परमेश्वर के काम का दर्शन (1)
यूहन्ना ने यीशु के लिए सात साल तक काम किया, और यीशु के आने से पहले ही मार्ग तैयार कर दिया था. इसके पहले, यूहन्ना द्वारा प्रचारित स्वर्गराज्य का सुसमाचार पूरे देश में सुना जा चुका था, इस प्रकार यह पूरे यहूदिया में फैल गया, और सभी ने उसे नबी कह कर पुकारा। उस समय राजा हेरोदस, यूहन्ना को मारने की इच्छा रखता था, फिर भी उसने हिम्मत नहीं की, क्योंकि लोग यूहन्ना को बहुत सम्मान देते थे, और हेरोदस को डर था कि अगर वह यूहन्ना को मार देगा तो वे उसके खिलाफ विद्रोह कर देंगे।
यूहन्ना द्वारा किया गया काम, आम लोगों के बीच जड़ें जमा चुका था और उसने यहूदियों को विश्वासी बना दिया था।सात सालों तक उसने यीशु के लिए मार्ग तैयार किया, ठीक उस समय तक जब यीशु ने अपना सेवा-कार्य शुरू किया। और इसलिए, यूहन्ना सभी नबियों में सबसे महान था। यीशु ने अपना आधिकारिक काम यूहन्ना के कारावास के बाद ही शुरू किया। यूहन्ना से पहले, कभी भी कोई ऐसा नबी नहीं हुआ जिसने परमेश्वर के लिए मार्ग प्रशस्त किया हो, क्योंकि यीशु से पूर्व, परमेश्वर पहले कभी देह धारण नहीं किया था। और इसलिए, यूहन्ना तक के सभी नबियों में से केवल उसने ही परमेश्वर के देहधारण का मार्ग साफ़ किया, और इस तरह से यूहन्ना, पुराने और नए विधान के महानतम नबी बन गया। यूहन्ना ने, यीशु के बपतिस्मा के सात वर्ष पहले से स्वर्गराज्य के सुसमाचार को फैलाना शुरू कर दिया था। लोगों को उसका किया गया काम यीशु के अनुवर्ती काम से ऊँचा लगता था, फिर भी, वह था तो केवल एक नबी ही। वे मंदिर के भीतर बात या काम नहीं करते था, बल्कि इसके बाहर के कस्बों और गांवों में ऐसा करते था। उसने, निश्चय ही यह यहूदी राष्ट्र के बीच किया, विशेष रूप से उन के बीच जो गरीब थे। यूहन्ना, समाज की ऊपरी श्रेणी के लोगों के संपर्क में कम ही आया, वो केवल यहूदिया के आम लोगों के बीच सुसमाचार फैलाता रहा ताकि प्रभु यीशु के लिए उचित लोगों को तैयार कर सके,और उसके लिए काम करने की उपयुक्त जगह तैयार कर सके। मार्ग प्रशस्त करने के लिए, यूहन्ना जैसे एक नबी के होने के कारण, प्रभु यीशु आने के साथ ही सीधे अपने क्रूस के रास्ते पर चलने में सक्षम हुआ। जब परमेश्वर ने अपना काम करने के लिए शरीर धारण किया, तो उसे लोगों को चुनने का काम करने की ज़रूरत नहीं थी, और व्यक्तिगत रूप से लोगों को या काम करने की जगह तलाशने की आवश्यकता नहीं थी। जब वह आया तो उसने ऐसा काम नहीं किया; उसके आने के पहले ही उचित व्यक्ति ने तैयारी कर दी थी। यूहन्ना ने, यीशु के अपना काम शुरू करने के पहले ही यह काम पूरा कर लिया था, इसलिए जब देहधारी परमेश्वर अपने काम करने के लिए पहुंचा, वह सीधे उन पर काम करने लगा जो लंबे समय से उसका इंतजार कर रहे थे। यीशु मनुष्य का काम करने, या मनुष्य पर जो सुधार का काम आ पड़ा, वह करने नहीं आया था। वह केवल सेवा करने आया था जिसे करना उसका काम था, और बाकि सब कुछ के साथ उसका कोई रिश्ता नहीं था। जब यूहन्ना आया, तो उसने, मंदिर से और यहूदियों के बीच से स्वर्गराज्य का सुसमाचार स्वीकारने वाले लोगों के एक समूह को बाहर लाने के अलावा और कुछ नहीं किया, ताकि वे प्रभु यीशु के काम का प्रयोजन बन सकें। यूहन्ना ने सात सालों के लिए काम किया, अर्थात उसने सात साल तक सुसमाचार फैलाया। अपने काम के दौरान, यूहन्ना ने बहुत से चमत्कार नहीं किये, क्योंकि उसका काम मार्ग प्रशस्त करना था, यह तैयारी का काम था। अन्य सभी कामों का, यीशु जो काम करने वाला था, उनसे उसका कोई संबंध नहीं था; उसने केवल मनुष्य को अपने पापों को स्वीकारने और पश्चाताप करने के लिए कहा, और लोगों को बपतिस्मा दिया ताकि वे बचाए जा सकें। यद्यपि उसने नया काम किया, और ऐसा मार्ग खोला जिस पर मनुष्य पहले कभी नहीं चला था, फिर भी उसने केवल यीशु के लिए मार्ग प्रशस्त किया। वह केवल एक नबी था जिन्होंने तैयारी का काम किया, और वे यीशु का काम करने में असमर्थ था। यद्यपि यीशु स्वर्गराज्य के सुसमाचार का प्रचार करने वाला पहला व्यक्ति नहीं था, और यद्यपि वह उस रास्ते पर चलता रहा जो कि यूहन्ना ने शुरू किया था, फिर भी ऐसा