवतः कार्य नहीं कर सकता। तुम में से हर किसी को कृपया ध्यान से इस बारे में सोचना है। सिर्फ इसलिए कि परमेश्वर के कार्य के पहले दोनों चरण इस्राएल में सम्पादित हुए थे, क्या यह साबित होता है कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है, अन्य गैर-यहूदी जातियों का परमेश्वर नहीं है? क्या हम कह सकते हैं कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों को ही प्यार करता है और अन्य गैर-यहूदी जातियों से नफरत करता है? परमेश्वर यीशु के अनमोल रक्त ने इस्राएलियों को छुड़ाया, लेकिन क्या इसने सारी मानव जाति को भी नहीं छुड़ाया था? हमें यह जानना चाहिए कि परमेश्वर सिर्फ इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है। परमेश्वर सभी मानव जाति का भी परमेश्वर है। परमेश्वर को इस्राएल में व्यवस्था के युग का कार्य करने का अधिकार था। उसे यहूदीया में अनुग्रह के युग का कार्य करने का भी अधिकार था, और उससे ज़्यादा, वह चीन में आखिरी दिनों के विजय और न्याय के कार्य को करने का अधिकार भी रखता है। यह इसलिए है क्योंकि परमेश्वर आकाश, पृथ्वी और सभी चीज़ों का शासक है, सभी प्राणियों का परमेश्वर है। परमेश्वर चीन में कार्य करने के लिए देह बना ताकि इस वास्तविक तथ्य का इस्तेमाल हमारी अवधारणाओं को तोड़ने के लिए और हमें यह एहसास दिलाने के लिए हो सके, कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, बल्कि सभी मानव जाति का परमेश्वर भी है। परमेश्वर को किसी भी देश और अपनी चुनी हुई किसी भी कौम में अपनी योजनाओं के कार्य को सम्पादित करने का अधिकार है। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है: "उसने इज़राइलियों की अगुवाई की और यहूदिया में पैदा हुआ, और वह एक गैर-यहूदि भूमि में भी पैदा हुआ है। क्या उसका सभी कार्य उस मानव जाति के लिए नहीं जिसका उसने निर्माण किया? क्या वह इज़राइलियों को सौ गुना पसंद करता है और गैर-यहूदियों से एक हज़ार गुना घृणा करता है? क्या यह तुम्हारी धारणा नहीं है? …यदि तुम अभी भी मानते हो कि परमेश्वर केवल इज़राइलियों का परमेश्वर है, और अभी भी यह मानते हो कि इज़राइल में दाऊद का घर परमेश्वर के जन्म का स्थान है और इज़राइल के अलावा कोई भी राष्ट्र परमेश्वर को "उत्पन्न" करने के योग्य नहीं है, और तो और यह भी मानते हो कि कोई गैर-यहूदी परिवार यहोवा के कार्यों को निजी तौर पर प्राप्त करने के लिए सक्षम नहीं है—अगर तुम अभी भी इस तरह सोचते हो, तो क्या यह तुम्हें एक ज़िद्दी विरोधी नहीं बनाता? …तुम लोगों ने यह भी कभी नहीं सोचा कि कैसे एक गैर-यहूदी भूमि में परमेश्वर व्यक्तिगत रूप से उतर सकता है। उसे तो सिनाई पर्वत पर या जैतून पर्वत पर उतरना चाहिए और इज़राइलियों के समक्ष प्रकट होना चाहिए। क्या गैर-यहूदी (जो इज़राइल के बाहर के लोग है) सभी उसकी घृणा के पात्र नहीं हैं? वह व्यक्तिगत रूप से उनके बीच कैसे काम कर सकता है? ये सभी गहरी जड़ों वाली धारणाएं हैं जिन्हें तुम लोगों ने कई वर्षों से विकसित किया है। आज तुम लोगों पर विजय प्राप्त करने का उद्देश्य है तुम लोगों की इन धारणों को ध्वस्त कर देना। इस तरह तुम लोगों ने परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से अपने बीच में प्रकट होते हुए देखा है—सिनाई पर्वत पर या जैतून पर्वत पर नहीं, बल्कि उन लोगों के बीच जिनकी उसने अतीत में कभी अगुवाई नहीं की है" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "विजयी कार्यों का आंतरिक सत्य (3)" से)। "मैंने यहूदिया को छोड़ दिया है और अन्य जातियों के बीच में कार्य करता हूँ क्योंकि मैं मात्र इस्राएल के लोगों का ही परमेश्वर नहीं हूँ, बल्कि सभी प्राणियों का परमेश्वर हूँ। मैं अंत के दिनों के दौरान अन्य जातियों के बीच में प्रकट होता हूँ क्योंकि मैं न केवल इस्राएल के लोगों का परमेश्वर यहोवा हूँ, बल्कि, इसके अतिरिक्त, क्योंकि मैं अन्य जातियों के बीच में अपने चुने हुए सभी लोगों का रचयिता भी हूँ। मैंने न केवल इस्राएल, मिस्र और लेबनान की रचना की, बल्कि मैंने इस्राएल से बाहर के सभी अन्य जाति के राष्ट्रों की भी रचना की। और इस कारण, मैं सभी प्राणियों का प्रभु हूँ" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "सफेद बादल" पर सवार होकर वापस आ चुका है" से)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों के माध्यम से हम यह जान सकते हैं कि परमेश्वर केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, बल्कि सभी मानव जाति का परमेश्वर भी है। यदि परमेश्वर अंतिम दिनों के अपने कार्य को करने के लिए यहूदिया में ही फिर से उतर आया होता, तो हम हमेशा हमारी धारणाओं में परमेश्वर को सीमित करते और सोचते कि वह तो केवल इस्राएलियों का परमेश्वर है और संभवत: किसी अन्य गैर-यहूदी देश में कार्य नहीं कर सकता है। इसलिए, परमेश्वर चीन में कार्य करने के लिए देह बन गया ताकि सभी मानव जाति को अपनी-अपनी अवधारणाओं और कल्पनाओं से बचाया जा सके और सभी मानव जाति इसे महसूस कर सके कि परमेश्वर केवल इस्राएल के लोगों का परमेश्वर नहीं है, बल्कि सभी मानव जाति का भी परमेश्वर है। परमेश्वर किसी भी देश की निजी संपत्ति नहीं है; परमेश्वर को किसी भी देश में और किसी भी कौम के बीच अपना नियोजित कार्य करने का अधिकार है। परमेश्वर चाहे जहाँ भी कार्य करे, यह सब उसके कार्य की खातिर ही है और साथ ही सभी मानव जाति को बचाने के लिए भी है। क्या हम अभी भी सोचते हैं कि परमेश्वर केवल यहूदिया में अवतरित हो सकता है और चीन में नहीं उतर सकता? क्या हम अब भी कह सकते हैं कि मुमकिन है, परमेश्वर चीन में कार्य नहीं कर सकता है?
हमें यह जानना चाहिए कि परमेश्वर का समस्त कार्य उच्च सिद्धांतों वाला है। परमेश्वर कार्य की ज़रूरतों के आधार पर अपने कार्य का स्थल चुनता है। प्रत्येक युग में परमेश्वर के द्वारा चुना गया कार्य-स्थल हमेशा प्रतिनिधिक और अत्यंत अर्थपूर्ण होता है। इसका मतलब यह है कि उसके काम के प्रत्येक चरण के चयनित स्थान और चयनित उद्देश्य को आवश्यकताओं के अनुसार निर्धारित किया जाता है। उदाहरण के लिए, अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने यहूदिया में कार्य करने का फैसला किया। एक तो यह इसलिए था कि समग्र मानव जाति में केवल इस्राएली लोग ही परमेश्वर की पूजा करते थे। केवल वे ही परमेश्वर के