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शनिवार, 1 सितंबर 2018

मार्ग... (1)

परमेश्वर की इच्छा, मसीह के कथन, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

मार्ग... (1)

अपने जीवनकाल में कोई भी व्यक्ति नहीं जानता है कि वह किस तरह की बाधाओं का सामना करने जा रहा है, न ही उसे पता होता है कि वह किस प्रकार के शुद्धिकरण के अधीन होगा। कुछ के लिए यह उनके काम में है, कुछ के लिए यह उनके भविष्य की संभावनाओं में है, कुछ के लिए यह उनके मूल परिवार में है, और कुछ के लिए यह उनके विवाह में है। लेकिन उनमें जो भिन्न है वह है कि आज हम, लोगों का यह समूह, परमेश्वर के वचन के लिए पीड़ित हैं। अर्थात्, जैसे कि कोई जो परमेश्वर की सेवा करता हो, हमने उसमें विश्वास करने के मार्ग पर बाधा का सामना किया हो, और यही वह रास्ता है जो सभी विश्वासी लेते हैं और यह हम सभी के पैरों के नीचे की राह है। यह इसी बिंदु से है कि हम परमेश्वर पर विश्वास करने के अपने मार्ग को आधिकारिक रूप से आरंभ करते हैं, मनुष्य के रूप में अपने जीवन पर से पर्दा उठाते हैं, और जीवन के सही मार्ग पर प्रवेश करते हैं। अर्थात्, ऐसा तब होता है जब हम मनुष्य के साथ-साथ जीने वाले परमेश्वर के सही मार्ग पर हम प्रवेश करते हैं, जिसे सामान्य लोग लेते हैं। जैसे कि कोई जो परमेश्वर के सामने खड़ा होता है और उसकी सेवा करता है, अर्थात्, कोई जो मंदिर में एक पुजारी की पोशाक पहनता है, कोई जिसमें दिव्य गरिमा और परमेश्वर की सामर्थ्य और प्रताप है, मैं सभी लोगों के लिए निम्नलिखित घोषणा करता हूँ। इसे स्पष्ट रूप से कहें तो: परमेश्वर की आनंददायक मुखाकृति मेरी महिमा है, उसकी प्रबंधन योजना मेरा सार है। मैं आने वाली दुनिया में सौ गुना प्राप्त करने का प्रयास नहीं करता हूँ, बल्कि केवल इस दुनिया में परमेश्वर की इच्छा पूरी करने का प्रयास करता हूँ ताकि मेरे द्वारा शरीर से किए गए थोड़े प्रयासों के कारण परमात्मा पृथ्वी पर अपनी महिमा के एक छोटे से अंश का आनंद ले सकें। यही मेरी एकमात्र इच्छा है। मेरी राय में, यही मेरा एकमात्र आध्यात्मिक जीवनाधार है; मेरा मानना ​​है कि इन्हें किसी भी ऐसे व्यक्ति के अंतिम वचन होने चाहिए जो शरीर में रहता है और जो भावना से भरा है। मेरे पैरों के नीचे आज यही मार्ग है। मेरा मानना ​​है कि मेरा यह दृष्टिकोण शरीर में मेरे अंतिम वचन हैं, और मुझे आशा है कि लोग मेरे बारे में अन्य मत या विचार नहीं रखते हैं। यद्यपि मैंने इसे अपना सब दे दिया है, किंतु मैं अभी भी स्वर्ग में परमेश्वर की इच्छा को पूरा करने में असमर्थ रहा हूँ। मैं असीमित रूप से उदास हूँ—यह ही शरीर का सार क्यों है? इसलिए, उन चीजों की वजह से जो मैंने अतीत में की हैं और क्योंकि परमेश्वर ने मेरे ऊपर जीतने का जो काम किया है, केवल अब मुझे मानव जाति के सार की गहरी समझ प्राप्त हो गई है। केवल तब से ही मैंने स्वयं के लिए सबसे बुनियादी मानक निर्धारित किया है: केवल परमेश्वर की इच्छा पूरी करने का प्रयास करना, इसे अपना सब कुछ दे देना, और अपने अन्तःकरण पर कोई वजन नहीं रखना। मैं इस बारे में कोई ध्यान नहीं देता हूँ कि परमेश्वर की सेवा करने वाले अन्य लोगों की अपने लिए क्या अपेक्षाएँ हैं। संक्षेप में, मैंने