कोई और नहीं था जो उसका काम कर सके, और यह यूहन्ना के काम से ऊँचा था। यीशु अपना खुद का रास्ता तैयार नहीं कर सकता था; उसका काम सीधे परमेश्वर की ओर से किया गया था। और इसलिए, इससे फर्क नहीं पड़ता कि यूहन्ना ने कितने साल काम किया, वो फिर भी एक नबी था, और फिर भी वह व्यक्ति था जिसने मार्ग प्रशस्त किया। यीशु द्वारा किया गया तीन साल का काम, यूहन्ना के सात साल के काम को मात देता था, क्योंकि उनके काम का सत्व समान नहीं था। जब यीशु ने अपना सेवाकार्य शुरू किया, उसी समय जब यूहन्ना का कार्य समाप्त हुआ, तब तक यूहन्ना ने प्रभु यीशु द्वारा उपयोग हेतु पर्याप्त लोगों और जगहों को तैयार कर दिया था, और यह प्रभु यीशु के तीन साल के काम को शुरू करने के लिए पर्याप्त था। और इसलिए, जैसे ही यूहन्ना का कार्य समाप्त हुआ, प्रभु यीशु ने आधिकारिक तौर पर अपना काम शुरू किया, और यूहन्ना द्वारा कहे गए शब्दों को किनारे कर दिया गया। इसका कारण यह है कि यूहन्ना द्वारा किया गया कार्य केवल अवस्था परिवर्तन की खातिर था, और उसके शब्द जीवन के शब्द नहीं थे जो मनुष्य को नए विकास की ओर ले जाएं; अंततः, उनके शब्द केवल क्षणिक लाभ के लिए थे। परमेश्वर के काम का दर्शन जो काम यीशु ने किया वह अलौकिक नहीं था; उसमें एक प्रक्रिया थी, और सब कुछ, चीजों के सामान्य नियमों के अनुसार बढ़ा। अपने जीवन के अंतिम छः महीने तक, यीशु निश्चित रूप से जान गया था कि वह यह काम करने के लिए आया था, और वह जानता था कि वह क्रूस पर ठोंके जाने के लिए आया है। क्रूस पर चढ़ाए जाने से पहले, यीशु ने लगातार पिता परमेश्वर से प्रार्थना की, वैसे ही जैसे उसने गतसमनी के बाग में तीन बार प्रार्थना की थी। बपतिस्मा लेने के बाद, यीशु ने साढ़े तीन साल तक अपना सेवा कार्य किया, और उसका आधिकारिक कार्य ढाई साल तक चला। पहले वर्ष के दौरान, शैतान ने उस पर अभियोग लगाया, और इंसान द्वारा वह परेशान हुआ, और उसे इंसानी प्रलोभन दिए गए। उसने अपने कार्यों को पूरा करने के दौरान कई प्रलोभनों पर काबू पाया। जब यीशु को जल्द ही क्रूस पर चढ़ाया जाना था, उन आखिरी छह महीनों में तो पतरस के मुंह से यह शब्द निकले कि वह जीवित ईश्वर का पुत्र था, कि वह मसीह था। उसके बाद ही उसकी पहचान और काम को सभी ने जाना, केवल तब ही वह सब लोगों के लिए प्रकाशित किया गया। उसके बाद, यीशु ने अपने चेलों से कहा कि उसे मनुष्य की खातिर क्रूस पर चढ़ाया जाना था, और तीन दिन बाद वह फिर से जी उठेगा; कि वह उद्धार का काम करने के लिए आया था, और वह मुक्तिदाता था। केवल आखिरी छः महीनों में उसने अपनी पहचान और अपने काम को प्रकट किया, जैसी उसकी इच्छा थी। यह परमेश्वर का समय भी था, और काम इस प्रकार ही किया जाना था। उस समय, यीशु के काम का कुछ हिस्सा पुराने विधान के अनुसार था और साथ ही मूसा के नियमों और व्यवस्था के युग में यहोवा के शब्दों के अनुसार भी था। यीशु ने अपने काम के कुछ हिस्से को करने में इन सबका प्रयोग किया। उसने लोगों को उपदेश दिया और उन्हें यहूदियों के मंदिरों में पढ़ाया, और उसने पुराने विधान में नबियों की भविष्यवाणियों को काम में लाया ताकि वह उन फरीसियों को, जो उससे बैर करते थे, फटकार सके, और उनकी अवज्ञा को प्रकट करने के लिए शास्त्रों के शब्दों का इस्तेमाल किया और इस तरह उनकी निंदा की। क्योंकि यीशु ने जो किया वे उसे तुच्छ मानते थे; विशेष रूप से, यीशु के बहुत से काम शास्त्रों के कानून के अनुसार नहीं थे, और इसके अलावा, जो उसने सिखाया वह उनके अपने शब्दों से अधिक ऊँचा था, और शास्त्रों में नबियों ने भविष्यवाणी में जो बताया था उससे भी कहीं अधिक ऊँचा था। यीशु का काम केवल मनुष्य के उद्धार और क्रूसित होने के लिए था। इस प्रकार, किसी भी व्यक्ति को जीतने के लिए उसे अधिक शब्द कहने की कोई जरूरत नहीं थी। उसने जो कुछ भी सिखाया उसमें से काफी कुछ शास्त्रों के शब्दों से लिया गया था, और भले ही उसका काम शास्त्रों से आगे नहीं बढ़ा, फिर भी वह क्रूसित होने के काम को पूरा कर पाया। उसका काम शब्द का नहीं था, न ही मानव जाति पर विजय पाने के लिए था, बल्कि मानव जाति का उद्धार करने के