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गुरुवार, 20 सितंबर 2018

विजयी कार्यों का आंतरिक सत्य (2)

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन, विजयी, आशीषें, परमेश्वर की इच्छा,

विजयी कार्यों का आंतरिक सत्य (2)



पूर्वतः तुम लोग राजाओं की तरह राज करना चाहते थे, और आज अभी भी तुम् लोगों को इससे पूर्णतः छुटकारा पाना बाकी है; तुम अभी भी राजाओं की तरह राज करना चाहते हो, स्वर्ग को सभांलना और पृथ्वी को सहारा देना चाहते हो। अब, जरा सोचो: क्या तुम ऐसी योग्यता रखते हो? क्या तुम बुद्धिहीन नहीं बने रहे हो? क्या तुम सब इसी यर्थाथवादिता की खोज में अपने ध्यान को समर्पित करते हो? तुम सब तो सामान्य मानवता भी नहीं रखते, क्या यह दुखदाई नहीं? इसलिये आज मैं केवल विजयी होने की, गवाही देने व अपनी क्षमता के विकास और पूर्ण बनाये जाने केपूर्ण मार्ग में प्रवेश करने की बात करता हूँ इसके अलावा अन्य कुछ भी नहीं कहता। कुछ लोग शुद्ध सत्य से थक जाते हैं और जब वे ये सब बातें सामान्य मानवता और लोगों की क्षमता के विकास के विषय देखते हैं, तो वे असंतुष्ट हो जाते हैं। जो सत्य से प्रेम नहीं करते उनको पूर्ण बनाना आसान नहीं होता है। जब तक तुम लोग आज प्रवेश करते हो, और कदम दर कदम परमेश्वर की इच्छा के अनुसार कार्य करते हो, क्या तुम्हारा सफाया हो सकता है? चीन के मुख्य भूभाग में किए गए बहुत सारे कार्यों के बाद बड़े पैमाने पर कार्य और बहुत से वचन कहे जाने के बाद क्या परमेश्वर आधे रास्ते में तुम्हें छोड़ देगा? क्या वह लोगों की अगुवाई अथाह कुंड में करेगा? आज मुख्य यह है कि तुम सब मनुष्य के तत्व को जानो, और यह कि तुम लोगों को किस में प्रवेश करना है, तुम्हें जीवन में प्रवेश की और स्वभाव में परिवर्तन की चर्चा करनी चाहिए और यह कि कैसे सचमुच विजयी होना है, और कैसे पूर्णतः परमेश्वर की आज्ञा को मानना है, कैसे परमेश्वर को अंतिम गवाही देनी है और मृत्युपर्यंत आज्ञाकारी बने रहना है। तुम्हें इन बातों पर केन्द्रित होना चाहिए, और जो बातें वास्तविक और महत्वपूर्ण नहीं लगती उन्हें पहले किनारे कर उन पर ध्यान नहीं देना चाहिए। आज तुम्हें मालूम होना चाहिये कि तुम पर विजय कैसे हो, और लोग खुस पर विजय उपरांत अपना आचरण कैसा रखते हैं। तुम यह कह सकते हो कि तुम पर विजय पा ली गयी है, पर क्या तुम मृत्युपर्यंत आज्ञाकारी रहोगे? संभावनाओं की परवाह किए बगैर तुम में पूरे अंत तक अनुसरण करने की क्षमता होनी चाहिए और तुम्हें किसी भी परिस्थितिवश परमेश्वर पर विश्वास नहीं खोना चाहिए। अतंतः तुम्हें गवाही के दो पक्ष प्राप्त करने हैं: अय्यूब की गवाही-मृत्यु तक आज्ञाकारिता और पतरस की गवाही - परमेश्वर का सर्वोच्च प्रेम। एक मामले में तुम्हें अय्यूब की तरह होना चाहिए, उसके पास कुछ भी सांसारिक संसाधन नहीं थे और शारीरिक पीड़ा