उनकी इच्छा को पूरा करना अपने हृदय में निर्धारित कर लिया है। उनके एक सृजन के रूप में जो उनके सम्मुख सेवा करता है—कोई ऐसा जिसे परमेश्वर द्वारा बचाया और प्रेम किया गया है, और जिसने उनके प्रहार सहे हैं—यह मेरी स्वीकारोक्ति है। यह किसी ऐसे की स्वीकारोक्ति है जिस पर परमेश्वर द्वारा निगरानी रखी गई है, जिसे संरक्षित किया गया है, प्यार किया गया है, और बहुत अधिक उपयोग किया गया है। अब से, मैं इस मार्ग पर चलता रहूँगा जब तक कि मैं परमेश्वर द्वारा सौंपे गए महत्वपूर्ण कार्य को पूरा नहीं कर लेता हूँ। लेकिन मेरी राय में, "सड़क का अंत" आसन्न है क्योंकि उसका काम पूरा हो चुका है, और आज तक लोगों ने वह सब किया है जो वे सभी करने में सक्षम हैं।
जब से मुख्य भूमि चीन ने ठीक होने की इस धारा में प्रवेश किया है, तब से इसके स्थानीय कलीसिया पवित्र आत्मा के काम के आसपास केंद्रित रहते हुए धीरे-धीरे विकसित हुए। परमेश्वर ने इन स्थानीय कलीसियाओं में निरंतर काम किया है क्योंकि वे पतित राजसी परिवार में परमेश्वर का मर्म बन गए हैं। क्योंकि परमेश्वर ने इस तरह के परिवार में स्थानीय कलीसियाओं को स्थापित किया है, इसलिए इसमें कोई संदेह नहीं कि वे खुशी से अभिभूत हैं—यह ऐसी खुशी है जो वर्णन से परे है। मुख्य भूमि चीन में स्थानीय कलीसिया स्थापित करने और दुनिया भर के अन्य स्थानीय कलीसियाओं में भाइयों और बहनों में इस अच्छे समाचार का प्रसार करने के बाद, परमेश्वर बहुत उत्साहित था—यह काम का पहला कदम था जिसे वह मुख्य भूमि चीन में करना चाहता था। यह कहा जा सकता है कि यह पहला कार्य था, कि परमेश्वर अपने काम के पहले चरण को ऐसे स्थान पर आरम्भ कर पाया जो कि एक दानवों के शहर जैसा है जो कि किसी भी चीज, किसी भी व्यक्ति द्वारा अभेद्य है—क्या यह परमेश्वर का महान सामर्थ्य नहीं है? यह स्पष्ट है कि इस काम की पुनःप्राप्ति के लिए, असुरों के कसाई के चाकू के नीचे मारे जाते हुए, असंख्य भाई-बहन शहीद हुए हैं। अब इसका उल्लेख करते हुए बहुत दुःख होता है, लेकिन अधिकांश भाग के लिए, पीड़ा के दिन बीत गए हैं। अब मैं परमेश्वर के लिए काम कर सकता हूँ, और मैं जो कुछ भी करने में सक्षम हो पाया हूँ वह पूरी तरह से परमेश्वर की शक्ति की वजह से है। मुझे उन लोगों के प्रति बहुत आदर है जिन्हें शहादत के लिए परमेश्वर ने चुना—वे परमेश्वर की इच्छा पूरी करने और स्वयं को परमेश्वर के लिए बलिदान कर पाए थे। स्पष्ट रूप से कहें, तो यदि यह परमेश्वर का अनुग्रह और दया नहीं होता, तो मैं बहुत पहले दलदल में गिर गया होता। परमेश्वर का धन्यवाद! मैं सारी महिमा परमेश्वर को देने, उन्हें शांति से रहने देने के लिए तैयार हूँ। कुछ लोग मुझसे पूछते हैं: "तुम्हारी स्थिति की वजह से तुन्हें मरना नहीं चाहिए, तो ऐसा क्यों है कि जब परमेश्वर मृत्यु का उल्लेख करता है तो तुम खुश होता है?" मैं सीधे जवाब नहीं देता हूँ; मैं सिर्फ जरा सा मुस्कुराता हूँ और उत्तर देता हूँ: "यही वह रास्ता है जिसका मुझे अनुसरण अवश्य करना चाहिए, जिसे मुझे अवश्य पूर्णतः पालन करना चाहिए।" लोग मेरे उत्तर को नहीं समझते हैं, बल्कि मुझे बस एक आश्चर्यचकित नज़र से देखते हैं। वे मेरे से थोड़ा परेशान हो जाते हैं। हालाँकि, मेरा मानना ​​है कि चूँकि यही वह