लिए था। उसने मानव जाति के लिए बस पापबलि का काम किया, और मानव जाति के लिए शब्द के स्रोत के समान कार्य नहीं किया। उसने गैर यहूदियों का काम नहीं किया, जो कि मनुष्य को जीतने का काम था, बल्कि क्रूसित होने का काम किया, वह काम जो उन लोगों के बीच किया गया था जो एक परमेश्वर के होने में विश्वास करते थे। यद्यपि उसका काम शास्त्रों की बुनियाद पर किया गया था, और उसने पुराने नबियों की भविष्यवाणी का इस्तेमाल फरीसियों की निंदा करने के लिए किया, यह क्रूसित होने के काम को पूरा करने के लिए पर्याप्त था। यदि अब भी आज का काम, शास्त्रों में पुराने नबियों की भविष्यवाणियों की बुनियाद पर किया जाता, तो तुम लोगों को जीतना नामुमकिन होता, क्योंकि पुराने विधान में तुम चीनियों की अवज्ञा और पापों का कोई भी लेखा नहीं है, वहां तुम लोगों के पापों का कोई इतिहास नहीं है। और इसलिए, अगर यह काम बाइबल में अब भी होता, तो तुम कभी भी प्रतिफल न देते। बाइबल में इस्राएलियों का एक सीमित इतिहास दर्ज है, जो कि यह स्थापित करने में असमर्थ है कि तुम लोग बुरे हो या अच्छे हैं, या तुम लोगों का न्याय करने में असमर्थ है। कल्पना करो कि मुझे तुम लोगों का न्याय इस्राएलियों के इतिहास के अनुसार करना होता-क्या तुम लोग मेरा वैसे ही अनुसरण करते जैसा कि आज करते हो? क्या तुम लोग जानते हो कि तुम लोग कितने जिद्दी हो? अगर इस चरण के दौरान कोई शब्द न बोले जायें, तो विजय का काम पूरा करना असंभव होगा। क्योंकि मैं क्रूस पर ठोंके जाने के लिए नहीं आया हूँ, मुझे उन शब्दों को बोलना ही होगा जो बाइबल से अलग हैं, ताकि तुम लोगों पर विजय प्राप्त हो सके। यीशु द्वारा किया गया कार्य पुराने विधान से महज एक चरण ऊँचा था; एक युग शुरू करने के लिए और उस युग की अगुआई करने के लिए इसका उपयोग किया गया था। उसने क्यों कहा था, "यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों का लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं किन्तु पूरा करने आया हूँ"? फिर भी उसके काम में बहुत कुछ ऐसा था जो पालन किये जाने वाले कानून और पुराने विधान के इस्त्राएलियों द्वारा पालन किए जाने वाली आज्ञाओं से अलग था, क्योंकि वह नियमों का पालन करने नहीं आया था, बल्कि इसे पूरा करने के लिए आया था। इसे पूरा करने की प्रक्रिया में कई वास्तविक चीजें शामिल थीं: उसका काम अधिक व्यावहारिक और वास्तविक था, और इसके अलावा, वह जीवंत था, और सिद्धांतों का अंधा पालन नहीं था। क्या इस्राएली विश्रामदिन का पालन नहीं करते थे? जब यीशु आया, तो उसने विश्रामदिन का पालन नहीं किया, क्योंकि उसने कहा था कि मनुष्य का पुत्र विश्रामदिन का प्रभु है, और जब विश्रामदिन का प्रभु आ पहुंचा, तो वह जैसा करना चाहेगा वह वैसा करेगा। वह पुराने विधान के नियमों को पूरा करने और कानून को बदलने के लिए आया था। आज जो कुछ किया जाता है वह वर्तमान पर आधारित है, फिर भी यह अब भी व्यवस्था के युग में यहोवा के कार्य की नींव पर निर्भर है, और इस गुंजाइश का उल्लंघन नहीं करता है। उदाहरण के लिए, अपनी ज़बान सम्भालना, व्यभिचार न करना, क्या ये पुराने विधान के कानून नहीं हैं? आज, तुम लोगों से जो अपेक्षित है वह केवल दस वचनों तक ही सीमित नहीं है, लेकिन ऐसी आज्ञायें और कानून हैं जो पहले के मुकाबले और अधिक ऊँची हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि जो कुछ पहले आया था, उसे खत्म कर दिया गया है, क्योंकि परमेश्वर के काम का प्रत्येक चरण, पूर्व के चरण के नींव पर किया जाता है। यहोवा ने इस्राएल का जिससे परिचय कराया, जैसे कि बलिदान देना, माँ-बाप का आदर करना, मूर्ति-पूजा न करना, दूसरों पर वार न करना, दूसरों को अपशब्द न बोलना, व्यभिचार न करना, धूम्रपान न करना, मदिरापान न करना, मरे हुओं को न खाना, और लहू न पीना, क्या यह सब आज भी तुम लोगों के अभ्यास की नींव नहीं है? अतीत की नींव पर ही आज तक काम पूरा होता आया है। हालांकि, अतीत के नियमों का अब और उल्लेख नहीं किया जाता, और तुमसे कई नई बातें अपेक्षित हैं, लेकिन इन कानूनों को समाप्त नहीं किया गया है, इसके बजाय, उन्हें ऊपर उठाया