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बुधवार, 13 फ़रवरी 2019

प्रश्न 35: धार्मिक दुनिया के अधिकांश लोग मानते हैं कि पादरियों और प्राचीन लोगों को परमेश्वर के द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया है, और यह कि वे सभी धार्मिक कलीसियाओं में परमेश्वर की सेवा करते हैं; अगर हम पादरियों और प्राचीन लोगों का अनुसरण और आज्ञा-पालन करते हैं, तो हम वास्तव में परमेश्वर का ही अनुसरण और आज्ञा-पालन करते हैं। यथार्थतः मनुष्य का अनुसरण और आज्ञा-पालन करने का क्या मतलब है, और वास्तव में परमेश्वर का अनुसरण और आज्ञा-पालन करने का क्या अर्थ है, ज्यादातर लोग सच्चाई के इस पहलू को नहीं समझते हैं, तो कृपया हमारे लिए यह सहभागिता करो।

उत्तर:
धर्म में, कुछ लोग सोचते हैं कि सभी धार्मिक पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा चुने और प्रतिष्ठित किये जाते है। इसलिए लोगों को उनका आज्ञापालन करना चाहिए। क्या इस तरह की धारणा का बाइबल में कोई आधार है? क्या प्रभु के वचन में इसका कोई प्रमाण है? क्या इसमें पवित्र आत्मा की गवाही और पवित्र आत्मा के कार्य की स्वीकृति है? अगर सारे जवाब 'नहीं' हैं, तो क्या बहुमत का यह विश्वास कि सभी पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा चुने और प्रतिष्ठित किए जाते हैं, लोगों की अवधारणाओं और कल्पनाओं से नहीं आया है? आइए इस बारे में विचार करें। व्यवस्था के युग में मूसा को परमेश्‍वर द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया था। क्या इसका यह मतलब है कि व्यवस्था के युग में सभी यहूदी नेताओं को परमेश्‍वर द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया था? अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु के 12 प्रेरितों को स्वयं प्रभु यीशु द्वारा चुना और अभिषिक्त किया गया था। क्या इसका यह मतलब है कि अनुग्रह के युग में सभी पादरियों और एल्डर्स को स्वयं परमेश्‍वर द्वारा चुना और प्रतिष्ठित किया गया था? बहुत से लोग निर्धारित नियमों का पालन करना पसंद करते हैं और तथ्यों के अनुसार चीजों को नहीं देखते हैं। फलस्वरूप, वे लोगों की अंधवत् पूजा करते हैं और उनका अनुसरण करते हैं। यहाँ क्या समस्या है? क्यों लोग इन चीज़ों के बीच फर्क नहीं कर पाते हैं? वे इन चीज़ों का सच क्यों नहीं ढूँढ सकते हैं?
बाइबल में जो लिखा है उससे हम देख सकते हैं कि परमेश्‍वर कार्य के हर युग में, अपने कार्य के साथ समन्वय करने के लिए परमेश्‍वर कुछ लोगों को चुनते और अभिषिक्त करते हैं। और स्‍वयं परमेश्‍वर द्वारा नियुक्‍त किए गए लोग उनके वचन के द्वारा स्‍वीकृत होते हैं। जैसे कि व्यवस्था के युग के दौरान, परमेश्‍वर ने इस्‍त्राएलियो का नेतृत्व करने के लिए मूसा को अभिषिक्त किया। यह परमेश्‍वर के वचनों से साबित होता है। ठीक जैसे कि बाइबल में कहा गया है, "इसलिये अब सुन, इस्राएलियों की चिल्‍लाहट मुझे सुनाई पड़ी है: और