से वह घिरा हुआ था, तब भी उसने यहोवा का नाम नहीं त्यागा। यह अय्यूब की गवाही थी। पतरस ने मृत्यु तक परमेश्वर से प्रेम रखा। जब वह मरा – जब उस क्रूस पर चढ़ाया गया - तब भी उसने परमेश्वर से प्रेम किया, उसने अपने हित या महिमामयी आशा की या अनावश्यक विचारों को स्थान नहीं दिया, और केवल परमेश्वर से प्रेम करने और परमेश्वर की व्यवस्था को पूर्णतः मानने की ही इच्छा की। गवाही देने के लिए विचार किये जाने से पूर्व तुम्हें ऐसा स्तर हासिल करना होगा, इस से पहले कि तुम ऐसे व्यक्ति बन जाओ जो विजय प्राप्त करने के बाद, पूर्णबनाया गया है। आज लोग यदि अपने सार तत्व को और अपने स्तर को सचमुच जानते तो क्या वे तब भी संभावनाओं और आशा को खोजते? जो तुम्हें मालूम होना चाहिए वह यह है किः परमेश्वर मुझे पूर्ण करे या ना करे मैं परमेश्वर के पीछे चलूंगा, जो कुछ उसने अभी किया है, वह हमारे लिए किया है, और वह अच्छा है ताकि हमारा स्वभाव परिवर्तित हो और हम शैतान के चंगुल से छूट जाएं, यह कि, अपवित्र धरती पर रहने के बावजूद हम अशुद्धता से मुक्त हो जायें, गंदगी और शैतान के प्रभाव को झटक कर हम शैतान के प्रभाव को पीछे छोड़ने की क्षमता प्राप्त कर लें। निश्चित रूप से तुमसे यही अपेक्षा है, पर परमेश्वर के लिए यह विजय मात्र है, ताकि लोग आज्ञाकारी होने का संकल्प करें और स्वयं को परमेश्वर के पूरे संचालन हेतु अर्पित करें, यही सब की जरूरत है। आज बहुत से लोगों पर विजय पाई जा चुकी है, परंतु उनके अंदर बहुत कुछ है जो विद्रोही और अवज्ञाकारी है। लोगों की सच्चाई का कद अब भी बहुत छोटा है, वे तभी ऊँचे होते हैं जब संभावनाएं और आशा होती है, उनकी अनुपस्थिति में वे नकारात्मक हो जाते हैं, और यहां तक परमेश्वर को छोड़ देने का विचार करते हैं। लोगों को सामान्य मानवता से जीवन पाने की अधिक इच्छा नहीं होती। यह नहीं चलेगा! इसलिये मुझे अब भी विजय की बात करनी चाहिए। सचमुच, पूर्णता विजय के साथ ही प्रगट होती है, तुम्हारे विजयी होते ही, पूर्णता के प्रथम प्रभाव की भी प्राप्ति होती है। विजय पाने और पूर्णता पाने में अंतर लोगों में आए परिर्वतन पर आधारित होता है, विजय पाना पूर्णता पाने का प्रथम चरण है, परंतु यह साबित नहीं करता कि वे पूरी तरह पूर्ण बना दिए गए, ना ही यह साबित करता कि परमेश्वर ने उन्हें पूरी तरह हासिल कर लिया है। लोगों के विजयी होने के बाद, उनके स्वभाव में कुछ परिवर्तन आते हैं परंतु ये परिवर्तन उन लोगों कि तुलना में बहुत कम है जिन्हें परमेश्वर ने ग्रहण कर लिए है। आज जो हो रहा है वह लोगों को पूर्ण बनाने का आरम्भिक कार्य है- उन पर विजय पाना-और अगर तुम पर विजय नहीं हो पाती है तो तुम्हारे पास पूर्ण होने और परमेश्वर द्वारा पूर्णतः ग्रहण किये जाने का कोई उपाय नहीं होगा। तुम सिर्फ ताड़ना और न्याय की कुछ बातें ही पाओगे, जो कि तुम्हारे