गया है। यह कहना कि उन्हें समाप्त कर दिया गया है, इसका मतलब है कि पिछला युग पुराना हो गया है, फिर भी कुछ ऐसी आज्ञाएं हैं जिनका तुम्हें हमेशा सम्मान करना चाहिए। अतीत की आज्ञाएं पहले से ही लागू की जा चुकी हैं, वे पहले से ही मनुष्य का अस्तित्व बन चुकी हैं, और धूम्रपान न करने, मदिरापान न करने, आदि आज्ञाओं को दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस नींव पर, आज तुम लोगों की जरुरत के अनुसार, कद के अनुसार और आज के काम के अनुसार, नई आज्ञाएं निर्धारित की गई हैं। नए युग की आज्ञाओं का निर्धारण करने का मतलब,अतीत की आज्ञाओं को खत्म करना नहीं, बल्कि उन्हें इस आधार पर और ऊँचा उठाना, मनुष्य के क्रियाकलापों को और अधिक पूर्ण और वास्तविकता के अनुसार बनाना है। यदि, आज केवल तुम लोगों को आज्ञाओं का पालन करना होता और इस्राएलियों की तरह, पुराने विधान के नियमों का पालन करना होता, और यदि, तुम लोगों को यहोवा द्वारा निर्धारित कानूनों को याद तक रखना होता तो भी तुम लोगों के बदल सकने की कोई संभावना नहीं होती। यदि तुम लोगों को केवल उन कुछ सीमित आज्ञाओं का पालन करना होता या असंख्य नियमों को याद करना होता, तो तुम्हारी पुरानी प्रकृति गहराई में गड़ी रहती, और इसे उखाड़ने का कोई रास्ता नहीं होता। इस प्रकार तुम लोग और अधिक भ्रष्ट हो जाते, और तुम लोगों में से कोई एक भी आज्ञाकारी नहीं बनता। कहने का अर्थ यह है कि कुछ सरल आज्ञाएं या अनगिनत कानून तुम्हें यहोवा के कामों को जानने में मदद करने में असमर्थ हैं। तुम लोग इस्राएलियों के समान नहीं हो: कानून का पालन करते हुए और आज्ञाओं को याद करते हुए वे यहोवा के कार्यों को देख पाए, और सिर्फ उसकी ही भक्ति कर सके, लेकिन तुम लोग इसे प्राप्त करने में असमर्थ हो, और पुराने विधान के युग की कुछ आज्ञाएं न केवल तुम्हें अपना दिल देने में मदद करने में या तुम्हारी रक्षा करने में असमर्थ हैं, बल्कि ये तुम लोगों को शिथिल बना देंगीं, और तुम्हें अधोलोक पहुंचा देंगी। क्योंकि मेरा काम विजय का काम है, और तुम लोगों की पुरानी प्रकृति और अवज्ञा की ओर केंद्रित है। आज, यहोवा और यीशु के दया भरे शब्द, न्याय के कड़े शब्दों के सामने काफी नहीं पड़ते हैं। ऐसे कड़े शब्दों के बिना, तुम "विशेषज्ञों" पर विजय प्राप्त करना असंभव हो जायेगा, जो हजारों सालों से अवज्ञाकारी रहे हैं। पुराने विधान के नियमों ने बहुत पहले तुम लोगों पर अपनी शक्ति खो दी थी, और आज का न्याय पुराने नियमों की तुलना में कहीं ज्यादा भयंकर है। तुम लोगों के लिए न्याय सबसे उपयुक्त है, कानून के तुच्छ प्रतिबंध नहीं, क्योंकि तुम लोग बिल्कुल प्रारम्भ वाली मानवजाति नहीं हो, बल्कि वो मानवजाति हो जो हजारों वर्षों से भ्रष्ट रही है। आज मनुष्य को जो हासिल करना है, वो मनुष्य की आज की वास्तविक दशा के अनुसार है, वर्तमान-दिन के मनुष्य की क्षमता और वास्तविक कद के अनुसार है, और इसकी आवश्यकता नहीं है कि तुम सिद्धांतों का पालन रो। ऐसा इसलिए है कि तुम्हारी पुरानी प्रकृति में परिवर्तन हो सके, और ताकि तुम अपनी अवधारणाओं को त्याग को। क्या तुम्हें लगता है कि आज्ञाएं सिद्धांत हैं? यह कहा जा सकता है कि वे इंसान की सामान्य आवश्यकताएं हैं। वे सिद्धांत नहीं हैं जिनका तुम्हें पालन करना चाहिए। उदाहरण के लिए- धूम्रपान को रोकने को लों, क्या यह सिद्धांत है? यह सिद्धांत नहीं है! यह सामान्य मानवता से अपेक्षित है; यह सिद्धांत नहीं है, बल्कि पूरी मानव जाति के लिए एक नियम है। आज, लगभग दर्जनों आज्ञाएं जो निर्धारित की गई हैं, वे भी सिद्धांत नहीं हैं, बल्कि वे हैं जो सामान्य मानवता को प्राप्त करने के लिए वांछित है। अतीत में लोगों के पास ऐसी चीजें नहीं थीं या उन्हें इस बारे में पता नहीं था, और इसलिए उन्हें यह आज प्राप्त करने की आवश्यकता है, जो की सिद्धांत के रूप में नहीं गिना जाता। कानून और सिद्धांत एकसमान नहीं हैं। जिस सिद्धांत के बारे में मैं बोलता हूं, वह अनुष्ठान, रूप या मनुष्यों के भटके हुए और गलत व्यवहारों के संदर्भ में है; ये वे नियम और कानून हैं जो मनुष्यों के लिए कोई मदद करने योग्य नहीं हैं, उन्हें इससे कोई लाभ नहीं है, और यह एक ऐसा कार्य है जो कोई महत्व नहीं रखता है। यह सिद्धांत का प्रतीक है, और इस तरह के सिद्धांत को त्याग देना चाहिए, क्योंकि यह मनुष्य को कोई लाभ नहीं देता है। वह जो मनुष्य को लाभ देता है उसका अभ्यास किया जाना चाहिए।
