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सोमवार, 15 अक्तूबर 2018

पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान

सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन, परमेश्वर को जानना, परमेश्वर की इच्छा

पतरस के अनुभव: ताड़ना और न्याय का उसका ज्ञान


जब उसे परमेश्वर के द्वारा ताड़ना दिया जा रहा था, पतरस ने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर! मेरी देह अनाज्ञाकारी है, और तू मुझे ताड़ना देता है और मेरा न्याय करता है। मैं तेरी ताड़ना और न्याय में आनन्दित होता हूँ, और भले ही तू मुझे न चाहें, फिर भी मैं तेरे न्याय में तेरे पवित्र और धर्मी स्वभाव को देखता हूँ। जब तू मेरा न्याय करता है, ताकि अन्य लोग तेरे न्याय में तेरे धर्मी स्वभाव को देख सकें, तो मैं संतुष्टि का एहसास करता हूँ। भले ही यह तेरे स्वभाव को प्रकट कर सकता है, और सभी प्राणियों के द्वारा तेरे धर्मी स्वभाव को देखने देता है, और यदि यह मेरे प्रेम को तेरे प्रति अधिक शुद्ध कर सकता है, ताकि मैं उसके स्वरूप को प्राप्त कर सकूँ जो धर्मी है, तो तेरा न्याय अच्छा है, क्योंकि तेरी अनुग्रहकारी इच्छा ऐसी ही है। मैं जानता हूँ कि अभी भी मेरे भीतर बहुत कुछ ऐसा है जो विद्रोही है, और मैं तेरे सामने आने के लिए अभी भी योग्य नहीं हूँ। मैं तुझसे चाहता हूँ कि तू और भी अधिक मेरा न्याय करें, चाहे क्रूर वातावरण के जरिए या बड़े क्लेश के जरिए; इस से कोई फर्क नहीं पड़ता है कि तू मेरा न्याय कैसे करता है, क्योंकि यह मेरे लिए बहुमूल्य है। तेरा प्यार कितना गहरा है, और मैं बिना कोई शिकायत किए तेरी दया के आधार पर अपने आपको देने को तैयार हूँ।" यह पतरस का ज्ञान था जब उसने परमेश्वर के कार्य का अनुभव कर लिया था, और यह साथ ही परमेश्वर के प्रति उसके प्रेम की गवाही है। आज, तुम लोगों को पहले से ही जीत लिया गया है—परन्तु यह जीत तुम लोगों में किस प्रकार प्रकट होती है? कुछ लोग कहते हैं, "मेरी जीत परमेश्वर का सर्वोच्च अनुग्रह और उसकी प्रशंसा है। केवल अब मुझे एहसास होता है कि मनुष्य का जीवन खोखला और महत्वहीन है। जीने की कोई वजह नहीं है, इसके बजाय मेरा मर जाना ही बेहतर है। यद्यपि मनुष्य पीढ़ी दर पीढ़ी सन्तानों को उत्पन्न करने और उनकी परवरिश करने, भागदौड़ करते हुए जीवन बिताता है, अंत में मनुष्य को कुछ भी हासिल नहीं होता है। आज, परमेश्वर के द्वारा जीत लिए जाने के बाद ही मैंने देखा कि सिर्फ इस तरह जीने का कोई मूल्य नहीं है; यह वास्तव में एक अर्थविहीन जीवन ही है। मैं भी मर सकता हूँ और इसके साथ समाप्त हो सकता हूँ!" ऐसे लोग जिन पर विजय पायी जा चुकी है क्या उन्हें परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किया जा सकता है? क्या वे आदर्श और नमूने बन सकते हैं? ऐसे लोग निष्क्रियता की मिसाल हैं, उनके पास आकांक्षाएँ नहीं हैं, और वे स्वयं की उन्नति के लिए संघर्ष नहीं करते हैं! भले ही अपने आपको वे ऐसा समझते हैं कि उन पर विजय पा ली गयी है, ऐसे निष्क्रिय लोग सिद्ध बनाए जाने के काबिल नहीं हैं। उसके जीवन के अंत के निकट, उसे सिद्ध बना दिए जाने के बाद, पतरस ने कहा "हे परमेश्वर! यदि मैं कुछ और वर्ष जीवित रहता, तो तेरे शुद्ध और गहरे प्रेम को हासिल करने की कामना करता।" जब वह क्रूस पर चढ़ाया ही जाने वाला था, उसने अपने हृदय में प्रार्थना की, "हे परमेश्वर! तेरा समय आ गया है, वह समय जो तूने मेरे लिए तैयार किया था वह आ गया है। मुझे तेरे लिए क्रूस पर चढ़ना होगा, मुझे तेरे लिए इस गवाही को देना होगा, और मैं आशा करता हूँ कि मेरा प्रेम तेरी मांगों को सन्तुष्ट करेगा, और यह और अधिक शुद्ध हो सकता है। आज, तेरे लिए मरने, और तेरे लिए क्रूस पर कीलों से ठोंके जाने के योग्य होना मेरे लिए तसल्ली और आश्वासन की बात है, क्योंकि तेरे लिए क्रूस पर चढ़ने और तेरी इच्छाओं को संतुष्ट करने, और स्वयं को तुझे देने, और स्वयं के जीवन को तेरे लिए अर्पित करने से बढ़कर कोई और बात मुझे तृप्त नहीं कर सकती है। हे परमेश्वर! तू कितना प्यारा है! यदि तू मुझे जीने की अनुमति देगा, तो मैं तुझसे और भी अधिक प्रेम करना चाहूँगा। जब तक मैं ज़िन्दा हूँ, मैं तुझसे प्रेम करूँगा। मैं तुझ से और भी अधिक गहराई से प्रेम करना चाहता हूँ। तू मेरा न्याय करता है, और मेरी ताड़ना करता है, और मेरी परीक्षा लेता है क्योंकि मैं धर्मी नहीं हूँ, क्योंकि मैं ने पाप किया है। और तेरा धर्मी स्वभाव मेरे लिए और अधिक स्पष्ट होता जाता है। यह मेरे लिए एक आशीष है, क्योंकि मैं तुझे और भी अधिक गहराई से प्रेम कर सकता हूँ, मैं तुझ से इस रीति से प्रेम करना चाहता हूँ भले ही तू मुझ से प्रेम नहीं करता है। मैं तेरे धर्मी स्वभाव को देखने की इच्छा करता हूँ, क्योंकि यह मुझे अर्थपूर्ण जीवन जीने के और काबिल बनाता है। मुझे लगता है कि मेरा जीवन और भी अधिक अर्थपूर्ण है, क्योंकि मैं तेरे लिए क्रूस पर चढ़ाया गया हूँ, और तेरे लिए मरना सार्थक है। फिर भी मुझे अब तक संतुष्टि का एहसास नहीं हुआ है, क्योंकि मैं तेरे बारे में बहुत थोड़ा सा ही जानता हूँ, मैं जानता हूँ कि मैं तेरी इच्छाओं को सम्पूर्ण रीति से पूरा नहीं कर सकता हूँ, और मैं ने बदले में तुझे बहुत ही कम अदा किया है। मेरे जीवन में, मैं अपना सब कुछ तुझे वापस लौटाने में असमर्थ रहा हूँ; और मैं उस से बहुत दूर हूँ। इस घड़ी जब मैं पीछे मुड़कर देखता हूँ, तो मैं स्वयं को तेरा बहुत आभारी महसूस करता हूँ, और मेरी सभी ग़लतियों को सुधारने और जो प्रेम मैं ने तुझे नहीं दिया उसे अदा करने के लिए मेरे पास यही एक क्षण है।"
मनुष्य को एक अर्थपूर्ण जीवन का अनुसरण करना होगा, और मनुष्य को अपनी वर्तमान परिस्थितियों से संतुष्ट नहीं होना चाहिए। पतरस के स्वरूप जीवन बिताने के लिए, उसे पतरस के ज्ञान और अनुभवों को धारण करना होगा। मुनष्य को ऐसी चीज़ों का अनुसरण करना चाहिए जो ऊँची और बहुत ज़्यादा गम्भीर हैं। उसे परमेश्वर के गहरे एवं शुद्ध प्रेम, और एक ऐसे जीवन का अनुसरण करना होगा, जिसका मूल्य और अर्थ है। केवल यह ही जीवन है; केवल तब ही मनुष्य पतरस के समान होगा। तुझे सकारात्मक पहलु में प्रवेश करने के लिए सक्रिय होने की ओर ध्यान केन्द्रित करना होगा, और अति गम्भीर, अति विशिष्ट, और अति व्यावहारिक सच्चाईयों को नज़रअंदाज करते हुए क्षणिक आराम के लिए तुझे स्वयं को अधीनतापूर्वक पीछे हटने नहीं देना चाहिए। तेरा प्रेम व्यावहारिक होना चाहिए, और तुझे स्वयं को इस भ्रष्ट, और बेपरवाह जीवन से स्वतंत्र होने के लिए रास्ते ढूँढ़ने होंगे जो किसी जानवर की ज़िन्दगी से अलग नहीं है। तुझे एक अर्थपूर्ण जीवन, एवं एक ऐसा जीवन व्यतीत करना होगा जिसका मूल्य है, और तुझे स्वयं को मूर्ख नहीं बनाना चाहिए, या अपने जीवन के साथ खेले जाने वाले खिलौने की तरह व्यवहार नहीं करना चाहिए। क्योंकि हर किसी के लिए जो परमेश्वर से प्रेम करने की आकांक्षा करता है, कोई सत्य अप्राप्य नहीं है, और कोई न्याय ऐसा नहीं है जिसके लिए वे खडे़ नहीं हो सकते हैं। तुझे अपना जीवन कैसे बिताना चाहिए? तुझे परमेश्वर से प्रेम कैसे करना चाहिए, और इस प्रेम का उपयोग करके उसकी इच्छा को कैसे संतुष्ट करना चाहिए? तेरे जीवन में इस से बड़ा कोई मुद्दा नहीं है? सब से बढ़कर, तेरे पास ऐसी आकांक्षा और दृढ़ता होनी चाहिए, और तुझे उन बेहद कमज़ोर दुर्बल प्राणियों के समान नहीं होना चाहिए। तुझे सीखना होगा कि एक अर्थपूर्ण जीवन को कैसे अनुभव किया जाता है, और तुझे अर्थपूर्ण सच्चाईयों को सीखना होगा, और तुझे अपने आपसे लापरवाही के साथ बर्ताव नहीं करना चाहिए। तू इसका एहसास ही नहीं कर पाता है, और तेरा जीवन यों ही गुज़र जाएगा; और उसके बाद, क्या तेरे पास परमेश्वर से प्रेम करने का दूसरा अवसर होगा? क्या मनुष्य मरने के बाद परमेश्वर से प्रेम कर सकता है? तेरे पास पतरस के समान ही आकांक्षाएँ और विवेक होना चाहिए; तेरा जीवन अर्थपूर्ण होना चाहिए, और तुझे स्वयं के साथ खिलवाड़ नहीं करना चाहिए! एक मनुष्य के रूप में, और परमेश्वर का अनुसरण करने वाले एक व्यक्ति के रूप में, तुझे इस योग्य होना होगा कि तू सावधानी से विचार कर सके कि तुझे अपने जीवन के साथ कैसा व्यवहार करना है, कि तुझे स्वयं को किस प्रकार परमेश्वर के सामने अर्पण करना चाहिए, कि तुझमें परमेश्वर के प्रति और अधिक अर्थपूर्ण विश्वास कैसे होना चाहिए, और चूँकि तू परमेश्वर से प्रेम करता है, तुझे उससे उस रीति से कैसे प्रेम करना चाहिए जो कहीं ज़्यादा पवित्र, सुन्दर, एवं अच्छा हो। आज, तू केवल इस बात से संतुष्ट नहीं हो सकता है कि तुझ पर किस प्रकार विजय पायी गयी है, बल्कि तुझे उस पथ पर भी विचार करना होगा जिस पर तू भविष्य में चलेगा। तेरे पास आकांक्षाएँ और साहस अवश्य होना चाहिए जिस से तुझे सिद्ध बनाया जा सके, और तुझे हमेशा यह नहीं सोचना चाहिए कि तू असमर्थ है। क्या सत्य की भी अपनी पसंदीदा चीज़ें होती हैं? क्या सत्य जानबूझकर लोगों का विरोध कर सकता है? यदि तू सत्य के पीछे पीछे चलता है, तो क्या यह तुझे अभीभूत कर सकता है? यदि तू न्याय के लिए मज़बूती से खडा होता है, तो क्या यह तुझे मार कर नीचे गिरा देगा? यदि यह सचमुच में तेरी आकांक्षा है कि तू जीवन का अनुसरण करे, तो क्या जीवन तुझसे बच कर निकल जाएगा? यदि तेरे पास सत्य नहीं है, तो यह इसलिए नहीं है क्योंकि सत्य तुझे नहीं पहचानता है, बल्कि इसलिए है क्योंकि तू सत्य से दूर रहता है; यदि तू न्याय के लिए मज़बूती से खड़ा नहीं हो सकता है, तो यह इसलिए नहीं है क्योंकि न्याय के साथ कुछ न कुछ गड़बड़ी है, परन्तु इसलिए है क्योंकि तू विश्वास करता है कि यह प्रमाणित सच्चाई से अलग है; कई सालों तक जीवन का पीछा करते हुए भी यदि तूने जीवन प्राप्त नहीं किया है, तो यह इसलिए नहीं है क्योंकि जीवन के पास तेरे लिए कोई सद्विचार नहीं है, परन्तु इसलिए है क्योंकि तेरे पास जीवन के लिए कोई सद्विचार नहीं है, और तूने जीवन को बाहर निकाल दिया है; यदि तू ज्योति में जीता है, और यदि तू ज्योति को पाने में असमर्थ रहा है, तो यह इसलिए नहीं है क्योंकि ज्योति के लिए तेरे ऊपर चमकना असंभव है, परन्तु इसलिए है क्योंकि तूने ज्योति की उपस्थिति पर कोई ध्यान नहीं दिया, और इस प्रकार ज्योति तेरे पास से खामोशी से चली गई है। यदि तू अनुसरण नहीं करेगा, तो केवल यह कहा जा सकता है कि तू फालतू कचरा है, और तेरे जीवन में कोई साहस नहीं है, और अंधकार की ताकतों को रोकने के लिए तेरे पास आत्मा नहीं है। तू बहुत ही ज़्यादा कमज़ोर है! तू शैतान की उन ताकतों से बचने में असमर्थ है जो तुझे जकड़ लेती हैं, और तू केवल इस प्रकार के सकुशल और सुरक्षित जीवन में आगे बढ़ना और अपनी अज्ञानता में मरना चाहता है। जो तुझे हासिल करना चाहिए वह है विजय पा लिए जाने की तेरी प्रवृत्ति; यह तेरा परम कर्तव्य है। यदि तू इस बात से संतुष्ट है कि तुझ पर विजय पा ली गयी है, तो तू ज्योति की मौजूदगी को दूर हटा देता है। तुझे सत्य के लिए कठिनाई उठानी पड़ेगी, तुझे स्वयं को सत्य के लिए देना होगा, तुझे सत्य के लिए अपमान सहना होगा, और अधिक सत्य प्राप्त करने के लिए तुझे अधिक कष्ट से होकर गुज़रना होगा। तुझे यही करना चाहिए। एक शांतिपूर्ण ज़िन्दगी के लिए तुझे सत्य को दूर नहीं फेंकना चाहिए, और क्षणिक आनन्द के लिए तुझे अपने जीवन की गरिमा और सत्यनिष्ठा को नहीं खोना चाहिए। तुझे उन सब चीज़ों का अनुसरण करना चाहिए जो ख़ूबसूरत और अच्छा है, और तुझे अपने जीवन में एक ऐसे मार्ग का अनुसरण करना चाहिए जो कहीं ज़्यादा अर्थपूर्ण है। यदि तू एक ऐसे घिनौने जीवन में आगे बढ़ता है, और किसी उद्देश्य का पीछा नहीं करता है, तो क्या तू अपने जीवन को बर्बाद नहीं करता है? तू एक ऐसे जीवन से क्या हासिल कर पाएगा? तुझे एक सच्चाई के लिए देह के सारे सुख विलासों को छोड़ देना चाहिए, और तुझे थोड़े से सुख विलास के लिए सारी सच्चाईयों को दूर नहीं फेंकना चाहिए। ऐसे लोगों के पास कोई सत्यनिष्ठा और गरिमा नहीं होती है; उनके अस्तित्व का कोई अर्थ नहीं है!
