देखते हैं ईश्वर अपनी सृष्टि, हैं देखते, दिन-प्रतिदिन, निहारते।
विनय से छिप कर वे, मानव-जीवन परखते, इंसाँ के हर काम देखते।
कौन हैं जो सच में प्रभु को समर्पित हुए?
किसी ने किया कभी सच्चाई की साधना?
किसने माना प्रभु को ह्रदय से, वादे निभाए और,
कर्तव्य पूरे किये?
किसने बसाया प्रभु को कभी अपने ह्रदय में?
किसने प्रभु को अपने प्राणों सा प्यारा माना?
किसने देखा उनके दिव्य पूर्ण रूप को,
और ईश्वर को छूना चाहा?
जब डूबने लगता है मानव, बचाते उनको परमेश्वर,
जब जीवन का नहीं कर पाते सामना, उठाते उनको परमेश्वर
और देते हैं हौंसला फिर जीने के लिए,
उन्हें देते हैं दूसरा मौका।
तो वे मानेंगे उन्हें आधार अपना, जब वे करें अवज्ञा, तो इस मौके पर, प्रभु देते हैं अपना परिचय। प्रभु देखते हैं लोगों का स्वभाव पुराना, और करुणा कर देते हैं मौका पश्चाताप का और नए आरंभ का। जब तक है बाकि उनमें एक सांस भी, प्रभु बचाएंगे उनको मौत से। कितनी बार देखे हैं लोगों ने उनके बढ़ते हाथ? कितनी बार उनकी आँखों में दया? और पाई हर पल उनके चेहरे पर मुस्कान? और कितनी बार उनके रोष और वैभव को देखा? जब डूबने लगता है मानव, बचाते उनको परमेश्वर, जब जीवन का नहीं कर पाते सामना, उठाते उनको परमेश्वर और देते हैं हौंसला फिर जीने के लिए, उन्हें देते हैं दूसरा मौका। तो वे मानेंगे उन्हें आधार अपना, जब वे करें अवज्ञा, तो इस मौके पर, प्रभु देते हैं अपना परिचय। हालांकि उन्हें कभी मानव ने जाना नहीं, उनकी दुर्बलताओं पर प्रभु कभी हँसते नहीं; उनके कष्टों को देते हमदर्दी, दंड देते हैं तभी जब वे हो जाते दूर। जब डूबने लगता है मानव, बचाते उनको परमेश्वर, जब जीवन का नहीं कर पाते सामना, उठाते उनको परमेश्वर प्रार्थना और देते हैं हौंसला फिर जीने के लिए, उन्हें देते हैं दूसरा मौका। तो वे मानेंगे उन्हें आधार अपना, जब वे करें अवज्ञा, तो इस मौके पर, प्रभु देते हैं अपना परिचय। "वचन देह में प्रकट होता है" से
तो वे मानेंगे उन्हें आधार अपना, जब वे करें अवज्ञा, तो इस मौके पर, प्रभु देते हैं अपना परिचय। प्रभु देखते हैं लोगों का स्वभाव पुराना, और करुणा कर देते हैं मौका पश्चाताप का और नए आरंभ का। जब तक है बाकि उनमें एक सांस भी, प्रभु बचाएंगे उनको मौत से। कितनी बार देखे हैं लोगों ने उनके बढ़ते हाथ? कितनी बार उनकी आँखों में दया? और पाई हर पल उनके चेहरे पर मुस्कान? और कितनी बार उनके रोष और वैभव को देखा? जब डूबने लगता है मानव, बचाते उनको परमेश्वर, जब जीवन का नहीं कर पाते सामना, उठाते उनको परमेश्वर और देते हैं हौंसला फिर जीने के लिए, उन्हें देते हैं दूसरा मौका। तो वे मानेंगे उन्हें आधार अपना, जब वे करें अवज्ञा, तो इस मौके पर, प्रभु देते हैं अपना परिचय। हालांकि उन्हें कभी मानव ने जाना नहीं, उनकी दुर्बलताओं पर प्रभु कभी हँसते नहीं; उनके कष्टों को देते हमदर्दी, दंड देते हैं तभी जब वे हो जाते दूर। जब डूबने लगता है मानव, बचाते उनको परमेश्वर, जब जीवन का नहीं कर पाते सामना, उठाते उनको परमेश्वर प्रार्थना और देते हैं हौंसला फिर जीने के लिए, उन्हें देते हैं दूसरा मौका। तो वे मानेंगे उन्हें आधार अपना, जब वे करें अवज्ञा, तो इस मौके पर, प्रभु देते हैं अपना परिचय। "वचन देह में प्रकट होता है" से
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