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सोमवार, 24 सितंबर 2018

वास्तविकता को कैसे जानें

परमेश्वर को जानना, मसीह, व्यावहारिक परमेश्वर, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन

वास्तविकता को कैसे जानें



परमेश्वर वास्तविकता का परमेश्वर है: उसका समस्त कार्य वास्तविक है, सभी वचन जिन्हें वह कहता है वास्तविक हैं, और सभी सच्चाईयाँ जिन्हें वह व्यक्त करता है वास्तविक हैं। हर चीज़ जो उसके वचन नहीं हैं वे खोखले, अस्तित्वहीन, और अनुचित हैं। आज, पवित्र आत्मा परमेश्वर के वचनों में लोगों का मार्गदर्शन करने के लिए है। यदि लोगों को वास्तविकता में प्रवेश की खोज करनी है, तो उन्हें अवश्य वास्तविकता को ढूँढ़ना, और वास्तविकता को जानना चाहिए, जिसके बाद उन्हें अवश्य वास्तविकता का अनुभव करना चाहिए, और वास्तविकता को जीना चाहिए।
लोग जितना अधिक वास्तविकता को जानते हैं, वे उतना ही अधिक यह बताने में समर्थ होते हैं कि दूसरों के वचन वास्तविक हैं या नहीं; लोग जितना अधिक वास्तविकता को जानते हैं, उनकी उतनी ही कम धारणाएँ होती हैं; लोग जितना अधिक वास्तविकता का अनुभव करते हैं, वे उतना ही अधिक वास्तविकता के परमेश्वर के कर्मों को जानते हैं, और उतना ही अधिक आसान उनके लिए अपने भ्रष्ट, शैतानी स्वभावों को पीछे छोड़ देना होता है; लोगों के पास जितनी अधिक वास्तविकता होती है, वे उतना ही अधिक परमेश्वर को जानते हैं, और उतना ही अधिक देह से घृणा और सत्य से प्रेम करते हैं; और लोगों के पास जितनी अधिक वास्तविकता होती है, वे परमेश्वर की अपेक्षाओं के मानकों के उतना ही अधिक करीब होते हैं। जो लोग परमेश्वर के द्वारा प्राप्त किए जाते हैं ये वे लोग हैं जो वास्तविकता से सम्पन्न हैं, और जो वास्तविकता को जानते हैं; वे लोग जिन्हें परमेश्वर के द्वारा प्राप्त किया गया है उन्हें वास्तविकता का अनुभव करने के माध्यम से परमेश्वर के वास्तविक कर्मों का पता चल गया है। जितना अधिक तुम सचमुच परमेश्वर के साथ सहयोग करोगे और अपने शरीर को अनुशासित करोगे, उतना ही अधिक तुम पवित्र आत्मा के कार्य को अर्जित करोगे, उतना ही अधिक तुम वास्तविकता को प्राप्त करोगे, और उतना ही अधिक तुम परमेश्वर के द्वारा प्रबुद्ध किए जाओगे—और इस प्रकार उतना ही अधिक परमेश्वर के वास्तविक कर्मों का तुम्हारा ज्ञान होगा। यदि तुम पवित्र आत्मा के वर्तमान प्रकाश में रहने में समर्थ हो, तो अभ्यास का वर्तमान मार्ग तुम्हें और अधिक स्पष्ट हो जाएगा, और तुम अतीत की धार्मिक धारणाओं एवं पुराने अभ्यासों से अपने आपको अलग करने में और भी अधिक सक्षम हो जाओगे। आज वास्तविकता केन्द्र बिंदु है: लोगों में जितनी अधिक वास्तविकता होगी, सत्य का उनका ज्ञान उतना ही अधिक स्पष्ट होगा, और उतनी ही अधिक विशाल परमेश्वर की इच्छा की उनकी समझ होगी। वास्तविकता सभी पत्रों और सिद्धांतों पर विजय पा सकती है, यह समस्त सिद्धान्त और विशेषज्ञता पर विजय पा सकती है, और लोग जितना अधिक वास्तविकता पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, उतना ही अधिक सचमुच में वे परमेश्वर से प्रेम करते हैं, और उसके वचनों के लिए भूखे एवं प्यासे होते हैं। यदि तुम हमेशा वास्तविकता पर ध्यान केन्द्रित