परमेश्वर मनुष्य का न्याय करता है और उसको ताड़ना देता है क्योंकि यह उसके कार्य की मांग है, और इसके अतिरिक्त, मनुष्य को इसकी आवश्यकता है। मनुष्य को ताड़ना दिए जाने और उसका न्याय किए जाने की आवश्यकता है, और केवल तब ही वह परमेश्वर के प्रेम को प्राप्त कर सकता है। आज, तुम लोग पूरी तरह विश्वस्त हो चुके हो, परन्तु जब तुम लोग जरा सा भी पीछे हटते हो तो तुम लोग परेशानी में आ जाते हो; तुम लोगों की आकृति अभी भी बहुत छोटी है, और एक गहरा ज्ञान प्राप्त करने के लिए तुम लोगों को अभी भी ऐसी ताड़ना और न्याय का और भी अधिक अनुभव करने की आवश्यकता है। आज, तुम लोगों में परमेश्वर के प्रति कुछ आदर है, और तुम लोग परमेश्वर से डरते हो, और तुम लोग जानते हो कि वह सच्चा परमेश्वर है, परन्तु तुम लोगों के पास उसके लिए एक महान प्रेम नहीं है, और सच्चा प्रेम तो तुम लोगों ने बिलकुल भी हासिल नहीं किया है; तुम लोगों का ज्ञान बहुत ही छिछला है, और तुम लोगों की हस्ती अभी भी अपर्याप्त है। जब तुम लोग सचमुच में एक वातावरण का सामना करते हो, तब भी तुम लोग गवाही नहीं देते हो, तुम लोगों का बहुत कम प्रवेश अग्रसक्रिय होता है, और तुम लोगों में कोई समझ नहीं है कि अभ्यास कैसे करें। बहुत से लोग निष्क्रिय और सुस्त होते हैं; वे केवल गुप्त रूप से अपने हृदय में परमेश्वर से प्रेम करते हैं, किन्तु उनके पास अभ्यास का कोई तरीका नहीं है, और न ही वे इस बात को लेकर स्पष्ट हैं कि उनके लक्ष्य क्या हैं। वे जिन्हें सिद्ध बनाया गया है उनके पास न केवल सामान्य मानवीयता है, बल्कि उनके पास ऐसी सच्चाईयाँ हैं जो विवेक के मापदण्डों से बढ़कर हैं, और जो विवेक स्तरों से ऊँचे हैं; वे परमेश्वर के प्रेम का प्रतिफल देने के लिए न केवल अपने विवेक का इस्तेमाल करते हैं, बल्कि, उस से बढ़कर, वे परमेश्वर को जान चुके हैं, और यह देख चुके हैं कि परमेश्वर प्रेमी है, और वह मनुष्य के प्रेम के योग्य है, और यह कि परमेश्वर से प्रेम करने के लिए उस में इतना कुछ है कि मनुष्य उसे प्रेम करने के सिवाय और कुछ नहीं कर सकता है। वे लोग जिन्हें सिद्ध किया गया है उनके लिए परमेश्वर का प्रेम उनकी व्यक्तिगत आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए है। उनका प्रेम स्वैच्छिक है, एक ऐसा प्रेम जो बदले में कुछ भी नहीं मांगता है, और जो एक व्यापार नहीं है। वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं क्योंकि वे उसके ज्ञान को छोड़ और कुछ भी नहीं जानते हैं। ऐसे लोग यह परवाह नहीं करते हैं कि परमेश्वर उन पर अनुग्रह करेगा कि नहीं, और परमेश्वर को संतुष्ट करने के सिवाय और किसी भी चीज़ से तृप्त नहीं होते हैं। वे परमेश्वर से मोल भाव नहीं करते हैं, और न ही वे विवेक के द्वारा परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को नापते हैं: तूने मुझ से प्रेम किया है, इस प्रकार उसके बदले मैं तुझसे प्रेम करता हूँ; यदि तू मुझे कुछ नहीं देता है, तो बदले में मेरे पास भी तेरे लिए कुछ नहीं है। वे जिन्हें सिद्ध किया गया है उन्होंने हमेशा विश्वास किया है कि परमेश्वर सृष्टिकर्ता है, यह कि वह उन के लिए अपना कार्य करता है, और यह कि, चूँकि उनके पास सिद्ध किए जाने के लिए यह अवसर, परिस्थिति और योग्यता है, इसीलिए एक अर्थपूर्ण जीवन बिताना ही उनकी प्रवृत्ति होनी चाहिए, और उन्हें परमेश्वर को संतुष्ट करना चाहिए। यह बिलकुल वैसा ही है जैसे पतरस ने अनुभव किया था: जब वह बेहद कमज़ोर था, तब उसने प्रार्थना की और कहा, "हे परमेश्वर! समय और स्थान की परवाह न करते हुए, तू जानता है कि मैं ने तुझे हमेशा याद किया है। इस से कोई फर्क नहीं पड़ता कि समय और स्थान क्या था, तू जानता है कि मैं तुझसे प्रेम करना चाहता हूँ, परन्तु मेरी हस्ती बहुत छोटी है, मैं बहुत कमज़ोर और निर्बल हूँ, मेरा प्रेम बहुत सीमित है, और तेरे प्रति मेरी सत्य निष्ठा बहुत थोड़ी सी है। तेरे प्रेम की तुलना में, मैं साधारणतः जीने के भी योग्य नहीं हूँ। मैं कामना करता हूँ कि मेरा जीवन व्यर्थ न हो, और यह कि मैं न केवल तेरे प्रेम का प्रतिफल दूँ, बल्कि, इसके अतिरिक्त, यह कि वह सब कुछ जो मेरे पास है उसे तेरे लिए समर्पित कर दूँ। यदि मैं तुझे संतुष्ट कर सकता, तब एक प्राणी होने के नाते, मेरे पास मन की शांति होती, और मैं कुछ और नहीं मांगूंगा। यद्यपि अब मैं कमज़ोर और निर्बल हूँ, फिर भी मैं तेरे प्रोत्साहन को नहीं भूलुंगा, और तेरे प्रेम को नहीं भूलुंगा। अब मैं तेरे प्रेम का प्रतिफल देने के सिवाय कुछ और नहीं कर रहा हूँ। हे परमेश्वर, मैं भंयकर भय का एहसास कर रहा हूँ! मेरे हृदय में तेरे लिए जो प्रेम है उसे मैं वापस कैसे दे सकता हूँ, वह सब कुछ जो मैं कर सकता हूँ उसे मैं कैसे कर सकता हूँ, मैं तेरी इच्छाओं को पूरा करने के योग्य कैसे हो सकता हूँ, और मैं वह सब कुछ भेंट चढ़ाने के योग्य कैसे हो सकता हूँ जिसे मुझे तुझे भेंट चढ़ाना है? तू मनुष्य की कमज़ोरी को जानता है; मैं तेरे प्रेम के काबिल कैसे हो सकता हूँ? हे परमेश्वर! तू जानता है कि मेरी हस्ती छोटी सी है, और यह कि मेरा प्रेम बहुत थोड़ा सा है। इस प्रकार के वातावरण में मैं अपने भरसक सबसे उत्तम कार्य कैसे कर सकता हूँ? मैं जानता हूँ कि मुझे तेरे प्रेम का प्रतिफल देना चाहिए, मैं जानता हूँ कि मुझे वह सब कुछ देना चाहिए जिसे मुझे तुझे देना है, परन्तु आज मेरी हस्ती बहुत छोटी है। मैं तुझसे मांगता हूँ कि तू मुझे सामर्थ दे, और मुझे आत्मविश्वास दे, जिस से तुझे समर्पित करने के लिए मैं और अधिक शुद्ध प्रेम को प्राप्त करने के योग्य हो जाऊँगा, और वह सब कुछ समर्पित करने के लिए और अधिक योग्य हो जाऊँगा जिसे मुझे तुझे समर्पित करना है; न केवल मैं तुझे तेरे प्रेम का प्रतिफल देने के योग्य हो जाऊँगा, बल्कि तेरी ताड़ना, न्याय और परीक्षाओं, और यहाँ तक कि कठिन अभिशापों का भी अनुभव करने के लिए और अधिक योग्य हो जाऊँगा। तूने मुझे अपने शुद्ध प्रेम को देखने दिया है, और तुझसे प्रेम न करने में मैं असमर्थ हूँ, और आज भले ही मैं कमज़ोर और निर्बल हूँ, फिर भी मैं तुझे कैसे भूल सकता हूँ? तेरे प्रेम, ताड़ना और न्याय इन सब से मैं ने तुझे जाना है, फिर भी तेरे प्रेम की पूर्ति करने में मैं असमर्थता महसूस करता हूँ, क्योंकि तू कितना महान है। मैं वह सब कुछ कैसे समर्पित कर सकता हूँ जिसे मुझे सृष्टिकर्ता के लिए समर्पित करना है? "पतरस की विनती ऐसी ही थी, फिर भी उसकी हस्ती बिलकुल ना काफी थी। इस क्षण, उसने महसूस किया कि एक कटार उसके हृदय के आर-पार हो गया था और वह पीड़ा में था; वह नहीं जानता था कि ऐसी स्थिति में क्या करना है। फिर भी वह लगातार प्रार्थना करता रहा: "हे परमेश्वर! मनुष्य की हस्ती बचकानी है, उसका विवेक कमज़ोर है, और तेरे प्रेम का प्रतिफल देना ही वह एक मात्र चीज़ है जिसे मैं हासिल कर सकता हूँ। आज, मैं नहीं जानता हूँ कि तेरी इच्छाओं को कैसे संतुष्ट करूँ, या वह सब कैसे करूँ जिसे मैं कर सकता हूँ, या वह सब कुछ तुझे समर्पित कैसे करूँ जिसे मुझे तुझे समर्पित करना है। तेरे न्याय के बावजूद, तेरी ताड़नाओं के बावजूद, इसके बावजूद कि तू मुझे क्या देता है, इसके बावजूद कि तू मुझ से क्या ले लेता है, मुझे तेरी छोटी सी भी शिकायत से आज़ाद कर। कई बार, जब तूने मेरी ताड़ना की और मेरा न्याय किया, मैं अपने आप में कुड़कुड़ाता था, और मैं शुद्धता प्राप्त करने, या तेरी इच्छाओं की पूर्ति करने में असमर्थ था। मैंने मजबूरी में तेरे प्रेम का प्रतिफल दिया था, और इस घड़ी मैं अपने आप से और भी अधिक नफरत करता हूँ।" यह इसलिए क्योंकि वह परमेश्वर के शुद्ध प्रेम की खोज करता था इसलिए पतरस ने इस प्रकार प्रार्थना की थी। वह खोज रहा था, और विनती कर रहा था, और, उससे बढ़कर, वह अपने आप पर इल्ज़ाम लगा रहा था, और परमेश्वर के सामने अपने पापों को अंगीकार कर रहा था। उसने महसूस किया कि वह परमेश्वर का ऋणी था, और उसने अपने आप से नफरत किया था, फिर भी वह कुछ कुछ उदास और निष्क्रिय भी था। उसने हमेशा ऐसा महसूस किया था, कि मानो वह परमेश्वर की इच्छाओं के प्रति उतना अच्छा नहीं था, और वह अपना बेहतरीन कार्य करने में असमर्थ था। ऐसी स्थितियों के अन्तर्गत, पतरस ने तब भी अय्यूब के विश्वास पर अनुसरण किया था। उसने देखा था कि अय्यूब का विश्वास कितना बड़ा था, क्योंकि अय्यूब ने यह देखा था कि उसका सब कुछ परमेश्वर के द्वारा दिया गया था, और उसका सब कुछ ले लेना परमेश्वर के लिए स्वभाविक था, यह कि परमेश्वर जिसको चाहेगा उसको देगा-परमेश्वर का धर्मी स्वभाव ऐसा ही था। अय्यूब ने कोई शिकायत नहीं की थी, और तब भी परमेश्वर की स्तुति कर रहा था। पतरस भी स्वयं को जानता था, और उसने अपने हृदय में प्रार्थना की, "आज अपने विवेक के इस्तेमाल करके तेरे प्रेम बदला चुका कर मुझे संतुष्ट नहीं होना चाहिए और मैं ने तुझे जितना अधिक प्रेम वापस किया है उस से भी मुझे संतुष्ट नहीं होना चाहिए, क्योंकि मेरे विचार बहुत ही भ्रष्ट हैं, और मैं तुझे सृष्टिकर्ता के रूप में देख पाने में असमर्थ हूँ। क्योंकि मैं अभी भी तुझसे प्रेम करने के योग्य नहीं हूँ, मुझे उस योग्यता को सिद्ध करना होगा जिस से वह सब कुछ समर्पित कर सकूँ जिसे मुझे तुझको समर्पित करना है, और मैं यह खुशी से करूँगा। मुझे वह सब कुछ जानना होगा जो तूने किया है, और मेरे पास कोई विकल्प नहीं है, और मुझे तेरे प्रेम को देखना होगा, और मुझे