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मंगलवार, 2 अक्तूबर 2018

क्या त्रित्व का अस्तित्व है?

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन, परमेश्वर को जानना, परमेश्वर की इच्छा, उद्धार

क्या त्रित्व का अस्तित्व है?


यीशु के देहधारी होने के सत्य के विकसित होने के बाद ही मनुष्य इस बात को महसूस कर पाया: यह न केवल स्वर्ग का परमेश्वर है, बल्कि यह पुत्र भी है, और यहां तक कि वह आत्मा भी है। यह पारम्परिक धारणा है जिसे मनुष्य धारण किए हुए है, कि एक ऐसा परमेश्वर है जो स्वर्ग में हैः एक त्रित्व जो पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा है, और ये सभी एक में हैं। सभी मानवों की यही धारणाएं हैं: परमेश्वर केवल एक ही परमेश्वर है, परन्तु उसके तीन भाग हैं, जिसे कष्टदायक रूप से पारंपरिक धारणा में दृढ़ता से जकड़े सभी लोग पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा मानते हैं। केवल यही तीनों संपूर्ण परमेश्वर को बनाते हैं। बिना पवित्र पिता के परमेश्वर संपूर्ण नहीं बनता है। इसी प्रकार से परमेश्वर पुत्र और पवित्र आत्मा के बिना संपूर्ण नहीं है। उनके विचार में वे यह विश्वास करते हैं कि सिर्फ पिता और सिर्फ पुत्र को ही परमेश्वर नहीं माना जा सकता। केवल पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा को एक साथ मिलाकर स्वयं सम्पूर्ण परमेश्वर माना जा सकता है। अब, तुममें से प्रत्येक अनुयायी समेत, सभी धार्मिक विश्वासी, इस बात पर विश्वास करते हैं। फिर भी यह विश्वास सही है कि नहीं इस बात को कोई भी स्पष्ट नहीं कर पाता है, क्योंकि हमेशा तुम सब परमेश्वर के मामले में भ्रम के कोहरे में रहते हो। हालांकि तुम सब नहीं जानते कि ये विचार सही हैं या गलत, क्योंकि तुम धार्मिक विचारों से बुरी तरह से संक्रमित हो गए हो। धार्मिक भावनाओं की परम्परावादी धारणाओं को तुम सबने अत्यधिक गहराई से स्वीकार कर लिया है और यह ज़हर तुम्हारे भीतर बहुत ही गहराई से प्रवेश कर चुका है। इसलिए तुम इस मामले में भी इन हानिकारक प्रभाव के सामने अपना समर्पण कर चुके हो क्योंकि त्रित्व का अस्तित्व है ही नहीं। इसका मतलब यह है कि पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का त्रित्व मौजूद नहीं है। यह सब मनुष्य की पारम्परिक धारणा है और मनुष्य का भ्रामक विश्वास है। सदियों से मनुष्य इस त्रित्व पर विश्वास करता आ रहा है, यह मनुष्य की बुद्धि की धारणाओं से जन्मी, मनुष्य के द्वारा मनगढ़ंत बातें हैं और मनुष्य के द्वारा पहले कभी भी देखी नहीं गई हैं। इन अनेक वर्षों के दौरान कई महान लोग हुए हैं जिन्होंने त्रित्व का "सही अर्थ" समझाया है, परन्तु त्रित्व के तीन अभिन्न-तत्व वाले व्यक्तित्वों के बारे में इस प्रकार का स्पष्टीकरण अस्पष्ट और अनिश्चित है और सभी परमेश्वर की "रचना" के बारे में संभ्रमित हैं। कोई भी महान व्यक्ति कभी भी इसका सम्पूर्ण विवरण प्रस्तुत करने में सक्षम नहीं हुआ है; अधिकांश स्पष्टीकरण, तर्क के मामलों में और कागज़ पर जायज़ ठहरते हैं , परन्तु किसी भी व्यक्ति को इसके अर्थ की पूरी स्पष्टता से समझ नहीं है। यह इसलिए है क्योंकि यह "महान त्रित्व" जो मनुष्य अपने हृदय में धारण किए हुए है वह अस्तित्व में है ही नहीं। क्योंकि कभी भी किसी ने परमेश्वर के सच्चे स्वरूप को नहीं देखा है या कभी कोई प्राणी इतना भाग्यशाली नहीं हुआ है कि परमेश्वर के स्थान तक भेंट करने के लिए पहुंच पाए यह देखने के लिए कि परमेश्वर के निवास स्थान में क्या-क्या है, ताकि इस बात का निर्धारण कर सके कि "परमेश्वर के भवन" में कितने हज़ारों या लाखों पीढ़ियाँ रहती हैं या यह जांचने के लिए कि परमेश्वर की निहित रचना कितने भागों से निर्मित है। जिसकी मुख्यत: जांच करनी चाहिये वह हैः पिता और पुत्र की आयु, साथ ही साथ पवित्र आत्मा की भी आयु; प्रत्येक व्यक्ति का रूप-रंग; वे कैसे अलग हुए और कैसे वे एक हुए। दुर्भाग्यवश, इन सभी वर्षों में, कोई एक भी मनुष्य इस मामले में सत्य का निर्धारण नहीं कर पाया है। वे बस अनुमान लगाते है, क्योंकि कोई भी व्यक्ति स्वर्ग में देखने के लिए नहीं गया और न ही सम्पूर्ण मानवजाति के लिए "जांच की रिर्पोट" लेकर वापस आया है ताकि वह इस मामले के सत्य का अभिलेख उन उत्कृष्ट और सच्चे धार्मिक विश्वासियो सौंप सके जो त्रित्व के बारे में चिंतित हैं। निश्चय ही, ऐसे विचार रखने के लिये लोगों को दोष नहीं दिया जा सकता, क्योंकि यहोवा पिता ने यीशु पुत्र को मानवजाति की रचना करते समय अपने साथ क्यों नहीं रखा था? यदि, आरम्भ में, सभी कुछ यहोवा के नाम से हुआ होता, तो यह बेहतर होता। यदि दोष देना ही है तो, यह यहोवा परमेश्वर की क्षणिक गलती पर डाला जाना चाहिए, जिसने पुत्र और पवित्र आत्मा को उत्पत्ति के समय अपने सामने नहीं बुलाया था, बल्कि अपना कार्य अकेले ही किया। यदि उन सभी ने एक साथ कार्य किया होता, तो क्या वे एक ही नहीं बन गए होते? यदि, उत्पत्ति से लेकर अंत तक, केवल यहोवा का ही नाम होता और अनुग्रह के काल में यीशु का