करते हो, तो तुम्हारा जीवन दर्शन, धार्मिक धारणाएँ एवं प्राकृतिक चरित्र परमेश्वर के कार्य का अनुसरण करने से स्वाभाविक रूप से मिटा दिया जाएगा। जो वास्तविकता की खोज नहीं करते हैं, और जिन्हें वास्तविकता का कोई ज्ञान नहीं है, उनकी उस चीज की खोज करने की संभावना है जो अलौकिक है, और उनके साथ आसानी से छल किया जाएगा। पवित्र आत्मा के पास ऐसे लोगों में कार्य का कोई उपाय नहीं है, और इसलिए वे खालीपन महसूस करते हैं, और यह कि उनके जीवन का कोई अर्थ नहीं है।
पवित्र आत्मा तुम में केवल तभी कार्य कर सकता है जब तुम वास्तव में अभ्यास करते हो, वास्तव में खोजते हो, वास्तव में प्रार्थना करते हो, और सत्य की खोज के वास्ते दुःख उठाने को तैयार हो। जो सत्य की खोज नहीं करते हैं उनके पास पत्रों और सिद्धांतों और खोखले सिद्धांत के अलावा कुछ भी नहीं होता है, और जिनके पास सत्य नहीं होता है उनके पास परमेश्वर के बारे में स्वाभाविक रूप से अनेक धारणाएँ होती हैं। इस प्रकार के लोग परमेश्वर से केवल यही लालसा करते हैं कि वह उनकी शारीरिक देह को एक आध्यात्मिक देह में बदल दे ताकि वे तीसरे स्वर्ग में वापस जा सकें। ये लोग कितने मूर्ख हैं! ऐसी चीज़ें बोलने वाले सभी को परमेश्वर का, या वास्तविकता का कोई ज्ञान नहीं है; इस तरह के लोग संभवतः परमेश्वर के साथ सहयोग नहीं कर सकते हैं, और वे केवल निष्क्रियता से प्रतीक्षा कर सकते हैं। यदि लोगों को सत्य को समझना है, और सत्य को स्पष्ट रूप से देखना है, उससे बढ़कर, यदि उन्हें सत्य में प्रवेश करना है, और उसे अभ्यास में लाना है, तो उन्हें अवश्य वास्तव में अभ्यास करना चाहिए, वास्तव में खोजना चाहिए, और वास्तव में भूखा एवं प्यासा रहना चाहिए। जब तुम भूखे और प्यासे होते हो, और जब तुम वास्तव में परमेश्वर के साथ सहयोग करते हो, तो परमेश्वर का आत्मा निश्चित रूप से तुम्हें स्पर्श करेगा और तुम्हारे भीतर कार्य करेगा, जो तुममें और अधिक प्रबुद्धता लाएगा, और तुम्हें वास्तविकता का और अधिक ज्ञान देगा, तथा तुम्हारे जीवन के लिए और अधिक सहायक होगा।
यदि लोगों को परमेश्वर को जानना है, तो सब से पहले उन्हें यह अवश्य जानना चाहिए कि परमेश्वर वास्तविक परमेश्वर है, और परमेश्वर के वचनों को, देह में परमेश्वर के वास्तविक प्रकटन को और परमेश्वर के वास्तविक कार्य को अवश्य जानना चाहिए। केवल यह जानने के बाद ही कि परमेश्वर का समस्त कार्य वास्तविक है तुम वास्तव में परमेश्वर के साथ सहयोग करने में समर्थ हो सकोगे, और केवल इसी मार्ग के माध्यम से तुम अपने जीवन के विकास को प्राप्त करने में समर्थ हो सकोगे। वे सभी जिन्हें वास्तविकता का कोई ज्ञान नहीं है उनके पास परमेश्वर के वचनों का अनुभव करने का कोई उपाय नहीं है, वे अपनी धारणाओं में उलझे हुए हैं, वे अपनी कल्पनाओं में जीते हैं, और इस प्रकार उन्हें परमेश्वर के वचनों का कोई ज्ञान नहीं है। वास्तविकता का तुम्हारा ज्ञान जितना अधिक होता है, तुम परमेश्वर के उतने ही करीब होते हो, और तुम उसके उतने ही अधिक घनिष्ठ होते हो; तुम जितना अधिक अज्ञातता और अमूर्तता, तथा सिद्धांत की खोज करते हो, तुम परमेश्वर से उतने ही अधिक भटक जाते हो, और इस प्रकार तुम उतना ही अधिक यह महसूस करोगे कि