चुने हुए लोग थे और केवल वे ही मसीहा के आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। दूसरी ओर, केवल इस्राएली लोग एकमात्र ऐसे थे जिन्हें परमेश्वर यहोवा ने अपने नियमानुसार निर्देशित किया था। वे लोग जानते थे कि नियमों का उल्लंघन करना पाप था, और यदि उन्होंने आदेशों का उल्लंघन किया तो वे परमेश्वर के दंड के अधीन होंगे। इसलिए, केवल वे ही ऐसे लोग थे जिनके दिलों में परमेश्वर का सम्मान और परमेश्वर का भय था। नियमों के बंधन के कारण, वे सभी मनुष्यों के बीच सबसे कम भ्रष्ट थे, और परमेश्वर द्वारा उन पर किया गया छुटकारे का कार्य सबसे अधिक सार्थक था। ऐसा क्यों है कि कम से कम भ्रष्ट लोगों पर किया जाने वाला छुटकारे का कार्य सबसे अधिक सार्थक होता है? इसका कारण यह है कि यदि सबसे कम दूषित लोगों को भी परमेश्वर के छुटकारे की ज़रूरत होती है, तो अन्य अधिक भ्रष्ट लोगों को परमेश्वर के छुटकारे की और अधिक ज़रूरत होगी। परमेश्वर को केवल इतना करना है की इस्राएल के लोगों को छुड़ा ले, और यह सभी मानव जाति के छुटकारे के समान होगा। इसलिए, यहूदिया में अपने छुटकारे के कार्य को करने सम्बन्धी परमेश्वर की पसंद प्रतिनिधिक है और यह अत्यंत सार्थक भी है। यह पूरी तरह से परमेश्वर के कार्य की आवश्यकताओं के अनुसार तय किया गया था और बेतरतीब ढंग से निर्धारित नहीं था।
अब हमें यह समझना चाहिए कि कार्य की आवश्यकताओं के आधार पर परमेश्वर सबसे अधिक प्रतिनिधिक कार्य-स्थल का चुनाव करता है ताकि बेहतरीन परिणाम प्राप्त किये जा सकें। तदनुसार, आखिरी दिनों में परमेश्वर के कार्य को सर्वाधिक प्रतिनिधिक और सबसे अधिक सार्थक कहाँ पर किया जा सकेगा? इस सवाल को समझने के लिए, हमें पहले यह समझना होगा कि अंतिम दिनों में परमेश्वर को क्या करना है। भाइयों और बहनों, आखिरी दिनों में, परमेश्वर को सभी मानव जाति को जीतने और न्याय करने का कार्य करना है, ताकि शैतान को पूरी तरह से परास्त कर मानव जाति को एक गौरवपूर्ण गंतव्य पर ले जाया जा सके। इसलिए कार्य की आवश्यकताओं के आधार पर, आखिरी दिनों में परमेश्वर के विजय के कार्य का उद्देश्य सभी भ्रष्ट मानवजातियों का मूलरूप आदर्श होना चाहिए। इसका कारण यह है कि अगर परमेश्वर मानव जाति में सबसे भ्रष्ट लोगों पर विजय प्राप्त करता है, तो यह सारी मानव जाति को जीतने के समान होगा। इसलिए, आखिरी दिनों में परमेश्वर को विजय का कार्य करने के लिए सबसे अधिक प्रतिनिधिक स्थल को चुनना होगा। चीन ही परमेश्वर के आखिरी दिनों के कार्य की ज़रूरी परिस्थितियों के लिए सबसे अधिक उपयुक्त है। इसका कारण यह है कि पूरे ब्रह्माण्ड में, केवल चीनी लोग ही सबसे अधिक भ्रष्ट हैं, सबसे ज़्यादा पिछड़े हुए हैं, और परमेश्वर के प्रति उनका प्रतिरोध सबसे अधिक गंभीर है। चीनी लोगों ने सबसे कम समय के लिए परमेश्वर में विश्वास किया है, और वे बस अभिवादन करते हैं, धूप जलाते हैं, कागज़ी मुद्रा जलाते हैं, और बुद्ध से प्रार्थना करते हैं तथा मूर्तियों की उपासना करते हैं। चीनी लोगों के पास मानव अधिकार नहीं हैं और वे नीच जन्म लेते हैं; उनके चरित्र दुर्बल है, और वे बुरे और लंपट, सुन्न और सुस्त, अशिष्ट और