तेरी स्तुति करना और तेरे पवित्र नाम का गुणगान करना होगा, ताकि तू मेरे जरिए बड़ी महिमा प्राप्त कर सके। मैं तेरी इस गवाही में तेरे साथ मज़बूती के साथ खड़े होने को तैयार हूँ। हे परमेश्वर! तेरा प्रेम कितना बहुमूल्य और सुन्दर है; मैं उस दुष्ट के हाथों में जीने की कामना कैसे कर सकता हूँ? क्या मुझे तेरे द्वारा नहीं बनाया गया था? मैं शैतान के प्रभुत्व के अधीन कैसे जी सकता हूँ? मैं यह ज़्यादा पसंद करता हूँ कि मेरा सारा जीवन तेरी ताड़नाओं के मध्य गुज़रे। मैं उस दुष्ट के शासन के अधीन नहीं जीना चाहता हूँ। यदि मुझे पवित्र बनाया जा सकता है, और यदि मैं अपना सब कुछ तुझे समर्पित कर सकता हूँ, तो मैं आपके न्याय और ताड़ना के लिए अपने शरीर और मन की भेंट चढ़ाने को तैयार हूँ। क्योंकि मैं शैतान से घृणा करता हूँ, और मैं उसके शासन के अधीन जीवन बिताने में इच्छुक नहीं हूँ। मेरा न्याय करने द्वारा तू अपने धर्मी स्वभाव को प्रकट करता है; मैं खुश हूँ, और मेरे पास जरा सी भी शिकायत नहीं है। यदि मैं प्राणी होने के कर्तव्य को निभा सकता हूँ, तो मैं तैयार हूँ कि मेरा सम्पूर्ण जीवन तेरे न्याय के साथ जुड़ जाए, जिसके जरिए मैं तेरे धर्मी स्वभाव को जान पाऊँगा, और उस दुष्ट के प्रभाव से अपने आपको छुड़ा पाऊँगा।" पतरस ने हमेशा इस प्रकार प्रार्थना की, हमेशा इसकी ही खोज की, और वह एक ऊँचे आयाम तक पहुँच गया। वह न केवल परमेश्वर के प्रेम का प्रतिफल देने के योग्य हो पाया, बल्कि, उससे भी अधिक महत्वपूर्ण, उसने एक प्राणी होने के रूप में अपने कर्तव्य को भी निभाया। उस पर न केवल उसके विवेक के द्वारा ही दोष नहीं लगाया गया था, बल्कि वह विवेक के मापदण्डों से परे होने में सक्षम हो गया था। उसकी प्रार्थनाएँ लगातार ऊपर परमेश्वर के सामने पहुँचने लगीं, कुछ इस तरह कि उसकी आकांक्षाएँ हमेशा की तरह और ऊँची हो गईं, और परमेश्वर के प्रति उसका प्रेम हमेशा की तरह विशाल हो गया था। यद्यपि उसने अति पीड़ा देनेवाला दर्द सहा था, फिर भी उसने परमेश्वर के प्रेम को नहीं भूलाया, और फिर भी उसने परमेश्वर की इच्छा को समझने की क्षमता को प्राप्त करने का प्रयास किया। उसकी प्रार्थनाओं में निम्नलिखित वचन कहे गए: तेरे प्रेम का प्रतिफल देने के अलावा मैं ने और कुछ पूर्ण नहीं किया है। मैं ने शैतान के सामने तेरे लिए गवाही नहीं दी है, मैं ने अपने आपको शैतान के प्रभाव से आज़ाद नहीं किया है, और मैं अब भी शरीर में जीता हूँ। मैं कामना करता हूँ कि काश मैं अपने प्रेम का इस्तेमाल कर के शैतान को हरा पाता, और उसे लज्जित कर पाता, और इस प्रकार तेरी इच्छा को संतुष्ट कर पाता। मैं आशा करता हूँ कि काश मैं अपना सर्वस्व तुझे समर्पित कर पाता, और अपना थोड़ा सा भी अंश शैतान को नहीं देता, क्योंकि शैतान तेरा शत्रु है। जितना ज़्यादा उसने इस दिशा में प्रयास किया, उतना ही ज़्यादा वह द्रवित हुआ, और उतना ही ज़्यादा इन विषयों पर उसका ज्ञान बढ़ता गया। इसका एहसास किए बगैर, उसे पता चला कि उसे अपने आपको शैतान के प्रभाव से मुक्त कर देना चाहिए, और उसे पूरी तरह परमेश्वर के पास वापस लौट जाना चाहिए। उसने ऐसा ही आयाम हासिल किया था। वह शैतान के प्रभाव से भी आगे बढ़ गया था, और वह शरीर की अभिलाषाओं और मौज मस्ती से अपने आपको छुड़ा रहा था, और वह परमेश्वर की ताड़ना और न्याय दोनों को और अधिक गम्भीरता से अनुभव करने की इच्छा कर रहा था। उसने कहा, "यद्यपि मैं तेरी ताड़नाओं और तेरे न्याय के बीच रहता हूँ, फिर भी उससे मिली कठिनाई के बावजूद, मैं अभी भी शैतान के प्रभुत्व के अधीन जीवन व्यतीत करना नहीं चाहता हूँ, और मैं शैतान के छल कपट को सहना नहीं चाहता हूँ। मैं तेरे अभिशापों के बीच जी कर आनन्दित हूँ, मैं शैतान की आशीषों के मध्य जी कर नाराज़ हूँ। मैं तुझसे प्रेम करता हूँ क्योंकि मैं तेरे न्याय के बीच जीवन बिताता हूँ, और इस से मुझे बहुत आनन्द प्राप्त होता है। तेरी ताड़ना और न्याय धर्मी और पवित्र है; यह मुझे शुद्ध करने के लिए है, और उस से बढ़कर मुझ बचाने के लिए है। मैं अधिक पसंद करूँगा कि अपना सारा जीवन तेरी देखरेख में तेरे न्याय के बीच बिता दूँ। मैं एक घड़ी भी शैतान के प्रभुत्व में जीवन बिताने को तैयार नहीं हूँ; मैं तेरे द्वारा शुद्ध होना चाहता हूँ, मैं दुख तकलीफ सहना चाहता हूँ, और मैं शैतान के द्वारा शोषित होने और छले जाने को इच्छुक नहीं हूँ। मुझे, इस प्राणी को, तेरे द्वारा इस्तेमाल किया जाना चाहिए, तेरे द्वारा प्राप्त किया जाना चाहिए, और तेरे द्वारा मेरा न्याय किया जाना चाहिए, और तेरे द्वारा मुझे ताड़ना दिया जाना चाहिए। यहाँ तक कि मुझे तेरे द्वारा शापित किया जाना चाहिए। जब तू मुझे आशीष देने की इच्छा करता है तो मेरा हृदय आनन्दित होता है, क्योंकि मैं तेरे प्रेम को देख चुका हूँ। तू सृष्टिकर्ता है, और मैं एक जीवधारी हूँ: मुझे तुझको धोखा देकर शैतान के प्रभुत्व में नहीं जीवन व्यतीत करना चाहिए, और मुझे शैतान के द्वारा शोषित नहीं किया जाना चाहिए। शैतान के लिए जीने के बजाय मुझे तेरा घोड़ा, या बैल होना चाहिए। मैं तेरी ताड़नाओं के मध्य, बिना किसी शारीरिक आनन्द के, जीवन व्यतीत करना ज़्यादा पसंद करूँगा, और इस से मुझे प्रसन्नता होगी भले ही मुझे तेरे अनुग्रह को खोना पड़े। यद्यपि तेरा अनुग्रह मेरे साथ नहीं है, फिर भी मैं तेरे द्वारा ताड़ना दिए जाने और न्याय किए जाने से प्रसन्न हूँ; यह तेरी सब से बेहतरीन आशीष है, और तेरा सब से बड़ा अनुग्रह है। यद्यपि तू हमेशा प्रतापी है और मेरे प्रति क्रोधित है, किन्तु अभी भी मैं तुझको नहीं छोड़ सकता हूँ, और मैं अभी भी तुझ से पर्याप्त प्रेम नहीं कर सकता हूँ। मैं तेरे घर में रहना अधिक पसंद करूँगा, मैं तेरे द्वारा शापित, और प्रताड़ित किया जाना, और मार खाना अधिक पसंद करूँगा, और मैं शैतान के प्रभुत्व के अधीन जीने को तैयार नहीं हूँ, न ही मैं केवल शरीर के लिए हड़बड़ाने और व्यस्त रहने की इच्छा करता हूँ, और शरीर के लिए जीने के लिए तो बिलकुल भी तैयार नहीं हूँ। "पतरस का प्रेम एक पवित्र प्रेम था। यह सिद्ध किए जाने का अनुभव है, और यह सिद्ध किए जाने का सर्वोच्च आयाम है, और इसको छोड़ और कोई जीवन नहीं है जो और भी अधिक सार्थक हो। उसने परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को स्वीकार किया था, उसने परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को संजोकर रखा था, और इसको छोड़ पतरस के बारे में और कुछ बहुमूल्य नहीं था। उसने कहा, "शैतान मुझे भौतिक आनन्द देता है, परन्तु मैं उनको संजोकर नहीं रखता हूँ। परमेश्वर की ताड़ना और न्याय मुझ पर आ गया है—मैं इस में अनुग्रहित हूँ, और मुझे इस में आनन्द मिलता है, और मैं इस में आशीषित हूँ। यदि यह परमेश्वर के न्याय की बात नहीं होती तो मैं परमेश्वर से कभी प्यार नहीं कर पाता, मैं अभी भी शैतान के प्रभुत्व के अधीन जीवन बिताता, मुझे अभी भी उसके द्वारा नियन्त्रित किया जाता, और आज्ञा दिया जाता। यदि स्थिति ऐसी होती, तो मैं कभी भी एक सच्चा इंसान नहीं बन पाता, क्योंकि मैं परमेश्वर को संतुष्ट करने में असमर्थ हो जाता, और मैं अपने सम्पूर्ण जीवन को परमेश्वर को समर्पित नहीं कर पाता। भले ही परमेश्वर मुझे आशीष न दे, और मुझे बिना किसी भीतरी सुकून के, मानो एक आग मेरे भीतर जल रही हो, और बिना किसी शांति या आनन्द के छोड़ दे, और भले ही परमेश्वर की ताड़ना और अनुशासन कभी मुझ से दूर नहीं हुआ, फिर भी मैं परमेश्वर की ताड़ना और न्याय में उसके धर्मी स्वभाव को देखने में सक्षम हूँ। मैं इस में आनन्दित हूँ; जीवन में इस से बढ़कर कोई मूल्यवान और अर्थपूर्ण बात नहीं है। यद्यपि उसकी सुरक्षा और देखभाल क्रूर ताड़ना, न्याय, अभिशाप और पीड़ा बन चुके हैं, किन्तु मैं अभी भी इन चीज़ों में आनन्दित होता हूँ, क्योंकि वे मेरे भले के लिए मुझे शुद्ध कर सकते हैं, मुझे बदल सकते हैं, मुझे परमेश्वर के नज़दीक ला सकते हैं, मुझे परमेश्वर से और भी अधिक प्रेम करने के योग्य बना सकते हैं, और परमेश्वर के प्रति मेरे प्रेम को और अधिक शुद्ध कर सकते हैं। यह मुझे इस योग्य बनाता है कि मैं एक जीवधारी रूप में अपने कर्तव्य को पूरा करूँ, और यह मुझे परमेश्वर के सामने ले जाता है और शैतान के प्रभाव से दूर कर देता है, ताकि मैं आगे से शैतान की सेवा न करूँ। जब मैं शैतान के प्रभुत्व के अधीन जीवन नहीं बिताता हूँ, और जब मैं, बिना किसी चीज़ को छिपाए, अपना सब कुछ जो मेरे पास है और वह सब कुछ जिसे मैं परमेश्वर के लिए कर सकता हूँ उसे समर्पित करने के योग्य हो जाता हूँ—तो यह तब होगा जब मैं पूरी तरह संतुष्ट हो जाऊँगा। यह परमेश्वर की ताड़ना और न्याय है जिसने मुझे बचाया है, और मेरे जीवन को परमेश्वर की ताड़नाओं और न्याय से अलग नहीं किया जा सकता है। पृथ्वी पर मेरा जीवन शैतान के प्रभुत्व में है, और यदि यह परमेश्वर की ताड़ना और न्याय की देखभाल और सुरक्षा के लिए नहीं होता, तो मैं हमेशा शैतान के प्रभुत्व के अधीन जीवन बिताता, और, इसके अतिरिक्त, मेरे पास एक सार्थक जीवन जीने का अवसर या अभिप्राय नहीं होता। बस परमेश्वर की ताड़ना और न्याय मुझे कभी छोड़कर न जाए, तब ही मैं परमेश्वर के द्वारा शुद्ध किए जाने के योग्य हो सकता हूँ। केवल परमेश्वर के कठोर शब्दों और धार्मिकता, और परमेश्वर के प्रतापी न्याय के कारण ही, मैं ने सर्वोच्च सुरक्षा प्राप्त की है, और ज्योति में रहता हूँ, और मैं ने परमेश्वर की आशीषों को प्राप्त किया है। शुद्ध किए जाने के लिए, और अपने आपको शैतान से मुक्त कराने के लिए, और परमेश्वर के प्रभुत्व के अधीन जीवन बिताने के लिए—यह आज मेरी ज़िन्दगी की सब से बड़ी आशीष है।" यह पतरस के द्वारा अनुभव किया गया सर्वोच्च आयाम है।
