तहेदिल से परमेश्वर की आत्मा को स्पर्श करके लोग परमेश्वर पर विश्वास करते हैं, उससे प्रेम करते हैं, और उसे संतुष्ट करते हैं, और इस प्रकार वे परमेश्वर की संतुष्टि प्राप्त करते हैं; जब वे तहेदिल से परमात्मा के शब्दों को समझते हैं, तो परमेश्वर की आत्मा का उन पर भावनात्मक प्रभाव पड़ता है। यदि तुम एक उचित आध्यात्मिक जीवन प्राप्त करना चाहते हो और परमेश्वर के साथ एक उचित संबंध स्थापित करना चाहते हैं, तो तुमको पहले उसे अपना हृदय अर्पित करना होगा, और अपने हृदय को उनके सामने शांत करना होगा।
अनुभव से यह देखा जा सकता है कि सबसे महत्वपूर्ण मुद्दों में से एक है परमेश्वर के सामने अपने दिल को शांत करना। यह एक ऐसा मुद्दा है जो लोगों के आध्यात्मिक जीवन से और उनके जीवन के विकास से संबंधित है। तुम्हारा दिल जब परमेश्वर के सामने शांत रहेगा, केवल तभी सत्य की तुम्हारी खोज और तुम्हारे स्वभाव में परिवर्तनों का फल प्राप्त होगा। तुम परमेश्वर के सामने बोझ से दबे हुए आते हो और तुम हमेशा महसूस करते हो कि तुम्हारे जीवन में बहुत कमियाँ हैं, ऐसे कई सत्य हैं जिन्हें तुमको जानना है, ऐसी कई वास्तविकताएं हैं जो तुमको अनुभव करने की आवश्यकता है, और यह कि तुमको अपनी हर चिंता परमेश्वर की इच्छा पर छोड़ देनी चाहिए—ये बातें हमेशा तुम्हारे दिमाग़ में चलती रहती हैं, और ऐसा लगता है जैसे ये बातें तुम पर इतना दबाव डाल रही हैं कि तुम्हारे लिए साँस लेना मुश्किल हो गया है, और यही वजह है कि तुम्हारा दिल भारी-भारी महसूस करता है (लेकिन एक नकारात्मक तरह से नहीं)। केवल ऐसे लोग ही परमेश्वर के वचनों की प्रबुद्धता को स्वीकार करने और परमेश्वर की आत्मा से प्रेरित होने के योग्य हैं। यह उनके बोझ की वजह से है, क्योंकि उनका दिल भारी-भारी महसूस करता है, और, कहा जा सकता है कि परमेश्वर के सामने जो कीमत वे अदा कर चुके हैं और जिस पीड़ा से वे गुज़र चुके हैं उसके कारण वे उसकी प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त करते हैं, क्योंकि परमेश्वर किसी का विशेष रूप से सत्कार नहीं करता है। लोगों के प्रति अपने व्यवहार में वह हमेशा निष्पक्ष रहता है, लेकिन वह लोगों को जो प्रदान करता है वह उसे मनमाने ढंग से और बिना किसी शर्त के नहीं देता है। यह उसके धर्मी स्वभाव का एक पहलू है। वास्तविक जीवन में, अधिकांश लोग अभी तक इस क्षेत्र को प्राप्त करने से दूर हैं। कम से कम, उनका दिल अभी भी पूरी तरह से परमेश्वर की ओर नहीं झुका है, और इसलिए उनके जीवन स्वभाव में अभी भी कोई बड़ा परिवर्तन नहीं हो पाया है। इसका कारण यह है कि वे केवल परमेश्वर की कृपा के बीच रहते हैं, लेकिन वे अभी भी पवित्र आत्मा के कार्य को हासिल नहीं कर पाए हैं। लोगों का उपयोग करने के लिए परमेश्वर इन मानदंडों का इस्तेमाल करता है: उनका दिल परमेश्वर की ओर झुका होता है, परमेश्वर के वचनों का उनपर बोझ पड़ता है, उनके पास तड़पता हुआ दिल और सत्य को तलाशने का संकल्प होता है। केवल ऐसे लोग ही पवित्र आत्मा के कार्य को प्राप्त कर सकते हैं और अक्सर प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त