पूरे हृदय के परिवर्तन में असमर्थ होगी। तो तुम उनमें से एक होगे जिन्हें त्याग दिया गया है, यह इस बात से अलग ना होगा कि मानो जैसे मेज पर स्वादिष्ट भोजन देखकर भी उसे खा नहीं सकें, क्या यह दुखदायी नहीं? और इसलिये तुम्हें बदलाव की खोजकरनी चाहिए, चाहे विजय पाने क चाहे पूर्ण बनाने को, दोनों का संबंध इस बात से है कि क्या तुममें बदलाव आये हैं या नहीं, तुम आज्ञाकारी हो या नहीं-और इससे यह निश्चित होगा कि क्या तुम परमेश्वर द्वारा ग्रहण किए जा सकते हो या नहीं। जान लो कि "विजय पाना" और "पूर्णता पाना" केवल तुम्हारे अंदर आए बदलाव और आज्ञाकारिता की हद पर निर्भर करता है। साथ ही इस पर कि तुम्हारा परमेश्वर के लिए प्रेम कितना सच्चा है। आज जिस बात की जरूरत है, वह यह है कि तुम पूरी तरह पूर्ण हो सकते हो, परंतु पहले तुम पर विजय पाना आवश्यक है, तुम्हें परमेश्वर की ताड़ना और न्याय का पर्याप्त ज्ञान होना अनिवार्य है, अनुसरण करने का विश्वास होना चाहिए ऐसा बनना चाहिए जो बदलाव को खोजे ताकि प्रभाव को ग्रहण कर सके। तब तुम ऐसे होगे जो पूर्ण बनाये जाने की खोज करता है। तुम सबको यह समझना होगा कि पूर्ण किए जाने के दौरान य तुम लोगों को जीता जायेगा और जीते जाने के दौरान तुम सब पूर्ण होगे। आज, तुम पूर्ण होने का प्रयास कर सकते हो अपने बाहरी मनुष्यत्व में बदलाव और क्षमताओं में विकास भी कर सकते हो, परंतु प्रमुख बात यह है कि तुम यह समझ सको कि जो कुछ आज परमेश्वर कर रहा है वह सार्थक और लाभकारी हैः यह तुम्हें गंदगी की धरती पर जीने उस अपवित्रता से बाहर निकलने और उस गंदगी को झटकने की क्षमता प्रदान करता है, यह तुम्हें शैतान के प्रभाव से पार पाने में और शैतान के अंधकारमय प्रभाव को पीछे छोड़ने की क्षमता प्रदान करता है और इन बातों पर ध्यान देने से, तुम इस अपवित्र भूमि पर सुरक्षा प्राप्त करते हो। आखिरकार तुम्हें क्या गवाही देने को कहा जाएगा? तुम एक अपवित्र भूमि पर रहते हुए भी पवित्र बनने में समर्थ हो, और आगे फिर अपवित्र और अशुद्ध नहीं होगे, तुम शैतान के अधिकार क्षेत्र में रहकर भी अपने आपको उसके प्रभाव से छुड़ा लेते हो, और शैतान द्वारा ग्रसित और सताए नहीं जाते, और तुम सर्वशक्तिमान के हाथों में रहते हो। यही गवाही है, और शैतान से युद्ध में विजय का साक्ष्य है। तुम शैतान को त्यागने में सक्षम हो, जो जीवन तुम जीते हो उसमें शैतान प्रकाशित नहीं होता, परंतु क्या यह वही है जो परमेश्वर ने मनुष्य के सृजन के समय चाहा था कि मनुष्य इन्हें प्राप्त करे: सामान्य मानवता, सामान्य युक्तता, सामान्य अंतर्दृष्टि, परमेश्वर के प्रेम हेतु सामान्य संकल्पशीलता, और परमेश्वर के प्रति निष्ठा। यह परमेश्वर के प्राणी मात्र की गवाही है। तुम कहते हो कि "हम अपवित्र भूमि पर रहते हैं, परंतु परमेश्वर की सुरक्षा के कारण, उसकी अगुवाई के कारण क्योंकि