अवनतिशील हैं। वे शैतान के स्वभाव से भरपूर होते हैं, जो उन्हें भ्रष्ट मानवजाति का मूलरूप आदर्श बनाता है। चीनी लोगों की सोच अबोध होती है, जबकि उनका सामाजिक वातावरण और उनके जीवन की आदतें बहुत पिछड़ी हैं। चीन में किसी भी देश से अधिक ऐसे लोग हैं जो मूर्तियों की उपासना करते हैं और जादू-टोने में व्यस्त रहते हैं, साथ ही साथ चीन में सर्वाधिक मंदिर हैं—यह वास्तव में कुत्सित आत्माओं का घर है। हर कोई यह भी जानता है कि चीन सबसे अधिक अंधकारमय, सबसे नास्तिक देश है, जो कि परमेश्वर के अस्तित्व को स्वीकारने के लिए सबसे अधिक अनिच्छुक है। यह बड़े लाल अजगर का बिल है, संतों के विभाजित रक्त से भरा हुआ है। किंग राजवंश के दौरान हजारों पश्चिमी मिशनरियों को चीन में शहीद किया गया थे। अनगिनत मिशनरियों ने आधुनिक चीन में सभी प्रकार के अपमान और दर्द का सामना किया है, वे देश से बाहर निकाले गए है और उनकी कलीसियाओं को बंद या ध्वस्त कर दिया गया है या उन्हें जला दिया गया है। विशेषकर राक्षसी, नास्तिक कम्युनिस्ट पार्टी के शासन के दशकों में, अनगिनत ईसाइयों को कम्युनिस्ट सरकार द्वारा हिरासत में लिया गया और मार दिया गया है, जिससे हजारों परिवार छिन्न-भिन्न होकर नष्ट हो गए हैं। और जब एक ओर सरकार सख्ती से नास्तिकता को बढ़ावा देती है, यह साथ ही सतही तौर पर तथाकथित धार्मिक स्वतंत्रता की अनुमति भी देती है, लेकिन गुप्त रूप से क्रूरतापूर्वक ईसाइयों को सताती है, परमेश्वर के सभी विश्वासियों को बाहर खदेड़ने और निर्मूल करने की योजना बना रही है। अतीत में, सुसमाचार फैलाने के लिए अनगिनत ईसाई चीन में शहीद हुए थे। आज, अब भी कई भाई-बहन ऐसे हैं जो सीसीपी सरकार के चंगुल में घिर गए हैं और वर्तमान में कठोर और अमानवीय तबाही से पीड़ित हैं। ये महत्वपूर्ण तथ्य इसे साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि चीन दुनिया का सबसे अंधकारमय, सबसे भ्रष्ट और सबसे अधिक परमेश्वर-विरोधी देश है। इसलिए, परमेश्वर का चीन में अपने विजय और न्याय के कार्य को सम्पादित करना अत्यंत अर्थपूर्ण है। चीन में अपने न्याय के कार्य को करने से परमेश्वर की सर्वशक्तिमानता और ज्ञान सबसे अच्छी तरह प्रकट हो सकते हैं, और शैतान को सबसे अच्छी तरह असफल और अपमानित किया जा सकता है। चीन में कार्य करने से परमेश्वर द्वारा प्राप्त की जाने वाली गवाहियाँ सबसे अधिक ज़बरदस्त हैं, और चीन में कार्य करने से परमेश्वर द्वारा प्राप्त महिमा भी सबसे बड़ी है। यदि शैतान द्वारा गहराई से भ्रष्ट लोगों पर परमेश्वर की विजय होती है, तो जाहिर है कि बाक़ी दुनिया में जो लोग कम भ्रष्ट हैं, उन पर भी कब्ज़ा कर लिया जाएगा। इसलिए, परमेश्वर ने अपने विजय-कार्य की ज़रूरतों के आधार पर चीन को चुना। आखिरी दिनों के अपने विजय के कार्य के लिए परमेश्वर का चीन को अपने प्रथम स्थल के रूप में चुनना प्रतिनिधिक है और सबसे अधिक अर्थपूर्ण भी है। अगर चीन में परमेश्वर का विजय-कार्य सफल होता है, तो इसका मतलब है कि पूरे ब्रह्मांड भी में परमेश्वर का विजय-कार्य सफल हुआ है।
सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है: "एक बार सबसे अंधकारमय स्थान के लोगों को जीत लिया, तो कहने की आवश्यकता नहीं कि हर अन्य जगह पर भी ऐसा ही होगा। वैसे तो, केवल चीन में विजय का कार्य सार्थक प्रतीकात्मकता रखता है। चीन अंधकार की सभी शक्तियों का मूर्तरूप है, और चीन के लोग उन सभी लोगों का प्रतिनिधित्व करते हैं जो देह के हैं,शैतान के हैं,मांस और रक्त के हैं। ये चीनी लोग हैं जो बड़े लाल अजगर द्वारा सबसे ज़्यादा भ्रष्ट किए गए हैं, जिनका परमेश्वर के प्रति सबसे मज़बूत विरोध है, जिनकी मानवता सर्वाधिक अधम और अशुद्ध है, और इसलिए वे समस्त भ्रष्ट मानवता के मूलरूप आदर्श हैं। ... यह चीन के लोगों में है कि भ्रष्टाचार, अशुद्धता, अधार्मिकता, विरोध और विद्रोहशीलता सर्वाधिक पूर्णता से व्यक्त होते हैं और अपने सभी विविध रूपों में प्रकट होते हैं। एक ओर, वे खराब क्षमता के हैं, और दूसरी ओर, उनके जीवन और उनकी मानसिकता पिछड़े हुए हैं, और उनकी आदतें, सामाजिक वातावरण, जन्म का परिवार—सभी गरीब और सबसे पिछड़े हुए हैं। उनकी हैसियत भी कम है। इस स्थान में कार्य प्रतीकात्मक है, और इस परीक्षा के कार्य के इसकी संपूर्णता में पूरा कर दिए जाने के बाद, उसका बाद का कार्य बहुत बेहतर तरीके से होगा। यदि कार्य के इस चरण को पूरा किया जा सकता है, तो इसके बाद का कार्य ज़ाहिर तौर पर होगा ही। एक बार कार्य का यह चरण सम्पन्न हो जाता है, तो बड़ी सफलता पूर्णतः प्राप्त कर ली गई होगी, और समस्त विश्व में विजय का कार्य पूर्णतः पूरा हो गया होगा। वास्तव में, एक बार तुम लोगों के बीच कार्य सफल हो जाता है, तो यह समस्त विश्व में सफलता के बराबर होगा। यही इस बात का महत्व है कि क्यों मैं तुम लोगों से एक प्रतिदर्श और नमूने के रूप में कार्यकलाप करवाता हूँ। विद्रोहशीलता, विरोध, अशुद्धता, अधार्मिकता ..., इन लोगों में सभी पाए जाते हैं,और इनमें मानव जाति की सभी विद्रोहशीलता का प्रतिनिधित्व होता है—वे वास्तव में कुछ हैं। इस प्रकार, उन्हें विजय के प्रतीक के रूप में प्रदर्शित किया जाता है, और एक बार जब वे जीत लिए जाते हैं तो वे स्वाभाविक रूप से दूसरों के लिए एक प्रतिदर्श और आदर्श बन जाएँगे" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "उद्धारकर्त्ता पहले से ही एक "परमेश्वर के कार्य का दर्शन (2)" से)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों से हमें यह समझ में आता है कि परमेश्वर का चीन में विजय का कार्य एक प्रारंभिक परियोजना है। एक बार जब यह प्रारंभिक कार्य व्यापक रूप से पूरा हो जाता है, उसका भावी कार्य बहुत आसान हो जाता है। यदि चीन में परमेश्वर का कार्य सफल होता है, तो इसका मतलब है कि पूरे ब्रह्मांड में भी परमेश्वर का कार्य सफल हुआ है। इस के माध्यम से, हम देख सकते हैं कि चीन में विजय और न्याय का अपना कार्य करने का परमेश्वर का निर्णय बहुत ही अर्थपूर्ण है।