नाम नहीं होता या तब भी उसे यहोवा ही पुकारा जाता, तो क्या परमेश्वर मानवजाति के इस भेदभाव की यातना से बच नहीं जाता? सच तो यह है कि इन सब के लिए यहोवा को दोषी नहीं ठहराया जा सकता; यदि दोष ही देना है तो, पवित्र आत्मा कोदेना चाहिए, जि यहोवा, यीशु और यहां तक कि पवित्र आत्मा के नाम से हज़ारों सालों से अपना कार्य करता रहा है और मनुष्य को ऐसा भ्रमित कर दिया है और चकरा दिया कि वह जान ही नहीं पाया कि असल में परमेश्वर कौन है। यदि स्वयं पवित्र आत्मा ने किसी रूप या प्रतिकृति के बिना कार्य किया होता और इसके अलावा, यीशु जैसे नाम के बिना कार्य किया होता और मनुष्य उसे न देख पाता न छू पाता, केवल गर्जने की आवाज़ को सुन पाता, तो क्या इस प्रकार का कार्य मनुष्यों के लिए और भी अधिक फायदेमंद नहीं होता? तो अब क्या किया जा सकता है? मनुष्य के विचार एकत्रित होकर इस हद तक पर्वत के समान उच्च और समुद्र के समान व्यापक हो गए हैं, कि आज का परमेश्वर उन्हें अब और नहीं सह सकता, और पूरी तरह से उलझन में है। अतीत में जब केवल यहोवा, यीशु और उन दोनों के मध्य में पवित्र आत्मा था, मनुष्य पहले से ही हैरानी में था कि इसका सामना किस प्रकार करे और अब उसमें सर्वशक्तिमान और जुड़ गया। उसे भी परमेश्वर का एक भाग ही कहा जाता है। कौन जानता है कि वह कौन है और त्रित्व के किस व्यक्तित्व के साथ गुंथा हुआ है, या वह कितने सालों से भीतर छुपा हुआ है? मनुष्य इसे कैसे सह सकता है? पहले तो केवल त्रित्व ही काफी था कि मनुष्य जीवनभर उसकी व्याख्या करता रहे, परन्तु अब यहां पर "एक परमेश्वर में चार व्यक्तित्व" हैं। इसकी व्याख्या किस प्रकार से की जा सकती है? क्या तुम इसकी व्याख्या कर सकते हो? भाइयो और बहनो! तुम लोगों ने आज तक इस प्रकार के परमेश्वर पर विश्वास कैसे किया? मैं तुम सबको सलाम करता हूं। त्रित्व ही झेलने के लिए पर्याप्त था, और अब तुम लोग इस एक परमेश्वर के चार रूपों पर और अटूट विश्वास करने लग गए हो। तुम्हें इन सब से बाहर निकलने के लिए आग्रह किया गया है, लेकिन तुम इन्कार कर देते हो। समझ में नहीं आता! तुम लोग वास्तव में कुछ और ही हो! एक व्यक्ति इन चार परमेश्वरों पर विश्वास तक कर जाता है और उसमें से कुछ भी समझ नहीं पाता; तुम्हें लगता नहीं कि ये एक चमत्कार है? मैं नहीं कह सकता था कि तुम लोग इस प्रकार के महान चमत्कार करने में सक्षम हो! मैं बताता हूँ कि वास्तव में, ब्रह्माण्ड में कहीं भी त्रित्व का अस्तित्व नहीं है। परमेश्वर के न पिता हैं और न पुत्र, पिता और पुत्र के द्वारा संयुक्त तौर पर उपयोग किये जाने वाले एक साधन: पवित्र-आत्मा, की परिकल्पना तो बिल्कुल नहीं है। यह सब बड़ा भ्रम है और संसार में इसका कोई अस्तित्व नहीं है! परन्तु इस प्रकार के भ्रम का अपना मूल है और यह पूरी तरह से बिना आधार के नहीं है, क्योंकि तुम लोगों की बुद्धि बहुत ही साधारण नहीं है और विचार बिना तर्क के नहीं हैं। बल्कि, वे काफी उपयुक्त और प्रवीण हैं, इतने कि किसी शैतान के द्वारा भी अभेद्य हैं। अफसोस यह है कि ये विचार बिल्कुल भ्रामक हैं और इनका अस्तित्व नहीं है! तुम लोगों ने वास्तविक सत्य को देखा ही नहीं है; तुम लोग केवल अनुमान और धारणाएं बना रहे हो, फिर धोखेबाज़ी से दूसरों का विश्वास प्राप्त करने या बुद्धिहीन या तर्कहीन लोगों पर प्रभुत्व प्राप्त करने के लिए इन सब को कहानी में पिरो रहे हो, ताकि वे तुम्हारी महान और प्रसिद्ध "विशेषज्ञ शिक्षाओं" पर विश्वास करें। क्या यह सच है? क्या जीवन का यह तरीका है जो मनुष्य को प्राप्त करना चाहिए? यह सब बकवास है! एक शब्द भी उचित नहीं है! इतने सालों में, परमेश्वर तुम लोगों के द्वारा इस प्रकार से विभाजित किया गया है, प्रत्येक पीढ़ी द्वारा इसे इतनी सूक्ष्मता से विभाजित किया गया हैकि एक परमेश्वर को बिल्कुल तीन भागों में बांट दिया गया है। और अब मनुष्य के लिए यह पूरी तरह से असम्भव है कि इन तीनों को फिर से एक परमेश्वर बना दिया जाए, क्योंकि तुम लोगों ने उसे बहुत ही सूक्ष्मता से बांट दिया है! यदि मेरा कार्य सही समय पर शुरु ना हो गया होता तो, कहना कठिन है कि तुम इस तरह ढिठाई से कब तक चलते रहते! इस प्रकार से परमेश्वर को विभाजित करते रहने से, वह अब तक कैसे तुम्हारा परमेश्वर बना रह सकता है? क्या तुम लोग अब भी परमेश्वर को पहचान सकते हो? क्या तुम अभी भी उसके पास वापस आओगे? यदि मैं थोड़ा और बाद में आता, तो हो सकता है कि तुम लोग "पिता और पुत्र", यहोवा और यीशु को इस्राएल वापस भेज चुके होते और दावा करते कि तुम स्वयं ही परमेश्वर का एक भाग हो। भाग्यवश, अब ये अंत के दिन हैं। अंत में, वह दिन आ गया है जिसकी मैंने बहुत प्रतीक्षा की है, और मेरे अपने हाथों से इस चरण के कार्य को पूर्ण करने के बाद ही तुम लोगों द्वारा स्वयं परमेश्वर को बांटने का कार्य रूका है। यदि यह नहीं होता, तो तुम लोग और भी अधिक आगे बढ़ जाते, यहां तक कि सभी शैतानों को अपने मध्य में आराधना के लिए वेदी पर रख दिया होता। यह तुम सबकी चालाकी है! परमेश्वर को बांटने के तुम्हारे तरीके! क्या तुम सब अभी भी ऐसा ही करोगे? मैं तुमसे पूछता हूं: कितने परमेश्वर हैं? कौन सा परमेश्वर तुम लोगों के लिए उद्धार लाएगा? पहला परमेश्वर, दूसरा या फिर तीसरा जिससे तुम सब हमेशा प्रार्थना करते हो? उनमें से तुम लोग हमेशा किस पर विश्वास करते हो? पिता पर, या फिर पुत्र पर? या फिर आत्मा पर? मुझे बताओ कि तुम लोग किस पर विश्वास करते हो। हालांकि तुम्हारे हर शब्द में परमेश्वर पर विश्वास दिखता है, लेकिन जिस पर वास्तव में तुम लोग विश्वास करते हो वो तुम्हारा मष्तिष्क है। तुम लोगों के हृदय में परमेश्वर है ही नहीं! फिर भी तुम सबके दिमाग में इस प्रकार के कई "त्रित्व" हैं! क्या तुम इस बात से सहमत नहीं हो?