उसने हम पर विजय प्राप्त की है, हमने शैतान के प्रभाव से मुक्ति पाई है। कि हम आज आज्ञा मान पाते हैं यह भी इस बात का प्रभाव है कि परमेश्वर ने हम पर विजय पाई है, और यह इसलिये नहीं कि हम अच्छे हैं, या हम सहज भाव से परमेश्वर से प्रेम करते हैं। यह इसलिये है कि परमेश्वर ने हमें चुना, और हमें पूर्वनिर्धारित किया, इसलिए हम पर आज विजय पाई गई है, हम उसकी गवाही देने में समर्थ हुए हैं, और उसकी सेवा कर सकते हैं, ऐसा इसलिये भी कि उसने हमें चुना, और हमारी रक्षा की, इस कारण हमें शैतान के अधिकार से बचाया और छुड़ाया गया और हम गंदगी को पीछे छोड़ लाल अजगर के देश में शुद्ध हो सक हैं।" साथ ही, जैसे आज तुम बाहरी रूप से जिओगे वह यह प्रगट करेगा कि तुम सामान्य मानवता धारण करते हो, कि तुम्हारी बातें तर्कपूर्ण हो, कि तुम एक सामान्य व्यक्ति की तरह हो। जब दूसरे तुम लोगो को देखें तो वे यह ना कहें कि क्या यह बड़े लाल अजगर का स्वरूप नहीं? बहनों का स्वभाव बहनों की तरह नहीं है, भाइयों का स्वभाव भाइयों की तरह नहीं है, उनमें संतो का सा कुछ भी शिष्टाचार नहीं। वे ये ना कहें, कोई आश्चर्य नहीं कि परमेश्वर ने कहा कि वे मोआब के वंशज हैं, वह बिल्कुल सही था। अगर लोग तुम सबको देखकर कहें, "हालांकि परमेश्वर ने तुम्हें मोआब का वंशज कहा है, परंतु जिस तरह का जीवन तुम जीते हो वह ये साबित करता कि तुमने शैतान के प्रभाव को पीछे छोड़ दिया है; हालांकि वे बातें अब भी तुम्हारे भीतर हो फिर भी तुम उन चीजों की ओर से मुंह मड़ने में सफल रहे।" तब यह दिखाता है कि तुम पर पूर्णतः विजय प्राप्त कर ली गई है। तुम जिस पर विजय प्राप्त कर ली गई है और बचा लिए गये हो, कहोगे, "यह सत्य है कि हम मोआब के वंशज हैं, परंतु हमें परमेश्वर ने बचा लिया है, हालांकि मोआब के वंशज त्यागे गए और श्रापित थे, और इस्रायलियों द्वारा अन्यजातियों में निर्वासित किए गए थे - यह परमेश्वर की आज्ञानुसार था, यह सत्य है, और सबके द्वारा मान्य है। परंतु आज हम उस प्रभाव से बच निकले हैं। हम अपने पुरखों का तिरस्कार करते हैं, हम अपने पुरखों की ओर अपनी पीठ फेर लेने को तैयार हैं, उसे पूर्णतः त्यागकर परमेश्वर की पूर्ण व्यवस्था का पालन करना चाहते हैं, परमेश्वर की इच्छानुसार चलना चाहते हैं और वह हमसे जिन बातों कि आशा करता है उन्हें हम हासिल करना चाहते हैं। और परमेश्वर की इच्छा का संतोष पाना चाहते हैं। मोआब ने परमेश्वर को धोखा दिया, उसने परमेश्वर की इच्छा अनुसार कार्य नहीं किया और परमेश्वर ने उस से घृणा की। परंतु हमें परमेश्वर के हृदय का ख्याल रखना चाहिये, और आज जब कि हम परमेश्वर की इच्छा को जानते हैं, तो हम परमेश्वर को धोखा नहीं दे सकते, और हमें अपने पुरखों को भी त्यागना होगा!" पहले मैंने बड़े लाल अजगर को त्यागने के बारे में बात की - और आज खासतौर से लोगों के पुरातन पुरखों का त्याग करना है। यह लोगों की विजय की एक गवाही है, और आज तुमने कैसे प्रवेश किया यह मायने नहीं रखता परंतु तुम्हारी गवाही इस क्षेत्र में कमजोर नहीं होनी चाहिए।