मिस्रियों का उन पर अन्धेर करना भी मुझे दिखाई पड़ा है। इसलिये आ, मैं तुझे फ़िरौन के पास भेजता हूँ, कि तू मेरी इस्राएली प्रजा को मिस्र से निकाल ले आए" (निर्गमन 3:9-10)। अनुग्रह के युग में, प्रभु यीशु ने 12 प्रेरितों को कलीसियाओं का नेतृत्‍व करने के लिए अभिषिक्त किया, ऐसा परमेश्‍वर के वचन से भी प्रमाणित हुआ है। जैसा कि प्रभु यीशु ने पतरस को अभिषिक्त करते समय कहा: "हे शमौन, यूहन्ना के पुत्र, क्या तू मुझ से प्रीति रखता है? … मेरी भेड़ों को चरा" (यूहन्ना 21:17)। "मैं तुझे स्वर्ग के राज्य की कुंजियाँ दूँगा: और जो कुछ तू पृथ्वी पर बाँधेगा, वह स्वर्ग में बंधेगा; और जो कुछ तू पृथ्वी पर खोलेगा, वह स्वर्ग में खुलेगा" (मत्ती 16:19)। हम देख सकते हैं कि परमेश्‍वर द्वारा नियुक्‍त किए और उपयोग में लाए गए लोग परमेश्‍वर के वचन द्वारा स्‍वीकृत किए जाते हैं, कम से कम पवित्र आत्‍मा के कार्य की स्‍वीकृति तो होनी चाहिए। उनके सब कार्य परमेश्‍वर द्वारा समर्थित हैं। उनके कार्य और नेतृत्व का आज्ञापालन करना परमेश्‍वर की आज्ञापालन करना है। हममें से जो कोई भी परमेश्‍वर द्वारा अभिषिक्त और प्रयुक्त व्यक्ति का विरोध करता है, वह परमेश्‍वर का विरोध कर रहा है और परमेश्‍वर द्वारा श्रापित और दण्डित किया जाएगा। ठीक जैसे कि व्यवस्था के युग में, कोरह, दातान और उनके लोगों ने मूसा का विरोध किया था। अंत में क्या हुआ? वे सीधे परमेश्‍वर द्वारा दण्डित किये गए थे। परमेश्‍वर ने धरती को खुलने और उन्हें निगल जाने के लिए प्रेरित किया। हर कोई जानता है कि यह एक सच्चाई है। व्यवस्था के युग में, प्रभु यीशु द्वारा अभिषिक्त सभी प्रेरितों को प्रभु के वचन की स्वीकृति है। परन्तु क्या आज के धार्मिक पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा अभिषिक्त हैं? क्या यह प्रभु के वचन द्वारा प्रमाणित है? उनमें से ज्यादातर धर्मशास्त्र के विद्यालयों द्वारा पैदा किये गए हैं, और उनके पास धर्मशास्त्र में स्नातक प्रमाणपत्र हैं, जिन पर वे पादरी बनने के लिए भरोसा करते हैं, इसलिए नहीं क्योंकि पवित्र आत्मा ने व्यक्तिगत रूप से उनकी गवाही दी या उनका उपयोग किया। क्या यह एक सच्चाई नहीं है? हममें से किसने पवित्र आत्‍मा को निजी रूप से किसी पादरी की गवाही देते या उसे अभिषिक्‍त करते देखा है? ऐसा कभी नहीं होता है। अगर वे वास्तव में प्रभु द्वारा अभिषिक्त किए जाते हैं, तो उनके पास निश्चित रूप से पवित्र आत्मा की सच्ची गवाही और गवाह के रूप में कई विश्वासी होंगे। इसलिए, सभी धार्मिक पादरी और एल्डर्स प्रभु के द्वारा अभिषिक्त नहीं हैं। यह निश्चित है! मैंने सुना है कि ऐसे भी पादरी हैं जो नहीं मानते हैं की प्रभु यीशु पवित्र आत्मा द्वारा गर्भाधान से आये। उन्हें नहीं लगता है कि "पवित्र आत्मा द्वारा गर्भाधान" का कोई आधार है और विज्ञान के अनुरूप है। इसकी संभावना और भी कम है कि ये लोग मान लें कि मसीह परमेश्‍वर की अभिव्यक्ति हैं। अगर ऐसे