यदि त्रित्व की इस अवधारणा के अनुसार काम के तीन चरणों का मूल्यांकन किया जाता है, तो तीन परमेश्वर होने चाहिए क्योंकि प्रत्येक के द्वारा किए गए काम एकसमान नहीं हैं। यदि तुम लोगों में से कोई भी कहता है कि त्रित्व वास्तव में मौजूद है, तो वह समझाए कि तीन व्यक्तियों में यह एक परमेश्वर क्या है। पवित्र पिता क्या है? पुत्र क्या है? पवित्र आत्मा क्या है? क्या यहोवा पवित्र पिता है? क्या यीशु पुत्र है? फिर पवित्र आत्मा का क्या? क्या पिता एक आत्मा नहीं है? पुत्र का सार भी क्या एक आत्मा नहीं है? क्या यीशु का काम पवित्र आत्मा का काम नहीं था? एक समय आत्मा द्वारा किया गया यहोवा का काम यीशु के काम के ही समान नहीं था? परमेश्वर के पास कितनी आत्माएं हो सकती हैं? तुम्हारे स्पष्टीकरण के अनुसार, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा के तीन जन एक हैं; यदि ऐसा है, तो तीन आत्माएं हैं, लेकिन तीन आत्माओं का अर्थ है कि तीन परमेश्वर हैं। इसका मतलब है कि कोई भी एक सच्चा परमेश्वर नहीं है; इस प्रकार के परमेश्वर के पास अभी भी परमेश्वर का निहित पदार्थ कैसे हो सकता है? यदि तुम मानते हो कि केवल एक ही परमेश्वर है, तो उसका एक पुत्र कैसे हो सकता है और वह पिता कैसे बन सकता है? क्या यह सब केवल तुम्हारी धारणाएं नहीं हैं? केवल एक परमेश्वर है, इस परमेश्वर में केवल एक ही व्यक्ति है, और परमेश्वर का केवल एक आत्मा है, वैसा ही जैसा कि बाइबल में लिखा गया है कि "केवल एक पवित्र आत्मा और केवल एक ही परमेश्वर है"। चाहे जिस पिता और पुत्र के बारे में तुम बोलते हो वे अस्तित्व में हों, फिर भी एक ही परमेश्वर है, और पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का सार जिसे तुम मानते हो, वह पवित्र आत्मा का सार है। दूसरे शब्दों में, परमेश्वर एक आत्मा है, लेकिन वह देहधारण में और मनुष्यों के बीच रहने के साथ-साथ सभी चीजों से ऊँचा होने में सक्षम है। उसका आत्मा समस्त-समावेशी और सर्वव्यापी है। वह एक ही समय पर देह में हो सकता है और पूरे विश्व में हो सकता है। चूंकि सभी लोग कहते हैं कि परमेश्वर एकमात्र सच्चा परमेश्वर है, फिर एक ही परमेश्वर है, जो किसी की इच्छा पर विभाजित नहीं होता! परमेश्वर केवल एक आत्मा है, और केवल एक ही व्यक्ति; और वह परमेश्वर का आत्मा है। यदि तुम कहते हो, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा, तो क्या वे तीन परमेश्वर नहीं हैं? पवित्र आत्मा एक तत्व है, पुत्र दूसरा है, और पिता एक और है। वे विशिष्ट सार के अलग-अलग व्यक्ति हैं, तो वे एक इकलौते परमेश्वर का हिस्सा कैसे हो सकते हैं? पवित्र आत्मा एक आत्मा है; यह मनुष्य के लिए समझने में आसान है। यदि ऐसा है तो, पिता और भी अधिक एक आत्मा है। वह पृथ्वी पर कभी नहीं उतरा और कभी भी देह नहीं बना; वह मनुष्यों के दिल में यहोवा परमेश्वर है, और वह निश्चित रूप से एक आत्मा भी है। तो उसके और पवित्र आत्मा के बीच संबंध क्या है? क्या यह पिता और पुत्र के बीच संबंध है? या यह पवित्र आत्मा और पिता के आत्मा के बीच का रिश्ता है? क्या प्रत्येक आत्मा का सार एकसमान है? या पवित्र आत्मा पिता का एक साधन है? इसे कैसे समझाया जा सकता है? और फिर पुत्र और पवित्र आत्मा के बीच क्या संबंध है? क्या यह दो आत्माओं का सम्बन्ध है या एक मनुष्य और आत्मा के बीच का संबंध है? ये सभी ऐसे मामले हैं जिनका कोई स्पष्टीकरण नहीं हो सकता है! यदि वे सभी एक आत्मा हैं, तो तीन व्यक्तियों की कोई बात नहीं हो सकती, क्योंकि वे एक आत्मा के हैं। यदि वे अलग-अलग व्यक्ति होते, तो उनकी आत्मा शक्ति में भिन्न होती, और बस वे एक ही आत्मा नहीं हो सकते थे। पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा की यह अवधारणा सबसे बेतुकी है! यह परमेश्वर को खंडित करता और उसे तीन व्यक्तियों में विभाजित करता है, प्रत्येक एक ओहदे और आत्मा के साथ है; तो कैसे वह अब भी एक आत्मा और एक परमेश्वर हो सकता है? मुझे बताओ,