लोगों की क्षमताएं बहुत निर्बल हैं, उनमें सामान्य मानवता की बेहद कमी है, उनकी प्रतिक्रिया धीमी, अत्यंत सुस्त है, शैतान की भ्रष्टता ने उन्हें जकड़ कर मंद बुद्धि कर दिया है, और वे हालांकि एक दो वर्षों में पूर्णतः परिवर्तित नहीं हो सकते, उन्हें सहयोग करने का संकल्प लेना होगा। यह कहा जा सकता है कि यह भी शैतान के समक्ष गवाही है। आज की गवाही विजय के कार्य से प्राप्त प्रभाव है, साथ ही साथ भविष्य में अनुकरण करने वालों हेतु नमूना और आदर्श है। भविष्य में, यह सब राष्ट्रों में फैल जाएगी, चीन में जो किया गया वह सब राष्ट्रों में फैल जाएगा। मोआब के वंशज विश्व में सब लोगों में निम्न है। कुछ लोग पूछते हैं, कि क्या हाम के वंशज सबसे निम्न नहीं? बड़े लाल अजगर की संतान और हाम के वंशज अलग चीजों का प्रतिनिधित्व करते हैं, और हाम के वंशज एक अलग मामला हैः यह मायने नहीं रखता कि वे किस प्रकार से श्रापित हैं, वे फिर भी नूह के वंशज हैं, मोआब उत्पत्ति से ही शुद्ध नहीं था, वह व्याभिचारिता से आया था, और यही अलगाव है, हालांकि दोनों श्रापित हैं, उनकी हैसियत समान नहीं थी, और इसलिए मोआब के वंशज सब लोगों में निम्न हैं - और सर्वस्व निम्न लोगों पर विजय से अधिक संतोषजनक सत्य कुछ भी नहीं। अंतिम समय के कार्य सारे नियम तोड़ते हैं, और यह मायने नहीं रखता कि तुम सजा पाए हुए हो या श्रापित हो, जब तक तुम मेरे कार्य में सहायक हो, और विजय के कार्य हेतु लाभकारी हो, और यह मायने नहीं रखता कि तुम मोआब के वंशज हो या बड़े लाल अजगर की संतान, जब तक तुम कार्य के इस चरण में परमेश्वर के प्राणी होने की जिम्मेदारी का निर्वाह करते हो और अपना सर्वोत्तम देते हो, तब ही निर्धारित प्रभाव प्राप्त होगा। तुम बड़े लाल अजगर की संतान और मोआब के वंशज हो; कुल मिलाकर, जो कोई लहू और मांस से बना है, वह परमेश्वर का प्राणी है, और उसे परमेश्वर ने ही बनाया है। तुम परमेश्वर के प्राणी हो, तुम्हारी अपनी कोई पसंद नहीं होनी चाहिये और यही तुम्हारा दायित्व है। आज सृजनहार के कार्य समस्त विश्व के लिये हैं। तुम किसी भी वंश के क्यों ना हो परंतु सबसे पहले तुम लोग परमेश्वर के प्राणियों में से एक हो, मोआब के वंशज - परमेश्वर के प्राणियों का एक हिस्सा हो, बस यह कि तुम सबका मूल्य निम्न है। चूंकि आज परमेश्वर के कार्य समस्त प्राण्यिों में संचालित हैं, और समस्त ब्रम्हांड उसका लक्ष्य है, सृजनहार किसी भी जन, तत्व या वस्तु का अपने कार्य करने हेतु चयन करने को स्वतंत्र है। वह तब तक इस बात की चिंता नहीं करता कि तुम किस के वंशज हो जब तक कि तुम उसके एक प्राणी हो, जब तक कि तुम उसके कार्य के लिये उपयोगी हो - उसकी विजय और गवाही के कार्य - बिना किसी संदेह के तुम में वह अपना कार्य करता है। यह लोगों की रूढ़िवादी सोच को कुचल देता है, जो यह है कि परमेश्वर कभी भी अन्य जातियों के मध्य कार्य नहीं करेगा, विशेषतः जो निम्न और श्रापित हैं, उनके लिए जो श्रापित हैं, उनकी आगामी पीढ़ियां सदाकाल श्रापित रहेंगी उन्हें कभी भी उद्धार का अवसर प्राप्त नहीं होगा, परमेश्वर कभी भी अन्य जाति की भूमि पर उतर कर कार्य नहीं करेगा और अपवित्र भूमि पर कभी अपने कदम नहीं रखेगा, क्योंकि वो पवित्र है। जान लो कि परमेश्वर समस्त प्राणियों का परमेश्वर है, वह स्वर्ग, पृथ्वी और समस्त वस्तुओं पर अधिकार रखता है, और केवल इस्राएल के लोगों का परमेश्वर नहीं है। इसलिए, चीन में यह कार्य अत्यंत महत्वपूर्ण है, और क्या यह समस्त राष्ट्रों में नहीं फैलेगा? भविष्य की महान गवाही चीन तक सीमित ना रहेगी, यदि जब परमेश्वर ने तुम लोगों को जीत लिया है, तो क्या दुष्ट आत्माएं मान सकेंगी? वे विजय किये जाने का अर्थ या परमेश्वर की सामर्थ को नहीं समझतीं, और केवल जब परमेश्वर के समस्त विश्व में चुने हुए लोग इस कार्य के चरम प्रभाव का अवलोकन करेंगे तब सब प्राणी जीत लिए जाएंगे; कोई भी मोआब के वंशजों से अधिक पिछड़ा और भ्रष्ट नहीं है। केवल यदि इन लोगों पर विजय पाई जा सकती है - जो कि सबसे अधिक भ्रष्ट हैं, जिन्होंने परमेश्वर को स्वीकार नहीं किया, या इस बात पर विश्वास नहीं किया कि परमेश्वर है, वे जब जीत लिए जायेंगे, और अपने मुख से परमेश्वर को स्वीकार करेंगे, उसकी स्तुति करेंगे और उससे प्रेम करने में समर्थ होंगे - यह विजय की गवाही होगी? हालांकि तुम लोग पतरस नहीं, परंतु तुम सब में पतरस का चरित्र जीवंत है, तुम लोग पतरस की गवाही धारण करने योग्य हो, और अय्यूब की भी, और यही सबसे महान गवाही है। अंततः तुम कहोगें: हम इस्राएली नहीं हैं, परंतु मोआब के त्यागे हुए वंशज हैं, हम पतरस नहीं, उसकी सी क्षमता हम में नहीं, या हम अय्यूब के समान नहीं, और हम पौलुस का परमेश्वर के लिए कष्ट सहने के संकल्प से तुलना भी नहीं कर सकते, उसकी तरह परमेश्वर को समर्पित नहीं हो सकते, हम इतने पिछड़े हुए हैं इसलिए हम परमेश्वर की आशीषों का आनंद लेने के अयोग्य हैं। परमेश्वर ने फिर भी आज हमें उठाया है, इसलिए हम परमेश्वर को संतुष्ट करें – हालांकि न तो हम में क्षमता है और न ही पात्रता, लेकिन हम परमेश्वर को संतुष्ट करने को तैयार हैं - यही हमारा संकल्प है। हम मोआब के वंशज हैं, और हम श्रापित हैं। यह परमेश्वर की आज्ञा थी, और हम इसे बदलने में असमर्थ हैं, परंतु हमारा जीवन और हमारा ज्ञान बदल सकता है, और हम परमेश्वर को संतुष्ट करने हेतु संकल्पित हैं। जब तुम के पास यह संकल्प हो, यह सिद्ध करेगा कि तुमने विजय किये जाने की गवाही दी है।

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