यूहन्ना द्वारा किया गया काम, आम लोगों के बीच जड़ें जमा चुका था और उसने यहूदियों को विश्वासी बना दिया था।सात सालों तक उसने यीशु के लिए मार्ग तैयार किया, ठीक उस समय तक जब यीशु ने अपना सेवा-कार्य शुरू किया। और इसलिए, यूहन्ना सभी नबियों में सबसे महान था। यीशु ने अपना आधिकारिक काम यूहन्ना के कारावास के बाद ही शुरू किया। यूहन्ना से पहले, कभी भी कोई ऐसा नबी नहीं हुआ जिसने परमेश्वर के लिए मार्ग प्रशस्त किया हो, क्योंकि यीशु से पूर्व, परमेश्वर पहले कभी देह धारण नहीं किया था। और इसलिए, यूहन्ना तक के सभी नबियों में से केवल उसने ही परमेश्वर के देहधारण का मार्ग साफ़ किया, और इस तरह से यूहन्ना, पुराने और नए विधान के महानतम नबी बन गया। यूहन्ना ने, यीशु के बपतिस्मा के सात वर्ष पहले से स्वर्गराज्य के सुसमाचार को फैलाना शुरू कर दिया था। लोगों को उसका किया गया काम यीशु के अनुवर्ती काम से ऊँचा लगता था, फिर भी, वह था तो केवल एक नबी ही। वे मंदिर के भीतर बात या काम नहीं करते था, बल्कि इसके बाहर के कस्बों और गांवों में ऐसा करते था। उसने, निश्चय ही यह यहूदी राष्ट्र के बीच किया, विशेष रूप से उन के बीच जो गरीब थे। यूहन्ना, समाज की ऊपरी श्रेणी के लोगों के संपर्क में कम ही आया, वो केवल यहूदिया के आम लोगों के बीच सुसमाचार फैलाता रहा ताकि प्रभु यीशु के लिए उचित लोगों को तैयार कर सके,और उसके लिए काम करने की उपयुक्त जगह तैयार कर सके। मार्ग प्रशस्त करने के लिए, यूहन्ना जैसे एक नबी के होने के कारण, प्रभु यीशु आने के साथ ही सीधे अपने क्रूस के रास्ते पर चलने में सक्षम हुआ। जब परमेश्वर ने अपना काम करने के लिए शरीर धारण किया, तो उसे लोगों को चुनने का काम करने की ज़रूरत नहीं थी, और व्यक्तिगत रूप से लोगों को या काम करने की जगह तलाशने की आवश्यकता नहीं थी। जब वह आया तो उसने ऐसा काम नहीं किया; उसके आने के पहले ही उचित व्यक्ति ने तैयारी कर दी थी। यूहन्ना ने, यीशु के अपना काम शुरू करने के पहले ही यह काम पूरा कर लिया था, इसलिए जब देहधारी परमेश्वर अपने काम करने के लिए पहुंचा, वह सीधे उन पर काम करने लगा जो लंबे समय से उसका इंतजार कर रहे थे। यीशु मनुष्य का काम करने, या मनुष्य पर जो सुधार का काम आ पड़ा, वह करने नहीं आया था। वह केवल सेवा करने आया था जिसे करना उसका काम था, और बाकि सब कुछ के साथ उसका कोई रिश्ता नहीं था। जब यूहन्ना आया, तो उसने, मंदिर से और यहूदियों के बीच से स्वर्गराज्य का सुसमाचार स्वीकारने वाले लोगों के एक समूह को बाहर लाने के अलावा और कुछ नहीं किया, ताकि वे प्रभु यीशु के काम का प्रयोजन बन सकें। यूहन्ना ने सात सालों के लिए काम किया, अर्थात उसने सात साल तक सुसमाचार फैलाया। अपने काम के दौरान, यूहन्ना ने बहुत से चमत्कार नहीं किये, क्योंकि उसका काम मार्ग प्रशस्त करना था, यह तैयारी का काम था। अन्य सभी कामों का, यीशु जो काम करने वाला था, उनसे उसका कोई संबंध नहीं था; उसने केवल मनुष्य को अपने पापों को स्वीकारने और पश्चाताप करने के लिए कहा, और लोगों को बपतिस्मा दिया ताकि वे बचाए जा सकें। यद्यपि उसने नया काम किया, और ऐसा मार्ग खोला जिस पर मनुष्य पहले कभी नहीं चला था, फिर भी उसने केवल यीशु के लिए मार्ग प्रशस्त किया। वह केवल एक नबी था जिन्होंने तैयारी का काम किया, और वे यीशु का काम करने में असमर्थ था। यद्यपि यीशु स्वर्गराज्य के सुसमाचार का प्रचार करने वाला पहला व्यक्ति नहीं था, और यद्यपि वह उस रास्ते पर चलता रहा जो कि यूहन्ना ने शुरू किया था, फिर भी ऐसा कोई और नहीं था जो उसका काम कर सके, और यह यूहन्ना के काम से ऊँचा था। यीशु अपना खुद का रास्ता तैयार नहीं कर सकता था; उसका काम सीधे परमेश्वर की ओर से किया गया था। और इसलिए, इससे फर्क नहीं पड़ता कि यूहन्ना ने कितने साल काम किया, वो फिर भी एक