आकाश और पृथ्वी, और उसके भीतर की सारी चीज़ें क्या पिता, पुत्र या पवित्र आत्मा के द्वारा बनाई गई थीं? कुछ लोग कहते हैं कि उन्होंने यह सब एक साथ बनाया। फिर किसने मानवजाति को छुड़ाया? क्या यह पवित्र आत्मा था, पुत्र था या पिता? कुछ लोग कहते हैं कि वह पुत्र था जिसने मानवजाति को छुड़ाया था। फिर सार में पुत्र कौन है? क्या वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण नहीं है? एक सृजित आदमी के परिप्रेक्ष्य से देहधारी स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाता है। क्या तुम नहीं जानते हो कि यीशु का जन्म पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भधारण से हुआ था? उसके भीतर पवित्र आत्मा है; तुम कुछ भी कहो, वह अभी भी स्वर्ग में परमेश्वर के साथ एकसार है, क्योंकि वह परमेश्वर के आत्मा का देहधारण है। पुत्र का यह विचार असत्य है। यह एक आत्मा है जो सभी काम करता है; केवल परमेश्वर स्वयं, अर्थात, परमेश्वर का आत्मा अपना काम करता है। परमेश्वर का आत्मा कौन है? क्या यह पवित्र आत्मा नहीं है? क्या यह पवित्र आत्मा नहीं है जो यीशु में काम करता है? यदि काम पवित्र आत्मा (अर्थात, परमेश्वर का आत्मा) द्वारा नहीं किया गया था, तो क्या उसका काम स्वयं परमेश्वर का प्रतिनिधित्व कर सकता था? जब प्रार्थना करते हुए यीशु ने स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाया, तो यह केवल एक सृजित मनुष्य के परिप्रेक्ष्य से किया गया था, केवल इसलिए कि परमेश्वर के आत्मा ने एक सामान्य और साधारण व्यक्ति का चोला पहना था और उसके पास एक सृजित प्राणी का बाह्य आवरण था। यद्यपि उसके भीतर परमेश्वर का आत्मा था, उसका बाहरी स्वरूप अभी भी एक साधारण व्यक्ति का था; दूसरे शब्दों में, वह "मनुष्य का पुत्र" बन गया था, जिसके बारे में स्वयं यीशु समेत सभी मनुष्यों ने बात की थी। यह देखते हुए कि वह मनुष्य का पुत्र कहलाता है, वह एक व्यक्ति है (चाहे पुरुष हो या महिला, किसी भी हाल में एक इंसान के बाहरी कवच ​के साथ) जो सामान्य लोगों के साधारण परिवार में पैदा हुआ है। इसलिए, यीशु का स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना, वैसा ही था जैसा कि तुम लोगों ने पहले उसे पिता कहा था; उसने सृष्टि के एक व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से ऐसा किया। क्या तुम लोगों को अभी भी प्रभु की प्रार्थना याद है जो यीशु ने तुम्हें याद करने के लिए सिखाई थी? "हे पिता हमारे, जो स्वर्ग में है...।" उसने सभी मनुष्यों से स्वर्ग में परमेश्वर को पिता के नाम से बुलाने को कहा। और तब से उसने भी उसे पिता कहा, उसने ऐसा उस व्यक्ति के परिप्रेक्ष्य से किया था जो तुम सभी के साथ समान स्तर पर खड़ा था। चूंकि तुमने पिता के नाम से स्वर्ग में परमेश्वर को बुलाया था, इस से पता चलता है कि यीशु ने स्वयं को तुम सबके साथ समान स्तर पर देखा, और पृथ्वी पर परमेश्वर द्वारा चुने गए व्यक्ति (अर्थात परमेश्वर के पुत्र) के रूप में देखा। यदि तुम लोग परमेश्वर को "पिता" कहते हो, तो क्या यह इसलिए नहीं है कि तुम सब सृजित प्राणी हो? पृथ्वी पर यीशु का अधिकार चाहे जितना भी अधिक हो, क्रूस पर चढ़ने से पहले, वह मात्र मनुष्य का पुत्र था, वह पवित्र आत्मा (अर्थात, परमेश्वर) द्वारा नियंत्रित था, और पृथ्वी के सृजित प्राणियों में से एक था, क्योंकि उसने अभी भी अपना काम पूरा नहीं किया था। इसलिए, स्वर्ग में परमेश्वर को पिता बुलाना पूरी तरह से उसकी विनम्रता और आज्ञाकारिता थी। परमेश्वर (अर्थात, स्वर्ग में आत्मा) को उसका इस प्रकार संबोधन करना हालांकि, यह साबित नहीं करता कि वह स्वर्ग में परमेश्वर के आत्मा का पुत्र है। बल्कि, यह केवल यही है कि उसका दृष्टिकोण अलग है, न कि वह एक अलग व्यक्ति है। अलग व्यक्तियों का अस्तित्व एक मिथ्या है! क्रूस पर चढ़ने से पहले, यीशु मनुष्य का पुत्र था जो शरीर की सीमाओं से बंधा था, और उसके पास पूरी तरह से आत्मा का अधिकार नहीं था। यही कारण है कि वह केवल एक सृजित प्राणी के परिप्रेक्ष्य से परमेश्वर की इच्छा तलाश सकता था। यह वैसा ही है जैसा गेथसमनी में उसने तीन बार प्रार्थना की थी: "जैसा मैं चाहता हूँ वैसा नहीं, बल्कि जैसा कि तू चाहता है।" क्रूस पर रखे जाने से पहले, वह बस यहूदियों का राजा था; वह मसीह, मनुष्य का पुत्र था, और महिमा का शरीर नहीं था। यही कारण है कि, एक सृजित प्राणी के दृष्टिकोण से, उसने परमेश्वर को पिता बुलाया। अब, तुम यह नहीं कह सकते कि जो लोग परमेश्वर को पिता बुलाते हैं, वे पुत्र हैं। यदि ऐसा होता, तो क्या यीशु द्वारा प्रभु की प्रार्थना सिखाए जाने के बाद, क्या तुम सभी पुत्र नहीं बन गए होते? यदि तुम लोग अभी भी आश्वस्त नहीं हो, तो मुझे बताओ, वह कौन है जिसे तुम सब पिता कहते हो? यदि तुम लोग यीशु की बात कर रहे हो, तो तुम सबके लिए यीशु का पिता कौन है? एक बार जब यीशु चला गया, तो पिता और पुत्र का यह विचार अब और नहीं रहा। यह विचार केवल उन वर्षों के लिए उपयुक्त था जब यीशु देह बना था; अन्य सभी परिस्थितियों में, जब तुम परमेश्वर को पिता कहते हो तो यह रिश्ता वह है जो सृष्टि के परमेश्वर और सृजित प्राणी के बीच होता है। ऐसा कोई समय नहीं है जिस पर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का त्रित्व खड़ा रह सकता है; यह एक मिथ्या है जो युगों तक शायद ही कभी देखा गया है और अस्तित्व में नहीं है!