पादरी उस दौरान होते, जिस समय प्रभु यीशु ने काम किया था, तो उन्होंने निश्चित रूप से प्रभु यीशु को स्वीकार नहीं किया होता। तो उन्होंने अंतिम दिनों के अवतरित परमेश्‍वर के प्रकटन और काम के साथ किस प्रकार से व्यवहार किया होता? वे सब यहूदी मुख्य पादरियों, लेखकों और फरीसियों जैसे होता, प्रभु यीशु को गुस्से से धिक्कार रहे होते और उनका विरोध कर रहे होते। क्या ऐसे पादरी और एल्डर्स वे लोग हैं जो सचमुच परमेश्‍वर की आज्ञापालन करते हैं? ये यहाँ तक कि देह-धारी परमेश्‍वर में भी विश्वास नहीं करते हैं, और ऊपर से देह-धारी परमेश्‍वर द्वारा अभिव्यक्त सत्य को भी स्वीकार नहीं करते हैं। क्या ये लोग यीशु विरोधी नहीं हैं? तो क्या यह मत कि "सभी धार्मिक पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा अभिषिक्त और उपयोग किये जाते हैं" अभी भी मान्य है? अगर हम ज़ोर देते हैं कि ये पादरी और एल्डर्स प्रभु द्वारा अभिषिक्त और उपयोग किये जाते हैं, तो क्या यह परमेश्‍वर की बदनामी और ईशनिंदा नहीं है? क्या परमेश्‍वर ऐसे नास्तिकों और यीशु विरोधियों को परमेश्‍वर के चुने लोगों का नेतृत्व करने के लिए अभिषिक्त और उपयोग करेंगे? क्या ऐसा दृष्टिकोण बहुत ही विवेकहीन, बहुत ही भ्रामक नहीं है? क्या ये तथ्यों को मरोड़ना और काले और सफ़ेद को उलझाना नहीं है?
कुछ संवाद के बाद अब हम सबको स्पष्ट हैं। परमेश्‍वर द्वारा अभिषिक्त और प्रयुक्त सभी लोगों की परमेश्‍वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से गवाही दी जाती है, और उनके पास कम से कम पवित्र आत्मा के कार्य की स्वीकृति और उसके प्रभाव हैं, और वे, जीवन आपूर्ति और सच्चा मार्गदर्शन पाने में, परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों की सहायता कर सकते हैं। क्योंकि परमेश्‍वर धर्मी हैं, पवित्र हैं, परमेश्‍वर द्वारा अभिषिक्त और प्रयोग किये गए सभी लोग निश्चित रूप से परमेश्‍वर की इच्छा के अनुकूल हैं। वे निश्चय ही पाखंडी फारसी नहीं होंगे, तो आइये आज के धार्मिक पादरियों और अग्रणियों पर एक नजर डालते हैं। उनमें से ज्यादातर धर्मशास्त्र के विद्यालयों द्वारा पैदा किये जाते हैं, ना कि परमेश्‍वर द्वारा व्यक्तिगत रूप से अभिषिक्त और प्रयोग किये जाते हैं। वे मात्र धर्मशास्त्र और बाइबल का अध्ययन करते हैं। उनके कार्य और प्रवचन केवल बाइबल के ज्ञान, सिद्धांत, या बाइबल के पात्रों और कहानियों, ऐतिहासिक पृष्ठभूमियों, इत्यादि के बारे में बात करने तक केन्द्रित होते हैं। वे जो अभ्यास करते हैं वह भी सिर्फ लोगों को धार्मिक रस्मों का अभ्यास करना और नियमों का पालन करना सिखाना है। वे परमेश्‍वर के वचन के सत्य के बारे में संवाद करने की ओर कभी ध्यान नहीं देते हैं, ना ही वे परमेश्‍वर के वचन का अभ्यास और अनुभव करने या परमेश्‍वर की आज्ञा पालन करने के लिए लोगों का नेतृत्व करते हैं। वे कभी भी चर्चा नहीं करते हैं कि किस प्रकार से स्वयं को और जीवन में प्रवेश