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सोमवार, 17 सितंबर 2018

लोगों! आनंद मनाओ!

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन, परमेश्वर को महिमा, आशीषें, विजयी

लोगों! आनंद मनाओ!


       मेरी ज्योति में लोग फिर से ज्योति देखते हैं। मेरे वचनों में, लोगों को खुशी देने वाली चीज़ें मिलती हैं। मेरा आगमन पूर्व से हुआ है और वहीं मेरी उत्पत्ति हुई है। जब मेरी महिमा चमकती है, तो सभी राष्ट्र प्रकाशित हो उठते हैं, सभी कुछ रोशनी में आ जाता है, कुछ अंधकार में नहीं रहता। राज्य में, परमेश्वर के साथ उसके लोगों का जीवन इतना प्रसन्न रहता है कि जिसकी तुलना नहीं की जा सकती। लोगों के धन्य जीवन के लिये जल-स्रोत नृत्य करते हैं, पर्वत लोगों के साथ मेरी बहुलता का आनंद लेते हैं। मेरे राज्य में सभी लोग प्रयासरत हैं, श्रम कर रहे हैं, अपनी निष्ठा दिखा रहे हैं। राज्य में, न तो अब कोई विद्रोह है, न कोई विरोध; स्वर्ग और पृथ्वी एक-दूसरे पर आश्रित हैं, मानव और मुझमें निकटता है, गहन भाव हैं, जीवन के परम सुख में, साथ-साथ प्रवृत्त हैं... इस समय, मैं औपचारिक रूप से स्वर्गिक जीवन का आरंभ करता हूं। अब शैतान का कोई दख़ल नहीं है, और लोग शांत-भाव में प्रवेश कर रहे हैं। पूरे विश्व में, मेरे चुने हुए लोग मेरी महिमा में रह रहे हैं, उन पर अतुल्य आशीष है, लोगों के मध्य जी रहे लोगों की तरह नहीं, बल्कि परमेश्वर के संग रह रहे लोगों के समान है। सभी ने शैतान की भ्रष्टता की अनुभूति की है, जीवन के खट्टे-मीठे अनुभवों का स्वाद लिया है। अब जबकि वे मेरी ज्योति में रह रहे हैं, तो वे आनंद कैसे न मनाएं? कोई इस ख़ूबसूरत पल को यों ही कैसे त्याग दे और हाथ से निकल जाने दे? लोगों! अब मेरे लिए अपने हृदय के गीत गाओ और नृत्य करो! अब अपने निष्कपट हृदय को उठाओ और मुझे भेंट करो! अब मेरे लिए नगाड़े बजाओ! मैंने पूरे विश्व को आनंद से जगमगा दिया है! मैंने लोगों को अपने महिमामय मुख-मंडल के दर्शन कराए हैं! मैं गर्जन करूंगा! मैं विश्व को श्रेष्ठता की ओर ले जाऊंगा! पहले से ही लोगों पर मेरा आधिपत्य है! लोगों ने मुझे गौरवान्वित किया है! मैं नीले आकाश की ओर मुड़ता हूं और लोग मेरे साथ-साथ आते हैं। मैं लोगों के साथ चलता हूं और मेरे लोग मुझे घेर लेते हैं! लोगों के दिल आनंदित हैं,उनके गीत गगन भेदते हुए विश्व में हलचल मचाते हैं! विश्व अब धुंध से नहीं ढका है; अब न कहीं कीचड़ है, न मल का कोई ढेर है। विश्व के पवित्र लोगों! मेरी निगरानी में तुम्हारी सच्ची मुखाकृति प्रकट हुई है। तुम मलिनता से ढके इंसान नहीं हो, बल्कि हरिताश्म की तरह निर्मल संत हो, सभी मेरे परम प्रिय हो, मेरा परम आनंद हो! सभी चीज़ें फिर से सजीव हो रही हैं! सभी संत वापिस आकर मेरी सेवा कर रहे हैं, मेरे आत्मीय आलिंगन में प्रवेश कर रहे हैं, न अब रुदन कर रहे हैं, न अब व्याकुल हैं, मुझे समर्पित हो रहे हैं, मेरे घर लौट रहे हैं, और अपनी मातृभूमि में मुझे असीम प्रेम करते रहेंगे! जैसे हैं, वैसे ही! कहां है दु:ख! कहां हैं आंसू! कहां है देह! अब पृथ्वी नहीं है; स्वर्ग है सदैव के लिये। मैं सभी के लिये अवतरित होता हूं, और सभी जन मेरी स्तुति करते हैं। ये जीवन, ये सौंदर्य, अनंतकाल से और अनंतकाल तक, अपरिवर्तनीय रहेगा। राज्य में यही जीवन है।

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