यह अधिकांश लोगों को उत्पत्ति से परमेश्वर के शब्दों को याद दिला सकता है: "हम मनुष्य को अपनी छवि में बनाएँ, हमारे समान।" यह देखते हुए कि परमेश्वर कहता है, "हम" मनुष्य को "अपनी" छवि में बनाएँ, तो "हम" इंगित करता है दो या अधिक; चूंकि उसने "हम" कहा, फिर सिर्फ एक ही परमेश्वर नहीं है। इस तरह, मनुष्य ने अलग व्यक्तियों की कल्पना पर विचार करना शुरू कर दिया, और इन शब्दों से पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का विचार उभरा। तो फिर पिता कैसा है? पुत्र कैसा है? और पवित्र आत्मा कैसा है? क्या संभवत: यह हो सकता है कि आज की मानवजाति एक ऐसी छवि में बनाई गई थी, जो तीनों से मिलकर बनती है? तो मनुष्य की छवि क्या पिता की तरह है, या पुत्र की तरह या पवित्र आत्मा की तरह है? मनुष्य परमेश्वर के किस जन की छवि है? मनुष्य का यह विचार बस ग़लत और अतर्कसंगत है! यह केवल एक परमेश्वर को कई परमेश्वरों में विभाजित कर सकता है। जिस समय मूसा ने उत्पत्ति लिखा था, उस समय दुनिया के सृजन के बाद मानव जाति का सृजन हो चुका था। बिल्कुल शुरुआत में, जब दुनिया शुरू हुई, तो मूसा मौजूद नहीं था। और मूसा ने बहुत बाद में बाइबल लिखी, तो वह यह कैसे जान सकता था कि स्वर्ग में परमेश्वर ने क्या बात की? उसे ज़रा भी भान नहीं था कि परमेश्वर ने कैसे दुनिया बनायी। बाइबिल के पुराने नियम में, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का उल्लेख नहीं है, केवल एक ही सच्चे परमेश्वर यहोवा का है, जो इस्राएल में अपने काम को पूरा करता है। उसे जैसे जैसे युग बदलता है उसके अनुसार अलग-अलग नामों से बुलाया जाता है, लेकिन यह यह साबित नहीं कर सकता कि प्रत्येक नाम एक अलग व्यक्ति को दर्शाता है। यदि ऐसा होता तो, क्या परमेश्वर में असंख्य व्यक्ति नहीं होते? पुराने नियम में जो लिखा है, वह यहोवा का काम है, व्यवस्था के युग की शुरुआत के लिए स्वयं परमेश्वर के कार्य का चरण है। यह परमेश्वर का काम था, जहां जैसा उसने कहा, वह हुआ, और जैसा उसने आज्ञा दी, वैसा खड़ा हुआ। यहोवा ने कभी नहीं कहा कि वह पिता है जो काम करने के लिए आया है, या उसने कभी पुत्र के मानव जाति के उद्धार के लिए आने कि भविष्यवाणी नहीं की। जब यीशु के समय की बात आई, तो केवल यह कहा गया कि परमेश्वर सभी मनुष्यों को छुड़ाने के लिए देह बन गया, न कि यह कि पुत्र आया है। चूंकि युग एक जैसे नहीं होते और जो काम परमेश्वर खुद करता है, वह भी अलग होता है, उसे अपने काम को अलग राज्यों में पूरा करना होता है। इस तरह, वह पहचान भी अलग होती है जिसका वह प्रतिनिधित्व करता है। मनुष्य का मानना ​​है कि यहोवा यीशु का पिता है, लेकिन यह वास्तव में यीशु ने स्वीकार नहीं किया था, जिसने कहा: "हम पिता और पुत्र के रूप में कभी भी अलग नहीं थे; मैं और स्वर्ग में पिता एक हैं। पिता मुझ में है और मैं पिता में हूं; जब मनुष्य पुत्र को देखता है, तो वह स्वर्गीय पिता को देखता है।" यह सब कहे जाने के बाद, पिता हो या पुत्र हो, वे एक आत्मा हैं, अलग-अलग व्यक्तियों में विभाजित नहीं हैं। एक बार जब मनुष्य समझाने की कोशिश करता है, तो अलग-अलग व्यक्तियों के विचार के साथ मामला जटिल हो जाता है, साथ ही पिता, पुत्र और आत्मा के बीच का संबंध भी। जब मनुष्य अलग-अलग व्यक्तियों के बारे में बोलता है, तो क्या यह परमेश्वर को मूर्तरूप नहीं देता? मनुष्य व्यक्तियों को पहले, दूसरे और तीसरे के रूप में स्थान भी देता है; ये सभी बस मनुष्य की अवधारणा हैं, संदर्भ के योग्य नहीं हैं, और बिल्कुल अवास्तविक है! यदि तुम ने उससे पूछा: "कितने परमेश्वर हैं?" वह कहेगा कि परमेश्वर पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का त्रित्व है: एक सच्चा परमेश्वर। यदि तुम ने फिर से पूछा: "पिता कौन है?" वह कहेगा: "पिता स्वर्ग में परमेश्वर का आत्मा है; वह सब का प्रभारी है, और स्वर्ग का स्वामी है।" "तो क्या आत्मा यहोवा है?" वह कहेगा: "हाँ!" यदि तुम ने फिर उससे पूछा, "पुत्र कौन है?" तो वह कहेगा कि निश्चित रूप से यीशु पुत्र है। "तो यीशु की कहानी क्या है? वह कहाँ से आया था?" वह कहेगा: "यीशु का जन्म