वे अवस्थाएँ ऐसी ही हैं जिन्हें मनुष्य को सिद्ध किए जाने के बाद हासिल करना होगा। यदि तू इतना कुछ हासिल नहीं कर सकता है, तो तू एक सार्थक जीवन नहीं बिता सकता है। मनुष्य शरीर में रहता है, इसका मतलब है कि वह मानवीय नरक में रहता है, और परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना के बगैर, मनुष्य शैतान के समान ही गन्दा है। मनुष्य पवित्र कैसे हो सकता है? पतरस ने यह विश्वास किया कि परमेश्वर की ताड़ना और उसका न्याय मनुष्य की सब से बड़ी सुरक्षा और सब से महान अनुग्रह है। केवल परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के द्वारा ही मनुष्य जागृत हो सकता है, और शरीर और शैतान से बैर कर सकता है। परमेश्वर का कठोर अनुशासन मनुष्य को शैतान के प्रभाव से मुक्त करता है, वह उसे उसके छोटे संसार से आज़ाद करता है, और उसे परमेश्वर की उपस्थिति के प्रकाश में जीवन बिताने देता है। ताड़ना और न्याय की अपेक्षा कोई बेहतर उद्धार नहीं है! पतरस ने प्रार्थना की, "हे परमेश्वर! जब तक तू मेरी ताड़ना और न्याय करता है, मैं यह जानूँगा कि तूने मुझे नहीं छोड़ा है। भले ही तू मुझे आनन्द और शांति न दे, और मुझे कष्ट में जीने दे, और मुझे अनगिनित ताड़नाओं से प्रताड़ित करे, किन्तु जब तक तू मुझे नहीं छोड़ता है तब तक मेरा हृदय सुकून से रहेगा। आज, तेरी ताड़ना और न्याय मेरी सब से बेहतरीन सुरक्षा और सब से महान आशीष बन गए हैं। वह अनुग्रह जो तू मुझे देता है वह मेरी सुरक्षा करता है। जो अनुग्रह आज तू मुझे देता है वह तेरे धर्मी स्वभाव का प्रकटीकरण, और वह ताड़ना और न्याय है; इसके अतिरिक्त, यह एक परीक्षा है, और, उस से बढ़कर, यह दुख भोग का जीवन है।" पतरस देह की अभिलाषाओं को अलग रख सकता था, और एक अत्यंत गहरे प्रेम और सब से बड़ी सुरक्षा की खोज कर सकता था, क्योंकि उसने परमेश्वर की ताड़ना और न्याय से इतना कुछ हासिल किया था। अपने जीवन में, यदि मनुष्य शुद्ध होना चाहता है और अपने स्वभाव में परिवर्तन हासिल करना चाहता है, यदि वह एक सार्थक जीवन बिताना चाहता है, और एक जीवधारी के रूप में अपने कर्तव्य को निभाना चाहता है, तो उसे परमेश्वर की ताड़ना और न्याय को स्वीकार करना चाहिए, और उसे परमेश्वर के अनुशासन और परमेश्वर के प्रहार को अपने आप से दूर नहीं होने देना चाहिए, इस प्रकार वह अपने आपको शैतान के छल प्रपंच और प्रभाव से मुक्त कर सकता है और परमेश्वर के प्रकाश में जीवन बिता सकता है। यह जानो कि परमेश्वर की ताड़ना और न्याय वह ज्योति है, और वह मनुष्य के उद्धार की ज्योति है, और यह कि मनुष्य के लिए उस से बेहतर कोई आशीष, अनुग्रह या सुरक्षा नहीं है। मनुष्य शैतान के प्रभाव के अधीन जीता है, और देह में रहता है; यदि उसे शुद्ध नहीं किया जाता है और उसे परमेश्वर की सुरक्षा प्राप्त नहीं होती है, तो वह पहले से कहीं ज़्यादा भ्रष्ट बन जाएगा। यदि वह परमेश्वर से प्रेम करना चाहता है, तो उसे शुद्ध होना और उद्धार पाना होगा। पतरस ने प्रार्थना की, "परमेश्वर जब तू मुझ से कृपा के साथ व्यवहार करता है तो मैं प्रसन्न हो जाता हूँ, और मुझे सुकून मिलता है; जब तू मेरी ताड़ना करता है, तब मुझे उस से कहीं ज़्यादा सुकून और आनन्द मिलता है। यद्यपि मैं कमज़ोर हूँ, और अकथनीय कष्ट सहता हूँ, यद्यपि मेरे जीवन में आँसू और उदासी है, फिर भी तू जानता है कि यह उदासी मेरी अनाज्ञाकारिता के कारण है, और मेरी कमज़ोरी के कारण है। मैं रोता हूँ क्योंकि मैं तेरी इच्छाओं को संतुष्ट नहीं कर पाता हूँ, मैं दुखी और खेदित हूँ क्योंकि मैं तेरी मांगों के प्रति नाकाफी हूँ, लेकिन मैं इस आयाम को हासिल करने के लिए तैयार हूँ, मैं वह सब करने के लिए तैयार हूँ जो मैं तुझे संतुष्ट करने के लिए कर सकता हूँ। तेरी ताड़ना मेरे लिए सुरक्षा लेकर आई है, और मुझे सब से बेहतरीन उद्धार दिया है; तेरा न्याय तेरी सहनशीलता और धीरज को ढँक देता है। तेरी ताड़ना और न्याय के बगैर, मैं तेरी दया और करूणा का आनन्द नहीं ले पाऊँगा। आज, मैं यह और भी अधिक देखता हूँ कि तेरा प्रेम स्वर्ग से भी ऊँचा हो गया है और सब से श्रेष्ठ हो गया है। तेरा प्रेम मात्र दया और करूणा नहीं है; किन्तु उस से भी बढ़कर, यह ताड़ना और न्याय है। तेरी ताड़ना और न्याय ने मुझे बहुत कुछ दिया है। तेरी ताड़ना और न्याय के बगैर, एक भी व्यक्ति शुद्ध नहीं हो सकता है, और एक भी इंसान सृष्टिकर्ता के प्रेम को अनुभव करने के योग्य नहीं हो सकता है। यद्यपि मैं ने सैकड़ों परीक्षाओं और क्लेशों को सहा है, और यहाँ तक कि मौत के करीब आ गया, फिर भी ऐसे कष्टों[क] ने मुझे सचमुच में तुझे जानने और सर्वोच्च उद्धार प्राप्त करने दिया है। यदि तेरी ताड़ना, न्याय और अनुशासन मेरे पास से चले गए होते, तो मैं अंधकार में शैतान के प्रभुत्व में जीवन बिताता। मनुष्य की देह से क्या लाभ है? यदि तेरी ताड़ना और न्याय मुझे छोड़ कर चले गए होते, तो यह ऐसा होता मानो तेरे आत्मा ने मुझे छोड़ दिया हो, मानो अब आगे से तू मेरे साथ नहीं है। यदि ऐसा होता, तो मैं जीवन कैसे बिताता? यदि तू मुझे बीमारी देता, और मेरी स्वतन्त्रता को ले लेता, मैं जीवन बिताता तो रहता, परन्तु तेरी ताड़ना और न्याय मुझे छोड़ देते, मेरे पास जीने का कोई रास्ता नहीं होता। यदि मेरे पास तेरी ताड़ना और तेरा न्याय नहीं होता, तो मैं ने तेरे प्रेम को खो दिया होता, एक ऐसे प्रेम को जो मेरे लिए बहुत गहरा है जिसे मैं शब्दों में नहीं कह सकता हूँ। तेरे प्रेम के बिना, मैं शैतान के शासन के अधीन जीता, और तेरे महिमामय मुखड़े को देखने के काबिल नहीं हो पाता। तू ही बता, मैं कैसे निरन्तर जीवन बिताता? ऐसा अंधकार, ऐसा जीवन, मैं बिलकुल सह नहीं सकता था? तू मेरे साथ है तो यह ऐसा है मानो मैं तुझे देख रहा हूँ, इस प्रकार मैं तुझे कैसे छोड़ सकता हूँ? मैं तुझ से विनती करता हूँ, मैं तुझ से भीख मांगता हूँ, तुझ से मेरे सब से बड़े सुकून को मत छीन, भले ही ये पुनःआश्वासन के मात्र थोड़े से शब्द हैं। मैं ने तेरे प्रेम का आनन्द लिया है, और आज मैं तुझ से दूर नहीं रह सकता हूँ; तू ही बता, मैं तुझ से कैसे प्रेम नहीं कर सकता हूँ? मैं ने तेरे प्रेम के कारण दुख में बहुत से आँसू बहाए हैं, फिर भी मैं ने हमेशा से यह विश्वास किया है कि एक ऐसा जीवन अधिक अर्थपूर्ण है, मुझे समृद्ध करने में अधिक योग्य है, मुझे बदलने में अधिक सक्षम है, और मुझे उस सत्य को हासिल करने की अनुमति देने में अधिक काबिल है जिसे सभी जीवधारियों के द्वारा धारण किया जाना चाहिए।
मनुष्य का सारा जीवन शैतान के प्रभुत्व के अधीन बीतता है, और ऐसा एक भी इंसान नहीं है जो अपने बलबूते पर अपने आपको शैतान के प्रभाव से आज़ाद कर सकता है। सभी लोग भ्रष्टता और खालीपन में बिना किसी अर्थ या मूल्य के एक गन्दे संसार में रहते हैं; वे शरीर के लिए, वासना के लिए और शैतान के लिए ऐसी लापरवाह ज़िन्दगियाँ बिताते हैं। उनके अस्तित्व में जरा सा भी मूल्य नहीं है। मनुष्य उस सत्य को खोज पाने में असमर्थ है जो उसे शैतान के प्रभाव से मुक्त कर सकता है। यद्यपि मनुष्य परमेश्वर पर विश्वास करता है और बाइबल पढ़ता है, फिर भी वह यह नहीं जानता है कि वह अपने आपको शैतान के नियन्त्रण से आज़ाद कैसे करे। विभिन्न युगों के दौरान, बहुत ही कम लोगों ने इस रहस्य की खोज की है, और बहुत ही कम लोगों ने इसे स्पर्श किया है। कुछ इस तरह कि, भले ही मनुष्य शैतान से घृणा करता है, और देह से घृणा करता है, फिर भी वह नहीं जानता है कि अपने आपको शैतान के फँसानेवाले प्रभाव से कैसे बचाए। आज, क्या तुम लोग अभी भी शैतान के प्रभुत्व के अधीन नहीं हो? तुम लोग अपने अनाज्ञाकारी कार्यों पर खेद नहीं करते हो, और यह बिलकुल भी महसूस नहीं करते हो कि तुम लोग अशुद्ध और अनाज्ञाकारी हो। परमेश्वर का विरोध करने के बाद, तुम लोगों को मन की शांति भी मिलती है और बहुत निश्चलता का एहसास भी होता है। क्या तेरी निश्चलता इसलिए नहीं है क्योंकि तू भ्रष्ट है? क्या यह मन की शांति तेरी अनाज्ञाकारिता से नहीं आती है? मनुष्य एक मानवीय नरक में रहता है, वह शैतान के बुरे प्रभाव में रहता है; पूरी धरती में, प्रेत मनुष्य के साथ रहते हैं, और मनुष्य की देह में अतिक्रमण करते हैं। पृथ्वी पर, तू एक सुन्दर स्वर्गलोक में नहीं रहता है। जहाँ तू रहता है वह दुष्ट आत्मा का संसार है, एक मानवीय नरक है, और अधोलोक है। यदि मनुष्य को स्वच्छ नहीं किया जाता है, तो वह गन्दा हो जाता है; यदि परमेश्वर के द्वारा उसकी सुरक्षा और देखभाल नहीं की जाती है, तो वह अभी भी शैतान का बन्धुआ है; यदि उसका न्याय और उसकी ताड़ना नहीं की जाती है, तो उसके पास शैतान के बुरे प्रभाव के अत्याचार के बचने का कोई उपाय नहीं होगा। वह भ्रष्ट स्वभाव जो तू दिखाता है और वह अनाज्ञाकारी व्यवहार जो तू करता है वे इस बात को साबित करने के लिए काफी हैं कि तू अभी भी शैतान के शासन के अधीन जी रहा है। यदि तेरे मस्तिष्क और विचारों को शुद्ध नहीं किया गया है, और तेरे स्वभाव का न्याय और उसकी ताड़ना नहीं की गई है, तो तेरी पूरी हस्ती को अभी भी शैतान के प्रभुत्व