मार्ग है जिसे मैंने चुना है और यही वह दृढ़ संकल्प भी है जो मैंने परमेश्वर के सामने निर्धारित किया है, फिर इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि मुश्किलें कितनी बड़ी हैं, मैं इसे जारी रखने के लिए केवल कड़ी मेहनत करता हूँ। मुझे लगता है: यह एक ऐसा वादा है जिसका परमेश्वर की सेवा करने वाले किसी को भी समर्थन करना चाहिए। वे अपने वचन से थोड़ा भी पीछे नहीं हट सकते हैं। यह भी एक नियम है, एक नियमन जिसे बहुत पहले, व्यवस्था के युग में, लाया गया था, जिसे परमेश्वर पर विश्वास करने वाले किसी भी व्यक्ति को समझना चाहिए। मेरे अनुभव में, परमेश्वर का मेरा ज्ञान बहुत अच्छा नहीं है और मेरा व्यावहारिक अनुभव नगण्य है, उल्लेख करने लायक भी नहीं है, इसलिए मैं किन्हीं भी उत्कृष्ट अभिमतों के लिए बात नहीं कर सकता हूँ। हालाँकि, परमेश्वर के वचनों का समर्थन अवश्य किया जाना चाहिए, और इनके विरुद्ध विद्रोह नहीं किया जा सकता है। सच्चाई बताऊँ तो, मेरा अपना व्यावहारिक अनुभव बहुत अच्छा नहीं है, किंतु क्योंकि परमेश्वर मेरी गवाही देता है और लोगों का हमेशा मुझ पर अंधा विश्वास रहा है, इसलिए मैं क्या कर सकता हूँ? मैं केवल स्वयं को अभागा मान सकता हूँ। हालाँकि, मुझे अभी भी आशा है कि लोग परमेश्वर को प्यार करने के बारे में अपने दृष्टिकोणों को सुधारेंगे। व्यक्तिगत रूप से, मैं कुछ भी नहीं हूँ, क्योंकि मैं भी परमेश्वर में विश्वास के मार्ग का अनुसरण कर रहा हूँ। और जिस मार्ग पर मैं चल रहा हूँ वह परमेश्वर पर विश्वास के मार्ग से ज्यादा नहीं है। कोई व्यक्ति जो अच्छा है वह पूजा की वस्तु नहीं होना चाहिए—वह केवल अनुकरण किए जाने के लिए आदर्श के रूप में कार्य कर सकता है। दूसरे क्या करते हैं मुझे इसकी परवाह नहीं है, बल्कि मैं लोगों के लिए घोषणा करता हूँ कि मैं भी परमेश्वर को महिमा देता हूँ; मैं आत्मा की महिमा शरीर को नहीं देता हूँ। मुझे आशा है कि हर कोई इस पर मेरी भावना को समझ सकता है। यह मेरे उत्तरदायित्व से जी चुराना नहीं है, बल्कि यह केवल पूरी कहानी है। यह ऐसा कुछ है जो सर्वथा स्पष्ट हो जाना चाहिए, और भविष्य में इसका पुनः उल्लेख करने की आवश्यकता नहीं होगी।
आज, मुझे परमेश्वर से ज्ञान प्राप्त हुआ है। पृथ्वी पर परमेश्वर का काम उद्धार का काम है; यह किसी भी अन्य चीज से असंबंधित है। कुछ लोग अन्यथा सोच सकते हैं, लेकिन मुझे हमेशा महसूस होता है कि पवित्र आत्मा उद्धार के काम का सिर्फ एक चरण कर रहा है, और कोई अन्य काम नहीं कर रहा है। यह स्पष्ट होना चाहिए। मुख्यभूमि चीन में पवित्र आत्मा जो काम करती आ रही है यह अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है—क्यों परमेश्वर सभी मार्गों को खोलना और इस जगह पर काम करना चाहेगा जहाँ हर जगह बड़े पैमाने पर दानव उग्र रूप में फैल रहे हों? इससे यह देखा जा सकता है कि परमेश्वर जो काम कर रहा है वह मुख्यतः उद्धार का काम है। अधिक स्पष्ट रूप में कहूँ तो, यह मुख्य रूप से जीतने का काम है। शुरू से यीशु का नाम पुकारा गया था। (शायद कुछ लोगों ने इसका अनुभव नहीं किया हो, लेकिन मैं कहता हूँ कि यह पवित्र आत्मा के काम का एक कदम था।) यह अनुग्रह के युग के यीशु से अलग होने के लिए था, इसलिए लोगों के एक हिस्से