पवित्र आत्मा के द्वारा मरियम के गर्भधारण करने से हुआ था।" "तो क्या उसका सार भी आत्मा नहीं है? क्या उसका काम भी पवित्र आत्मा का प्रतिनिधि नहीं है? यहोवा आत्मा है, और उसी तरह यीशु का सार भी आत्मा है। अब आखिरी दिनों में, यह कहना अनावश्यक है कि अभी भी काम आत्मा कर रहा है; [क] वे अलग-अलग व्यक्ति कैसे हो सकते हैं? क्या यह सिर्फ परमेश्वर का आत्मा नहीं जो आत्मा के काम को अलग-अलग परिप्रेक्ष्यों से कर रहा है?" ऐसे तो, व्यक्तियों के बीच कोई अंतर नहीं है। यीशु पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भ में आया था, और निस्संदेह, उसका काम बिल्कुल पवित्र आत्मा का काम था। यहोवा द्वारा किए गए काम के पहले चरण में, वह न तो देह बना और न ही मनुष्य के सामने प्रकट हुआ। तो मनुष्य ने कभी उसके प्रकटन को नहीं देखा। कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह कितना महान और कितना ऊंचा था, वह फिर भी आत्मा था, स्वयं परमेश्वर जिसने पहले मनुष्य को बनाया था। अर्थात, वह परमेश्वर का आत्मा था। जब वह बादलों में से मनुष्य से बात करता था, वह केवल एक आत्मा था। किसी ने भी उसके प्रकटन को नहीं देखा; केवल अनुग्रह के युग में जब परमेश्वर का आत्मा शरीर में आया और यहूदिया में देहधारी हुआ, तो मनुष्य ने पहली बार एक यहूदी के रूप में देहधारण की छवि को देखा। यहोवा की भावना को महसूस नहीं किया जा सका। हालांकि, वह पवित्र आत्मा द्वारा गर्भ में आया था, अर्थात स्वयं यहोवा के आत्मा से गर्भ में आया था, और यीशु का जन्म तब भी परमेश्वर के आत्मा के मूर्तरूप में हुआ था। वो मनुष्य ने जो सबसे पहले देखा वह यह था कि पवित्र आत्मा यीशु पर एक कबूतर की तरह उतर रहा है; यह यीशु के लिए विशेष आत्मा नहीं था, बल्कि पवित्र आत्मा था। तो क्या यीशु का आत्मा पवित्र आत्मा से अलग हो सकता है? अगर यीशु यीशु है, पुत्र है, और पवित्र आत्मा पवित्र आत्मा है, तो वे एक कैसे हो सकते हैं? यदि ऐसा है तो काम नहीं किया जा सकता है। यीशु के भीतर का आत्मा, स्वर्ग में आत्मा, और यहोवा का आत्मा सब एक हैं। इसे पवित्र आत्मा, परमेश्वर का आत्मा, सात गुना सशक्त आत्मा और सर्व सयुंक्त आत्मा कहा जा सकता है। अकेले परमेश्वर का आत्मा बहुत से काम कर सकता है। वह दुनिया को बनाने और पृथ्वी को बाढ़ द्वारा नष्ट करने में सक्षम है; वह सारी मानव जाति को मुक्ति दिला सकता है, और इसके अलावा, सारी मानव जाति को जीत और नष्ट कर सकता है। ये सारे काम स्वयं परमेश्वर द्वारा किये गए हैं और उसके स्थान पर परमेश्वर के किसी भी अन्य व्यक्ति द्वारा नहीं किया जा सकता था। उसके आत्मा को यहोवा और यीशु के नाम से, साथ ही सर्वशक्तिमान के नाम से भी बुलाया जा सकता है। वह प्रभु और मसीह है। वह मनुष्य का पुत्र भी बन सकता है। वह स्वर्ग में भी है और पृथ्वी पर भी है; वह ब्रह्मांडों के ऊपर और भीड़ के बीच में है। वह स्वर्ग और पृथ्वी का एकमात्र स्वामी है! सृष्टि के समय से अब तक, यह काम खुद परमेश्वर के आत्मा द्वारा किया गया है। यह कार्य स्वर्ग में हो या देह में, सब कुछ उसकी आत्मा से किया जाता है। सभी प्राणी, चाहे स्वर्ग में हों या पृथ्वी पर, उसकी सर्वशक्तिमान हथेली में हैं; यह सब स्वयं परमेश्वर का काम है और उसके स्थान पर किसी अन्य के द्वारा नहीं किया जा सकता है। स्वर्ग में, वह आत्मा है, लेकिन खुद परमेश्वर भी है; मनुष्यों के बीच में, वह शरीर है लेकिन वह स्वयं परमेश्वर बना रहता है। यद्यपि उसे हज़ारों हज़ार नामों से बुलाया जाये, तो भी वह स्वयं है, और सारे काम[ख] उसके आत्मा की प्रत्यक्ष अभिव्यक्ति हैं। उसके क्रूसीकरण के माध्यम से सारी मानव जाति का छुटकारा उसके आत्मा का प्रत्यक्ष काम था, और वैसे ही अंत के दिनों के दौरान सभी देशों और सभी भू भागों के लिए उसकी घोषणा भी। हर समय, परमेश्वर को केवल सर्वशक्तिमान और एक सच्चा परमेश्वर, सभी समावेशी स्वयं परमेश्वर कहा जा सकता है। अलग-अलग व्यक्ति अस्तित्व में नहीं हैं, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा का यह विचार तो बिल्कुल नहीं है! स्वर्ग और पृथ्वी में केवल एक ही परमेश्वर है!