परमेश्वर के वचनों का अनुभव करना दुःसाध्य एवं कठिन है, और कि तुम प्रवेश के लिए अक्षम हो। यदि तुम परमेश्वर के वचन की वास्तविकता में, और अपने आध्यात्मिक जीवन के सही पथ में प्रवेश करने की इच्छा करते हो, तो तुम्हें सबसे पहले वास्तविकता को जानना और अपने आप को अज्ञात एवं अलौकिक चीज़ों से पृथक करना अवश्य चाहिए—जिसका अर्थ है, कि सबसे पहले तुम्हें अवश्य समझना चाहिए कि पवित्र आत्मा किस प्रकार से वास्तव में तुम्हें भीतर से प्रबुद्ध करता और तुम्हारा मार्गदर्शन करता है। इस तरह से, यदि तुम सचमुच में अपने भीतर पवित्र आत्मा के वास्तविक कार्य को समझ सकते हो, तो तुम परमेश्वर द्वारा पूर्ण बनाए जाने के सही रास्ते में प्रवेश कर चुके होगे।
आज, हर चीज वास्तविकता से शुरू होती है। परमेश्वर का कार्य सर्वाधिक वास्तविक है, और लोगों के द्वारा स्पर्श किया जा सकता है; यह वह है जिसे लोग अनुभव कर सकते हैं और उसे प्राप्त कर सकते हैं। लोगों में ऐसा बहुत कुछ है जो अज्ञात एवं अलौकिक है, जो उन्हें परमेश्वर के वर्तमान कार्य को जानने से रोकता है। इस प्रकार, वे अपने अनुभवों में हमेशा पथभ्रष्ट हो जाते हैं, और हमेशा कठिनाई महसूस करते हैं, जो कि सब कुछ उनकी धारणाओं के कारण होता है। लोग पवित्र आत्मा के कार्य के सिद्धांतों को समझने में असमर्थ हैं, वे वास्तविकता को नहीं जानते हैं और इसलिए वे प्रवेश के अपने मार्ग में हमेशा नकारात्मक होते हैं। वे दूर से परमेश्वर की माँगों को देखते हैं, उन्हें हासिल करने में असमर्थ होते हैं; वे मात्र यह देखते हैं कि परमेश्वर के वचन वास्तव में अच्छे हैं, किन्तु प्रवेश का मार्ग नहीं खोज सकते हैं। पवित्र आत्मा इस सिद्धांत के अनुसार काम करता है: लोगों के सहयोग के माध्यम से, उनके परमेश्वर की सक्रियता से प्रार्थना करने, परमेश्वर को खोजने एवं उसके करीब आने के माध्यम से, परिणामों को प्राप्त किया जा सकता है और पवित्र आत्मा द्वारा उन्हें प्रबुद्ध और रोशन किया जा सकता है। यह ऐसा मामला नहीं है कि पवित्र आत्मा एकतरफ़ा कार्य करता है, या कि मनुष्य एकतरफ़ा कार्य करता है। दोनों ही अपरिहार्य हैं, और लोग जितना अधिक सहयोग करते हैं, और वे जितना अधिक परमेश्वर की अपेक्षाओं के मानकों को प्राप्त करने की खोज करते हैं, पवित्र आत्मा का कार्य उतना ही अधिक विशाल होता है। पवित्र आत्मा के कार्य के साथ जोड़ा गया केवल लोगों का वास्तविक सहयोग ही, परमेश्वर के वचनों के वास्तविक अनुभवों एवं सारभूत ज्ञान को उत्पन्न कर सकता है। धीरे-धीरे, इस तरीके से अनुभव करने के माध्यम से, अंततः एक पूर्ण व्यक्ति उत्पन्न होता है। परमेश्वर अलौकिक चीज़ें नहीं करता है; लोगों की धारणाओं में, परमेश्वर सर्वशक्तिमान है, और सब कुछ परमेश्वर के द्वारा किया जाता है—परिणामस्वरूप लोग निष्क्रियता से प्रतीक्षा करते हैं, परमेश्वर के वचनों को नहीं पढ़ते हैं या प्रार्थना नहीं करते हैं, और मात्र पवित्र आत्मा के स्पर्श की प्रतीक्षा करते हैं। हालाँकि, जिनके पास सही समझ है, वे यह विश्वास करते हैं कि: परमेश्वर के कार्यकलाप केवल वहाँ तक जा सकते हैं जहाँ तक मेरा सहयोग होता है, और मुझ पर परमेश्वर के कार्य का जो प्रभाव पड़ता है इस बात पर निर्भर करता है कि मैं किस प्रकार सहयोग करता हूँ। जब परमेश्वर बोलता है, तो परमेश्वर के वचनों को ढूँढ़ने और उनकी ओर प्रयत्न करने के लिए मुझे वह सब करना चाहिए जो मैं कर सकता हूँ; यही है वह जो मुझे प्राप्त करना चाहिए।
