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शुक्रवार, 24 अगस्त 2018

बीसवाँ कथन

परमेश्वर, राज्य, विश्वास, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथन, मसीह के कथन

बीसवाँ कथन


मेरे घर की धन-सम्पति असंख्य और अथाह है, फिर भी उनका आनन्द उठाने के लिए मनुष्य मेरे पास कभी नहीं आया। वह अपने आप में उनका आनन्द उठाने में असमर्थ है, और न ही अपने स्वयं की कोशिशों से अपने आप को बचाने में समर्थ है; उसके बजाए, उसने हमेशा अपना भरोसा दूसरों पर रखा है। उन सब ने जिनको मैं देखता हूँ, किसी ने भी समझते-बूझते और प्रत्यक्ष रूप से मेरी खोज नहीं की है। दूसरों के आग्रह से वे सभी भीड़ का अनुसरण करते हुए मेरे सामने आते हैं, और वे कीमत चुकाने या अपने जीवन को समृद्ध करने के लिए समय बिताने को तैयार नहीं हैं।इसलिए, मनुष्यों में, किसी ने भी वास्तविकता में जीवन नहीं बिताया है, और सभी लोग ऐसा जीवन बिताते हैं जिसका कोई अर्थ नहीं है। मनुष्य के चिरस्थायी तरीकों और रीतियों के कारण, सभी लोगों का शरीर पृथ्वी की मिट्टी की गंध से भर गया है। परिणामस्वरूप, मनुष्य कठोर हो गया; संसार के उजाड़पन के प्रति असंवेदनशील हो गया, वह उसके बदले इस जमी हुई पृथ्वी पर अपने आप को प्रफुल्लित करने के काम में लगा हुआ है। मनुष्य के जीवन में थोड़ा-सा भी उत्साह नहीं है, और उसमें कोई मानवीय स्वाद या चमक नहीं है—फिर भी उसने हमेशा अपने आप को उसमें तपाया है, और अपना सम्पूर्ण जीवनकाल बिना महत्व के बिताया है जिस में वह बिना कुछ हासिल किए यहाँ से वहाँ भागता फिरता है। आँखों के पलक झपकाते ही, मृत्यु का दिन नज़दीक आ जाता है, और मनुष्य एक कड़वी मौत मरता है। इस संसार में, उसने कुछ भी पूर्ण नहीं किया, या कुछ भी हासिल नहीं किया है—वह जल्दी जल्दी आता है और जल्दी जल्दी चला जाता है। मेरी नज़रों में उन में से कोई कभी कुछ भी लेकर नहीं आया है या कुछ लेकर नहीं गया, और इस प्रकार मनुष्य सोचता है कि यह संसार अन्यायी है। फिर भी कोई भी जल्दी नहीं जाना चाहता है। वे महज उस दिन का इन्तज़ार करते हैं जब मेरी प्रतिज्ञा मनुष्य के बीच में अचानक से प्रकट होगी, जो उस समय उन्हें अनुमति देगी, कि जब वे भटक जाएँ, तो उन्हें एक बार फिर अनन्त जीवन का मार्ग दिखाएँ। इस तरह, मनुष्य हमेशा मेरे कामकाजों और कार्यों के बारे में सोचता एवं बात करता रहता है यह देखने के लिए कि मैंने उसके लिए अपनी प्रतिज्ञाओं को निभाया है कि नहीं। जब वह पीड़ा के मध्य या भयानक दर्द में होता है, या परीक्षाओं से घबरा जाता है और गिरने ही वाला होता है, तब मनुष्य अपने जन्म के दिन को धिक्कारने लगता है ताकि वह जल्दी से अपनी विपदाओं से बचकर निकल सके और दूसरी आदर्श जगह पर जा सके। परन्तु जब परीक्षाएँ बीत जाती हैं, तो मनुष्य आनन्द से भर जाता है। वह पृथ्वी पर अपने जन्म के दिन का आनन्द मनाता है और कहता है कि मैं उसके जन्म के दिन को आशीष दूँ; इस समय, मनुष्य भूतकाल की सौगंधों का जिक्र नहीं करता है