को अग्रिम रूप से चुना गया था, और बाद में इस चयन को संकुचित किया गया था। उसके बाद, मुख्यभूमि चीन में गवाह ली का नाम पुकारा गया था—यह मुख्यभूमि चीन में पवित्र आत्मा का पुनःप्राप्ति के कार्य का का दूसरा भाग था। यह काम का पहला कदम था जिसमें पवित्र आत्मा ने लोगों का चयन करना शुरू किया, जो पहले लोगों को इकट्ठा करना था, चरवाहे का उनकी ओर ध्यान देने के लिए प्रतीक्षा करना था, और उस सेवा को करने के लिए "गवाह ली" के नाम का उपयोग किया गया था। "सामर्थ्यवान" नाम की गवाही होने पर परमेश्वर ने व्यक्तिगत रूप से अपना कार्य किया और उसके पहले, यह एक प्रारंभिक चरण में था। इसलिए, इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि वह सही था या गलत, और परमेश्वर की योजना के अंदर यह मुख्य मुद्दा नहीं है। "सामर्थ्यवान" नाम की गवाही होने के बाद, आधिकारिक तौर पर परमेश्वर ने स्वयं अपना काम करना शुरू किया और उसके बाद, शरीर में परमेश्वर के रूप में उसके कार्यों की आधिकारिक रूप से शुरूआत हुई। "सामर्थ्यवान प्रभु" नाम के माध्यम से, उन्होंने उन सभी लोगों पर नियंत्रण किया जो विद्रोही और अवज्ञाकारी थे, और उन लोगों ने मनुष्यों की समानता ग्रहण करनी शुरू कर दी, ठीक वैसे ही जैसे कोई व्यक्ति तेईसवें या चौबीसवें वर्ष में प्रवेश करता है, तो वह एक वास्तविक वयस्क की तरह लगना शुरू कर देता है। अर्थात्, लोगों ने अभी-अभी एक सामान्य इंसान का जीवन जीना शुरू किया था, और सेवा-करने-वालों के कदम के माध्यम से, परमेश्वर का कार्य स्वाभाविक रूप से दिव्य काम निष्पादित करने के चरण में अवस्थांतर हो गया है। यह कहा जा सकता है कि काम का केवल यह चरण ही उनके इतने अधिक काम का मर्म है और कि यह उनके काम में प्राथमिक कदम है। लोग स्वयं को जानते हैं और स्वयं से नफरत करते हैं। वे ऐसी स्थिति पर पहुँच गए हैं जहाँ वे स्वयं को श्राप देने में सक्षम हैं, वे अपनी स्वयं की जिंदगी को त्याग कर प्रसन्न हैं और उन्हें परमेश्वर की सुंदरता का एक हल्का सा बोध है। यह इसी बुनियाद पर है कि वे जीवन के सही अर्थ को समझते हैं। यह परमेश्वर की इच्छा को प्राप्त करना है। मुख्य भूमि चीन में परमेश्वर का कार्य समापन के करीब आ रहा है। परमेश्वर कई वर्षों से गंदगी के इस देश में अपनी तैयारियाँ करते आ रहा है, लेकिन लोगों ने कभी भी उस स्थिति को प्राप्त नहीं किया था जिस तक वे अब पहुँच गए हैं। इसका अर्थ है कि केवल अब परमेश्वर ने औपचारिक रूप से अपना स्वयं का काम शुरू कर दिया है। इस बारे में विस्तार में जाने की कोई आवश्यकता नहीं है; इसे मनुष्य द्वारा समझाए जाने की आवश्यकता नहीं है। काम का यह चरण बिना किसी संदेह के परमेश्वर की दिव्यता के माध्यम से किया जाता है, किंतु इसे मनुष्य के माध्यम से किया जाता है। कोई भी इस से इनकार नहीं कर सकता है। यह निश्चित रूप से पृथ्वी पर परमेश्वर की महान सामर्थ्य की वजह से है कि उनका काम उस सीमा तक पहुँचा सका है जो वर्तमान में इस व्यभिचार के देश के लोगों की है। लोगों को मनवाने के लिए इस कार्य के फल को कहीं भी ले जाया जा सकता है। कोई भी इस पर हल्के ढंग से निर्णय लेने और इसे अस्वीकार करने की हिम्मत नहीं करेगा।

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