3. बचाए जाने के लिए लोगों को परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना का अनुभव कैसे करना चाहिए?
परमेश्वर के प्रासंगिक वचन:
परमेश्वर पर सच्चे विश्वास का अर्थ इस विश्वास के आधार पर परमेश्वर के वचनों और कामों का अनुभव करना है कि परमेश्वर सब वस्तुओं पर संप्रभुता रखता है। इस तरह से तुम अपने भ्रष्ट स्वभाव से मुक्त हो जाओगे, परमेश्वर की इच्छा को पूरा करोगे और परमेश्वर को जान जाओगे। केवल इस प्रकार की यात्रा के माध्यम से ही तुम्हें परमेश्वर पर विश्वास करने वाला कहा जा सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से
बोलने की वर्तमान प्रक्रिया, जीतने की प्रक्रिया है। लोगों को किस प्रकार उपयुक्त सहयोग देना चाहिए? इन वचनों को प्रभावशाली रीति से खाने और पीने से और उन्हें समझने के द्वारा। लोगों को उन्हीं के द्वारा जीता नहीं जा सकता। उन्हें, इन वचनों को खाने और पीने के द्वारा, अपनी भ्रष्टता और अशुद्धता, अपने विद्रोहीपन और अधार्मिकता को जानना है, और परमेश्वर के समक्ष दण्डवत हो जाना है। यदि तुम परमेश्वर की इच्छा को समझ सकते हो और इसे अभ्यास में ला सकते हो, और आगे, दर्शन प्राप्त कर सकते हो, और यदि तुम इन वचनों का पूरी तरह से पालन कर सकते और अपनी ओर से कोई चुनाव नहीं करते हो, तब तुम्हें जीत लिया जाएगा। और ये वह शब्द होंगे, जिन्होंने तुम्हें जीता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "विजयी कार्यों का आंतरिक सत्य (1)" से
सत्य को स्वीकार करना क्या होता है? इसका अर्थ है कि चाहे तुम्हारे पास जिस भी प्रकार का दूषित स्वभाव क्यों न हो या बड़े लाल अजगर के जिस भी विष ने तुम्हारे स्वभाव को ज़हरीला बना दिया हो, जब परमेश्वर का वचन उसे प्रकट करता है, तो तुम उसे स्वीकार करो और परमेश्वर के वचन के समक्ष पूर्ण विश्वास के साथ समर्पण करो। और, तुम अपने आप को परमेश्वर के वचन के अनुसार जानते हो। परमेश्वर का वचन स्वीकार करने का यही मतलब है। परमेश्वर चाहे कुछ भी कहे, चाहे वह दिल को जितनी भी चुभती हो, चाहे वह कोई भी शब्द प्रयोग करे, तुम उसे तब तक स्वीकार कर सकते हो जब तक कि वह सत्य हो, और तब तक उसे स्वीकार कर सकते हो, जब तक वह वास्तविकता के अनुरूप हो। तुम जितनी भी गहराई से इसे समझो, तुम परमेश्वर के वचन के सामने स्वयं को अर्पित कर सकते हो, और तुम भाइयों और बहनों द्वारा तुम तक पहुँचाए गए पवित्र आत्मा की प्रबुद्धता के प्रकाश को स्वीकार कर सकते हो और उसके समक्ष स्वयं को अर्पित कर सकते हो। जब इस तरह के व्यक्ति की सत्य की खोज एक निश्चित बिंदु पर पहुंच जाती है, तो वह सत्य प्राप्त कर सकता है और अपने स्वभाव के परिवर्तन को प्राप्त कर सकता है।
"मसीह की बातचीतों के अभिलेख" से "मनुष्य का स्वभाव कैसे जानें" से
जब मनुष्य परमेश्वर के वचन का अभ्यास करता है, केवल तभी उसका जीवन सचमुच में फूल के समान खिल सकता है; यह बस यूं ही उसके वचन को पढ़ने के द्वारा नहीं हो सकता है। यदि यह तुम्हारा विश्वास है कि केवल जीवन पाने और उच्चता पाने के लिए ही परमेश्वर के वचन को समझने की आवश्यकता है, तो तुम्हारी समझ विकृत हो गई है। जब तुम सत्य का अभ्यास करते हो तभी परमेश्वर का वचन सही ढंग से समझ आता है, और तुझे यह समझना होगा कि "केवल सत्य का अभ्यास करने के द्वारा ही इसे समझा जा सकता है"।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "सत्य को समझ लेने के बाद उसका अभ्यास करो" से
परमेश्वर पर अपने विश्वास में, वह सब जो पतरस ने किया था उसमें उसने परमेश्वर को संतुष्ट करने का प्रयास किया था, और वह सब जो परमेश्वर से आता था उसमें उसने आज्ञा मानने का प्रयास किया था। बिना जरा सी भी शिकायत के, वह अपने जीवन में ताड़ना एवं न्याय, साथ ही साथ शुद्धीकरण, क्लेश एवं कमी को स्वीकार कर सकता था, उसमें से कुछ भी परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम को पलट नहीं सकता था। क्या यह परमेश्वर का चरम प्रेम नहीं है? क्या यह परमेश्वर के एक प्राणी के कर्तव्य की परिपूर्णता नहीं है? ताड़ना, न्याय, क्लेश-तू मृत्यु तक आज्ञाकारिता हासिल करने में सक्षम है, और यह वह चीज़ है जिसे परमेश्वर के एक प्राणी के द्वारा हासिल किया जाना चाहिए, यह परमेश्वर के प्रेम की पवित्रता है। यदि मनुष्य इतना कुछ हासिल कर सकता है, तो वह परमेश्वर का एक योग्य प्राणी है, तथा ऐसा और कुछ नहीं है जो सृष्टिकर्ता की इच्छा को बेहतर ढंग से संतुष्ट कर सकता है।
"वचन देह में प्रकट होता है" से "सफलता या असफलता उस पथ पर निर्भर होती है जिस पर मनुष्य चलता है" से
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