पतरस और पौलुस में तुम लोग स्पष्ट रूप से देख सकते हो कि वह पतरस था जिसने वास्तविकता पर सर्वाधिक ध्यान दिया। जिन हालातों से पतरस गुज़रा, उनसे यह देखा जा सकता है कि उसके अनुभव उन लोगों के सबकों से आए थे जो अतीत में असफल हुए थे, और यह कि उसने अतीत के संतों की शक्ति को अवशोषित कर लिया था—और इससे यह देखा जा सकता है कि पतरस के अनुभव कितने वास्तविक थे, यह कि वे लोगों को स्पर्श करने देने, और उसके योग्य होने के लिए पर्याप्त थे, और यह कि वे लोगों के द्वारा प्राप्त करने योग्य थे। यद्यपि, पौलुस भिन्न था: उसने जो कुछ भी बोला वह अज्ञात और अदृश्य था, ऐसी चीजें जैसे कि तीसरे स्वर्ग में जाना, सिंहासन पर अधिरोहण, और धार्मिकता का मुकुट। उसने उन चीजों पर ध्यान केन्द्रित किया जो बाहरी थीं: हैसियत पर, और लोगों को फटकारना, अपनी वरिष्ठता का दिखावा करने पर, पवित्र आत्मा के द्वारा स्पर्श किया जाना इत्यादि। उसने जिसका भी अनुसरण किया था वह वास्तविक नहीं था, और उसमें से बहुत कुछ कोरी कल्पना थी, और इस प्रकार यह देखा जा सकता है कि वह सब जो अलौकिक है, जैसे कि पवित्र आत्मा लोगों को कितना अधिक स्पर्श करता है, वह बड़ी खुशी जिसका लोग आनन्द उठाते हैं, तीसरे स्वर्ग में जाना, या नियमित प्रशिक्षण और उसका एक निश्चित सीमा तक आनन्द उठाना, परमेश्वर के वचनों को पढ़ना और एक निश्चित सीमा तक उनका आनंद उठाना—इसमें से कुछ भी वास्तविक नहीं है। पवित्र आत्मा का समस्त कार्य सामान्य एवं वास्तविक हैं। जब तुम परमेश्वर के वचनों को पढ़ते हो और प्रार्थना करते हो, तो भीतर से तुम प्रकाशमान और अडिग होते हो, बाहरी संसार तुम्हारे साथ हस्तक्षेप नहीं कर सकता है, अन्दर से तुम परमेश्वर से प्रेम करना चाहते हो, सकारात्मक चीज़ों में शामिल होना चाहते हो, और तुम बुराई की दुनिया से घृणा करते हो; यह परमेश्वर के भीतर जीवन जीना है, और यह, जैसा कि लोग कहते हैं, उतने आनन्द लेने की बात नहीं है—ऐसी बात वास्तविक नहीं है। आज, हर चीज वास्तविकता से आरम्भ होती है। जो कुछ भी परमेश्वर करता है वह वास्तविक है, और अपने अनुभवों में तुम्हें परमेश्वर को वास्तव में जानने, और परमेश्वर के कार्य के पदचिन्हों और उस उपाय को खोजने पर ध्यान देना चाहिए जिसके द्वारा पवित्र आत्मा लोगों को स्पर्श और प्रबुद्ध करता है। यदि तुम परमेश्वर के वचनों को खाते और पीते हो, और प्रार्थना करते हो, और, गुज़रे हुए समयों में जो कुछ अच्छा था उसे आत्मसात करते हुए, और पतरस के समान जो कुछ खराब था उसे अस्वीकार करते हुए, इस तरीके से सहयोग करते हो जो अधिक वास्तविक है, यदि तुम अपने कानों से सुनते हो और अपनी आँखों से देखते हो, और प्रायः अपने हृदय में प्रार्थना करते हो और चिंतन करते हो, और परमेश्वर के कार्य में सहयोग करने के लिए वह सब कुछ करते हो जो तुम कर सकते हो, तो परमेश्वर निश्चित रूप से तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा।

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