और इस बात से बहुत ज़्यादा भयभीत होता है कि मृत्यु दूसरी बार उस पर आ जाएगी। जब मेरे हाथ संसार को आगे बढा़ते हैं, लोग आनन्द से नाचने लग जाते हैं, वे आगे से दुखी नहीं होते हैं, और वे सब के सब मुझ पर निर्भर होते हैं। जब मैं अपने हाथों से अपना चेहरा ढाँक लेता हूँ, और लोगों को नीचे ज़मीन में धँसा देता हूँ, उनकी साँस रूकने लग जाती है, और वे मुश्किल से ही जीवित रह पाते हैं। वे सभी मुझे पुकारते हैं, और इस बात से भयभीत होते हैं कि मैं उनका विनाश कर दूँगा, क्योंकि वे सभी उस दिन को देखना चाहते हैं जब मैं गौरवान्वित होऊँगा। मनुष्य मेरे दिन को अपने अस्तित्व को बनाए रखने के एक सिद्धांत के रूप में लेता है, और यह सिर्फ इसलिए है क्योंकि लोग उस दिन को देखने के लिए तरसते हैं जब मेरी महिमा का आगमन होगा और इसलिए मानवजाति आज तक जीवित बची हुई है। वह आशीष जिसकी आज्ञा मेरे मुख के द्वारा दी गई है वह यह है कि वे लोग जो आखिरी दिनों में पैदा हुए हैं मेरी सारी महिमा देखने के लिए सैाभाग्यशाली हैं।

युगों से, बहुत से लोग निराशा, और अनिच्छा के साथ इस संसार से चले गए हैं, और बहुत से लोग आशा और विश्वास के साथ इसमें आ गए हैं। मैंने बहुतों के आने का प्रबन्ध किया है, और बहुतों को दूर भेज दिया है। अनगिनित लोग मेरे हाथों से होकर गुज़रें हैं। बहुत सी आत्माओं को अधोलोक में फेंक दिया गया है, बहुतों ने देह में जीवन बिताया है, और बहुत से लोग मर चुके हैं और उन्होंने पृथ्वी पर दुबारा जन्म ले लिया है। परन्तु उनमें से किसी के पास राज्य के आशीषों का आनन्द उठाने का अवसर नहीं था। मैंने मानवजाति को इतना कुछ दिया, फिर भी उसने थोड़ा-सा ही प्राप्त किया है, क्योंकि शैतान के आक्रमणों ने उन्हें मेरी सारी समृद्धि का आनन्द उठाने में असमर्थ कर दिया है। उसके पास केवल देखने के लिए एक अच्छा भविष्य है, परन्तु उसने उसका कभी भरपूर आनन्द नहीं उठाया है। मनुष्य ने कभी भी स्वर्ग की धन-समृद्धि को पाने के लिए अपने शरीर में ख़ज़ाने से भरे घर की खोज नहीं की है, और इस प्रकार उसने उन आशीषों को खो दिया है जो मैंने उसे दिया था। क्या मनुष्य का आत्मा वह आन्तरिक शक्ति नहीं है जो उसे मेरे आत्मा से जोड़ता है? क्यों मनुष्य ने मुझे कभी भी अपनी आत्मा से नहीं जोड़ा है? वह देह में मेरे निकट क्यों आता है, फिर भी वह आत्मा में ऐसा नहीं कर पाता है? क्या मेरा असली चेहरा हड्डी और माँस का है? मनुष्य मेरे सार-तत्व को क्यों नहीं जानता? क्या वास्तव में मनुष्य की आत्मा में मेरा कोई पदचिन्ह कभी नहीं रहा है? क्या मैं मनुष्य की आत्मा से पूरी तरह ग़ायब हो चुका हूँ? यदि मनुष्य आत्मिक क्षेत्र में प्रवेश नहीं करता, तो वह मेरी इच्छाओं का आभास कैसे कर पाएगा? क्या मनुष्य की आँखों में वह बात है जो सीधे आत्मिक क्षेत्र को भेद सकती है? कई बार ऐसा हुआ है जब मैंने अपने आत्मा के द्वारा मनुष्य को आवाज़ दी है, फिर भी मनुष्य ऐसा व्यवहार करता है मानो मैंने उसे छुरा भोंक दिया है, और वह