परमेश्वर की प्रबंधन योजना छह हजार वर्षों तक फैली है और उसके काम में अंतर के आधार पर तीन युगों में विभाजित है: पहला युग पुराने नियम का व्यवस्था का युग है; दूसरा अनुग्रह का युग है; और तीसरा वह है जो कि अंत के दिनों से संबंधित है - राज्य का युग। प्रत्येक युग में एक अलग पहचान को दर्शाया जाता है। यह केवल काम में अंतर के कारण है, अर्थात, काम की आवश्यकताएं। काम का पहला चरण इस्राएल में किया गया था, और यहूदिया में छुटकारे के काम का समापन करने का दूसरा चरण पूरा किया गया था। छुटकारे के काम के लिए, यीशु का जन्म पवित्र आत्मा के द्वारा गर्भधारण से और एकमात्र पुत्र के रूप में हुआ था। यह सब काम की आवश्यकताओं के कारण था। अंत के दिनों में, परमेश्वर अपने काम को अन्यजातियों के राष्ट्रों में विस्तारित करना और वहाँ के लोगों पर विजय प्राप्त करना चाहता है ताकि उसका नाम उनके बीच महान हो। वह मानव जीवन के सभी सही तरीकों को समझने के साथ ही सम्पूर्ण सत्य और जीवन के मार्ग को समझने के लिए मार्गदर्शन करना चाहता है। यह सब काम एक आत्मा द्वारा किया जाता है। वह अलग-अलग दृष्टिकोण से ऐसा करे तो भी, काम की प्रकृति और सिद्धांत एक समान रहते हैं। एक बार जब तुम उन कामों के सिद्धांतों और प्रकृति को देखते हो, जो उन्होंने किया है, तो तुम्हें पता चल जाएगा कि इन सबके पीछे एक ही आत्मा का हाथ है। फिर भी कुछ लोग कह सकते हैं: "पिता पिता है; पुत्र पुत्र है; पवित्र आत्मा पवित्र आत्मा है, और अंत में, वे एक बनेंगे।" तो तुम उन्हें एक कैसे बना सकते हो? पिता और पवित्र आत्मा को एक कैसे बनाया जा सकता है? यदि वे मूल रूप से दो थे, तो चाहे वे एक साथ कैसे भी जोड़ें जायें, क्या वे दो हिस्से नहीं बने रहेंगे? जब तुम उन्हें एक बनाने को कहते हो, तो क्या यह बस दो अलग हिस्सों को जोड़कर एक बनाना नहीं है? लेकिन क्या वे पूरे किए जाने से पहले वे दो भाग नहीं थे? प्रत्येक आत्मा का एक विशिष्ट सार होता है, और दो आत्माएं एक नहीं बन सकती हैं। आत्मा भौतिक वस्तु नहीं है और भौतिक दुनिया की किसी भी अन्य वस्तु के समान नहीं है। जैसे मनुष्य इसे देखते हैं, पिता एक आत्मा है, बेटा दूसरा, और पवित्र आत्मा एक और, फिर तीन आत्माएं एक साथ पूरे तीन गिलास पानी की तरह मिल कर पूरा एक बनते हैं। क्या यह तीन को एक बनाना नहीं है? यह एक गलत व्याख्या है! क्या यह परमेश्वर को विभाजित करना नहीं है? पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा सभी को एक कैसे बनाया जा सकता है? क्या वे विभिन्न प्रकृति के तीन भाग नहीं हैं? अभी भी ऐसे लोग हैं जो कहते हैं, "क्या परमेश्वर ने स्पष्ट रूप से यह नहीं बताया कि यीशु उसका प्रिय पुत्र है?" "यीशु परमेश्वर का प्रिय पुत्र है, जिस पर वह प्रसन्न है" निश्चित रूप से परमेश्वर ने स्वयं ही कहा था। यह परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही थी, लेकिन केवल एक अलग परिप्रेक्ष्य से, स्वर्ग में आत्मा के अपने स्वयं के देहधारण को साक्ष्य देना। यीशु उसका देहधारण है, स्वर्ग में उसका पुत्र नहीं। क्या तुम समझते हो? यीशु के शब्द, "पिता मुझ में है और मैं पिता में हूं," क्या यह संकेत नहीं देते कि वे एक आत्मा हैं? और यह देहधारण के कारण नहीं है कि वे स्वर्ग और पृथ्वी के बीच अलग हो गए थे? वास्तव में, वे अभी भी एक हैं; चाहे कुछ भी हो, यह केवल परमेश्वर की स्वयं के लिए गवाही है। युग में परिवर्तन, काम की आवश्यकताओं, और उसके प्रबंधन योजना के विभिन्न चरणों के कारण, जिस नाम से मनुष्य उसे बुलाता है वह भी अलग हो जाता है। जब वह काम के पहले चरण को करने के लिए आया था, तो उसे केवल यहोवा, इस्राएलियों का चरवाहा ही कहा जा सकता था। दूसरे चरण में, देहधारी परमेश्वर को केवल प्रभु और मसीह कहा जा सकता था। परन्तु उस समय, स्वर्ग में आत्मा ने केवल यह बताया था कि वह परमेश्वर का प्यारा पुत्र है, और उसने परमेश्वर का एकमात्र पुत्र होने का उल्लेख नहीं किया था। ऐसा हुआ ही नहीं था। परमेश्वर की एकमात्र सन्तान कैसे हो सकती है? तो क्या परमेश्वर मनुष्य नहीं बनता? क्योंकि वह देहधारण था, उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा गया, और इस से, पिता और पुत्र के बीच का संबंध आया। यह बस स्वर्ग और पृथ्वी के बीच विभाजन के कारण हुआ। यीशु ने देह के परिप्रेक्ष्य से प्रार्थना की। चूंकि उसने इस तरह की सामान्य मानवता के देह को धारण किया था, यह उस देह के परिप्रेक्ष्य से है जो उसने कहा: मेरा बाहरी आवरण एक सृजित प्राणी का है। चूंकि मैंने इस धरती पर आने के लिए देह धारण किया है, अब मैं स्वर्ग से बहुत दूर हूँ। इस कारण से, वह केवल