यदि हम परमेश्वर के सच्चे स्वरूप की खोज करना चाहते हैं, तो हमें अपनी अवधारणाओं को अलग कर देना चाहिए। यह सोचकर कि परमेश्वर शायद अमुक देश में, या फलाँ कौम में, कार्य नहीं कर सकेगा, हम परमेश्वर के नक्शेक़दम को एक सीमित दायरे में बाधित नहीं कर सकते हैं। हमें अपने संकुचित राष्ट्रीय अवधारणाओं और हमारे "असंभव" तर्कों को अलग कर देना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर सभी सृष्टि का परमेश्वर है और सभी मानव जाति का परमेश्वर है। आखिरी दिनों के अपने कार्य के लिए स्थान के बारे में परमेश्वर के चुनाव का एक अर्थ है, और इसके अलावा, उसके अच्छे इरादे उसमें निहित हैं। प्राणियों के रूप में, हमें तर्कसंगत होना चाहिए और परमेश्वर के कार्य का अनुपालन करना चाहिए, और परमेश्वर के संदर्भ के लिए हमें अपनी अवधारणाओं और विचारों को परमेश्वर के कार्य में शामिल नहीं करना चाहिए। यह ऐसा कुछ है जो परमेश्वर बिल्कुल बर्दाश्त नहीं करेगा। सर्वशक्तिमान परमेश्वर कहता है: "चाहे तू अमेरिकी, ब्रिटिश, या किसी भी अन्य राष्ट्रीयता का हो, तुझे अपने स्वयं के दायरे से बाहर आना चाहिए, तुझे स्वयं को पार करना चाहिए, और परमेश्वर की एक सृष्टि के रूप में परमेश्वर के कार्य को देखना चाहिए। इस तरीके से, तू परमेश्वर के पदचिन्हों पर रुकावट नहीं डाल पाएगा। क्योंकि, आज, कई लोग परमेश्वर के एक निश्चित देश या राष्ट्र में प्रकट होने को असंभव समझते हैं। परमेश्वर के कार्य का कितना गहरा महत्व है, और परमेश्वर का प्रकट होना कितना महत्वपूर्ण है! उन्हें कैसे मनुष्य की धारणाओं और सोच से मापा जा सकता है? और इसलिए मैं कहता हूँ, जब तू परमेश्वर के प्रकट होने को खोजता है तब तुझे अपनी राष्ट्रीयता या जातीयता की धारणाओं को तोड़ देना चाहिए। इस तरह, तू अपने स्वयं की धारणाओं से विवश नहीं हो पाएगा; इस तरह, तू परमेश्वर के प्रकट होने का स्वागत करने में सक्षम हो पाएगा। अन्यथा, तू हमेशा अन्धकार में रहेगा, और परमेश्वर की मंजूरी कभी हासिल नहीं कर पाएगा।"
"परमेश्वर सभी मानव जाति का परमेश्वर है। वह अपने आप को किसी भी देश या राष्ट्र की निजी संपत्ति नहीं बनाता है, और वह किसी भी रूप, देश, या राष्ट्र द्वारा बाधित हुए बिना अपनी योजना का कार्य करता है। शायद तूने इस रूप की कभी कल्पना भी नहीं की होगी, या शायद तू इसके अस्तित्व का इनकार करता है, या शायद उस देश या राष्ट्र के साथ, जिसमें परमेश्वर प्रकट होता है, भेदभाव किया जाता है और पृथ्वी पर सबसे कम विकसित माना जाता है। फिर भी परमेश्वर के पास उसकी बुद्धि है। उसकी शक्ति के द्वारा और उसकी सत्यता और स्वभाव के माध्यम से उसे ऐसे लोगों का समूह मिल गया है जो उसके साथ एक विचार के हैं। और उसे ऐसे लोगों का समूह मिल गया है जैसा वह बनाना चाहता थाः उसके द्वारा जीता गया एक समूह, जो अति पीड़ादायक दुख और सब प्रकार के अत्याचार को सह लेता है और अंत तक उसका अनुसरण कर सकता है। किसी भी रूप में या देश की बाधाओं से मुक्त हो कर परमेश्वर के प्रकट होने का उद्देश्य उसे उसकी योजना का कार्य पूरा करने में सक्षम होने के लिए है। उदाहरण के लिए, जब परमेश्वर यहूदिया में देहधारी हुआ, उसका लक्ष्य सूली पर चढ़ाये जाने के कार्य को पूरा करने के द्वारा सारी मानव जाति को पाप से मुक्त करना था। फिर भी यहूदियों का मानना था कि परमेश्वर के लिए ऐसा करना असंभव था, और उन्होंने सोचा कि परमेश्वर के लिए देहधारी होना और प्रभु यीशु के रूप में होना असंभव है। उनका "असंभव" एक