के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, तेरा मस्तिष्क शैतान के द्वारा नियन्त्रित किया जाता है, तेरे विचार शैतान के द्वारा कुशलता से इस्तेमाल किए जाते हैं, और तेरी पूरी हस्ती शैतान के हाथों नियन्त्रित होती है। क्या तू जानता है कि, अभी, तू पतरस के स्तर से कितना दूर है? क्या तुझमें वह योग्यता है? तू आज की ताड़ना और न्याय के विषय में कितना जानता है? जितना पतरस जान पाया उसकी तुलना में तू कितना जान पाया है? आज, यदि तू जानने में असमर्थ है, तो क्या तू इस ज्ञान को भविष्य में जानने के योग्य हो पाएगा? तेरे जैसा आलसी और डरपोक व्यक्ति साधारणतः परमेश्वर के न्याय और उसकी ताड़ना को जानने में असमर्थ होता है। यदि तू शारीरिक शांति, और शारीरिक आनन्द का अनुसरण करता है, तो तेरे पास शुद्ध होने का कोई उपाय नहीं होगा, और अंत में तू वापस शैतान के पास लौट जाएगा, क्योंकि जिस प्रकार की ज़िन्दगी तू जीता है वह शैतानी, और शारीरिक है। आज जिस प्रकार की स्थितियाँ हैं, बहुत से लोग जीवन की खोज नहीं करते हैं, जिसका मतलब है कि वे शुद्ध होने, या जीवन में और अधिक गहरे अनुभव में प्रवेश करने की परवाह नहीं करते हैं। और इस प्रकार कैसे उन्हें सिद्ध बनाया जा सकता है? वे जो जीवन का अनुसरण नहीं करते हैं उनके पास सिद्ध किए जाने का कोई अवसर नहीं होता है, और ऐसे लोग जो परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण नहीं करते हैं, और अपने स्वभाव में बदलाव का अनुसरण नहीं करते हैं, वे शैतान के बुरे प्रभाव से बच पाने में असमर्थ होते हैं। परमेश्वर के विषय उनके ज्ञान और उनके स्वभाव में परिवर्तन के पश्चात् उनके प्रवेश के संबंध में, वे उनके बारे में गम्भीर नहीं हैं, वे उनके समान हैं जो सिर्फ धर्म में विश्वास करते हैं, और जो अपनी आराधना में मात्र रस्म का अनुसरण करते हैं। क्या यह समय की बर्बादी नहीं है? परमेश्वर पर उसके विश्वास के सन्दर्भ में, यदि मनुष्य जीवन के विषयों के प्रति गम्भीर नहीं है, और यदि मनुष्य सत्य में प्रवेश करने की कोशिश नहीं करता है, अपने स्वभाव में परिवर्तन की कोशिश नहीं करता है, और परमेश्वर के कार्य के ज्ञान की खोज बिलकुल भी नहीं करता है, तो उसे सिद्ध नहीं बनाया जा सकता है। यदि तू सिद्ध किए जाने की इच्छा करता है, तो तुझे परमेश्वर के कार्य के महत्व को समझना ही होगा। विशिष्ट रूप से, तुझे उसकी ताड़ना और उसके न्याय के महत्व को समझना होगा, और यह समझना होगा कि उन्हें मनुष्य के लिए क्यों किया गया। क्या तू यह स्वीकार कर सकता है? इस प्रकार की ताड़ना के दौरान, क्या तू पतरस के समान ही अनुभव और ज्ञान प्राप्त करने में समर्थ है? यदि तू परमेश्वर के ज्ञान और पवित्र आत्मा के कार्य का अनुसरण करता है, और अपने स्वभाव में परिवर्तनों की कोशिश करता है, तो तेरे पास सिद्ध किए जाने का अवसर है। उनके लिए जिन्हें सिद्ध किया जाना है, उन पर विजयी होने के कार्य का यह कदम अति आवश्यक है; केवल जब मनुष्य पर विजय पा लिया जाता है, तभी मनुष्य सिद्ध किए जाने के कार्य का अनुभव कर सकता है। केवल जीत लिए जाने की भूमिका को निभाने में कोई बड़ा मूल्य नहीं है, जो तुझे परमेश्वर के इस्तेमाल के योग्य नहीं बनाएगा। सुसमाचार फैलाने हेतु अपनी भूमिका को निभाने के लिए तेरे पास कोई साधन नहीं होगा, क्योंकि तू जीवन का अनुसरण नहीं करता है, और अपने आप में परिवर्तन और नवीनीकरण का अनुसरण नहीं करता है, और इसलिए तेरे पास जीवन का कोई वास्तविक अनुभव नहीं होता है। इस कदम दर कदम कार्य के दौरान, तूने एक बार सेवा का कार्य करने वाले के, और एक विषमता के समान कार्य किया था, किन्तु अंततः यदि तू पतरस के समान बनने के लिए अनुसरण नहीं करता है, और यदि तेरा अनुसरण उस मार्ग के अनुसार नहीं है जिसके द्वारा पतरस को सिद्ध बनाया गया था, तो, स्वाभाविक रूप से, तू अपने स्वभाव में परिवर्तन का अनुभव नहीं करेगा। यदि तू ऐसा व्यक्ति है जो सिद्ध किए जाने के लिए अनुसरण करता है, तो तुझे गवाही देनी होगी, और तू कहेगा: "परमेश्वर के इस कदम दर कदम कार्य में, मैं ने परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के कार्य को स्वीकार कर लिया है, और यद्यपि मैं ने बड़ा कष्ट सहा है, फिर भी मैं जान गया हूँ कि परमेश्वर मनुष्य को सिद्ध कैसे बनाता है, मैं ने परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य को प्राप्त कर लिया है, मेरे पास परमेश्वर की धार्मिकता का ज्ञान है, और उसकी ताड़ना ने मुझे बचा लिया है। उसका धर्मी स्वभाव मुझमें आ गया है, और मेरे लिए आशीषें और अनुग्रह लाया है, और उसके न्याय और उसकी ताड़ना ने मुझे सुरक्षित और शुद्ध किया है। यदि परमेश्वर के द्वारा मेरी ताड़ना और मेरा न्याय नहीं किया जाता, और यदि परमेश्वर के कठोर वचन मेरे ऊपर नहीं आते, तो मैं परमेश्वर को नहीं जान सकता था, न ही मुझे बचाया जा सकता था। एक जीवधारी के रूप में, आज मैं यह देखता हूँ, एक व्यक्ति न केवल परमेश्वर के द्वारा बनाए गए सभी चीज़ों का आनन्द उठाता है, परन्तु, अति महत्वपूर्ण रूप से, सभी जीवधारियों को परमेश्वर के धर्मी स्वभाव का आनन्द उठाना चाहिए, और उसके धर्मी न्याय का आनन्द उठाना चाहिए, क्योंकि परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य के आनन्द के योग्य है। एक ऐसे जीव के रूप में जिसे शैतान द्वारा भ्रष्ट बना दिया गया है, उसे परमेश्वर के धर्मी स्वभाव का आनंद उठाना चाहिए। उसके धर्मी स्वभाव में उसकी ताड़ना और उसका न्याय है, और, इसके अतिरिक्त, उसमें बड़ा प्रेम है। यद्यपि आज मैं परमेश्वर के प्रेम को पूरी तरह प्राप्त करने में असमर्थ हूँ, फिर भी मुझे उसे देखने का सौभाग्य प्राप्त है, और इस में मैं आशीषित हूँ।" यह वह पथ है जिस पर वे चलते हैं जो सिद्ध किए जाने का अनुभव करते हैं और जिसके ज्ञान के बारे में वे बोलते हैं। ऐसे लोग पतरस के समान हैं; उनके पास पतरस के समान ही अनुभव हैं। वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने जीवन प्राप्त किया है, और जिनके पास सत्य है। यदि मनुष्य बिलकुल अंत तक अनुभव करता है, तो परमेश्वर के न्याय के दौरान वह अनिवार्य रूप से पूरी तरह शैतान के प्रभाव से अपने आपको को छुड़ा लेगा, और परमेश्वर के द्वारा ग्रहण कर लिया जाएगा।
उन पर विजय पा लिए जाने के बाद, लोगों के पास कोई गूंजती हुई गवाही नहीं होती है। उन्होंने महज शैतान को शर्मिन्दा कर दिया है, किन्तु उन्होंने परमेश्वर के वचनों की सत्यता के आधार पर जीवन नहीं बिताया है। तूने दूसरा उद्धार प्राप्त नहीं किया है; तूने महज एक पापबलि प्राप्त किया है, तुझे अब तक सिद्ध नहीं बनाया गया है—यह कितना बड़ा नुकसान है। तुझे समझना होगा कि तुझे किस में प्रवेश करना चाहिए, तुझे किस के लिए जीवन व्यतीत करना चाहिए, और तुझे उस में प्रवेश करना होगा। यदि, अंत में, तू सिद्ध किए जाने के कार्य को पूरा नहीं करता है, तो तू एक वास्तविक मनुष्य नहीं हैं, और तू पछतावे से भर जाएगा। आदम और हव्वा जिन्हें परमेश्वर के द्वारा आदि में बनाया गया था वे पवित्र थे, दूसरे शब्दों में, जब वे अदन की वाटिका में थे तब वे पवित्र थे, और उनमें कोई अशुद्धता नहीं थी। वे यहोवा के प्रति भी निष्‍ठावान थे, और यहोवा को धोखा देने के विषय में कुछ नहीं जानते थे। ऐसा इसलिए था क्योंकि उन में शैतान के प्रभाव का विघ्न नहीं था, उन में शैतान का ज़हर नहीं था, और वे सभी मानवजाति में सब से अधिक शु़द्ध थे। वे अदन की वाटिका में रहते थे, वे हर प्रकार की गन्दगी से दूर थे, वे देह के कब्ज़े से अलग थे, और वे यहोवा का आदर करते थे। बाद में, जब शैतान के द्वारा उनकी परीक्षा ली गई, तो उनके पास साँप का ज़हर था और यहोवा को धोखा देने की इच्छा थी, और वे शैतान के प्रभाव में जीवन बिताते थे। आदि में, वे पवित्र थे और यहोवा का आदर करते थे; केवल इसी प्रकार वे मानव थे। बाद में, जब शैतान के द्वारा उनकी परीक्षा ली गई, तब उन्होंने भले और बुरे के ज्ञान के वृक्ष का फल खा लिया, और शैतान के प्रभाव के अधीन जीवन बिताने लगे। धीरे धीरे उन्हें शैतान के द्वारा भ्रष्ट किया गया, और उन्होंने मनुष्य के मूल स्वरूप को खो दिया। आदि में, मनुष्य के पास यहोवा की श्वास थी, और वह थोड़ा भी अनाज्ञाकारी नहीं था, और उसके हृदय में कोई बुराई नहीं थी। उस समय, मनुष्य सचमुच में मानव था। शैतान के द्वारा कलुषित किए जाने के बाद, मनुष्य पशु बन गया; उसके विचार बुराई और गन्दगी से भर गए, और उनमें कोई अच्छाई और पवित्रता नहीं थी। क्या यह शैतान नहीं है? तूने परमेश्वर के बहुत से कार्य का अनुभव किया है, फिर भी तू नहीं बदला है और तुझे शुद्ध नहीं किया गया है। तू अभी भी शैतान के प्रभुत्व में जीवन बिताता है, और अभी भी परमेश्वर को समर्पित नहीं होता है। यह एक ऐसा व्यक्ति है जिस पर विजय पाया जा चुका है लेकिन उसे सिद्ध नहीं बनाया गया है। और ऐसा क्यों कहा जाता है कि ऐसे व्यक्ति को सिद्ध नहीं किया गया है? क्योंकि इस व्यक्ति ने जीवन या परमेश्वर के कार्य के ज्ञान का अनुसरण नहीं किया है, और शारीरिक आनन्द और क्षणिक सुखसे अधिक किसी और चीज़ का लालच नहीं करता है। इसके परिणामस्वरूप, उनके जीवन स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं होता है, और उन्होंने मनुष्य के मूल रूप को फिर से प्राप्त नहीं किया है जिसे परमेश्वर के द्वारा सृजा गया था। ऐसे लोग चलती फिरती लाशें हैं, वे मरे हुए लोग हैं जिन में