कर पाते हैं। जिन लोगों का परमेश्वर इस्तेमाल करता है, वे बाहर से तर्कहीन प्रतीत होते हैं और ऐसा लगता है कि दूसरों के साथ वे उचित संबंध नहीं रख पाते, हालांकि वे औचित्य के साथ और न कि लापरवाही के साथ बोलते हैं, और परमेश्वर के सामने हमेशा शांत हृदय रख पाते हैं। लेकिन केवल इसी तरह का व्यक्ति पवित्र आत्मा द्वारा इस्तेमाल किए जाने के लिए पर्याप्त है। जिन “तर्कहीन” व्यक्तियों के बारे में परमेश्वर बात करता है वे कुछ ऐसे दिखते हैं जैसे उनके दूसरों के साथ कोई भी उचित संबंध नहीं हैं, और उनका कोई भी बाहरी प्रेम या दिखावटी अभ्यास नहीं हैं, लेकिन जब वे आध्यात्मिक चीज़ों पर संवाद करते हैं, तो वे अपने दिल को पूरी तरह खोल सकते हैं और निस्वार्थ रूप से दूसरों को वह रोशनी और प्रबुद्धता प्रदान कर सकते हैं जो उन्होंने परमेश्वर के साथ अपने वास्तविक अनुभव से हासिल की है। यही वह तरीका है जिससे वे परमेश्वर के प्रति अपना प्रेम व्यक्त करते हैं और परमेश्वर की इच्छा को पूरा करते हैं। जब दूसरे सभी लोग उनकी निंदा और उपहास कर रहे होते हैं, तो वे बाहर के लोगों, घटनाओं, या चीज़ों द्वारा नियंत्रित नहीं किए जा सकते हैं, और फिर भी परमेश्वर के सामने शांत रह पाते हैं। ऐसे व्यक्ति के पास अपनी स्वयं की अनूठी अंतर्दृष्टि होती है। दूसरे चाहे कुछ भी कहें या करें, उनका दिल कभी भी परमेश्वर से दूर नहीं जाता है। जब दूसरे लोग उत्साहपूर्वक और मज़ाकिया ढंग से बातें करते हैं, तो उनका दिल तब भी परमेश्वर के समक्ष रहता है, परमेश्वर के वचनों पर विचार करता रहता है या उनकी मंशा प्राप्त करने के प्रयास में अपने मन में परमेश्वर को चुपचाप प्रार्थना करता रहता है। वे दूसरों के साथ अपने उचित संबंधों को बनाए रखने के प्रयास को अपने ध्यान का मुख्य केंद्र नहीं बनाते हैं। इस तरह के व्यक्ति का जीवन के बारे में कोई दर्शनशास्त्र नहीं होता है। बाहरी रूप से ऐसा व्यक्ति जीवंत, प्रिय, और मासूम होता है, लेकिन उसके पास शांति की भावना मौजूद रहती है। परमेश्वर जिन व्यक्तियों का उपयोग करता है उनमें कुछ ऐसे ही गुण होते हैं। जीवन का दर्शनशास्त्र या “सामान्य तर्क” जैसी चीज़ें इस प्रकार के व्यक्ति पर असर नहीं करतीं; इस प्रकार के व्यक्ति ने अपना पूरा दिल परमेश्वर के वचनों को समर्पित कर दिया होता है, और उसके दिल में परमेश्वर होता है। यह उस प्रकार का व्यक्ति है जिसे परमेश्वर “तर्कहीन” व्यक्ति के रूप में देखता है और केवल यही वह व्यक्ति है जिसे परमेश्वर द्वारा उपयोग किया जाता है। परमेश्वर द्वारा उपयोग किए जाने वाले व्यक्ति का चिह्न है: चाहे कोई भी समय या जगह हो, उसका दिल हमेशा परमेश्वर के समक्ष रहता है, और दूसरे चाहे जितने ही अनैतिक हों, जितने भी वे वासना और शरीर में लिप्त हों—उसका दिल कभी भी परमेश्वर को नहीं छोड़ता, और वह भीड़ के पीछे कभी भी नहीं जाता। केवल इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर द्वारा उपयोग के लिए अनुकूल है, और यही वह व्यक्ति है जिसे वास्तव में पवित्र आत्मा द्वारा परिपूर्ण किया जाता है। यदि तुम इस बिंदु तक नहीं पहुंच पा रहे हो, तो तुम परमेश्वर द्वारा प्राप्त होने के, पवित्र आत्मा द्वारा परिपूर्ण होने के लिए योग्य नहीं हैं।