ऐसा आधार बन गया जिसके द्वारा उन्होंने परमेश्वर को अपराधी ठहराया और विरोध किया, और अंत में इस्राएल को विनाश की ओर ले गए। आज, कई लोगों ने उसी प्रकार की गलती की है। वे परमेश्वर के किसी भी क्षण आ जाने का प्रचार बहुत हल्के रूप में करते हैं, साथ ही वे उसके प्रकट होने को गलत भी ठहराते हैं; उनका "असंभव" एक बार फिर परमेश्वर के प्रकट होने को उनकी कल्पना की सीमाओं के भीतर सीमित करता है। ... अपनी धारणाओं को एक तरफ रख दो! रुको और ध्यान से इन शब्दों को पढ़ो। …अपने "असंभव" के विचार को एक तरफ रखो! जितना अधिक लोग यह मानते हैं कि कुछ असंभव है, उतना ही अधिक उसके घटित होने की संभावना है, क्योंकि परमेश्वर की बुद्धि स्वर्ग से भी ऊँची उड़ान भरती है, परमेश्वर के विचार मनुष्य के विचारों की तुलना में ऊँचे हैं, और परमेश्वर का कार्य मनुष्य की सोच और धारणा की सीमा से कहीं ऊँचा होता है। जितना अधिक कुछ असंभव है, उतना अधिक वहाँ सच्चाई को खोजने की आवश्यकता है; जितना अधिक वह मनुष्य की धारणा और कल्पना से परे है, उतना ही अधिक उस में परमेश्वर की इच्छा समाहित होती है। क्योंकि परमेश्वर स्वयं को चाहे जहां भी प्रकट करे, परमेश्वर फिर भी परमेश्वर है, और उसके स्थान और उसके प्रकट होने के तरीकों के कारण उसका तत्व कभी नहीं बदलेगा। उसके पदचिन्ह चाहे कहीं भी क्यों न हों परमेश्वर का स्वभाव एक जैसा बना रहता है। चाहे जहां कहीं भी परमेश्वर के पदचिन्ह क्यों न हों, वह सभी मानव जाति का परमेश्वर है। उदाहरण के लिए, प्रभु यीशु केवल इस्राएलियों का परमेश्वर नहीं है, बल्कि एशिया, यूरोप और अमेरिका में सभी लोगों का परमेश्वर है, और यहां तक कि पूरे ब्रह्मांड में सिर्फ वो ही परमेश्वर है। इसलिए, हम परमेश्वर के कथनों से परमेश्वर की इच्छा की और उसके प्रकट होने की खोज करें और उसके पदचिन्हों का अनुसरण करें! परमेश्वर ही मार्ग, सत्य और जीवन है। उसके वचन और उसका प्रकट होना समवर्ती है, और उसका स्वभाव और पदचिन्ह हमेशा मानव जाति के लिए उपलब्ध रहेंगे। प्रिय भाइयों और बहनों, मुझे आशा है कि तुम लोग इन शब्दों में परमेश्वर के प्रकट होने को देख सकते हो, और तुम लोग उसके पदचिन्हों का अनुसरण करना शुरू कर दोगे, एक नए युग की ओर और एक सुंदर नए आकाश और नई पृथ्वी में प्रवेश कर सकोगे जो परमेश्वर के प्रकट होने की प्रतीक्षा करनेवालों के लिए तैयार किए गए हैं" ("वचन देह में प्रकट होता है" से "परमेश्वर का प्रकटीकरण एक नया युग लाया है" से)।
परमेश्वर के सच्चे स्वरूप की खोज करने और उसके आगमन का स्वागत करने के लिए हमें अपनी कल्पनाओं और अवधारणाओं को अलग कर देना चाहिए! अन्यथा, हम हमेशा अंधेरों में होंगे और कभी भी परमेश्वर की मंजूरी पाने में सक्षम नहीं होंगे। भाइयों और बहनों, हमें यह पहचानना चाहिए कि परमेश्वर चाहे कहीं भी कार्य करे, परमेश्वर आखिर परमेश्वर है। हम परमेश्वर के सार या उसके आगमन से सिर्फ इसलिए इंकार नहीं कर सकते कि उसके कार्य की जगह या पद्धति बदल जाती है। हमें परमेश्वर के कथनों से उसके इरादों की खोज करनी चाहिए ताकि हम परमेश्वर के स्वरूप का अनावरण कर सकें और उसके पदचिन्हों का अनुसरण कर सकें!