कोई आत्मा नहीं है! वे जो आत्मा में विषयों के ज्ञान का अनुसरण नहीं करते हैं, वे जो पवित्रता का अनुसरण नहीं करते हैं, और वे जो सत्य से जीवन का अनुसरण नहीं करते हैं, वे जो केवल नकारात्मक पहलु पर विजय पा लिए जाने से ही संतुष्ट होते हैं, और वे जो सत्य को जीने और उसे प्रकट करने, और पवित्र लोगों में से एक बनने में असमर्थ होते हैं—वे ऐसे लोग हैं जिन्हें बचाया नहीं गया है। क्योंकि, अगर वह सत्य के बिना है, तो मनुष्य परमेश्वर की परीक्षाओं के मध्य स्थिर खड़े रहने में असमर्थ है; केवल वे लोग जो परमेश्वर की परीक्षाओं के दौरान स्थिर खड़े रह सकते हैं वे ही ऐसे लोग हैं जिन्हें बचाया गया है। मैं ऐसे लोगों को चाहता हूँ जो पतरस के समान हैं, ऐसे लोग जो सिद्ध किए जाने का अनुसरण करते हैं। आज की सच्चाई उन्हें दी जाती है जो उसके लिए लालसा और उसकी खोज करते हैं। यह उद्धार उन्हें दिया जाता है जो परमेश्वर के द्वारा उद्धार पाने की लालसा करते हैं, और यह उद्धार सिर्फ तुम लोगों द्वारा ग्रहण करने के लिए नहीं है, परन्तु यह इसलिए भी है ताकि तुम लोग परमेश्वर के द्वारा ग्रहण किए जाओ। तुम लोग परमेश्वर को ग्रहण करते हो ताकि परमेश्वर भी तुम लोगों को ग्रहण कर सके। आज मैं ने ये वचन तुम लोगों से कहे हैं, और तुम लोगों ने इन्हें सुना है, और तुम लोगों को इन वचनों के अनुसार व्यवहार करना है। अंत में, जब तुम लोग इन वचनों को व्यवहार में लाते हो तो यह तब होगा जब मैं इन वचनों के द्वारा तुम लोगों को ग्रहण कर लूँगा; उस समय, तुम लोगों ने भी इन वचनों को ग्रहण लिया होगा, दूसरे शब्दों में, तुम लोगों ने इस सर्वोच्च उद्धार को ग्रहण कर लिया होगा। तुम लोगों को शुद्ध कर दिए जाने के बाद, तो तुम लोग सच्चे मानव हो जाओगे। यदि तू सच्चाई से जीवन बिताने में असमर्थ हैं, या उस व्यक्ति के समान जीवन बिताने में असमर्थ हैं जिसे सिद्ध किया गया है, तो ऐसा कहा जा सकता है कि तू एक मानव नहीं हैं, तू एक चलती फिरती लाश है, और एक पशु है, क्योंकि तुझमें सच्चाई नहीं है, दूसरे शब्दों में कहें तो तुझमें यहोवा की श्वास नहीं है, और इस प्रकार तू मरा हुआ इंसान है जिस में कोई आत्मा नहीं है! यद्यपि विजय पा लिए जाने के बाद गवाही देना संभव है, परन्तु जो तू प्राप्त करता है वह एक छोटा सा उद्धार है, और तू एक जीवित प्राणी नहीं बन पाया है जिस में आत्मा है। यद्यपि तूने ताड़ना और न्याय का अनुभव किया है, फिर भी उसके परिणामस्वरूप तेरा स्वभाव नहीं बदला है या परिवर्तित नहीं हुआ है; तू अभी पुराना मनुष्य है, तू अभी भी शैतान का है, और तू कोई ऐसा व्यक्ति नहीं हैं जिसे शुद्ध किया गया है। केवल ऐसे लोगों का मोल है जिन्हें सिद्ध किया गया है, और केवल ऐसे ही लोगों ने सच्चे जीवन को प्राप्त किया है। एक दिन, कोई तुझ से कहेगा, "तूने परमेश्वर का अनुभव किया है, अतः कुछ बता कि उसका कार्य कैसा है। दाऊद ने परमेश्वर के काम का अनुभव किया था, और उसने यहोवा के कार्यों को देखा था, मूसा ने भी यहोवा के कार्यों को देखा था, और वे दोनों यहोवा के कार्यों का बखान कर सकते थे, और यहोवा की विलक्षणता के बारे में बोल सकते थे। तुम लोगों ने देहधारी परमेश्वर के द्वारा किए गए कार्य को देखा है; क्या तुम लोग उसकी बुद्धि के बारे में बात कर सकते हो? क्या तू उसके कार्य की विलक्षणता के बारे में बात कर सकता है? परमेश्वर तुम लोगों से क्या अपेक्षा करता है, और तुम लोग उनका अनुभव कैसे करते हो? तुम लोगों ने अंतिम दिनों के दौरान परमेश्वर के कार्य का अनुभव किया है; तुम लोगों का सब से बड़ा दर्शन क्या है? क्या तुम लोग इसके बारे में बात कर सकते हो? क्या तुम लोग परमेश्वर के धर्मी स्वभाव के बारे में बात कर सकते हो?" इन प्रश्नों से सामना होने पर तू कैसे उत्तर देगा? यदि तू कह सकता है, "परमेश्वर अत्यंत धर्मी है, वह हमें ताड़ना देता है और हमारा न्याय करता है, और कठोरता से हमारा खुलासा करता है। परमेश्वर का स्वभाव मनुष्य के द्वारा किए गए अपराध के प्रति वास्तव में असहनशील होता है। परमेश्वर के कार्य का अनुभव करने के बाद, मैं अपने स्वयं की क्रूरता को जान पाया हूँ, मैं सचमुच में परमेश्वर के धर्मी स्वभाव को देख पाया हूँ," तब वह दूसरा व्यक्ति निरन्तर आप से पूछेगा, "तू परमेश्वर के विषय में और क्या जानता है! एक मनुष्य जीवन में प्रवेश कैसे कर सकता है? क्या तेरी कोई व्यक्तिगत आकांक्षाएँ हैं?" तू जवाब देगा, "शैतान के द्वारा भ्रष्ट किए जाने के बाद, परमेश्वर के जीवधारी पशु बन गए, और वे गधों से कुछ अलग नहीं थे। आज, मैं परमेश्वर के हाथों में रहता हूँ, और इस प्रकार मुझे सृष्टिकर्ता की इच्छाओं को संतुष्ट करना होगा, और जो कुछ वह शिक्षा देता है उसका पालन करना होगा। मेरे पास और कोई विकल्प नहीं है।" यदि तू केवल ऐसी व्यापकता के साथ बात करता है, तो तू जो कह रहा है उसे वह व्यक्ति नहीं समझेगा। जब वे तुझसे पूछते हैं कि तेरे पास परमेश्वर के कार्य का क्या ज्ञान है, तो वे तेरे व्यक्तिगत अनुभवों की ओर संकेत कर रहे हैं। वे पूछताछ कर रहें हैं कि उसका अनुभव करने के बाद तेरे पास परमेश्वर की ताड़ना और उसके न्याय का क्या ज्ञान है, और इस तरह वे तेरे व्यक्तिगत अनुभवों की ओर संकेत कर रहे हैं, और तुझ से कहते हैं कि तू सत्य के अपने ज्ञान के बारे में बोले। यदि तू ऐसी चीज़ों के बारे में बोलने में असमर्थ है, तो इस से यह साबित होता है कि तू आज के कार्य के बारे में कुछ नहीं जानता है। तू हमेशा ऐसे वचनों को बोलता है जो दिखावटी हैं, या जिन्हें वैश्विक रूप से जाना जाता है; तेरे पास कोई विशिष्ट अनुभव नहीं है, तेरे ज्ञान में मुख्य तत्व तो बिलकुल भी नहीं है, और तेरे पास सच्ची गवाहियाँ नहीं हैं, और अन्य लोग तेरे द्वारा आश्वस्त नहीं होते हैं। परमेश्वर का एक निष्क्रिय अनुयायी मत बन, और उसका अनुसरण मत कर जो विचित्र है। न गर्म और न ठण्डा होने से तू अपने आप के ऊपर अधिकार खो देगा और तू जीवन में समय बर्बाद करेगा। तुझे स्वयं को ऐसी शिथिलता और निष्क्रियता से छुड़ाना है, और सकारात्मक चीज़ों का अनुसरण करने और अपनी स्वयं की कमज़ोरियों पर विजय पाने में कुशल बनना है, ताकि तू सच्चाई को प्राप्त कर सके और सच्चाई का जीवन बिता सके। तेरी कमज़ोरियों के विषय में कुछ भी डरने की बात नहीं है, और तेरी कमियां तेरी सब से बड़ी समस्या नहीं है। तेरी सब से बड़ी समस्या, और तेरी सब से बड़ी कमी है कि तू न गर्म है और न ठण्डा है और तुझ में सत्य की खोज की इच्छा की कमी है। तुम लोगों की सबसे बड़ी समस्या है तुम लोगों की डरपोक मानसिकता जिसके द्वारा तुम लोग उन चीज़ों से खुश हो जो जैसी की वैसी हैं, और तुम लोग निष्क्रियता से इन्तज़ार करते हो। यह तुम लोगों की सबसे बड़ी बाधा है, और सत्य का अनुसरण करने में तुम लोगों का सब से बड़ा शत्रु है। यदि तू केवल इसलिए आज्ञा मानता है क्योंकि जो वचन मैं ने कहा है वे बहुत गम्भीर हैं, तो तेरे पास सचमुच में वह ज्ञान नहीं है, न ही तू सत्य को संजोकर रखता है। जैसी तेरी आज्ञाकारिता है उसे गवाही नहीं कहते हैं, और मैं ऐसी आज्ञाकारिता को स्वीकार नहीं करता हूँ। कोई तुझ से पूछ सकता है, "तेरा परमेश्वर वास्तव में कहाँ से आता है? तेरे इस परमेश्वर की हस्ती क्या है?" तू उत्तर देगा, "उसकी हस्ती ताड़ना और न्याय है।" "क्या परमेश्वर मनुष्य के प्रति तरस से भरा हुआ और प्रेमी नहीं है? क्या तू यह जानता है?" तू कहेगा, "यह दूसरों का परमेश्वर है। यह वह परमेश्वर है जिस पर धर्म को मानने वाले लोग विश्वास करते हैं, यह हमारा परमेश्वर नहीं है।" जब तेरे जैसे लोग सुसमाचार फैलाते हैं, तो तेरे द्वारा सच्चे मार्ग को तोड़ा मरोड़ा जाता है, और इस प्रकार तू किस काम का है? अन्य लोग तुझ से सच्चा मार्ग कैसे प्राप्त करेंगे? तू सत्य के बगैर है, और तू सत्य के बारे में कुछ नहीं बोल सकता है, इसके अतिरिक्त, न ही तू सत्य के लिए जी सकता है। वे कौन सी योग्यताएँ हैं जो तुझे परमेश्वर के सामने जीने के काबिल बनाती हैं? जब तू दूसरों तक सुसमाचार फैलाता है, और जब तू सत्य के बारे में बोलता है, और परमेश्वर की गवाही देता है, यदि तू उन्हें जीत पाने में असमर्थ होता है, तो वे तेरे वचनों का खण्डन करेंगे। क्या तू अंतरिक्ष का कचरा नहीं है? तूने परमेश्वर के कार्य का बहुत अनुभव किया है, फिर भी जब तू सत्य बोलता है तो उसका कोई मतलब नहीं होता है। क्या तू किसी काम के लायक नहीं है? तेरी क्या उपयोगिता है? तूने परमेश्वर के कार्य का इतना अनुभव कैसे किया है, फिर भी तेरे पास उसका थोड़ा सा भी ज्ञान नहीं है? जब वे पूछते हैं कि तेरे पास परमेश्वर का क्या वास्तविक ज्ञान है, तो तुझको शब्द नहीं मिलते हैं, या फिर बेतुके ढ़ंग से जवाब देता है—यह कहता है कि परमेश्वर सामर्थी है, यह कि जो सब से बड़ी आशीषें तूने प्राप्त की हैं वे सचमुच में परमेश्वर की प्रशंसा के लिए हैं, और यह कि परमेश्वर को व्यक्तिगत रूप से देख पाने के योग्य होने से बढ़कर कोई सौभाग्य नहीं है। ऐसा कहने का क्या मूल्य है? वे बेकार और खोखले शब्द हैं! परमेश्वर के कार्य का इतना अनुभव प्राप्त करने के बाद, क्या तू केवल इतना जानता है कि परमेश्वर को ऊँचा उठाना ही सत्य है? तुझे परमेश्वर के कार्य को अवश्य जानना होगा, और केवल तभी तू परमेश्वर की सच्ची गवाही दे पाएगा। वे, जिन्होंने सत्य को प्राप्त नहीं किया है, कैसे परमेश्वर की सच्ची गवाई दे सकते हैं?