पिता परमेश्वर के सामने देह के परिप्रेक्ष्य से ही प्रार्थना कर सकता था। यह उसका कर्तव्य था, और जो परमेश्वर के देहधारी आत्मा में होना चाहिए। यह नहीं कहा जा सकता कि वह परमेश्वर नहीं है क्योंकि वह देह के दृष्टिकोण से पिता से प्रार्थना करता है। यद्यपि उसे परमेश्वर का प्रिय पुत्र कहा जाता है, वह अभी भी परमेश्वर है, क्योंकि वह आत्मा का देहधारण है, और उसका सार अब भी आत्मा है। जैसे ही मनुष्य इसे देखता है, वह सोचता है कि वह क्यों प्रार्थना करता है यदि वह खुद परमेश्वर है। इसका कारण यह है कि वह देहधारी परमेश्वर, देह भीतर रह रहा परमेश्वर है, और स्वर्ग में आत्मा नहीं है। जैसे मनुष्य इसे देखता है, पिता, पुत्र और पवित्र आत्मा सभी परमेश्वर हैं। केवल तीनों से एक बना ही सच्चा परमेश्वर समझा जा सकता है, और इस तरह, उनकी शक्ति असाधारण रूप से महान है। अभी भी ऐसे लोग हैं जो कहते हैं कि केवल इस तरह से वह सात गुना सशक्त आत्मा है। जब पुत्र ने अपने आने के बाद प्रार्थना की, तो वह आत्मा है जिससे उसने प्रार्थना की थी। वास्तव में, वह एक सृजित प्राणी होने के परिप्रेक्ष्य से प्रार्थना कर रहा था। क्योंकि शरीर संपूर्ण नहीं है, और वह संपूर्ण नहीं था और जब वह शरीर में आया तो उसमें कई कमजोरियां थीं। इस प्रकार वह देह में अपना कार्य करते हुए बहुत परेशान था। यही कारण है कि उसने अपने क्रूस पर चढ़ने से पहले पिताजी से तीन बार प्रार्थना की और साथ ही उससे पहले भी कई बार प्रार्थना की थी। उसने अपने शिष्यों के बीच प्रार्थना की; अकेले एक पहाड़ पर प्रार्थना की; उसने मछली पकड़ने वाली नाव पर सवार होकर प्रार्थना की; उसने कई लोगों के बीच प्रार्थना की; रोटी तोड़ते वक्त प्रार्थना की; और दूसरों को आशीष देते समय उसने प्रार्थना की। उसने ऐसा क्यों किया? वह आत्मा था जिससे उसने प्रार्थना की थी; वह आत्मा से प्रार्थना कर रहा था, स्वर्ग में परमेश्वर से, देह के परिप्रेक्ष्य से। इसलिए, मनुष्य के दृष्टिकोण से, यीशु काम के उस चरण में पुत्र बन गया। इस चरण में, हालांकि, वह प्रार्थना नहीं करता है। ऐसा क्यों है? इसका कारण है कि वह जो लाता है वह वचन का काम है, और वचन का न्याय और ताड़ना है। उसे प्रार्थना की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि उसकी सेवकाई को बोलना है। वह क्रूस पर नहीं चढ़ाया जाता है, और लोग उसे उन्हें नहीं सौंपते जो सत्ता में हैं। वह केवल अपना काम करता है और सब कुछ सही हो जाता है। जिस वक्त यीशु ने प्रार्थना की, तो वह स्वर्ग के राज्य के अवतरित होने के लिए, पिता की इच्छा पूरी होने के लिए और आने वाले काम के लिए पिता परमेश्वर से प्रार्थना कर रहा था। इस चरण में, स्वर्ग का राज्य पहले ही उतर चुका है, तो क्या उसे अब भी प्रार्थना करने की ज़रूरत है? उसका काम युग खत्म करने का है, और अब कोई नया युग नहीं है, इसलिए क्या अगले चरण के लिए प्रार्थना करने की आवश्यकता है? अफ़सोस कि ऐसा नहीं है!
मनुष्य के स्पष्टीकरण में कई विरोधाभास हैं। अवश्य, ये सभी मनुष्य के विचार हैं; बिना और किसी जाँच-पड़ताल के, तुम सभी को विश्वास होगा कि वे सही हैं। क्या तुम नहीं जानते कि परमेश्वर का त्रित्व के रूप में यह विचार मनुष्य की धारणा है? मनुष्य का कोई ज्ञान पूरा और संपूर्ण नहीं है। हमेशा अशुद्धियां होती हैं, और मनुष्य के पास बहुत अधिक विचार हैं; यह दर्शाता है कि एक सृजन किया गया प्राणी, परमेश्वर के काम की व्याख्या कर ही नहीं सकता है। मनुष्य के मन में बहुत कुछ है, सभी तर्क और विचार से आते हैं, जो सत्य के साथ संघर्ष करते हैं। क्या तुम्हारा तर्क परमेश्वर के काम का पूरी तरह से विश्लेषण कर सकता है? क्या तुम यहोवा के सभी कामों की समझ पा सकते हो? क्या यह तुम एक मानव हो कर सब कुछ देख सकते हो, या वह स्वयं परमेश्वर है जो अनन्त से अनन्त तक देखने में सक्षम है? क्या यह तुम हो जो बीते अनंत काल से आने वाले अनंत काल तक देख सकता है, या यह परमेश्वर है जो ऐसा कर सकता है? तुम्हारा क्या कहना है? परमेश्वर की व्याख्या करने के लिए तुम कैसे योग्य हो? तुम्हारे स्पष्टीकरण का आधार क्या है? क्या तुम परमेश्वर हो? स्वर्ग और पृथ्वी, और इसमें सब कुछ स्वयं परमेश्वर द्वारा बनाई गई थी। यह तुम नहीं थे, जिसने यह किया था, तो तुम गलत स्पष्टीकरण क्यों दे रहे हो? अब, क्या तुम त्रित्व में विश्वास करते रहोगे? क्या तुम्हें नहीं लगता कि यह बहुत बोझिल है? यह तुम्हारे लिए सबसे अच्छा होगा कि तुम एक परमेश्वर में विश्वास करो, न कि तीन में। हल्का होना सबसे अच्छा है, क्योंकि "प्रभु का भार हल्का है।"

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