"समस्त मुद्दों और सभी चीज़ों के मध्य, परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को, अर्थात्, परमेश्वर का क्रोध एवं उसकी करुणा, किसी भी समय पर और किसी भी स्थान में प्रकट किया जा सकता है।" परमेश्वर का धर्मी स्वभाव मानव जाति पर ही व्यक्त नहीं है, यह सभी बातों और सभी चीजों में भी प्रकट होता है। यह हर समय और सभी जगहों पर, केवल परमेश्वर के चुने हुए लोगों के प्रति ही नहीं, बल्कि मनुष्यों की विभिन्न प्रजातियों और नस्लों के प्रति उसके व्यवहार में व्यक्त किया जाता है। गैर-यहूदी जातियाँ और सारे ब्रह्मांड में, हर ग्रह पर रहते सभी जानवर और मनुष्य भी इसमें शामिल हैं। परमेश्वर का स्वभाव हर किसी के द्वारा देखा जा सकता है, यह जीवंत और वास्तविक है। शायद कुछ लोग हैं जो विशेष रूप से संकुचित दिमाग वाले हैं और जो हमेशा सोचते हैं: "परमेश्वर अपने काम को यहीं करता है जहाँ हम हैं, वह हमारा परमेश्वर है, वह गैर-यहूदी जातियों की परवाह नहीं करता है, वह अन्य देशों और अन्य प्रजातियों पर शासन नहीं करता है, वह उनका मार्गदर्शन नहीं करता।" क्या ये शब्द मान्य हैं? (वे अमान्य हैं)। जब भी कुछ लोग देखते हैं कि अन्य राष्ट्रों के लोग भी परमेश्वर के प्रति गवाही देते हैं, तो उनकी यह धारणा होती है कि "वह तो हमारा परमेश्वर है, तुम उसके बारे में गवाही कैसे दे सकते हो? परमेश्वर तुम्हारे बारे में परवाह नहीं करते!" इस तरह की सोच अशिक्षित "घरेलू महिलाओं" की होती है। क्या यह वैसा नहीं है जैसा कि पहले के इस्राएलियों ने भी सोचा था? "यहोवा परमेश्वर हमारा परमेश्वर है, इस्राएलियों का परमेश्वर है, तुम्हें उसके नाम पर प्रार्थना करने का अधिकार नहीं है, वह तुम्हारा परमेश्वर नहीं है।" क्या यह बयान सही है? (ऐसा नहीं है)। परमेश्वर उनकी धारणाओं को नकारता है, "मैं सिर्फ तुम्हारे बीच मेरा कार्य नहीं करता, मैं गैर-यहूदी जातियों को भी देखता हूँ, क्योंकि मैं पूरी मानव जाति का परमेश्वर हूँ, मैं पूरे ब्रह्मांड का परमेश्वर हूँ, मैं केवल तुम्हारा ही मार्गदर्शन कैसे कर सकता हूँ?" तो, आखिरी दिनों में परमेश्वर चीन में प्रकट हुआ है। इसके बारे में सोचो, परमेश्वर का आत्मा स्वर्ग से उतर आया है और चीन में देह बन गया है, जिसके बारे में कुछ लोग कहते हैं: "चीन एक गरीब देश है, असली परमेश्वर वहाँ कैसे प्रकट हो सकता है? (पर) हम एक समृद्ध राष्ट्र हैं, सच्चे परमेश्वर का स्वरूप हमारे यहाँ प्रकट होना चाहिए। चूँकि परमेश्वर चीन में उतरा है और चीनी उस परमेश्वर में विश्वास करते हैं, तो हम विदेशी उस पर विश्वास नहीं करेंगे।" क्या यह एक मान्य कथन है? (यह अमान्य है।) यह किस समस्या को दर्शाती है? मनुष्य की संकीर्णता, उसका पूर्वाग्रह और बचपना ज़रा-सा भी सच्चाई के अनुरूप नहीं हैं। अन्य व्यक्ति चीनी लोगों को सच्चे परमेश्वर की उपस्थिति के प्रति गवाही देते हुए देखते हैं और वे सोचते हैं कि, "यदि यह अमेरिका के लोग होते जो सच्चे परमेश्वर की उपस्थिति के बारे में गवाही दे रहे हैं, तो मैं इसमें विश्वास कर लेता; अगर यह इज़राएली लोग होते जो सच्चे परमेश्वर की उपस्थिति के बारे में गवाही देते हैं, तो भी मैं उस पर विश्वास कर लेता; लेकिन, अगर ये चीनी लोग हैं जो सच्चे परमेश्वर की उपस्थिति के बारे में गवाही दे रहे हैं, तो मैं इसमें विश्वास नहीं करूँगा। यह तो नामुमकिन है।" यह एक भ्रान्ति है। क्या तुम सोचते हो कि परमेश्वर किस देश में प्रकट होता है, यह तुम्हारी इच्छा पर आधारित है? क्या तुम इसके प्रभारी हो? क्या तुम परमेश्वर पर नियंत्रण रखना चाहते हो? तुम्हें क्या लगता है कि तुम कौन हो?

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