यदि तुम परमेश्वर के साथ एक उचित संबंध बनाना चाहते हो, तो ज़रूरी है कि तुम्हारा दिल उसकी तरफ़ झुके, और इस बुनियाद पर, तुम दूसरों के साथ भी उचित संबंध बनाओगे। यदि परमेश्वर के साथ तुम्हारा उचित संबंध नहीं है, तो चाहे तुम दूसरों के साथ संबंध बनाए रखने की जितनी भी कोशिश कर लो, चाहे तुम जितनी भी मेहनत कर लो या जितनी भी ताक़त लगा दो, वह तब भी जीवन के मानवीय दर्शनशास्त्र का हिस्सा रहेगा। वह तुम लोगों के बीच एक मानवीय दृष्टिकोण और मानवीय दर्शनशास्त्र के माध्यम से अपनी स्थिति बनाकर रख रहा है ताकि वे तुम्हारी प्रशंसा करे। तुम परमेश्वर के वचनों के अनुसार लोगों के साथ उचित संबंध स्थापित नहीं करते हैं। यदि तुम लोगों के साथ अपने संबंधों पर ध्यान केंद्रित नहीं करते हो लेकिन परमेश्वर के साथ एक उचित संबंध बनाए रखते हो, अगर तुम अपने दिल को परमेश्वर को देने के लिए और उसकी आज्ञा का पालने करने के लिए तैयार हो, तो बहुत स्वाभाविक है कि सभी लोगों के साथ तुम्हारे संबंध सही हो जाएंगे। इस तरह से, ये संबंध शरीर के स्तर पर स्थापित नहीं होंगे, बल्कि परमेश्वर का प्रेम इनकी बुनियाद होगा। शरीर के आधार लगभग कोई मेलजोल नहीं होता है, लेकिन उसकी आत्मा में साहचर्य है, और साथ ही साथ प्रेम, आराम और एक दूसरे के लिए आदान-प्रदान की भावना है। यह सब एक ऐसे हृदय पर आधारित होता है, जो परमेश्वर को संतुष्ट करता हो। ये संबंध जीवन के मानवीय दर्शनशास्त्र के आधार पर नहीं बनाए रखे जाते हैं, बल्कि वे बहुत ही स्वाभाविक रूप से परमेश्वर के लिए बोझ के माध्यम से बनते हैं। इसके लिए मानवीय प्रयासों की आवश्यकता नहीं होती—परमेश्वर के वचन के सिद्धांतों के माध्यम से उन पर चला जाता है। क्या तुम परमेश्वर की इच्छा की ओर विचारशील होने के लिए तैयार हो? क्या तुम परमेश्वर के समक्ष “तर्कहीन” के व्यक्ति बनने के लिए तैयार हो? क्या तुम पूरी तरह से अपने दिल को परमेश्वर को देने के लिए और लोगों के बीच अपनी स्थिति के बारे में चिंता न करने के लिए तैयार हो? जिन सभी लोगों के साथ तुम्हारे संपर्क हैं, उनमें से किनके साथ तुम्हारे सबसे अच्छे संबंध हैं? इनमें से किनके साथ तुम्हारे सबसे खराब संबंध हैं? क्या लोगों के साथ तुम्हारे संबंध उचित हैं? क्या तुम सभी लोगों को बराबरी का दर्जा देते हो? क्या दूसरों के साथ तुम्हारे संबंध स्वयं के जीवन के दर्शनशास्त्र के अनुसार बनाए गए हैं, या क्या वे परमेश्वर के प्रेम की बुनियाद पर बने हैं? जब कोई परमेश्वर को अपना दिल नहीं देता, तो उसकी आत्मा सुस्त, सुन्न और बेसुध हो जाती है। इस प्रकार का व्यक्ति परमेश्वर के वचनों को कभी नहीं समझेगा और परमेश्वर के साथ कभी भी उसके संबंध उचित नहीं होंगे; इस तरह का व्यक्ति अपने स्वभाव को कभी भी नहीं बदलेगा। अपने स्वभाव को बदलने की प्रक्रिया में व्यक्ति पूरी तरह से परमेश्वर को अपना दिल अर्पित करता है, और परमेश्वर के वचनों से प्रबुद्धता और रोशनी प्राप्त करता