शुद्ध प्रेम बिना दोष के
I
प्रेम एक शुद्ध भावना है, शुद्ध बिना किसी भी दोष के।
अपने हृदय का प्रयोग करो, प्रेम के लिए,
अनुभूति के लिए और परवाह करने के लिए।
अपने हृदय का प्रयोग करो, प्रेम के लिए,
अनुभूति के लिए और परवाह करने के लिए।
यदि तुम प्रेम करते हो, तो धोखा नहीं देते हो,
शिकायत नहीं करते, ना मुँह फेरते हो,
बदले में कुछ पाने की, चाह नहीं रखते हो।
यदि तुम प्रेम करते हो, तो बलिदान करोगे,
मुश्किलों को स्वीकार करोगे और परमेश्वर के साथ एक हो जाओगे,
परमेश्वर के साथ एक हो जाओगे।
प्रेम में दूरी नहीं है और अशुद्ध कुछ भी नहीं।
अपने हृदय का प्रयोग करो, प्रेम के लिए,
अनुभूति के लिए और परवाह करने के लिए।
II
तुम त्याग दोगे अपना यौवन, परिजन और भविष्य जो दिखायी देता,
त्याग दोगे अपना विवाह, परमेश्वर के लिए सब कुछ दे दोगे।
वरना तुम्हारा प्रेम, प्रेम नहीं है,
बल्कि धोखा है, परमेश्वर का विश्वासघात है।
प्रेम में नहीं है संदेह, चालाकी या धोखा।
अपने हृदय का प्रयोग करो, प्रेम के लिए,
अनुभूति के लिए और परवाह करने के लिए।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
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