के सच्चे अनुभवों को जाने, और इसके अलावा परमेश्‍वर के सच्चे ज्ञान के बारे में कभी भी चर्चा नही करते हैं। क्या ऐसे कार्य और उपदेश पवित्र आत्मा के कार्य को पा सकते हैं? क्या ऐसी सेवा परमेश्‍वर के इरादों को संतुष्ट कर सकती है? क्या यह हमें सच्चाई का अभ्यास करने और परमेश्‍वर में विश्वास के सही मार्ग की ओर ले जा सकता है? बाइबल को इस तरह समझा कर, क्या वे अपने ही मार्ग पर नहीं जा रहे और परमेश्‍वर का विरोध नहीं कर रहे? विशेष रूप से जब सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर सत्य को व्यक्त कर रहे हों, और अंतिम दिनों का अपना न्याय का कार्य कर रहे हों, तब ये धार्मिक अग्रणी स्पष्ट रूप से जानते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचन सब सत्य हैं और लोगों को शुद्ध कर सकते हैं, उन्हें बचा सकते हैं, लेकिन तब भी वे नहीं ढूँढ़ते और स्वीकार करते हैं। इससे भी ज़्यादा घृणास्पद यह है कि ये विश्वासियों को सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर के वचनों को पढ़ने या परमेश्‍वर की आवाज़ को सुनने नहीं देते हैं। अपने पद और जीविका को बचाने के लिए, ये सर्वशक्तिमान परमेश्‍वर की बदनामी और निंदा करते हैं, यहाँ तक कि ईसाई मत प्रचारकों को गिरफ्तार करने और उनके ऊपर अत्याचार करने के लिए शैतानी प्रशासन, सीसीपी साथ समन्वय कर रहे हैं। इन पादरियों और एल्डर्स के कार्य और आचरण किस प्रकार उन फरीसियों से अलग हैं जिन्होंने प्रभु यीशु का पुराने दिनों में विरोध किया था? क्या ये सच्चाई का मार्ग अपनाने में हम लोगों के लिए बाधा नहीं हैं? ऐसे सत्‍य से नफरत करने वाले, परमेश्‍वर विरोधी लोग कैसे परमेश्‍वर द्वारा अभिषिक्त और उपयोग किये जा सकते हैं? क्या परमेश्‍वर ऐसे सत्‍य से नफरत करने वाले लोगों को, जो कि परमेश्‍वर की इच्छा में बाधा डालते हैं, परमेश्‍वर के चुने हुए लोगों का नेतृत्व करने के लिए अभिषिक्त करेंगे? बेशक नहीं। यही सत्य है!
धार्मिक मंडलियों में कुछ विवेकहीन लोग अक्सर नियमों को गढ़ने के लिए बाइबल के शब्दों का दुरुपयोग करते हैं। उनका दावा है कि पाखंडी फरीसी और धार्मिक पादरी सभी परमेश्वर द्वारा अभिषिक्त और उपयोग किये जाते हैं। क्या यह गंभीर रूप से परमेश्वर का विरोध और निंदा करना नहीं है? बहुत से लोग यह भेद करना जानते ही नहीं हैं। वे प्रभु पर विश्वास करते हैं किन्तु उनकी स्तुति नहीं करते, बल्कि उपहार, हैसियत और शक्ति की वकालत करते हैं, और पादरियों और एल्डर्स में भी अन्धवत विश्वास करते हैं और उनकी पूजा करते हैं। वे भेद नहीं कर सकते हैं कि क्या किसी में पवित्र आत्मा का कार्य है और सत्य की वास्तविकता है। वे केवल सोचते हैं जब तक किसी के पास एक पादरी प्रमाणपत्र और उपहार होते हैं और वे बाइबल का विश्लेषण कर सकते हैं, तो इसका मतलब है कि वे परमेश्वर द्वारा अनुमोदित और अभिषिक्त किये गए हैं, और उनका पालन करना चाहिए। कुछ लोग और भी विवेकहीन हैं और सोचते हैं