नबी था, और फिर भी वह व्यक्ति था जिसने मार्ग प्रशस्त किया। यीशु द्वारा किया गया तीन साल का काम, यूहन्ना के सात साल के काम को मात देता था, क्योंकि उनके काम का सत्व समान नहीं था। जब यीशु ने अपना सेवाकार्य शुरू किया, उसी समय जब यूहन्ना का कार्य समाप्त हुआ, तब तक यूहन्ना ने प्रभु यीशु द्वारा उपयोग हेतु पर्याप्त लोगों और जगहों को तैयार कर दिया था, और यह प्रभु यीशु के तीन साल के काम को शुरू करने के लिए पर्याप्त था। और इसलिए, जैसे ही यूहन्ना का कार्य समाप्त हुआ, प्रभु यीशु ने आधिकारिक तौर पर अपना काम शुरू किया, और यूहन्ना द्वारा कहे गए शब्दों को किनारे कर दिया गया। इसका कारण यह है कि यूहन्ना द्वारा किया गया कार्य केवल अवस्था परिवर्तन की खातिर था, और उसके शब्द जीवन के शब्द नहीं थे जो मनुष्य को नए विकास की ओर ले जाएं; अंततः, उनके शब्द केवल क्षणिक लाभ के लिए थे। परमेश्वर के काम का दर्शन जो काम यीशु ने किया वह अलौकिक नहीं था; उसमें एक प्रक्रिया थी, और सब कुछ, चीजों के सामान्य नियमों के अनुसार बढ़ा। अपने जीवन के अंतिम छः महीने तक, यीशु निश्चित रूप से जान गया था कि वह यह काम करने के लिए आया था, और वह जानता था कि वह क्रूस पर ठोंके जाने के लिए आया है। क्रूस पर चढ़ाए जाने से पहले, यीशु ने लगातार पिता परमेश्वर से प्रार्थना की, वैसे ही जैसे उसने गतसमनी के बाग में तीन बार प्रार्थना की थी। बपतिस्मा लेने के बाद, यीशु ने साढ़े तीन साल तक अपना सेवा कार्य किया, और उसका आधिकारिक कार्य ढाई साल तक चला। पहले वर्ष के दौरान, शैतान ने उस पर अभियोग लगाया, और इंसान द्वारा वह परेशान हुआ, और उसे इंसानी प्रलोभन दिए गए। उसने अपने कार्यों को पूरा करने के दौरान कई प्रलोभनों पर काबू पाया। जब यीशु को जल्द ही क्रूस पर चढ़ाया जाना था, उन आखिरी छह महीनों में तो पतरस के मुंह से यह शब्द निकले कि वह जीवित ईश्वर का पुत्र था, कि वह मसीह था। उसके बाद ही उसकी पहचान और काम को सभी ने जाना, केवल तब ही वह सब लोगों के लिए प्रकाशित किया गया। उसके बाद, यीशु ने अपने चेलों से कहा कि उसे मनुष्य की खातिर क्रूस पर चढ़ाया जाना था, और तीन दिन बाद वह फिर से जी उठेगा; कि वह उद्धार का काम करने के लिए आया था, और वह मुक्तिदाता था। केवल आखिरी छः महीनों में उसने अपनी पहचान और अपने काम को प्रकट किया, जैसी उसकी इच्छा थी। यह परमेश्वर का समय भी था, और काम इस प्रकार ही किया जाना था। उस समय, यीशु के काम का कुछ हिस्सा पुराने विधान के अनुसार था और साथ ही मूसा के नियमों और व्यवस्था के युग में यहोवा के शब्दों के अनुसार भी था। यीशु ने अपने काम के कुछ हिस्से को करने में इन सबका प्रयोग किया। उसने लोगों को उपदेश दिया और उन्हें यहूदियों के मंदिरों में पढ़ाया, और उसने पुराने विधान में नबियों की भविष्यवाणियों को काम में लाया ताकि वह उन फरीसियों को, जो उससे बैर करते थे, फटकार सके, और उनकी अवज्ञा को प्रकट करने के लिए शास्त्रों के शब्दों का इस्तेमाल किया और इस तरह उनकी निंदा की। क्योंकि यीशु ने जो किया वे उसे तुच्छ मानते थे; विशेष रूप से, यीशु के बहुत से काम शास्त्रों के कानून के अनुसार नहीं थे, और इसके अलावा, जो उसने सिखाया वह उनके अपने शब्दों से अधिक ऊँचा था, और शास्त्रों में नबियों ने भविष्यवाणी में जो बताया था उससे भी कहीं अधिक ऊँचा था। यीशु का काम केवल मनुष्य के उद्धार और क्रूसित होने के लिए था। इस प्रकार, किसी भी व्यक्ति को जीतने के लिए उसे अधिक शब्द कहने की कोई जरूरत नहीं थी। उसने जो कुछ भी सिखाया उसमें से काफी कुछ शास्त्रों के शब्दों से लिया गया था, और भले ही उसका काम शास्त्रों से आगे नहीं बढ़ा, फिर भी वह क्रूसित होने के काम को पूरा कर पाया। उसका काम शब्द का नहीं था, न ही मानव जाति पर विजय पाने के लिए था, बल्कि मानव जाति का उद्धार करने के लिए था। उसने मानव जाति के लिए बस पापबलि का काम किया, और मानव जाति के लिए शब्द के स्रोत के समान कार्य नहीं किया। उसने गैर यहूदियों का काम नहीं किया, जो कि मनुष्य को जीतने का काम था, बल्कि क्रूसित होने का काम किया, वह काम जो उन लोगों के बीच किया