यदि इतना कार्य, और इतने सारे वचनों का तेरे ऊपर कोई असर नहीं हुआ, तो जब परमेश्वर के कार्य को फैलाने का समय आएगा तब तू अपने कर्तव्य को निभाने में असमर्थ हो जाएगा, और शर्मिन्दा और लज्जित होगा। उस समय, तू महसूस करेगा कि तू परमेश्वर का कितना ऋणी है, यह कि परमेश्वर के विषय में तेरा ज्ञान कितना छिछला है। यदि आज तू परमेश्वर के ज्ञान का अनुसरण नहीं करेगा, जबकि वह काम कर रहा है, तो बाद में बहुत देर हो जाएगी। अंत में, तेरे पास बोलने के लिए कोई ज्ञान नहीं होगा—तू खाली होगा, और तेरे पास कुछ भी नहीं होगा। तब, परमेश्वर को हिसाब देने के लिए तू किसका उपयोग करेगा? क्या तेरे पास परमेश्वर को देखने की कठोरता है? तुझे इसी वक्त अपने कार्य में कठिन परिश्रम करना है, जिस से तू, अंत में, पतरस के समान जान पाएगा कि परमेश्वर की ताड़ना और उसका न्याय मनुष्य के लिए कितना लाभकारी है, और बिना उसकी ताड़ना और न्याय के मनुष्य उद्धार प्राप्त नहीं कर सकता है, और वह केवल इस अपवित्र भूमि और इस दलदल में पहले से अधिक गहराई तक धंस सकता है। मनुष्यों को शैतान के द्वारा भ्रष्ट कर दिया गया है, मनुष्यों ने एक दूसरे के विरूद्ध गुप्त साधनों का प्रयोग किया है और वे नुकीली नाल पहने हुए घोड़ों पर सवार होकर एक दूसरे के ऊपर से होकर गुज़र गए हैं, उन्होंने परमेश्वर के भय को त्याग दिया है, उनकी अनाज्ञाकारिता बहुत बड़ी है, उनकी धारणाएँ ढेर सारी हैं, और वे सभी शैतान से संबंध रखते हैं। परमेश्वर की ताड़ना और न्याय के बगैर, मनुष्य के भ्रष्ट स्वभाव को शुद्ध नहीं किया जा सकता है और उसे बचाया नहीं जा सकता है। जो कुछ देहधारी परमेश्वर के कार्य के द्वारा देह में प्रकट किया गया है वह बिलकुल वही है जो आत्मा के द्वारा प्रकट किया गया है, और वह कार्य जो परमेश्वर करता है उसे आत्मा के द्वारा किए गए कार्य के अनुसार ही किया गया है। आज, यदि तेरे पास इस कार्य का कोई ज्ञान नहीं है, तो तू बहुत ही मूर्ख है, और तूने बहुत कुछ खो दिया है! यदि तूने परमेश्वर के उद्धार को प्राप्त नहीं किया है, तो तेरा विश्वास धार्मिक विश्वास है, और तू एक ऐसा मसीही है जो धर्म से जुड़ा हुआ है। क्योंकि तू मरे हुए सिद्धांतों को थामे हुए है, तूने पवित्र आत्मा के नए कार्य को खो दिया है; अन्य लोग, जो परमेश्वर के प्रेम का अनुसरण करते हैं, वे सत्य और जीवन पाने के योग्य हैं, जबकि तेरा विश्वास परमेश्वर की स्वीकृति को प्राप्त करने में असमर्थ है। उसके बजाय, तू बुरे काम करने वाला बन गया है, तू एक ऐसा व्यक्ति बन गया है जो घातक और घृणित कामों को करता है, तू शैतान के हँसी मज़ाक का निशाना बन गया है, और तू शैतान का क़ैदी बन गया है। मनुष्य के द्वारा परमेश्वर पर केवल विश्वास ही नहीं किया जाता है, परन्तु मनुष्य के द्वारा परमेश्वर से प्रेम किया जाता है, और मनुष्य के द्वारा उसका अनुसरण और उसकी आराधना की जाती है। यदि आज तू अनुसरण नहीं करेगा, तो वह दिन आएगा जब तू कहेगा, "काश! मैं ने परमेश्वर का अनुसरण सही रीति से किया होता, और उसे सही रीति से संतुष्ट किया होता। काश! मैंने अपने जीवन स्वभाव में परिवर्तन का अनुसरण किया होता। उस समय परमेश्वर के प्रति समर्पित हो पाने में असमर्थ होने, और परमेश्वर के वचन के ज्ञान का अनुसरण न करने के कारण मैं कैसा पछताता हूँ। तब परमेश्वर ने मुड़कर कितना कुछ कहा था; मैं कैसे अनुसरण नहीं कर सकता था? मैं कितना मूर्ख था!" तू एक निश्चित सीमा तक अपने आप से नफरत करेगा। आज, तू उन वचनों पर विश्वास नहीं करता है जो मैं कहता हूँ, और तू उन पर कोई ध्यान नहीं देता है; जब इस कार्य को फैलाने का दिन आता है, और तू उसकी सम्पूर्णता को देखता है, तब तू अफसोस करेगा, और उस समय तू भौंचक्का हो जाएगा। आशीषें हैं, फिर भी तू नहीं जानता है कि उसका आनन्द कैसे लें, और सच्चाई है, फिर भी तू उसका अनुसरण नहीं करता है। क्या तू अपने ऊपर अपमान लेकर नहीं आता है? आज, यद्यपि परमेश्वर का अगला कदम अभी शुरू होना बाकी है, फिर भी उन मांगों को लेकर कुछ भी अपवाद नहीं है जो तुझसे किया गया है और जो तुझ से कहा जाता है वह यह है कि तू उसे जीए। बहुत सारा कार्य है, बहुत सारी सच्चाईयाँ हैं; क्या वे इस योग्य नहीं हैं कि उन्हें तेरे द्वारा जाना जाए? क्या परमेश्वर की ताड़ना और उसका न्याय तेरी आत्मा को जागृत करने में असमर्थ है? क्या परमेश्वर की ताड़ना और उसका न्याय तुझे इस योग्य नहीं बना सकता है कि तू स्वयं से नफरत करे? क्या तू शैतान के प्रभाव में, शांति और आनन्द, और थोड़ा बहुत देह के सुकून के साथ जीवन बिताकर संतुष्ट है? क्या तू सभी लोगों में सब से अधिक निम्न नहीं हैं? उन से ज़्यादा मूर्ख और कोई नहीं है जिन्होंने उद्धार को देखा किन्तु उसे प्राप्त करने के लिए अनुसरण नहीं किया: वे ऐसे लोग हैं जिन्होंने लालची इंसान की तरह माँस खाया और शैतान को प्रसन्न किया है। तू आशा करता है कि परमेश्वर पर विश्वास करने से तुझे चुनौतियाँ और क्लेश, या थोड़ी बहुत कठिनाई विरासत में नहीं मिलेगी। तू हमेशा ऐसी चीज़ों का अनुसरण करता है जो निकम्मी हैं, और तू अपने जीवन में कोई मूल्य नहीं जोड़ता है, उसके बजाय तू अपने फिजूल के विचारों को सत्य के सामने रख देता है। तू कितना निकम्मा है! तू एक सुअर के समान जीता है—तुझ में, और सूअर और कुत्तों में क्या अन्तर है? क्या वे जो सत्य का अनुसरण नहीं करते हैं, और उसके बजाय शरीर से प्रेम करते हैं, सब के सब जानवर नहीं हैं? क्या वे मरे हुए लोग जिन में आत्मा नहीं है चलती फिरती हुई लाशें नहीं हैं? तुम लोगों के बीच में कितने सारे वचन बोले गए हैं? क्या तुम लोगों के बीच में केवल थोड़ा सा ही कार्य किया गया है? मैं ने तुम लोगों के बीच में कितनी सामग्रियों का प्रबन्ध किया है? तो फिर तूने इसे प्राप्त क्यों नहीं किया? तेरे पास शिकायत करने के लिए क्या है? क्या यह वह मामला नहीं है कि तूने कुछ भी प्राप्त नहीं किया है क्योंकि तू देह के साथ बहुत अधिक प्रेम करता है? और क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि तेरे विचार बहुत ज़्यादा फिजूल हैं? क्या यह इसलिए नहीं है क्योंकि तू बहुत ही ज़्यादा मूर्ख हैं? यदि तू इन आशीषों को प्राप्त करने में असमर्थ है, तो क्या तू परमेश्वर को दोष देगा कि उसने तुझे नहीं बचाया? तू परमेश्वर पर विश्वास करने के बाद शांति प्राप्त करने के योग्य होने के लिए अनुसरण करता है—अपनी सन्तानों के लिए कि वे बीमारी से आज़ाद हों, अपने पति के लिए कि उसके पास एक अच्छी नौकरी हो, अपने बेटे के लिए कि उसके पास एक अच्छी पत्नी हो, तेरी बेटी के लिए कि वह एक सज्जन पति ढूँढ़ पाए, अपने बैल और घोड़े के लिए कि वे अच्छे से जमीन की जुताई करें, और अपनी फसलों के लिए साल भर अच्छे मौसम के लिए कोशिश करता है। तू इन्हीं चीज़ों की खोज करता है। तेरा कार्य केवल सुकून के साथ जीवन बिताना है, क्योंकि तेरे परिवार में कोई दुर्घटना नहीं होती है, क्योंकि हवा तेरे पास से होकर गुज़र जाती है, क्योंकि धूल मिट्टी तेरे चेहरे को छूती नहीं है, क्योंकि तेरे परिवार की फसलें बाढ़ में बहती नहीं हैं, क्योंकि तू किसी भी विपत्ति से प्रभावित नहीं होता है, इसलिए कि तू परमेश्वर की बांहों में रहता है, इसलिए कि तू आरामदायक घोंसले में रहता है। तेरे जैसा डरपोक इंसान, जो हमेशा शरीर के पीछे पीछे चलता है—क्या तेरे पास एक हृदय है, क्या तेरे पास एक आत्मा है? क्या तू एक पशु नहीं हैं? बदले में बिना कुछ मांगते हुए मैं ने तुझे एक सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी तू अनुसरण नहीं करता है। क्या तू उनमें से एक है जो परमेश्वर पर विश्वास करता है? मैं ने तुझे वास्तविक मानवीय जीवन दिया है, फिर भी तू अनुसरण नहीं करता है। क्या तू कुत्ता और सुअर से अलग नहीं है? सूअर मनुष्य के जीवन का अनुसरण नहीं करते हैं, वे शुद्ध किए जाने का प्रयास नहीं करते हैं, और वे नहीं समझते हैं कि जीवन है क्या? प्रति दिन, जी भरकर खाने के बाद, वे बस सो जाते हैं। मैं ने तुझे सच्चा मार्ग दिया है, फिर भी तूने उसे प्राप्त नहीं किया है: तेरे हाथ खाली हैं। क्या तू इस जीवन में, सूअर के जीवन में, निरन्तर बने रहना चाहता है? ऐसे लोगों के ज़िन्दा रहने का क्या महत्व है? तेरा जीवन घृणित और नीच है, तू गन्दगी और व्यभिचार के मध्य रहता है, और तू किसी उद्देश्य का पीछा नहीं करता है; क्या तेरा जीवन सब से अधिक निम्न नहीं है? क्या तेरे पास परमेश्वर की ओर देखने की कठोरता है? यदि तू लगातार इस तरह अनुभव करता रहे, तो क्या तुझे शून्यता प्राप्त नहीं होगी? सच्चा मार्ग तुझे दे दिया गया है, किन्तु अंततः तू उसे प्राप्त कर सकता है कि नहीं यह तेरे व्यक्तिगत अनुसरण पर निर्भर है। लोग कहते हैं कि परमेश्वर एक धर्मी परमेश्वर है, और यह कि जब तक मनुष्य अंत तक उसके पीछे पीछे चलता रहता है, वह निश्चित रूप से मनुष्य के प्रति निष्पक्ष होगा, क्योंकि वह सब से अधिक धर्मी है। यदि मनुष्य बिलकुल अंत तक उसके पीछे पीछे चलता है, तो क्या वह मनुष्य को दरकिनार कर सकता है? मैं सभी मनुष्यों के प्रति निष्पक्ष हूँ, और अपने धर्मी स्वभाव से सभी मनुष्यों का न्याय करता हूँ, फिर भी जो मांग मैं मनुष्य से करता हूँ उसके लिए कुछ यथोचित स्थितियाँ होती हैं, और यह कि जो मैं मांगता हूँ उसे सभी मनुष्यों के द्वारा अवश्य की पूरा किया जाना चाहिए, इसकी परवाह किए बगैर कि वे कौन हैं। मैं इसकी परवाह नहीं करता हूँ कि तेरी योग्यताएँ कितनी व्यापक और आदरणीय हैं; मैं सिर्फ इसकी परवाह करता हूँ कि तू मेरे मार्ग में चलता है कि नहीं, और तू मुझ से प्रेम करता है कि नहीं और तू सत्य के लिए प्यासा है कि नहीं। यदि तुझ में सत्य की कमी है, और उसके बजाय तू मेरे नाम को लज्जित करता है, और मेरे मार्ग के अनुसार कार्य नहीं करता है, और किसी बात की परवाह या चिंता किए बगैर बस नाम के लिए मेरा अनुसरण करता है, तो उस समय मैं तुझे मार कर नीचे गिरा दूँगा और तेरी बुराई के लिए तुझे दण्ड दूँगा, तब तेरे पास कहने के लिए क्या होगा? क्या तू ऐसा कह सकता है कि परमेश्वर धर्मी नहीं है? आज, यदि तूने उन वचनों का पालन किया है जिन्हें मैं ने कहा है, तो तू ऐसा इंसान है जिसे मैं स्वीकार करता हूँ। तू कहता है कि तूने हमेशा परमेश्वर का अनुसरण करते हुए दुख उठाया है, यह कि तूने हमेशा हर परिस्थितियों में उसका अनुसरण किया है, और तूने उसके साथ अपना अच्छा और खराब समय बिताया है, किन्तु तूने परमेश्वर के द्वारा बोले गए वचनों के अनुसार जीवन नहीं बिताया है; तू हर दिन उसके पीछे पीछे भागना चाहता है, और तूने कभी भी एक अर्थपूर्ण जीवन बिताने के बारे में नहीं सोचा है। तू कहता है कि, किसी भी सूरत में, तू विश्वास करता है कि परमेश्वर धर्मी है: तूने उसके लिए दुख उठाया है, तू उसके लिए यहाँ वहाँ भागते रहता है, और तूने उसके लिए अपने आपको समर्पित किया है, और तूने कड़ी मेहनत की है इसके बावजूद तुझे कोई पहचान नहीं मिली है; वह निश्चय ही तुझे स्मरण रखता है। यह सच है कि परमेश्वर धर्मी है, फिर भी इस धार्मिकता को किसी अशुद्धता के द्वारा प्राप्त नहीं किया गया है: इस में कोई मानवीय इच्छा नहीं है, और इसे शरीर, या मानवीय सौदों के द्वारा कलंकित नहीं किया जा सकता है। वे सभी जो विद्रोही हैं और विरोध में हैं, और जो उसके मार्ग की सम्मति में नहीं हैं, उन्हें दण्डित किया जाएगा; किसी को भी क्षमा नहीं किया गया है, और किसी को भी बख्शा नहीं गया है! कुछ लोग कहते हैं, "आज मैं आपके लिए यहाँ वहाँ भागता हूँ; जब अंत आता है, तो क्या तू मुझे थोड़ी सी आशीष दे सकता है?" अतः मैं तुझसे पूछता हूँ, "क्या तूने मेरे वचनों का पालन किया है?" वह धार्मिकता जिसकी तू बात करता है वह एक सौदे पर आधारित है। तू सोचता है कि केवल मैं ही धर्मी हूँ, और