है। परमेश्वर का कार्य किसी के लिए भी सक्रियता से प्रवेश करना संभव कर सकता है, और साथ ही ज्ञान प्राप्त करने के बाद उसे अपने नकारात्मक पहलुओं से मुक्त करने में सक्षम बना सकता है। जब तुम अपना दिल परमेश्वर को समर्पित करते हो, तो तुम अपनी आत्मा के भीतर हल्की-सी प्रत्येक हलचल को समझ पाओगे, और तुम परमेश्वर से प्राप्त हर प्रबुद्धता और रोशनी को जान सकोगे। इसे पकड़ कर रखो, और तुम धीरे-धीरे पवित्र आत्मा द्वारा परिपूर्ण होने की राह में प्रवेश करोगे। तुम्हारा दिल परमेश्वर के समक्ष जितना शांत रह पाएगा, तुम्हारी आत्मा उतनी अधिक संवेदनशील और नाज़ुक रहेगी, और उतनी अधिक तुम्हारी आत्मा पवित्र आत्मा की हलचल को समझ पाएगी, और फिर परमेश्वर के साथ तुम्हारा संबंध अधिक से अधिक उचित होता जाएगा। लोगों के बीच एक उचित संबंध परमेश्वर को अपना दिल सौंपने की नींव पर स्थापित होता है; यह मानवीय प्रयासों के माध्यम से प्राप्त नहीं किया जाता। परमेश्वर के बिना, लोगों के बीच संबंध केवल शरीर के स्तर पर रह जाते हैं। वे उचित नहीं होते, बल्कि वासना से आसक्त होते हैं—वे ऐसे रिश्ते होते हैं जिनसे परमेश्वर घृणा करता है, जिनसे वह नफ़रत करता है। यदि तुम कहते हो कि तुम्हारी आत्मा पर प्रभाव हुआ है, लेकिन तुम हमेशा उन लोगों के साथ साहचर्य चाहते हो जो तुमको आकर्षित करते हैं, जिन्हें तुम उत्कृष्ट मानते हो, और वहीं एक दूसरा साधक है जो तुमको आकर्षित नहीं करता है, जिसके बारे में तुम्हारे पूर्वाग्रह हैं और तुम उनके साथ मेलजोल नहीं करते हो, तो यह भी प्रमाण है कि तुम एक भावुक व्यक्ति हो और परमेश्वर के साथ तुम्हारे उचित संबंध नहीं हैं। तुम परमेश्वर को धोखा देने का और अपनी कुटिलता को छिपाने का प्रयास कर रहे हो। अगर तुम कुछ समझ साझा कर पाते हो, लेकिन तुम्हारे इरादे गलत हैं, तो तुम जो कुछ भी करते हो वे केवल मानवीय मानकों से ही अच्छे हैं। परमेश्वर तुम्हारी प्रशंसा नहीं करेगा—तुम शरीर के अनुसार काम कर रहे हो, परमेश्वर के बोझ के अनुसार नहीं। यदि परमेश्वर के सामने तुम अपने दिल को शांत करने में सक्षम हो और उन सभी लोगों के साथ तुम्हारे उचित संबंध हैं जो परमेश्वर से प्रेम करते हैं, केवल तब ही तुम परमेश्वर के उपयोग के लिए उपयुक्त होगे। इस तरह से चाहे तुम दूसरों के साथ जैसे भी जुड़े हो, तुम जीवन के दर्शनशास्त्र के अनुसार नहीं जुड़ोगे, बल्कि यह परमेश्वर के सामने जीना होगा, उसके बोझ के प्रति विचारशील होना होगा। तुम लोगों बीच ऐसे कितने लोग हैं? क्या दूसरों के साथ तुम्हारे संबंध वास्तव में उचित हैं? ये रिश्ते किस बुनियाद पर बने हैं? तुम्हारे भीतर जीवन के कितने दर्शनशास्त्र हैं? क्या तुमने उन्हें त्याग दिया है? यदि तुम्हारा दिल पूरी तरह से परमेश्वर की तरफ़ नहीं झुक पाता है, तो तुम परमेश्वर के नहीं बने हुए—तुम शैतान से आते हो, और अंत में तुम शैतान के पास लौट जाओगे। तुम परमेश्वर के लोगों में से एक होने के योग्य नहीं हो। इन सभी बातों पर तुम्हें सावधानीपूर्वक विचार करने की आवश्यकता है।
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