गया था जो एक परमेश्वर के होने में विश्वास करते थे। यद्यपि उसका काम शास्त्रों की बुनियाद पर किया गया था, और उसने पुराने नबियों की भविष्यवाणी का इस्तेमाल फरीसियों की निंदा करने के लिए किया, यह क्रूसित होने के काम को पूरा करने के लिए पर्याप्त था। यदि अब भी आज का काम, शास्त्रों में पुराने नबियों की भविष्यवाणियों की बुनियाद पर किया जाता, तो तुम लोगों को जीतना नामुमकिन होता, क्योंकि पुराने विधान में तुम चीनियों की अवज्ञा और पापों का कोई भी लेखा नहीं है, वहां तुम लोगों के पापों का कोई इतिहास नहीं है। और इसलिए, अगर यह काम बाइबल में अब भी होता, तो तुम कभी भी प्रतिफल न देते। बाइबल में इस्राएलियों का एक सीमित इतिहास दर्ज है, जो कि यह स्थापित करने में असमर्थ है कि तुम लोग बुरे हो या अच्छे हैं, या तुम लोगों का न्याय करने में असमर्थ है। कल्पना करो कि मुझे तुम लोगों का न्याय इस्राएलियों के इतिहास के अनुसार करना होता-क्या तुम लोग मेरा वैसे ही अनुसरण करते जैसा कि आज करते हो? क्या तुम लोग जानते हो कि तुम लोग कितने जिद्दी हो? अगर इस चरण के दौरान कोई शब्द न बोले जायें, तो विजय का काम पूरा करना असंभव होगा। क्योंकि मैं क्रूस पर ठोंके जाने के लिए नहीं आया हूँ, मुझे उन शब्दों को बोलना ही होगा जो बाइबल से अलग हैं, ताकि तुम लोगों पर विजय प्राप्त हो सके। यीशु द्वारा किया गया कार्य पुराने विधान से महज एक चरण ऊँचा था; एक युग शुरू करने के लिए और उस युग की अगुआई करने के लिए इसका उपयोग किया गया था। उसने क्यों कहा था, "यह न समझो, कि मैं व्यवस्था या भविष्यवक्ताओं की पुस्तकों का लोप करने आया हूँ, लोप करने नहीं किन्तु पूरा करने आया हूँ"? फिर भी उसके काम में बहुत कुछ ऐसा था जो पालन किये जाने वाले कानून और पुराने विधान के इस्त्राएलियों द्वारा पालन किए जाने वाली आज्ञाओं से अलग था, क्योंकि वह नियमों का पालन करने नहीं आया था, बल्कि इसे पूरा करने के लिए आया था। इसे पूरा करने की प्रक्रिया में कई वास्तविक चीजें शामिल थीं: उसका काम अधिक व्यावहारिक और वास्तविक था, और इसके अलावा, वह जीवंत था, और सिद्धांतों का अंधा पालन नहीं था। क्या इस्राएली विश्रामदिन का पालन नहीं करते थे? जब यीशु आया, तो उसने विश्रामदिन का पालन नहीं किया, क्योंकि उसने कहा था कि मनुष्य का पुत्र विश्रामदिन का प्रभु है, और जब विश्रामदिन का प्रभु आ पहुंचा, तो वह जैसा करना चाहेगा वह वैसा करेगा। वह पुराने विधान के नियमों को पूरा करने और कानून को बदलने के लिए आया था। आज जो कुछ किया जाता है वह वर्तमान पर आधारित है, फिर भी यह अब भी व्यवस्था के युग में यहोवा के कार्य की नींव पर निर्भर है, और इस गुंजाइश का उल्लंघन नहीं करता है। उदाहरण के लिए, अपनी ज़बान सम्भालना, व्यभिचार न करना, क्या ये पुराने विधान के कानून नहीं हैं? आज, तुम लोगों से जो अपेक्षित है वह केवल दस वचनों तक ही सीमित नहीं है, लेकिन ऐसी आज्ञायें और कानून हैं जो पहले के मुकाबले और अधिक ऊँची हैं, लेकिन इसका यह मतलब नहीं है कि जो कुछ पहले आया था, उसे खत्म कर दिया गया है, क्योंकि परमेश्वर के काम का प्रत्येक चरण, पूर्व के चरण के नींव पर किया जाता है। यहोवा ने इस्राएल का जिससे परिचय कराया, जैसे कि बलिदान देना, माँ-बाप का आदर करना, मूर्ति-पूजा न करना, दूसरों पर वार न करना, दूसरों को अपशब्द न बोलना, व्यभिचार न करना, धूम्रपान न करना, मदिरापान न करना, मरे हुओं को न खाना, और लहू न पीना, क्या यह सब आज भी तुम लोगों के अभ्यास की नींव नहीं है? अतीत की नींव पर ही आज तक काम पूरा होता आया है। हालांकि, अतीत के नियमों का अब और उल्लेख नहीं किया जाता, और तुमसे कई नई बातें अपेक्षित हैं, लेकिन इन कानूनों को समाप्त नहीं किया गया है, इसके बजाय, उन्हें ऊपर उठाया गया है। यह कहना कि उन्हें समाप्त कर दिया गया है, इसका मतलब है कि पिछला युग पुराना हो गया है, फिर भी कुछ ऐसी आज्ञाएं हैं जिनका तुम्हें हमेशा सम्मान करना चाहिए। अतीत की आज्ञाएं पहले से ही लागू की जा चुकी हैं, वे पहले से ही मनुष्य का अस्तित्व बन चुकी हैं, और धूम्रपान न करने, मदिरापान न