सभी मनुष्यों के प्रति निष्पक्ष हूँ, और यह कि वे सब जो बिलकुल अंत तक मेरा अनुसरण करते हैं उन्हें निश्चय है कि उन्हें बचा लिया जाएगा और वे मेरी आशीषों को प्राप्त करते हैं। मेरे वचनों में एक भीतरी अर्थ है कि "वे सब जो बिलकुल अंत तक मेरा अनुसरण करते हैं उन्हें निश्चय है कि उन्हें बचा लिया जाएगा": वे जो बिलकुल अंत तक मेरा अनुसरण करते हैं वे ऐसे लोग हैं जिन्हें मेरे द्वारा पूरी तरह ग्रहण कर लिया जाएगा, वे ऐसे लोग हैं जो, मेरे द्वारा विजय पा लिए जाने के बाद, सत्य को खोजते हैं और उन्हें सिद्ध बनाया गया है। तूने कैसी स्थितियाँ हासिल की है? तू बिलकुल अंत तक सिर्फ मेरा अनुसरण करने में कामयाब हुआ है, किन्तु तूने और क्या किया है? क्या तूने मेरे वचनों का पालन किया है? तूने मेरी पाँच में से एक मांग को पूरा किया है, फिर भी बाकी चार को पूरा करने का तेरा कोई इरादा नहीं है। तूने बस सरल और आसान पथ को ढूँढ़ लिया है, और अपने आपको सौभाग्यशाली मानकर उसका अनुसरण किया है। तेरे जैसे इंसान के लिए मेरा धर्मी स्वभाव एक प्रकार से ताड़ना और न्याय है, यह एक प्रकार से सच्चा प्रतिफल है, और यह बुरा काम करनेवालों के लिए उचित दण्ड है; वे सभी जो मेरे मार्गों में नहीं चलते हैं उन्हें निश्चय ही दण्ड दिया जाएगा, भले ही वे अंत तक अनुसरण करते रहें। यह परमेश्वर की धार्मिकता है। जब यह धर्मी स्वभाव मनुष्य की सज़ा में प्रकट होता है, तो मनुष्य भौंचक्का हो जाता है, और परमेश्वर का अनुसरण करते हुए, अफसोस करता है कि वह उसके मार्ग पर नहीं चलता था। उस समय, परमेश्वर का अनुसरण करते हुए वह केवल थोड़ा सा दुख उठाता है, किन्तु वह परमेश्वर के मार्ग में नहीं चलता है। इस में क्या बहाने हैं? और ताड़ना दिए जाने के सिवाय और कोई विकल्प नहीं है! फिर भी वह अपने मन में सोच रहा है, "किसी न किसी प्रकार से, मैं ने बिलकुल अंत तक अनुसरण किया है, अतः भले ही तू मुझे ताड़ना दे, फिर भी यह कठोर ताड़ना नहीं हो सकती है, और इस ताड़ना को बलपूर्वक लागू करने के बाद तुझे तब भी मेरी जरूरत पड़ेगी। मैं जानता हूँ कि तू धर्मी हैं, और तू हमेशा मेरे साथ उस प्रकार से व्यवहार नहीं करेगा। इतना सब होते हुए भी, मैं उनके समान नहीं हूँ जिन्हें मिटा दिया जाएगा; वे जो मिटा दिए जाते हैं वे भारी ताड़ना प्राप्त करेंगे, जबकि मेरी ताड़ना हल्की होगी।" परमेश्वर का स्वभाव ऐसा नहीं है जैसा तू कहता है। यह वह स्थिति नहीं है कि वे जो पापों का अंगीकार करने में अच्छे होते हैं उनके साथ कोमलता के साथ व्यवहार किया जाता है। धार्मिकता ही पवित्रता है, और वह एक स्वभाव है जो मनुष्य के अपराध को सहन नहीं कर सकता है, और वह सब कुछ जो अशुद्ध है और जो परिवर्तित नहीं हुआ है वह परमेश्वर की घृणा का पात्र है। परमेश्वर का धर्मी स्वभाव एक व्यवस्था नहीं है, किन्तु प्रशासनिक आज्ञा है: यह राज्य के भीतर एक प्रशासनिक आज्ञा है, और यह प्रशासनिक आज्ञा उस व्यक्ति के लिए सच्चा दण्ड है जिसके पास सत्य नहीं है और जो परिवर्तित नहीं हुआ है, और उद्धार की कोई गंजाइश नहीं है। क्योंकि जब प्रत्येक मनुष्य को प्रकृति के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है, तो अच्छे मनुष्य को ईनाम दिया जाएगा और बुरे मनुष्य को दण्ड दिया जाएगा। यह तब होगा जब मनुष्य की नियति को स्पष्ट किया जाएगा, यह वह समय है जब उद्धार का कार्य समाप्त हो जाएगा, मनुष्य के उद्धार का कार्य आगे से नहीं किया जाएगा, और उन में से हर को बदला दिया जाएगा जो बुराई करते हैं। कुछ लोग कहते हैं, "परमेश्वर उन में से हर एक को स्मरण करता है जो बहुधा उसकी तरफ होते हैं। मैं उन भाईयों और बहनों में से एक हूँ, और परमेश्वर हम में से किसी को भी भूल नहीं सकता है। हमें परमेश्वर के द्वारा सिद्ध बनाए जाने के लिए आश्वस्त किया गया है। वह उन में से किसी को स्मरण नहीं करेगा जो हम से कमतर हैं, उन में से वे लोग जिन्हें सिद्ध बनाया जाएगा उन्हें आश्वस्त किया गया है कि वे हम से नीचे होंगे, जो अक्सर परमेश्वर का सामना करते हैं; हम में से किसी को परमेश्वर के द्वारा भुलाया नहीं गया है, हम सभी को परमेश्वर के द्वारा मंजूर किया गया है, और परमेश्वर के द्वारा सिद्ध बनाए जाने के लिए आश्वस्त किया गया है।" तुम सभी के पास ऐसी धारणाएँ हैं; क्या यह धार्मिकता है? तू सत्य को अभ्यास में लाया है या नहीं? तू वास्तव में इस प्रकार की अफवाह फैलाता है—तुझ में कोई शर्म नहीं है!
आज, कुछ लोग परमेश्वर के द्वारा इस्तेमाल किए जाने का लगातार प्रयास करते हैं, किन्तु जब उन पर विजय पा लिया जाता है उसके बाद उन्हें सीधे तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है। जहाँ तक आज बोले गए वचनों की बात है, यदि, जब परमेश्वर लोगों को इस्तेमाल करता है, तू अभी भी उन्हें पूरा करने में असमर्थ है, तो तुझे सिद्ध नहीं बनाया गया है। दूसरे शब्दों में, जब मनुष्य को सिद्ध बनाया जाता है तब उस समयावधि के अंत का आगमन यह निर्धारित करेगा कि परमेश्वर के द्वारा मनुष्य को ख़त्म किया जाएगा या इस्तेमाल किया जाएगा। ऐसे लोग जिन पर विजय पा लिया गया है वे निष्क्रियता और नकारात्मकता के उदाहरणों से बढ़कर और कुछ नहीं हैं; वे नमूने और आदर्श हैं, किन्तु वे सुर में सुर मिलानेवाले से बढ़कर और कुछ नहीं हैं। जब मनुष्य के पास जीवन होता है, केवल तभी उसका स्वभाव बदलता है, और जब वह भीतरी और बाहरी परिवर्तन हासिल कर लेता है तो उसे पूरी तरह सिद्ध बना दिया जाएगा। आज, तुम में से कौन चाहता है कि उस पर विजय पा लिया जाए, या उसे सिद्ध बना दिया जाए? तू किसे हासिल करना चाहता है? सिद्ध किए जाने की कितनी शर्तों को तूने पूरा किया है? तूने किसे पूरा नहीं किया है? तुझे स्वयं को सुसज्जित कैसे करना चाहिए, तुझे अपनी कमियों को कैसे पूरा करना चाहिए? तुझे सिद्ध किए जाने के पथ पर कैसे प्रवेश करना चाहिए? तुझे स्वयं को पूरी तरह कैसे सौंपना चाहिए? तू कहता है कि तुझे सिद्ध बनाया जाए, तो क्या तू पवित्रता का अनुसरण करता है? क्या तू ताड़ना और न्याय का अनुसरण करता है ताकि तुझे परमेश्वर के द्वारा सुरक्षित किया जा सके? तू शुद्ध होने का अनुसरण करता है, तो क्या तू ताड़ना और न्याय को स्वीकार करने के लिए तैयार है? तू परमेश्वर को जानने की बात कहता है, किन्तु क्या तेरे पास उसकी ताड़ना और उसके न्याय का ज्ञान है? आज, अधिकतर कार्य जो मैं तुझ पर करता हूँ वह ताड़ना और न्याय है; उस कार्य के विषय में तेरा ज्ञान क्या है, जिसे तेरे ऊपर किया गया है? क्या वह ताड़ना और न्याय जिसका तूने अनुभव किया है उसने तुझे शुद्ध किया है? क्या इसने तुझे परिवर्तित किया है? क्या इसका तेरे ऊपर कोई प्रभाव पड़ा है? क्या तू आज के बहुत से कार्यों—शाप, न्याय, और रहस्यों का खुलासा—से थक गया है, या क्या तू महसूस करता है कि वे तेरे लिए बहुत लाभदायक हैं? तू परमेश्वर से प्रेम करता है, किन्तु तू किस कारण उस से प्रेम करता है? क्या तू उस से प्रेम करता है क्योंकि तूने थोड़ा सा अनुग्रह प्राप्त किया है, या क्या तू शांति और आनन्द प्राप्त करने के बाद उस से प्रेम करता है? क्या तू उसकी ताड़ना और उसके न्याय के द्वारा शुद्ध किए जाने के बाद उस से प्रेम करता है? वह वास्तव में कौन सी बात है जो तुझे परमेश्वर से प्रेम करने के लिए प्रेरित करती है? सिद्ध होने के लिए पतरस ने वास्तव में किन शर्तों को पूरा किया था? सिद्ध होने के बाद, वह कौन सा निर्णायक तरीका था जिसके तहत उसे प्रकट किया गया था? क्या उसने प्रभु यीशु से इसलिए प्रेम किया क्योंकि वह उसकी लालसा करता था, या इसलिए क्योंकि वह उसे देख नहीं सकता था, या इसलिए क्योंकि उसकी निन्दा की गई थी? या क्या वह प्रभु यीशु से कहीं ज़्यादा प्रेम इसलिए किया क्योंकि परमेश्वर ने क्लेशों के कष्ट को स्वीकार किया था, और स्वयं की अशुद्धता और अनाज्ञाकारिता को जान पाया था, और प्रभु की पवित्रता को जान पाया था? क्या परमेश्वर की ताड़ना और उसके न्याय के कारण परमेश्वर के प्रति उसका प्रेम और अधिक शुद्ध हो गया था, या किसी और कारण से? वह क्या था? तू परमेश्वर के अनुग्रह के कारण उस से प्रेम करता है और इसलिए क्योंकि आज उसने तुझे थोड़ी सी आशीष दी है। क्या यह सच्चा प्रेम है? तुझे परमेश्वर से प्रेम कैसे करना चाहिए? उसके धर्मी स्वभाव को देखने के बाद, क्या तुझे उसकी ताड़ना और उसके न्याय को स्वीकार करना चाहिए, और क्या तुझे उस से सचमुच में प्रेम करने के योग्य होना चाहिए, कुछ इस तरह कि तू पूरी तरह विश्वस्त हो जाता है, और क्या तेरे पास उसका ज्ञान होना चाहिए? पतरस के समान, क्या तू कह सकता है कि तू परमेश्वर से पर्याप्त प्रेम नहीं कर सकता है? क्या ताड़ना और न्याय के बाद जीत लिए जाने के लिए तू इसका अनुसरण करता है, या ताड़ना और न्याय के बाद शुद्ध, सुरक्षित और सँभाले जाने के लिए अनुसरण करता है? तू इन में से किसका अनुसरण करता है? क्या तेरा जीवन अर्थपूर्ण है, या निराधार और बिना किसी मूल्य का है? क्या तुझे शरीर चाहिए, या तुझे सत्य चाहिए? तू न्याय की इच्छा करता है या राहत की? परमेश्वर के कार्यों का इतना अनुभव करने के बाद, और परमेश्वर की पवित्रता और धार्मिकता को देखने के बाद, तुझे किस प्रकार अनुसरण करना चाहिए? तुझे इस पथ पर किस प्रकार चलना चाहिए? तू परमेश्वर के प्रति अपने प्रेम को व्यवहार में कैसे ला सकता है? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय ने आपमें कोई असर डाला है? तुझ में परमेश्वर की ताड़ना और उसके न्याय का ज्ञान है कि नहीं यह इस पर निर्भर होता है कि तू किस प्रकार का जीवन जीता है, और तू किस सीमा तक परमेश्वर से प्रेम करता है! तेरे होंठ कहते हैं कि तू परमेश्वर से प्रेम करता है, फिर भी तू जिस प्रकार का जीवन जीता है वह पुराना और भ्रष्ट स्वभाव का है; तुझ में परमेश्वर का कोई भय नहीं है, और तेरे पास विवेक तो बिलकुल भी नहीं है। क्या ऐसे लोग परमेश्वर से प्रेम करते हैं? क्या ऐसे लोग परमेश्वर के प्रति वफादार होते हैं? क्या वे ऐसे लोग हैं जो परमेश्वर की ताड़ना और उसके न्याय को स्वीकार करते हैं? तू कहता है कि तू परमेश्वर से प्रेम करता है और उस पर विश्वास करता है, फिर भी तू अपनी धारणाओं को नहीं छोड़ता है। तेरे कार्य में, तेरे लिखने में, उन शब्दों में जो तू बोलता है, और तेरे जीवन में परमेश्वर के प्रति तेरे प्रेम का कोई प्रकटीकरण नहीं है, और परमेश्वर के प्रति कोई आदर नहीं है। क्या यह एक ऐसा इंसान है जिसने ताड़ना और न्याय को प्राप्त किया है? क्या ऐसा कोई इंसान पतरस के समान हो सकता है? क्या वे लोग जो पतरस के समान हैं उनके पास केवल ज्ञान होता है, परन्तु वे उसे जीते नहीं हैं? आज, वह कौन सी शर्त है जिसकी जरूरत मनुष्य को है जिस से वह एक वास्तविक जीवन बिता सके? क्या पतरस की प्रार्थनाएँ उसके मुँह से निकलने वाले शब्दों से बढ़कर और कुछ नहीं थे? क्या वे उसके हृदय की गहराईयों से निकले हुए शब्द नहीं थे? क्या पतरस ने केवल प्रार्थना किया था, और सत्य को व्यवहार में नहीं लाया था? तेरा अनुसरण किसके लिए है? तुझे परमेश्वर की ताड़ना और उसके न्याय के दौरान अपने आपको किस प्रकार सुरक्षित और शुद्ध रखना चाहिए था? क्या परमेश्वर की ताड़ना और न्याय से मनुष्य को कोई लाभ नहीं है? क्या सभी न्याय सज़ा है? क्या ऐसा हो सकता है कि केवल शांति एवं आनन्द, और केवल भौतिक आशीषें एवं क्षणिक राहत ही मनुष्य के जीवन के लिए लाभदायक हैं? यदि मनुष्य एक सुहावने और आरामदेह वातावरण में रहे, बिना किसी न्यायिक जीवन के, तो क्या उसे शुद्ध किया जा सकता है? यदि मनुष्य बदलना और शुद्ध होना चाहता है, तो उसे सिद्ध किए जाने को कैसे स्वीकार करना चाहिए? आज तुझे कौन सा पथ चुनना चाहिए?

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