अति भय के साथ दूर से मेरे बारे में विचार करता है कि मैं उसे किसी और दुनिया में ले जाऊँगा। कई बार ऐसा हुआ जब मैंने मनुष्य की आत्मा से पूछताछ कि, फिर भी वह भुलक्कड़ बना रहता है, और बहुत ज़्यादा डर जाता है कि मैं उसके घर में घुस जाऊँगा और उस अवसर का लाभ उठा कर उसकी सारी सम्पति को छीन लूँगा। अत; वह मुझे बाहर निकाल देता है और मैं सर्द, कसकर बन्द किए दरवाज़े के सामने खड़ा रह जाता हूं। कई बार ऐसा हुआ जब मनुष्य गिर गया और मैंने उसे बचाया, फिर भी जागने के बाद वह तुरंत ही मुझे छोड़ देता है और, मेरे प्रेम का एहसास किए बगैर, मुझे चौकन्नी निगाहों से देखता है; मानो मैंने उसके हृदय को कभी उत्साहित नहीं किया है। मनुष्य भावना-शून्य है, और नृशंस पशु है। यद्यपि वह मेरे आलिंगन से उत्साहित होता है, फिर भी वह कभी इस से भावविभोर नहीं हुआ है। मनुष्य पहाड़ी जंगली जीव के समान है। उसने कभी भी मानवजाति के प्रति ताड़ना को संजो कर नहीं रखा है। वह मेरे पास आने से आनाकानी करता है, और पहाड़ों पर रहना पसंद करता है, जहाँ उसे जंगली जानवरों से खतरा रहता है फिर भी वह मेरे आश्रय में आना नहीं चाहता है। मैं किसी मनुष्य को बाध्य नहीं करता हूँ: मैं महज अपना कार्य करता हूँ। वह दिन आएगा जब मनुष्य सामर्थी महासागर के बीच में से तैर कर मेरे पास आ जाएगा, ताकि वह पृथ्वी पर सभी समृद्धि का आनन्द उठाए और समुद्र के द्वारा निगले जाने के भय को पीछे छोड़ दे।
मेरे वचनों के पूर्ण होने के बाद, राज्य धीरे-धीरे पृथ्वी पर आकार लेने लगता है और मनुष्य धीरे-धीरे सामान्य हो जाता, और इस प्रकार पृथ्वी पर मेरे हृदय में राज्य स्थापित हो जाता है। उस राज्य में, परमेश्वर के सभी लोगों को सामान्य मनुष्य का जीवन वापस मिल जाता है। बर्फीली शीत ऋतु चली गई है, उसका स्थान बहारों के संसार ने ले लिया है, जहाँ साल भर बहार बनी रहती है। लोग आगे से मनुष्य के उदास और अभागे संसार का सामना नहीं करते हैं, और न ही वे आगे से मनुष्य के शांत ठण्डे संसार को सहते हैं। लोग एक दूसरे से लड़ाई नहीं करते हैं। एक दूसरे के विरूद्ध युद्ध नहीं करते हैं, वहाँ अब कोई नरसंहार नहीं होता है और न ही नरसंहार से लहू बहता है; पूरी ज़मीं प्रसन्नता से भर जाती है, और यह हर जगह मनुष्यों के बीच उत्साह को बढ़ाता है। मैं पूरे संसार में घूमता हूँ, मैं ऊपर सिंहासन से आनन्दित होता हूँ, और मैं सितारों के मध्य रहता हूँ। और स्वर्गदूत मेरे लिए नए नए गीत गाते और नए नए नृत्य करते हैं। अब उनके चेहरों से उनकी स्वयं की क्षणभंगुरता के कारण आँसू नहीं ढलकते हैं। मैं अब अपने सामने स्वर्गदूतों के रोने की आवाज़ नहीं सुनता हूँ, और अब कोई मुझ से किसी कठिनाई की शिकायत नहीं करता है। आज, तुम लोगमेरे सामने रहते हो; कल तुम लोग मेरे राज्य में बने रहोगे। क्या यह सब से बड़ा आशीष नहीं है जिसे मैं मनुष्य को देता हूँ? उस कीमत के कारण जो तुम लोग आज चुकाते हो, तुम लोग भविष्य की आशीषों को विरासत में प्राप्त करोगे और मेरी