कि पादरियों और एल्डर्स का आज्ञापालन करना परमेश्वर का आज्ञापालन करना है, और पादरियों और एल्डर्स का विरोध करना परमेश्वर का विरोध करना है। अगर हम इस तरह के विचारों के अनुसार जाते हैं, तो यहूदियों के मुख्य पुजारी, शास्त्री और फरीसी जो सभी बाइबल से परिचित थे और अक्सर दूसरों को बाइबल समझाते थे, किन्तु प्रभु यीशु के प्रकट होने और कार्य करने पर उनका विरोध किया और निंदा की, और यहां तक कि उन्हें सूली पर भी चढ़ाया, क्या वे लोग परमेश्वर द्वारा अभिषिक्त और प्रयोग किए गए थे? यदि कोई प्रभु यीशु का विरोध और निंदा करने में यहूदी अग्रणियों का पालन करता था, क्या इसका मतलब यह है कि वो परमेश्वर का पालन कर रहा था? क्या आप लोग ये कहेंगे कि वे लोग, जिन्होंने यहूदी अग्रणियों को अस्वीकार कर दिया और प्रभु यीशु का अनुसरण किया, परमेश्‍वर का विरोध कर रहे थे? इससे दिखता है कि यह राय कि "पादरियों और एल्डर्स का पालन करना परमेश्वर का पालन करना है, पादरियों और एल्डर्स का विरोध करना परमेश्वर का विरोध करना है" वास्तव में बहुत विवेकहीन और भ्रामक है! हम परमेश्वर के विश्वासियों को स्पष्ट होना चाहिए कि अगर धार्मिक पादरी और एल्डर्स परमेश्‍वर का विरोध करते हैं, और जिस मार्ग का वे नेतृत्व करते हैं वो सत्य को धोखा देता है और परमेश्वर का विरोध करता है, तो हमें परमेश्वर के पक्ष में खड़े होना चाहिए, उनका पर्दाफाश करना चाहिए और उन्हें अस्वीकार करना चाहिए। यह परमेश्‍वर के प्रति सच्ची आज्ञाकारिता है। वह प्रकाश के लिए अंधेरे को त्यागने और परमेश्वर के इरादों को संतुष्ट करना है इसलिए, जब पादरियों और एल्डर्स से निपटने की बात आती है, हमें सत्य का पीछा करना चाहिए और परमेश्वर के इरादों को समझना चाहिए। अगर पादरी और एल्डर्स ऐसे लोग हैं जो सत्य से प्यार करते हैं और सत्य का पीछा करते हैं, तो उनके पास निश्चित रूप से पवित्र आत्मा का कार्य होगा और परमेश्वर के शब्दों का अभ्यास और अनुभव करने, परमेश्वर का भय मानने, और बुराई से हटने के लिए हमारा नेतृत्व करने में वे सक्षम होंगे। ऐसे लोगों का सम्मान करना और उनका अनुसरण करना परमेश्वर के प्रयोजन से सामंजस्य रखता है! अगर वे सत्य से प्यार नहीं करते हैं और हम उनकी पूजा और अनुसरण करें सिर्फ इसलिये दिखावे और अपने बाइबल ज्ञान और धार्मिक सिद्धांतों को समझाने और स्‍वयं की बड़ाई दिखाने से मतलब रखते, परमेश्‍वर का गुणगान नहीं करते, परमेश्‍वर की गवाही नहीं देते, और हमारा परमेश्‍वर के वचनों का अभ्‍यास और अनुभव करने के लिए नेतृत्‍व नहीं करते, तो वे ऐसे लोग हैं जिन्हें परमेश्‍वर ने निन्दित और शापित किया है और हम परमेश्वर का विरोध करेंगे अगर हम अभी भी उनकी पूजा करते हैं, उनका अनुसरण करते हैं और उनका आज्ञापालन करते हैं। यह पूरी तरह से परमेश्वर के प्रयोजनों के खिलाफ होगा। क्या ये सही नहीं है?
"स्क्रीनप्ले प्रश्नों के उत्तर" से

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