करने, आदि आज्ञाओं को दोहराने की कोई आवश्यकता नहीं है। इस नींव पर, आज तुम लोगों की जरुरत के अनुसार, कद के अनुसार और आज के काम के अनुसार, नई आज्ञाएं निर्धारित की गई हैं। नए युग की आज्ञाओं का निर्धारण करने का मतलब,अतीत की आज्ञाओं को खत्म करना नहीं, बल्कि उन्हें इस आधार पर और ऊँचा उठाना, मनुष्य के क्रियाकलापों को और अधिक पूर्ण और वास्तविकता के अनुसार बनाना है। यदि, आज केवल तुम लोगों को आज्ञाओं का पालन करना होता और इस्राएलियों की तरह, पुराने विधान के नियमों का पालन करना होता, और यदि, तुम लोगों को यहोवा द्वारा निर्धारित कानूनों को याद तक रखना होता तो भी तुम लोगों के बदल सकने की कोई संभावना नहीं होती। यदि तुम लोगों को केवल उन कुछ सीमित आज्ञाओं का पालन करना होता या असंख्य नियमों को याद करना होता, तो तुम्हारी पुरानी प्रकृति गहराई में गड़ी रहती, और इसे उखाड़ने का कोई रास्ता नहीं होता। इस प्रकार तुम लोग और अधिक भ्रष्ट हो जाते, और तुम लोगों में से कोई एक भी आज्ञाकारी नहीं बनता। कहने का अर्थ यह है कि कुछ सरल आज्ञाएं या अनगिनत कानून तुम्हें यहोवा के कामों को जानने में मदद करने में असमर्थ हैं। तुम लोग इस्राएलियों के समान नहीं हो: कानून का पालन करते हुए और आज्ञाओं को याद करते हुए वे यहोवा के कार्यों को देख पाए, और सिर्फ उसकी ही भक्ति कर सके, लेकिन तुम लोग इसे प्राप्त करने में असमर्थ हो, और पुराने विधान के युग की कुछ आज्ञाएं न केवल तुम्हें अपना दिल देने में मदद करने में या तुम्हारी रक्षा करने में असमर्थ हैं, बल्कि ये तुम लोगों को शिथिल बना देंगीं, और तुम्हें अधोलोक पहुंचा देंगी। क्योंकि मेरा काम विजय का काम है, और तुम लोगों की पुरानी प्रकृति और अवज्ञा की ओर केंद्रित है। आज, यहोवा और यीशु के दया भरे शब्द, न्याय के कड़े शब्दों के सामने काफी नहीं पड़ते हैं। ऐसे कड़े शब्दों के बिना, तुम "विशेषज्ञों" पर विजय प्राप्त करना असंभव हो जायेगा, जो हजारों सालों से अवज्ञाकारी रहे हैं। पुराने विधान के नियमों ने बहुत पहले तुम लोगों पर अपनी शक्ति खो दी थी, और आज का न्याय पुराने नियमों की तुलना में कहीं ज्यादा भयंकर है। तुम लोगों के लिए न्याय सबसे उपयुक्त है, कानून के तुच्छ प्रतिबंध नहीं, क्योंकि तुम लोग बिल्कुल प्रारम्भ वाली मानवजाति नहीं हो, बल्कि वो मानवजाति हो जो हजारों वर्षों से भ्रष्ट रही है। आज मनुष्य को जो हासिल करना है, वो मनुष्य की आज की वास्तविक दशा के अनुसार है, वर्तमान-दिन के मनुष्य की क्षमता और वास्तविक कद के अनुसार है, और इसकी आवश्यकता नहीं है कि तुम सिद्धांतों का पालन रो। ऐसा इसलिए है कि तुम्हारी पुरानी प्रकृति में परिवर्तन हो सके, और ताकि तुम अपनी अवधारणाओं को त्याग को। क्या तुम्हें लगता है कि आज्ञाएं सिद्धांत हैं? यह कहा जा सकता है कि वे इंसान की सामान्य आवश्यकताएं हैं। वे सिद्धांत नहीं हैं जिनका तुम्हें पालन करना चाहिए। उदाहरण के लिए- धूम्रपान को रोकने को लों, क्या यह सिद्धांत है? यह सिद्धांत नहीं है! यह सामान्य मानवता से अपेक्षित है; यह सिद्धांत नहीं है, बल्कि पूरी मानव जाति के लिए एक नियम है। आज, लगभग दर्जनों आज्ञाएं जो निर्धारित की गई हैं, वे भी सिद्धांत नहीं हैं, बल्कि वे हैं जो सामान्य मानवता को प्राप्त करने के लिए वांछित है। अतीत में लोगों के पास ऐसी चीजें नहीं थीं या उन्हें इस बारे में पता नहीं था, और इसलिए उन्हें यह आज प्राप्त करने की आवश्यकता है, जो की सिद्धांत के रूप में नहीं गिना जाता। कानून और सिद्धांत एकसमान नहीं हैं। जिस सिद्धांत के बारे में मैं बोलता हूं, वह अनुष्ठान, रूप या मनुष्यों के भटके हुए और गलत व्यवहारों के संदर्भ में है; ये वे नियम और कानून हैं जो मनुष्यों के लिए कोई मदद करने योग्य नहीं हैं, उन्हें इससे कोई लाभ नहीं है, और यह एक ऐसा कार्य है जो कोई महत्व नहीं रखता है। यह सिद्धांत का प्रतीक है, और इस तरह के सिद्धांत को त्याग देना चाहिए, क्योंकि यह मनुष्य को कोई लाभ नहीं देता है। वह जो मनुष्य को लाभ देता है उसका अभ्यास किया जाना चाहिए।
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