महिमा के मध्य रहोगे। क्या तुम लोग अभी भी मेरे आत्मा के मुख्य तत्व के साथ शामिल नहीं होना चाहते हो? क्या तुम लोग अभी भी अपने आप को खत्म करना चाहते हो? लोग उस प्रतिज्ञा का अनुसरण करने के इच्छुक हैं जिसे वे देख सकते हैं, भले ही वे अल्पजीवी हैं, फिर भी कोई भी कल की प्रतिज्ञाओं को स्वीकार करने के लिए इच्छुक नहीं है, भले ही वे पूरे अनन्त काल के लिए हों। वे चीज़ें जो मनुष्य को दिखाई देती हैं वे ऐसी चीज़ें हैं जिनका मैं सम्पूर्ण विनाश करूँगा, और ऐसी चीज़ें जो मनुष्य के लिए दृष्टिगोचर नहीं है वे ऐसी चीज़ें हैं जिन्हें मैं पूरा करूँगा। परमेश्वर और मनुष्य के बीच में यही अन्तर है।
मनुष्य मेरे दिन का लिखित ब्योरा रखता है, फिर भी किसी ने वास्तविक तिथि को कभी नहीं जाना, और इस प्रकार मनुष्य केवल जड़ता के मध्य में ही जीवन बिता सकता है। अनन्त आसमानों में मनुष्य की लालसाएँ प्रतिध्वनित होती हैं, और फिर ग़ायब हो जाती हैं, और मनुष्य बार बार अपनी आशा को खो देता है, इस तरह वह वर्तमान परिस्थितियों में नीचे गिरता चला जाता है। मेरे कथनों का उद्देश्य मनुष्यों से तिथियों का अनुसरण करवाना नहीं है, न ही उनकी हताशा के परिणामस्वरूप उन्हें स्वयं के विध्वंस की ओर धकेलना है। मैं चाहता हूँ कि मनुष्य मेरी प्रतिज्ञाओं को स्वीकार करें, और मैं पूरे संसार के लोगों से चाहता हूँ कि वे मेरी प्रतिज्ञाओं के भागी बनें। मैं ऐसे जीवित प्राणियों को चाहता हूँ जो जीवन से भरपूर हैं, लाशों को नहीं जो मौत के कगार पर हैं चूंकि मैं राज्य की मेज पर झुकता हूँ, तो मैं पृथ्वी के सभी लोगों को आज्ञा दूँगा कि वे मेरे निरीक्षण को स्वीकार करें। मैं अपने सामने किसी अशुद्ध वस्तु की मौजूदगी की अनुमति नहीं देता हूँ। मैं अपने कार्य में किसी मनुष्य की दखल अंदाजी की अनुमति नहीं देता हूँ। वे सभी जो मेरे काम में हस्तक्षेप करते हैं उन्हें कैदखाने में फेंक दिया जाता है, और छूटने के बाद भी वे महा विपत्तियों से घिरे रहते हैं और पृथ्वी की आग की ज्वाला में झुलसते रहते हैं। जब मैं अपने देहधारी शरीर में हूँ, तब जो कोई मेरे कार्यों को लेकर मेरी देह के साथ वादविवाद करता है उस से मैं घृणा करूँगा। अनेक बार मैंने मनुष्य को स्मरण दिलाया कि पृथ्वी पर मेरा कोई सगा-सम्बन्धी नहीं है, और जो कोई मुझे बराबरी के लिहाज से देखता है, और अपनी ओर खींचता है ताकि हम अतीत के यादों को स्मरण कर सके, तो उसकाविनाश हो जाएगा। मैं यही आज्ञा देता हूँ। ऐसे मामलों में मैं मनुष्य के प्रति थोड़ा भी कोमल नहीं हूँ। वे सभी जो मेरे कार्यों में हस्तक्षेप करते हैं और मुझे परामर्श देते हैं उन्हें मेरे द्वारा प्रताड़ित किया जाएगा, और मेरे द्वारा उन्हें कभी क्षमा नहीं किया जाएगा। यदि मैं साफ-साफ न कहूँ, तो मनुष्य कभी अपने आपे में नहीं आएगा, और अनजाने में मेरी ताड़नाओं को पाएगा—क्योंकि मनुष्य मुझे मेरी देह में नहीं जानते हैं।
20 मार्च 1992

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